चाय को भारत का राष्ट्रीय पेय कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। घर पर मेहमानों का स्वागत हो, सुहावने मौसम का लुत्फ़ उठाना हो या तनाव भगाकर तरोताज़ा होना हो, चाय का स्मरण सबसे पहले आता है। किंतु अगर किसी पर्वत पर दुर्गम चढ़ाई के बाद ही चाय नसीब हो सके तो?
चीन का शियान शहर ज़ायकेदार भोजन, अनेक भव्य पैगोडा और विश्व प्रसिद्ध टेराकोटा आर्मी के लिए जाना जाता है। यहां से 120 किमी की दूरी पर स्थित है ‘हुआ पर्वत’, जिसे हुआशान भी कहा जाता है। यह क्विनलिंग पर्वत शृंखला का एक भाग है। हुआ पर्वत पांच अलग-अलग चोटियों से मिलकर बना है। इसकी सुदूर दक्षिण चोटी पर स्थित है हुआशान टी हाउस, जहां पर किसी समय एक धार्मिक स्थल हुआ करता था। लेकिन यह टी हाउस किसी शहरी टी हाउस की तरह तो बिलकुल नहीं है। यह 7000 फ़ीट यानी 2133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां तक पहुंचने के लिए चाय के दीवानों को कई चरणों में दुर्गम रास्तों को पार करना होता है। यहां तक पहुंचना इतना मुश्किल है कि इसे विश्व की सबसे दुर्गम चढ़ाइयों में से एक माना जाता है। लेकिन फिर भी हज़ारों की संख्या में पर्यटक यहां प्रतिवर्ष पहुंचते हैं।
स्वर्ग को जाती सीढ़ियां
रास्ते की शुरुआत होती है शियान से, जहां से हुआशान पहुंचने के लिए दो घंटे की चढ़ाई है। हालांकि यह आगे आने वाले रास्ते के मुक़ाबले काफ़ी सरल रास्ता है। इसके बाद आती है ‘स्वर्ग को जाने वाली सीढ़ियां,’ लेकिन इसके नाम पर मत जाइए। ये देखने में जितनी स्वर्गिक होती हैं, उतनी ही ख़तरनाक भी हैं। इन सीढ़ियों को पर्वत में ही काटकर तैयार किया गया है और इनके साथ किसी प्रकार की रैलिंग भी नहीं है। हालांकि, यहां पर्यटकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए स्थानीय प्रशासन ने कुछ जोखिम भरे हिस्सों पर सुरक्षा रैलिंग लगा दी है।
काठ की दुर्गम डगर
ऊपर चढ़ने के बाद आता है पूरे रास्ते का सबसे ख़तरनाक हिस्सा, जहां पर्वत से चिपके लकड़ी के पुल से आगे का सफ़र तय करना होता है। सात हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित इस पुल के साथ सहारे के लिए लोहे की ज़ंजीर लगाई गई है। इतना ही नहीं, यदि कोई विपरीत दिशा से आ रहा हो तो आपको किसी तरह संतुलन बनाकर उसे भी जगह देनी होगी।
चाय में क्या है ख़ास
यदि चाय के लिए इतनी मेहनत और दुर्गम रास्तों को पार कर लोग जाते हैं तो निश्चित तौर पर उसमें कुछ ख़ास बात हाेगी। यहां मिलने वाली चाय एक विशेष जल से तैयार होती है, जिसमें पिघली बर्फ़ का पानी, बारिश और पहाड़ के प्राकृतिक स्रोतों से निकलने वाले जल का उपयोग किया जाता है। प्राचीन समय में यह पानी इस पर्वत की चोटी पर पर्वत के तल से उठाकर ले जाया जाता था, यह दुर्गम रास्ता पार कर।
ताओ की ‘टी सेरेमनी’
चीन में जन्मी एक आध्यात्मिक शाखा है, ताओवाद जिसकी शुरुआत चौथी शताब्दी ईस्वी में हुई। चीन में चाय का सेवन सदियों से किया जा रहा है और विभिन्न मौक़ों पर यहां ‘टी सेरेमनी’ आयोजित की जाती हैं। ताओवाद भी चाय से अछूता नहीं है। ताओवाद में मनुष्य और प्रकृति में सामंजस्य बैठाने के लिए टी सेरेमनी आयोजित की जाती है। माना जाता है कि चाय के द्वारा आप प्रकृति से सीधे सम्पर्क साध रहे होते हैं। हुआशान पर्वत की चोटी पर एक ताओ मंदिर भी स्थित है, जिसे क्युयून पैलेस कहा जाता है। यहां पर आगंतुकों के लिए चाय पिलाई जाती है। यहां इसे ‘चा यी’ या ‘आर्ट ऑफ़ टी’ कहते हैं।
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