मेरे ख्याल में छत्तीसगढ़ अपने देश के सबसे खूबसूरत राज्यों में से एक है। ये मैंने अपनी बस्तर की यात्रा के दौरान जाना। पहाड़, जंगल, नदी और झरने सब कुछ तो है यहाँ। ये दुर्भाग्य है कि कम लोग ही छत्तीसगढ़ जाने का मन बनाते हैं। मैंने बस्तर को तो कुछ कुछ देखा था लेकिन छत्तीसगढ़ के बाकी संभाग मेरे लिए अनदेखे थे। मैं जाने के बारे में सोचता था लेकिन जा नहीं पाया। इस बार मेरी किस्मत अच्छी थी मेरे खास रिश्तेदार भिलाई पहुँच गए। मैंने भी जल्द प्लान बनाया और भिलाई पहुँच गया।
दुर्घटना से देर भली
कुछ दिन दुर्ग भिलाई को देखने की कोशिश की। दुर्ग भिलाई आपस में ऐसे जुड़े हैं जैसे दिल्ली और नोएडा। मेरे दिमाग में कुछ जगहें थीं जिनको एक्सप्लोर करना था। नये साल के 1 दिन पहले मैंने राजिम जाने के बारे में सोचा। अगले दिन सुबह उठा, तैयार हुआ। जहाँ ठहरा था उनकी स्कूटी भी मुझे मिल गई। मैं राजिम की रोड ट्रिप के लिए निकल पड़ा।
मेरे लिए मुश्किल ये था कि मुझे राजिम जाने का रास्ता पता नहीं था। स्थानीय लोगों से बात करने पर रास्ता पता चल गया। थोड़ी ही आगे चला तो देखा कि एक कार और ट्रक की आपस में टक्कर हुई थी। मुझे ये दुर्घटना अपने लिए चेतावनी जैसी लगी। कुछ दूर आगे चला तो एक व्यक्ति ने लिफ्ट मांगी। मैंने भी कंपनी के लिए बैठा लिया।
अकेले क्यों?
उन्होंने ही बताया कि जिस रास्ते से मैं जा रहा हूं उस रास्ते का हालत अच्छी नहीं है। उस व्यक्ति ने मुझे हाईवे से जाने को कहा। मैं भी हाईवे से ही जाने के पक्ष में था। बात करने पर पता चला कि वो रायपुर की एक कंपनी में काम करते हैं और उनका परिवार दुर्ग में रहता है। वो छुट्टियों में घर आते रहते हैं। मैंने उनको बताया कि घूमने जा रहा हूं तो उनका सवाल था अकेले? पहली बार ये सवाल मुझसे नहीं पूछा जा रहा था। मेरे समाज में ये धारणा है कि घूमना समय की बर्बादी है और अगर घूमना ही तो है कुछ लोगों के साथ जाओ। अकेले घूमने में क्या मजा आएगा?
मैंने उनको बड़े आराम से कहा कि मुझे अकेले घूमना ज्यादा पसंद है। उन्होंने बताया कि घूमना उन्हें भी पसंद है लेकिन परिवार की जिम्मेदारी की वजह से घूमना नहीं हो पाता है। रास्ते में खारून नदी मिली। मेरे साथ बैठे भाई ने बताया कि खारून नदी महानदी की सहायक नदी है। उन्होंने ही बताया कि राजिम में महानदी है। अब तक हम पचपैड़ी नाका पहुँच चुके थे। उनको यहीं पर उतरना था। उनको यहाँ छोड़कर आगे बढ़ गया।
अभनपुर
मुझे अब इतना पता था कि पहले अभनपुर आएगा, उसके बाद राजिम। अब मैं अकेला अभनपुर के रास्ते पर बढ़ता जा रहा था। रास्ते में लोगों से पूछता भी जा रहा था। ये हाईवे काफी चल रहा था। गाड़ियों की आवाजाही बहुत ज्यादा थी। रास्ते में एक दुकान पर रूका। मैंने यहाँ बड़ा-चटनी खाया और फिर आगे बढ़ गया। कुछ देर बाद अभनपुर पहुँच गया।
अभनपुर से आगे निकला तो देखा एक जगह से चंपारण जाने का रास्ता है। मुझे चंपारण भी जाना था लेकिन मुझे नहीं पता था कि चंपारण राजिम के पास में ही है। मैंने मन ही मन में समय गणित लगाया और चंपारण जाने का मन बना लिया। कुछ देर बाद मैं राजिम पहुँच गया। राजिम की सबसे फेमस जगह है, राजीव लोचन मंदिर। राजीव लोचन मंदिर के लिए आगे बढ़ा तो रास्ते में पुल मिला। ये पुल महानदी पर बना हुआ था।
राजिम के मंदिर
इस पुल पर कुछ देर ठहरने के बाद हम अपनी मंजिल की ओर बढ़ गये। आगे मंदिर मिला और हमने अपनी गाड़ी पार्किंग में लगा दी। जैसे ही गेट के अंदर घुसे तो राजिम मंदिर समूह के बारे में एक बोर्ड लगा था। जिस पर इस जगह की पूरी जानकारी दी गई थी। इस मंदिर के भीतर दो अभिलेख हैं। पहले अभिलेख में विष्णु के मंदिर के बारे में जानकारी है। दूसरा अभिलेख राजिम के रामलोचन मंदिर के निर्माण के बारे में है।
बोर्ड को पढ़कर आगे बढ़ा तो पहली नजर में खूब सारे मंदिर दिखे जो बाहर से सफेद दिखाई दे रहे थे। इन मंदिरों को देखकर खजुराहों के मंदिर जेहन में आ गए। कुछ कुछ मंदिर वैसे ही बने हुए थे। मंदिरों की दीवारों पर नक्काशी कमाल की थी। खंभों पर भी किसी दूसरी भाषा में उकेरा हुआ था। इस जगह का सबसे लोकप्रिय मंदिर है, राजीव लोचन। इस मंदिर में काफी भीड़ थी। मंदिर की परिक्रमा करके बाहर निकल आया।
इसी मंदिर समूह में कुछ हरियाली वाली जगह भी थी। जहाँ कुछ लोग खाना खा रहे थे। इस मंदिर को देखने के बाद नदी की ओर बढ़ा तो दो मंदिर और दिखाई दे। एक मंदिर का नाम तो बढ़ा दिलचस्प था, मामा भांजा मंदिर। इस मंदिर के बारे में यहाँ कुछ नहीं लिखा हुआ था। दीवार पर लिखा था, कुलेश्वर नाथ के मामा के मंदिर। राजीव लोचन के बाद राजिम का दूसरा सबसे फेमस मंदिर है कुलेश्वर मंदिर।
कुलेश्वर मंदिर
कुलेश्वर मंदिर नदी के उस पार था। मंदिर दूर से दिखाई दे रहा था। नदी में ज्यादा पानी नहीं था इसलिए लोग पैदल नदी पार करके मंदिर जा रहे थे। मैं भी पैदल ही जाने का सोच रहा था लेकिन गाड़ी के लिए फिर से यहीं आना पड़ता। मैं वाया रोड कुलेश्वर मंदिर की ओर निकल गया। गाड़ी से कुलेश्वर मंदिर पहुँचने के लिए लंबा रास्ता लेना पड़ा। इस मंदिर में काफी भीड़ थी। दूर से मंदिर अच्छा लग रहा था। मंदिर पेड़ के नीचे एक बड़े चबूतरे पर बना हुआ था।
मंदिर में कुलेश्वर नाथ के अलावा कई देवी देवताओं की मूर्ति थी। इस मंदिर में एक शिलालेख भी है जो 8वीं और 9वीं शताब्दी का है। इस प्राचीन मंदिर को देखने के बाद मुझे चंपारण निकलना था। मुझे उस समय पता नहीं था कि राजिम से ही चंपारण का रास्ता है और मैं अभनपुर के लिए निकल पड़ा। गाड़ी चलाते हुए मुझे लगा कि गाड़ी में कुछ गड़बड़ हो गई है लेकिन मैंने उसे अनदेखा किया। पेट्रोल पंप पर मैंने देखा कि पहिए में एक कील घुस गई थी। कील निकाली तो पहिए से हवा निकलने लगी। किस्मत से सामने ही गाड़ी रिपेयरिंग की दुकान थी। कुछ देर में गाड़ी और मैं दोनों चंपारण जाने के लिए तैयार थे।
चंपारण
अभनपुर पहुँचने के बाद मैं चंपारण की तरफ चल पड़ा। रास्ते में खेत, जंगल और नहर मिल रही थी। इस रास्ते पर भीड़ नहीं थी जो मेरे सफर को खूबसूरत बना रहा था। आगे बढ़ा तो एक चौराहा आया जहाँ मुझे एक ठेला दिखाई दिया। पहले मैंने वहाँ भेल का स्वाद लिया और फिर गुपचुप। इस जगह से चंपारण 15 किमी. दूर था। मैं फिर से चंपारण के रस्ते पर था। कुछ देर मैं गांवो वाले रास्ते पर था। कुछ देर बाद मैं चंपारण में था।
मैंने सोचा था कि चंपारण में लोग कम और देखने को कम लोग होंगे लेकिन ऐसा नहीं था। यहाँ बड़ा सा मंदिर दिखाई दिया जिसको देखकर ही मन खराब हो गया। मंदिर बहुत खूबसूरत था मतलब महल जैसा। इस मंदिर को देखकर लग रहा था कि कुछ ज्यादा ही सजावट कर दी है। मुझे प्राचीन मंदिर पसंद हैं जिनके बारे में जानकर अच्छा लगता है। मंदिर के पूरे परिसर को देखने के बाद बाहर आ गया।
नदी किनारे
चंपारण आया था तो लग रहा था कि किसी ऐसी जगह पर जाना चाहिए जो मुझे अच्छी लगे। तभी मुझे एक बोर्ड दिखाई दिया। जिस पर डिपरेश्वर मंदिर की दूरी 5 किमी. दिखा रहा था। मैंने स्थानीय लोगों से वहाँ जाने का रास्ता बता दिया और मैं निकल पड़ा। मैं फिर से गांवों और खेतों को देखते हुए बढ़ रहा था। कुछ देर बाद मैं मंदिर के सामने था।
हनुमान जी के मंदिर में इतना कुछ खास नहीं था लेकिन मंदिर के पीछे महानदी का नजारा था। नदी के पास गया तो देखा कि कुछ लोग वहाँ बैठे हैं और दो बच्चे नदी में नहा रहे हैं। उन बच्चों को देखकर मुझे अपना बचपन याद आ गया। जब दोस्तों के सुबह-सुबह नदी में नहाने जाते थे और घंटों नहाते रहते थे। मैं वहीं बैठ गया। नदी के दूर तलक दो नावें दिख रहीं थीं जिसमें बैठे लोग मछली पकड़ने के लिए जाल फेंक रहे थे। मैं इस जगह पर लगभग 1 घंटे बैठा रहा।
एक और जगह
यहाँ से अब सीधा भिलाई के लिए निकलना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तभी वहाँ बैठे लोग आपस में बात कर रहे थे कि यहाँ से कुछ ही दूरी पर हनुमानजी की बहुत बड़ी मूर्ति है। मुझे इस जगह के बारे में पता नहीं था लेकिन अब पता चल गया था तो जाने का मन हो गया। मैं जल्दी से उठा और चल पड़ा। रास्ते में मिले एक बच्चे ने मंदिर जाने का रास्ता बताया। लगभग 5 किमी. बाद मैं उस जगह पर पहुँच गया।
वाकई महानदी के तट पर हनुमानजी की बहुत बड़ी मूर्ति थी। इस जगह को रामोदर वीर हनुमान जी टीला के नाम से जाना जाता है। 81 फुट ऊंची हनुमान जी की मूर्ति महानदी के गाय घाट पर स्थित है। इस जगह पर सबसे खूबसूरत नजारा है नदी का। नदी के बीच से महासमुंद के लिए एक छोटा सा पुल भी बना है। इस खूबसूरत नजारे को देखने के बाद मैं फिर से चल पड़ा अपने सफर के लिए। अभी छत्तीसगढ़ की और जगहों को इस भागदौड़ भरी जिंदगी में देखना था।
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