भारत की वो नदी जहाँ पानी के साथ बहता है सोना, महीने में मिलते हैं 60 से 80 सोने के कण

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"स्वर्ण रेखा" का मतलब है "सोने की लकीर"। झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल तीन राज्यों से होकर बहने वाली नदी में क्या खासियत हो सकती है? आप सोच रहे होंगे कि ये नाम किसी प्राचीन पौराणिक कथा या किस्से से जुड़ा हुआ है लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। सच ये है कि नदी के नीचे के पानी में सही मायने में शुद्ध सोना है। यकीन मानिए ये कोई पिछले 2 से 3 सालों में हुई घटना नहीं है। हमेशा से इस नदी के नीचे सोना था। हाल में अखबारों में सुर्खियाँ बटोरने के बाद आज इस नदी के बारे में ज्यादातर लोगों को पता चल गया है।

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सोने का खज़ाना है ये नदी

इस असामान्य घटना का रहस्य अभी तक समझा नहीं गया है। एक नदी में इतनी बड़ी मात्रा में सोना देखना वाकई एक आश्चर्यजनक चीज है। इस नदी से एक महीने में लगभग 60 से 80 सोने के कण निकाले जाते हैं। वैज्ञानिकों ने भी इस सोने के स्रोत का पता लगाने की कोशिश की है, लेकिन अब तक इस अजीबोगरीब घटना के पीछे का रहस्य सुलझाने में असफल रहे हैं।

स्वर्ण रेखा नदी का इतिहास

ये नदी मुख्य रूप से झारखंड राज्य के रत्नगर्भ क्षेत्र से होकर गुजरती है। मुख्य नदी और उसकी सहायक करकरी नदी दोनों में सालों से सोने के कण पाए जाते रहे हैं।

इस 474 किमी लंबी नदी की शुरुआत झारखंड में रांची के पास नागडी गाँव में रानी चुआन से होती है। बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले ये नदी पश्चिम बंगाल और ओडिशा से होकर भी गुजरती है। ऐसा माना जाता है कि नदी के स्त्रोत के नजदीक रांची के एक गाँव पिस्का में सबसे पहले सोने का खनन किया गया था। बाद में नदी के तल और रेत में भी सोने के कण मिलने शुरू हो गए।

सालभर होती है खुदाई

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आसपास के क्षेत्र में स्थानीय आदिवासी रेत को छानने और नदी के तल से सोना निकालने के काम में लगे रहते हैं। नदी से सोना निकालने की प्रक्रिया मानसून के अलावा सालभर चलती रहती है। नदी और रेत में मिलने वाले सोने के कणों का आकार लगभग चावल के दाने जितना होता है।

तामार और सारंडा क्षेत्रों में ये काम पीढ़ियों से चला आ रहा है। विभिन्न स्वदेशी समुदायों के लोग रेत छानने और सोना निकालने के काम में लगे हुए हैं। घर का लगभग हर सदस्य इस काम में कार्यकृत है। नदी से सोना निकालने का ये काम आसान बिल्कुल नहीं है। इस काम को करने में थकान हो जाती है और कभी-कभी काम पूरा करने में कई दिन भी लग जाते हैं।

दिनभर नदी के तल से सोने के कणों को बाहर निकालना थका देने वाला होता है और इसके लिए धैर्य से काम लेना पड़ता है। ये क्षेत्र के स्थानीय लोगों की कड़ी मेहनत है जिसके कारण सोने के कणों को नदी के तल से निकालकर फ़िल्टर किया जाता है और फिर आगे की पॉलिशिंग और आभूषण तैयार करने के लिए सुनारों को दे दिया जाता है।

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क्या आप जानते हैं?

भारत के सबसे महान उपन्यासकारों में से एक रवींद्रनाथ टैगोर और विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय ने अपने कुछ उपन्यासों और कविताओं में सुवर्णरेखा नदी का उल्लेख किया है। प्रसिद्ध बंगाली फिल्म निर्देशक ऋत्विक घटक ने स्वर्ण रेखा नाम की एक फिल्म का निर्देशन किया था जो बंगाल के विभाजन पर केंद्रित थी।

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