Gaumukh tapovan base camp trek

Tripoto
24th Jul 2020
Photo of Gaumukh tapovan base camp trek by Prakash Singh Bora

मॉनसून का महीना और उत्तराखंड के पहाड़ों से भारी बारीश की ख़बरें आती रही और valley of flower का ट्रेक स्थगित कर अक्टूबर 2019 में gaumukh और tapovan base camp की योजना बनानी पड़ी। गौमुख तपोवन ट्रेक के लिए पहले उत्तरकाशी पहुंचना और फिर किसी गाईड को ढूँढ़ना, परमिट बनाना काफी झमेलों वाला काम था। लेकिन किसी तरह FB के एक मित्र के जरिए जो ये ट्रेक कर चुके थे उनसे गाईड रमेश रावत के नंबर मिल गए, लेकिन हफ्ते भर तक उनसे संपर्क हो नहीं पाया। मेरे जाने में मात्र 2 दिन बाकी थे और अब तो मैं भी आस छोड़ चुका था लेकिन इस आखिरी बार ऊपर वाले ने निराश नहीं किया और गाईड से बात हो गयी, साथ ही तय हुवा की वो मुझे उत्तरकाशी बस स्टैंड में मिलेगा।

Day 1

हरिद्वार से उत्तरकाशी जाने वाली बस जो लगभग प्रातः 4.30 से 5 बजे के दरम्यान निकलती है वो छूट चुकी थी इसलिए 7 बजे वाली बस पकड़नी पड़ी। अब बसों के लेट लतीफ और पहाड़ों में सड़क चौड़ीकरण के काम के कारण देरी से दोपहर 3 बजे उत्तरकाशी पहुचा। आज परमिट बना कर 100 km गंगोत्री पहुंचने का विचार था लेकिन दोपहर बाद कोई बस गंगोत्री नहीं जाती और मुश्किल ही कोई शेयर गाड़ी मिलती है। मेरे वहाँ पहुँचते ही 5 मिनट में रमेश जी हाजिर थे। फटाफट आधार कापी की प्रति पकड़ाकर उन्हें तपोवन का परमिट बनाने के लिए रवाना कर दिया और मैं होटल की तरफ।

Photo of Gaumukh tapovan base camp trek by Prakash Singh Bora

Vishvanath temple at uttarkashi

Photo of Gaumukh tapovan base camp trek by Prakash Singh Bora
Day 2

अगले दिन सुबह ठीक 6:30 पर गाईड रमेश और मैं रोड पर थे। कुछ दूर चले ही थे कि जीप मिल गयी और मनेरी फाल, गंगनानी और बंद शीशों से खूबसूरत हर्षिल घाटी के सेबों का दीदार करते हुए ठीक 10 बजे माँ गंगा के पावन धाम गंगोत्री में थे। यहां दिन का खाना पैक किया, बारिश से बचने के लिए पोंचो लिया और कुछ दिन के लिए बिस्कुट-चाकलेट खरीद लिये और साथ ही माँ गंगा का आशीर्वाद लेकर ठीक 10.35 पर चल पड़े गंगोत्री से तपोवन के मुश्किल लेकिन खूबसूरत ट्रेक पर।
मंदिर के बगल से ठीक ऊपर की ओर बढ़ते हुए जंगल के बीच कुछ ही दूर में गंगोत्री नैशनल पार्क का चेक पोस्ट है यहां 200 रुपये जमा किए, अपने काग़जात और बैग में मौजूद पालीथीन और प्लास्टिक दिखाए जिसे वापसी में यहां दिखाना पडता है, ताकि हम बहुमूल्य और खूबसूरत हिमालय की गोद में अपनी गंदगी ना छोड़ दें।
चेक पोस्ट पार करते ही बर्फ से ढंके माउंट ठेलू और सुदर्शन पर्वत के खूबसूरत नजारे दिखने लगते हैं।
रास्ते में एक छोटे झरने से पानी की आधी बोटल भर ली क्योंकि रास्ते में पानी के स्त्रोत की कमी नहीं इसलिए पूरी भरी बोटल का वजन ढोना आपकी चाल को धीमा कर देता है। आधे से ज्यादा रास्ते में दाई तरफ खूबसूरती के साथ बहती भगीरथी नदी आपके साथ चलती रहती है, और खूबसूरत देवदार, भोजपत्र के वृक्ष भी। रास्ते में 3-4 जगह बड़े-बड़े नालों को पार करने के लिए लकड़ी के टैम्पेरेरी बने पुलों से होकर जाना पड़ता है। सारे नाले आगे जाकर भागीरथी में मिल जाते हैं। 14 km का भोजवासा तक रास्ता अच्छा बना है लेकिन फिर भी सावधानी से चलना पड़ता है। जहां पर नाला पार करना पड़ता है उसके आस पास अधिकतर रास्ता बड़े बड़े बोल्डरों और पत्थरों के ऊपर से होकर गुजरना पड़ता है और कई दफे इन जगहों पर कुछ देर के लिए रास्ता भटकने का अंदेशा रहता है। हमारे बाये तरफ विशाल पहाड़ थे और दूसरी तरफ ढलान में बौखलाती नदी, अगर आप लापरवाही से चलते हुए लड़खड़ा जाते हैं तो उसके बाद तो भगवान ही आपका मालिक है।
करीब 5 km चलने के बाद एक पेड़ के नीचे बैठकर हमने harshil के रस भरे सेव खाए लेकिन जैसे ही आधा सेव खाया सेव ठंड कर गई, मेरी छाती अचानक से जाम हो गयी लेकिन हमारे पास दवाई के इंतजामात थे, अगर दवाई नहीं होती तो ऐसी हालत में हाई एल्टीट्यूड में रहना और ट्रेक करना काफी मुश्किलों भरा हो सकता है। चीडवाशा में पहुंच कर अपने साथ लाए आलू के पराठे चेप गए, और ढाबे से गर्मागर्म ब्लैक टी का लुफ्त उठाया.. वाह.. क्या बात है.. बंद गले और छाती में जान आ गयी। पूरे रास्ते में केवल यहीं एक ढाबा है जहां खाने पीने को मिल जाता है और रात को रहने के लिए कुछ लोगों का भी इंतजाम हो जाता हैं, और फिर भी काफी अमरजेंसी हो तो चीडवाशा में फॉरेस्ट डिपार्टमेन्ट का चेक पोस्ट है वहा शाम के टाइम फॉरेस्ट डिपार्टमेन्ट के आदमी 2-3 लोगों के लिए रहने ओढ़ने की वयवस्था कर देते हैं। अगर आपके पास टैंट और स्लीपिंग बैग है तो यहीं नीचे कैंप साईट में रुक सकते हैं। हम गंगोत्री से 10.35 पर चले थे जबकि दूरी के हिसाब से सुबह 8 बजे से पहले गंगोत्री से ट्रैकिंग शुरू करनी चाहिए। हमारी स्पीड ठीक-ठाक थी और वक़्त भी था इसलिए चीडवाशा ना रुक कर 5 km दूर भोजवाशा को चल पड़े।
हम 9km का सफर तय कर चुके थे लेकिन अब खाना खाने के बाद मेरी हालत बुरी होने लगी, मुझे चलते चलते नींद सी आने लगी लेकिन फिर भी चलता रहा, यहां हल्की सी चूक हुई और मैं सीधे नीचे बौखलाती नदी में। अब दिन के वक़्त हिमालयी क्षेत्र में मौसम का भरोसा नहीं इसलिए स्पीड बड़ाने के लिए गाईड रमेश ने मेरा रकसैक अपने कांधे पर लादा और अपना हल्का बैग मुझे थमा दिया।
लगभग हमारे साथ-साथ दो युवक और थे और उनके साथ थोड़ी जान पहचान हुयी जिसके बाद लगभग हम पूरे सफर में एक साथ थे। ऊंचाई बड़ने के कारण बड़े पेड़-पौधे जंगल खत्म हो चुके थे उनकी जगह खूबसूरत रंग बिरंगे पौधों और जंगली फ़ूलों ने ले ली थी। भोजवासा से करीब ढाई km पहले डेंजर जोन है जहां ऊपर की तरफ पहाड़ और पत्त्थर एकदम कच्ची अवस्था में हैं इसलिए यहां ध्यान से देखकर और तेजी से निकलना पड़ता है।
ठीक पौने पांच बजे कैसे भी हम भोजवासा पहुंच गए। यहां gmvn के गेस्ट हॉउस में जगह नहीं मिली लेकिन एक आश्रम में एक टैंट खाली मिल गया जिसमें चार लोगों के लिए बैड लगे थे।आप खुद का टैंट भी यहां लगा सकते हैं और gmvn के गेस्ट हाउस के कैंटीन में खाना खरीद कर खा सकते हैं। मैं, गाईड रमेश और हमारे साथ चलने वाले दोनों युवक भी हमारे साथ शामिल हो गए जिसमें एक थे dr. गोपाल और दूसरे सत्यम।
हम काफी देर तक पास ही दिखते विशाल भागीरथी पर्वत को निहारते रहे उसे कैमरे में कैद करते रहे। 14 km की थकान जैसे चंद मिंटो में उन खूबसूरत वादियों में पसरे सन्नाटे में कही गुम सी हो गई। टैंट के अंदर जाकर अंधेरे में यहां वहाँ निढाल पड़े ही थे कि एक युवक बिना कहे ही ट्रे में हॉट ब्लैक टी लिए और चेहरे पर मुस्कान लिए हमारे सामने खड़ा था और हमारे मुख से अचानक ही खुशी की चिंगारियां निकल पड़ी और साथ ही हमारी खुशी के साथ हाथ में ट्रे थामे उस युवक की स्माइल भी दुगनी होती चली गयी। जब हमें किसी अच्छी चीज़ की उम्मीद नहीं होती तब बिना कहे किसी उम्मीद के वो चीज़ हमारे सामने हाजिर हो जाए तो उस खुशी को शब्दों में बया नहीं किया जा सकता।
साँझ ढ़लने को थी और हिमालय की चोटियों पर बादल मंडरा रहे थे लेकिन बर्फ की एक दो फांक हमारे सर पर गिरी ही थी कि फिर मौसम साफ हो गया, जिसकी हमें अगले दिन के लिए सख्त जरूरत थी। जैसे जैसे घाटी अंधेरे के आगोश में समाता गया पास ही बहती भागीरथी का शोर और ऊंचा होता गया और गाईड के बैग में बंद मैख़ाना बाहर निकल आया। वैसे तो हाइ एलटीट्यूड में इसकी मनाही होती है और इस जगह पर तो सख्त पाबंदी है लेकिन दवाई के तौर इसे ईस्तेमाल किया जा सकता है। ठीक रात 8 बजे खाना तैयार था तो हमने खुले आसमान में खाना खाना पसंद किया। कंपकंपाती ठंड, सौर ऊर्जा से मुश्किल से जलता बल्ब और पास ही बहती भागीरथी का शोर और मानव बस्ती से मिलों दूर और सादी गर्मागर्म रोटी और मामूली से सब्जी भी हमें अजीब सा सकूँ दे रही थी। आखिर कुछ तो बात है इन हिमालयों में तभी तो आदि अनादि काल से ऋषि मुनि हिमालय की ओर खींचते चले आए हैं।
खाना खाने के बाद कुछ देर अपने कंपकंपाते हाथों को आग से सेंककर हमने अपने आप को टैंट में बिस्तर के हवाले किया ही था कि फॉरेस्ट विभाग के रतूड़ी जी टेंट के अंदर दाखिल हुए। मध्यम कद काठी और खतरनाक दिखने वाले रतूड़ी जी कमाल के इंसान हैं, उनके साथ काफी देर तक हल्की रोशनी में टैंट के अंदर यहां की कई किस्से कहानियों का दौर चलता रहा। वो कब टैंट से बाहर गए और कब हम नींद के आगोश में गए पता ही नहीं चला।
(गौमुख और तपोवन ट्रैक की पोस्ट को पूरी जानकारी के साथ पढ़ने के लिए आप google में जाकर himboyps.wordpress.com  ब्लॉग में पढ़ सकते हैं।)

Photo of Gaumukh tapovan base camp trek by Prakash Singh Bora

Unknown peak

Photo of Gaumukh tapovan base camp trek by Prakash Singh Bora

Near chidwasha

Photo of Gaumukh tapovan base camp trek by Prakash Singh Bora

Wild flower

Photo of Gaumukh tapovan base camp trek by Prakash Singh Bora

Bhagirathi peak from bhojvasha

Photo of Gaumukh tapovan base camp trek by Prakash Singh Bora
Photo of Gaumukh tapovan base camp trek by Prakash Singh Bora
Day 3

सुबह एक ब्लैक टी और बिस्कुट से नास्ता किया गया और 7 बजे चल पड़े तपोवन की तरफ। तपोवन में नदी क्रॉस करते करते 8 बज गए। नदी क्रॉस करने के बाद आधे किलोमीटर तक रास्ता ठीक है लेकिन उसके बाद रास्ता बड़े बड़े बोल्डरो-पत्थरों के बीच से होकर गुजरता है। ऊचाई धीरे-धीरे बढ़ती जाती है, अब कह सकते हैं कि कोई रास्ता ही नहीं है बस आगे-पीछे छोटे से लेकर 4-4 ft के बड़े-बड़े पत्थर पड़े हैं, कभी इनके साइड से होकर जाना पड़ता है तो कभी इनके ऊपर चढ़ कर आगे बढ़ना पड़ता है। अब हमारे बाई तरफ नदी का विशाल सूखा क्षेत्र था और लास्ट कोने में कही भागीरथी नदी। हमारे आगे 5-6 लोग और थे लेकिन अब वो गौमुख जाने के लिए बाई तरफ नदी के खुले मैदान (बड़े बड़े पत्थरों से भरा हुआ) की तरफ बढ़ जाते हैं लेकिन हमें तो तपोवन जाना था इसलिए हम दाई तरफ सीधा ऊपर की तरफ चलते रहे और हमारी दाई तरफ बगल में था विशाल पहाड़, आगे जाकर जिस पर हमने चढ़ाई करनी थी। अब और आगे का रास्ता ढूँढना हमारे बस का नहीं रहा तो गाईड सबसे आगे हो लिया। इधर उधर पड़े पत्थरों में ऊपर नीचे करते करते हमारी हालत बुरी हो गई। नास्ते में कुछ मिला नहीं था और अब मेरे पेट में चूहे दौड़ रहे थे और पानी का घूंट लगा कर आगे बढ़ता गया।
मुझे दूर कहीं पहाड़ के ऊपर एकदम कोने में कुछ लोग नजर आते हैं जैसे किसी तलवार की धार पर उसकी नोक की तरफ बढ़ रहे हो। मुझे लगा वो लोग बस ऐसे ही चले गए होंगे लेकिन करीब 10 मिनट बाद फिर से नजर डाली तो वो लोग और ऊपर पहुंच गए। फिर रमेश गाईड से पूछ बैठा “वो पागल लोग वहां कहां चढ़ रहे हैं उतने ऊपर?” मेरा मुँह रुआँसा हो जाता है ये सुनकर जब वो कहता है “वहीँ तो जाना है”।
"क्या दिमाग खराब है? उतने ऊपर?" मैं मन ही मन ऊपर वाले को याद करता हूं और अपने आप को कोसता हूं कि मैं ये कहां आ गया, क्यों ऐसा पंगा लिया।
अब सामने की तरफ गंगोत्री ग्लेशियर है हम उसके साइड से दाहिने तरफ से उपर की तरफ बढ़ते रहे। पहले कभी ग्लेशियर के ऊपर से होकर भी जाना पड़ता था लेकिन लैंड स्लाइड से ये क्षेत्र हमेशा बदलता रहता है। अब हम एक ऐसे पहाड़ पर चढ़ते हैं जो बुरी तरह टूटा हुआ है, और कोई रास्ता नहीं है। ऊपर नीचे बड़े-बड़े पत्थर ढीले पड़े हैं, कभी भी अगर पैर ढीले पत्थर पर पड़ जाए तो दूर नीचे की तरफ फैले विशाल गंगोत्री ग्लेशियर में पत्थरों के साथ लुढ़केंगे। हम इतने ऊपर हैं कि हमारे ठीक नीचे दूर कहीं गौमुख और गंगोत्री ग्लेशियर दिखता है। यहां से हमें खूबसूरत शिवलिंग पीक का ऊपरी हिस्सा नजर आया जिसे देख शरीर में थोड़ी जान आ गयी। मैं भोजवासा से जल्दी में सिर्फ आधी बोटल पानी लाया था लेकिन अब वो भी खत्म हो चुका था बाकी के पास इतना भी नहीं था, जिससे अब और ऊपर चलने में दिक्कत हो रही थी। भोजवासा के बाद तपोवन तक कहीं भी पीने लायक पानी नहीं मिलता, एक जगह ऊपर से आता हुआ नाला मिला था लेकिन पानी काफी मटमैला था और आधा तो बर्फ सा जमा जुआ था। तीनों लोग एक जगह खड़े होकर बीड़ी सिगरेट फूंकते हैं, जब में उनके पास पहुंचा तो अपना बैग एक किनारे उतार कर पटक दिया और निढाल हो गया, ये देख डॉक्टर और गाईड पूछ बैठे तबीयत ठीक तो है ना? यहां गाईड ने मेरा बैग लिया और अपना बैग भी उसी में घुसेड कर अपने कांधे में टांग लिया, वो मेरा कैमरा भी लेने लगा पर मैंने कहा नहीं “अगर में नीचे लुढ़क जाऊँगा तो ये भी मेरे साथ जाएगा” हालांकि थकान इतनी ज्यादा हो चुकी थी कि फोटो खींचने की भी हिम्मत नहीं बची थी लेकिन फिर भी मैं लगभग सबके साथ ही चल रहा था।
बड़े बड़े पत्थरों के ऊपर चढ़ कर, लुढ़क कर 8 कदम सीधा चलना था और 8 कदम ऊपर की तरफ, लगभग बार बार यही क्रम दोहराना था। अब हम ज्यादा ब्रेक लेने लगे तो गाईड ने मना कर दिया क्योंकि दिन के वक़्त ऊचाई वाले इलाके में कभी भी मौसम खराब हो सकता है और ऊपर से पत्थर गिरने का डर भी रहता है इसलिए यहां ज्यादा रुकना ठीक नहीं। मैं बुदबुदाता हूं “जब बिन बादल आसमान गरजे तो डटे रहो”। सत्यम और डॉक्टर गोपाल मुझ से पूछते हैं कि आप तो यहीं पहाड़ों से हैं तो आपको चलने में तो ज्यादा दिक्कत नहीं होती होगी? मैंने उन्हें बताया कि, यही वजह है जो मैं लगभग आपके साथ चल रहा हूं वरना मैं अपनी डेली लाइफ में बिल्कुल नहीं चलता और अब मेरी हालत आप लोगों से बहुत बुरी है। दोनों युवक कमाल का चल रहे थे क्योंकि दोनों बीच-“बीच में ट्रैकिंग में जाते रहते हैं और डेली मॉर्निंग वॉक पर भी। हमें कई ऐसे महिला-पुरुष मिले जो नीचे आते समय बुरी तरह डरे सहमे थे और पोर्टर-गाईड उनका हाथ पकड़ कर एक-एक कदम उन्हें नीचे की तरफ ला रहे थे। इस वक़्त मैं उन तमाम blogers को कोसने लगा जिन्होंने अपनी तपोवन यात्रा के बारे में लिखा है लेकिन कहीं भी इसकी इतनी मुश्किल चढ़ाई का जिक्र ठीक से नहीं किया है। मैंने बहुत कोशिश की ऐसी तस्वीरें खींचने की जिससे इसकी कठीन चढ़ाई और मुश्किलों का पता चल सके लेकिन तस्वीरों में ज्यादा कुछ पता नहीं चलता। मैं शुरू से सोच के बैठा था कि भोजवासा से गौमुख-तपोवन का एक तरफ़ा 7-8 km का ट्रैक आसान रहेगा और वापसी तो आसान ही होती है, लेकिन ये पूरे ट्रैक का बाप निकला और इसने हमें बुरी तरह पस्त कर दिया था।
सवा सात बजे हम भोजवासा से चले थे और ट्रॉली से नदी क्रॉस करने में 8 बज गए और 10:30 पर हम तपोवन में थे। इस चढ़ाई का लास्ट सीन कुछ ऐसा है जैसे bahubali फिल्म में नायक किसी झरने से एक पहाड़ पर चढ़ता है और लास्ट में किसी समतल भूमि पर कदम रखता है जहां एक अलग ही नजारा होता है। जैसे ही हमारी ये चढ़ाई पूरी हुई सामने आता है एक विशाल मैदान और तीन तरफ से विशाल शिवलिंग पर्वत, मेरु पर्वत और भागीरथी की अद्भुत बर्फीली चोटियां। जैसे ही मैं ऊपर पहुंचा पास ही मखमली घास में लेट गया, मुझे लगा बाकी भी यही करेंगे पर मुझे छोड़कर सभी आगे समतल मैदान की तरफ बढ़ने लगते हैं और उन्हें देख मुझे भी खड़ा होना पड़ा और कैमरा निकाल आगे की तरफ बढ़ता चला गया। इस वक़्त हम समुद्रतल से लगभग 4400 मीटर की ऊंचाई पर थे और एक खूबसूरत, मनमोहक अलग ही जहां में।

गौमुख और तपोवन ट्रैक की पोस्ट को पूरी जानकारी के साथ पढ़ने के लिए आप google में जाकर himboyps.wordpress.com में पढ़ सकते हैं।

Photo of Gaumukh tapovan base camp trek by Prakash Singh Bora
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Bhojvasha and tent

Photo of Gaumukh tapovan base camp trek by Prakash Singh Bora

Gangotri glacier

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Shivling peak nd amar ganga

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Tapovan

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