2018 में कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान कुछ प्राकृतिक आपदाओं के कारण भारतीय विदेश मंत्रालय ने पैदल ट्रेक के रास्ते के बजाय हम लोगो को आर्मी हेलीकाप्टर से सीधा पिथौरागढ़ से गुंजी भेजना शुरू किया। लेकिन मौसम के लगातार कई दिनों तक खराब रहने के कारण हम लोगो को उत्तराखंड की अलग अलग जगहों पर KMVN की होटल्स में रुकवाया गया। इसी दौरान हमको मौका मिला उत्तराखंड की एक सबसे प्यारी जगह पर 4 दिन रुकने का और इस छोटी सी जगह का नाम हैं -चौकौरी।
समुद्रतल से करीब 6500 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित यह छोटा सा हिल स्टेशन ,पिथौरागढ़ से करीब 85 किमी की दुरी पर स्थित हैं।अल्मोड़ा से करीब 100 किमी दूर इस जगह जब आप अल्मोड़ा की ओर से हो कर आएंगे तो पूरा रास्ता शानदार हरे भरे बागानों से भरा मिलेगा। कुछ जगह कई सारे आम के पेड़ भी मिलेंगे, जहाँ पेड़ों के निचे कई सारे आम भी बिखरे मिलेंगे। आप अगर वहा रुकेंगे तो वहा के लोगों के साथ आम तोड़ कर भी खा सकते हैं।करीब 1200 लोगो की आबादी वाले इस गांव में जब आप पहुंचोगे तो पाओगे कि वाकई में शांति सुकून की इस से प्यारी जगह आपको कही नहीं मिलेगी। आप यहाँ चाहे परिवार के साथ आये ,दोस्तों के साथ आये या हनीमून पर आये , क़्वालीटी टाइम बिताने के लिए यह जगह परफेक्ट हैं।
चौकौरी में प्रसिद्द हैं यहाँ का KMVN गेस्ट हाउस :
यहाँ का KMVN का गेस्ट हाउस सबसे प्रसिद्द हैं। जब आप गूगल पर चौकोरी के बारे में सर्च भी करोगे तो इस जगह का फोटो ही आपको दिखाया जायेगा क्योंकि इस गाँव में घूमने के लिए कोई जगह नहीं हैं लेकिन इसके आस पास बहुत कुछ चीजे हैं और लोग इस जगह केवल इस गेस्ट हाउस में ठहरने आते हैं। यह गेस्ट हाउस गाँव की सबसे अच्छी जगह पर ,सबसे दूर बना हुआ हैं। इसके आस पास केवल कुछ मकान और कुछ चाय बिस्किट की दुकाने हैं। अंदर प्रवेश करते ही आप एक बगीचे के साथ इसके खूबसूरत कॉटेज को देख कर उन्ही में रहने का मानस बना लेंगे। इस बगीचे में कई तरह के फूल के साथ साथ कुछ सब्जियां जैसे गाजर मूली आदि के पौधे भी मिलेंगे। कॉटेज के अलावा यहाँ के दूसरे ब्लॉक में आप इन्ही की बहुमंजिला ईमारत में कमरा लेके भी रह सकते हैं। बड़े परिवार के लिए फॅमिली कॉटेज भी यहाँ मिलते हैं। यहाँ एक वॉचटॉवर भी बना हुआ हैं ,जिसपर चढ़ कर सुबह की चाय के साथ बर्फीली पंचचूली चोटियों का आनंद लिया जा सकता हैं।सूर्योदय के समय ये चोटियां गोल्डन रंग में चमकती दिखती हैं ,वही बारिश के समय यह बादलों की ओट में छिपी हुई दिखाई देती हैं।
कैलाश मानसरोवर की यात्रा के दौरान जब हम यहाँ 4 दिन रुके रहे तो हम यहाँ के गाँव वालों के साथ उनकी दुकानों के बाहर कैरम खेलते ,दूर दूर तक साइकिल ले कर जाते एवं उन्ही की चाय की दूकान में हम कुछ दोस्त लोग उन्हें चाय बना कर पिलाते। इसीलिए अगर आप यहाँ लम्बे समय के लिए भी रहना चाहे तो आप इन लोगो के साथ ग्रामीण इलाको का भी अनुभव ले सकते हैं।हाँ ,रात्रि के समय मॉस्किटो रेपेलेंट क्रीम लगाकर रहना चाहिए ,क्योकि यहाँ कई छोटे छोटे कीड़े मकोड़े आपको काट सकते हैं ,जिस से आपको तकलीफ हो सकती हैं क्योकि ऐसा हमारे साथ हुआ था।
यहाँ भूमि के करीब 100 फ़ीट निचे उतर कर रोमांच और आस्था के संगम को महसूस करे :
उत्तराखंड में पहाड़ो पर चढ़ना ही नहीं ,कभी कभी पहाड़ों के अंदर भी उतरना पड़ सकता हैं। अगर आप उत्तराखंड में कुछ नया ढूंढ रहे हैं तो पाताल भुवनेश्वर मंदिर आप के लिए ही हैं। चौकोरी से करीब 40 किमी की दुसरी पर स्थित 'पाताल भुवनेश्वर मंदिर ' असल में देवदार के घने जंगलों के बीच अनेक भूमिगत गुफ़ाओं का संग्रह है जिसमें से एक बड़ी गुफ़ा के अंदर शंकर जी का मंदिर स्थापित है।इस गुफ़ा में प्रवेश का एक बहुत ही संकरा,लगभग चार फ़ीट चौड़ा रास्ता है जो कि क़रीब 100 फीट नीचे जाता है।नीचे उतरने के लिए आपको एक लोहे की जंजीर को पकड़ कर धीरे धीरे लेट कर उतरना होता हैं। लेकिन गुफ़ा में सीढियां उतरते ही एक बडे कमरे में आप अपने को कई सारे देवी-देवताओं की प्रतीकात्मक शिलाओं, प्रतिमाओं व बहते हुए पानी के मध्य पाते हैं। यहाँ नीचे एक दूसरे से जुड़ी कई गुफ़ायें है जिन पर पानी रिसने के कारण विभिन्न आकृतियाँ बन गयी है जिनकी तुलना वहाँ के पुजारी अनेकों देवी देवताओं से करते हैं। ये गुफ़ायें पानी ने चूना पत्थर को काटकर बनाईं हैं। गुफ़ाओं के अन्दर प्रकाश की उचित व्यवस्था भी मौजूद नहीं है।पूरी गुफा मे जगह जगह पानी रिसता हुआ दिखाई देता हैं।अंदर आपको शेषनाग ,ब्रम्हा ,विष्णु ,महेश,गणेश ,कामधेनु आदि के प्रतीकात्मक दर्शन करवाए जाते हैं।अंदर टोर्च के सहारे आपको इस करीब 200 मीटर लम्बी गुफा मे, दो घंटे का वक़्त चाहिए होता हैं। कभी कभी काफी वरिष्ठ लोगो को अंदर सास लेने भी तकलीफ होने लग जाती हैं।
नेचर वाक के लिए हैं यहाँ कई घने जंगल एवं पहाड़ियां :
प्रकृति प्रेमी एवं फोटोग्राफर्स के लिए यह जगह कोई जन्नत से कम नहीं। चारो तरफ हरे भरे बागान , रंग बिरंगे पक्षी और उनकी चहचहाहट ,सूर्योदय में चमकती बर्फीली चोटियां ,शांत एवं साफ़ सुथरे ग्रामीण इलाके ,घने जंगल और इनके बीच लकड़ी के बने कॉटेज ,एक प्रकृतिप्रेमी के लिए इस से ज्यादा सुखदायक जगह क्या हो सकती हैं। अगर आपको यहाँ से दिखाई देती हरी भरी घनी पहाड़ियों पर ट्रेक के लिए जाना हो तो आप यहाँ के लोकल लोगो की मदद से यह ट्रेक कर सकते हैं। हमने बारिश के समय यहाँ की कुछ पहाड़ियों के ट्रेक किये थे ,बारिश में ये ट्रेक काफी चैलेंजिंग हो जाते हैं क्योकि एक तो आपको यहाँ चलने के लिए कोई पगडण्डी नहीं मिलेगी तो आपको अपना रास्ता खुद बनाते हुए ऊपर चोटियों तक पहुंचना होता हैं ,दूसरा के समय ऊपर इतनी फिसलन होती हैं कि हर आदमी ,चाहे कितना भी अच्छा ट्रेक्कर क्यों ना हो ,एक मर्तबा तो गिरेगा ही। अगर आप दोस्तों के समूह के साथ यहाँ जा रहे हो ,तो
दोस्तों को बार बार फिसलता देख आप इतना हसेंगे कि कई बार हसते हसते आप खुद गिर जायेंगे। यहाँ ट्रेक के दौरान छोटी छोटी जोंके आप के शरीर पर जरूर चिपकेगी। अगर आप इन जंगलों में कही भी केवल एक मिनट के लिए भी रुकेंगे तो कही न कही से 2 -3 जोंके जरूर आप पर चिपक कर खून पीने लग जाएगी और जब आप अपने जूते या कपड़े उतारोगे तो आपको कई जोंके शरीर पर मिलेगी जहाँ थोड़ा थोड़ा खून भी मिलेगा।
यहाँ देखो उत्तराखंड का राज्य पशु ,जिसकी नाभि में बहती हैं सुगन्धित धारा:
कस्तुरी मृग मतलब 'हिमायलन मस्क डियर' ,उत्तराखंड के इस राज्य पशु को भी यहाँ देखा जा सकता हैं अगर आपको परमिशन मिल जाए तो। इन कस्तूरी मृगो का एक अनुसन्धान केंद्र चौकौरी से कुछ ही दुरी पर एक वीरान क्षेत्र की घनी पहाड़ी पर बना हुआ हैं।अपनी आकर्षक खूबसूरती के साथ यह जीव नाभि से निकलने वाली खुशबू के लिए मुख्य रूप से जाना जाता है।यह खुशबू इन जीवों में एक ग्रंथि के कारण पायी जाती हैं। इसको प्राप्त करने के लिए, इन्हे मार डाला जाता है और उसकी ग्रंथि "कस्तूरी फली" ,को निकाल दिया जाता है।जिसे सूखा कर ,अल्कोहल के साथ मिला कर इस बने पदार्थ से इत्र बनाया जाता हैं।
कस्तूरी मृग एकांत में रहने वाला बहुत ही सीधा सा हिरण होता है।इनके अवैध शिकार की वजह से इनका संरक्षण किया जा रहा हैं। चौकोरी के इस अनुसन्धान केंद्र तक जाने के लिए आपको एक 2 -3 किमी की चढ़ाई करनी होती हैं जो कि पूर्ण रूप से घने जंगल के बीच हैं। इस ट्रेक की चढ़ाई के दौरान इतने घने जंगली रास्ते हैं कि अधिकतर जगह तो पेड़ों की छाव की वजह से केवल अँधेरा ही मिलता हैं। बारिश के समय यहाँ भी फिसलन एवं जोंको का डर रहता हैं। मृगो को यहाँ अपने जंगली परिवेश में ही बड़ी बड़ी झालियों से क्षेत्र को बंद करके रखा गया हैं।आप यहाँ कई मृग फुर्ती से दौड़ते ,खेलते ,कूदते दिख जाएंगे। यहाँ फोटोग्राफी करना निषेद्य हैं।
चौकौरी में इन सबके अलावा भी करने को बहुत कुछ हैं जिनकी जानकारियां मैंने किताब 'चलो चले कैलाश :कैलाश मानसरोवर यात्रा वृतांत ' में दी हुई हैं जिसमे यहाँ गुजारे हुए 4 दिनों पर कुल 4 चेप्टर में यहाँ के और कई स्थानों का वर्णन किया हुआ हैं।
कैसे पहुंचे : दिल्ली से सीधे काठगोदाम के लिए बस या ट्रैन से आकर ,काठगोदाम से कैब किराये कर के यहाँ पंहुचा जा सकता हैं।
नजदीकी अन्य शहर:अल्मोड़ा , पिथौरागढ़।
-ऋषभ भरावा (लेखक ,पुस्तक: चलो चले कैलाश )
कैसा लगा आपको यह आर्टिकल, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।
अपनी यात्राओं के अनुभव को Tripoto मुसाफिरों के साथ बाँटने के लिए यहाँ क्लिक करें।
बांग्ला और गुजराती के सफ़रनामे पढ़ने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें।