सुंधा माता मंदिर राजस्थान के जालोर जिले में स्थित सुंधा नाम की एक पहाड़ी पर स्थित चामुंडा देवी को समर्पित एक 900 साल पुराना मंदिर है। मंदिर एकमात्र राजस्थान के हिल स्टेशन माउंट आबू से 64 किमी और भीनमाल नगर से 20 किमी दूर है। अरावली की पहाड़ियों में 1220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चामुंडा देवी का यह मंदिर भक्तों के लिए एक पवित्र और धार्मिक स्थल है। गुजरात व राजस्थान के बहुत से पर्यटक इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर के पास का वातावरण बेहद ताजा व आकर्षक है। साल भर झरनें बहते रहते है। जैसलमेर के पीले बलुआ पत्थर से निर्मित यह मंदिर हर किसी को अपनी खूबसूरती से आकर्षित करता है। यहाँ केवल माता के सिर की पूजा की जाती है। माता के सामने भूरेश्वर महादेव स्थित है। इस प्रकार सुंधा पर्वत पर शिव और शक्ति दोनों प्रतिष्ठित है।
सुंधा माता मंदिर का इतिहास -
माता के मंदिर में संगमरमर स्तंभों पर की गई कारीगरी आबू के दिलवाड़ा जैन मंदिरों के स्तंभों की याद दिलाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार अपने ससुर राजा दक्ष से यहाँ यज्ञ के विध्वंस के बाद शिव ने यज्ञ वेदी में जले हुए अपनी पत्नी सती के शव को कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य किया तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के टुकड़े टुकड़े कर छिन्न भिन्न कर दिया। उनके शरीर के अंग भिन्न-भिन्न स्थानों पर जहां जहां गिरे, वहाँ शक्ति पीठ स्थापित हो गए। यह माना जाता है कि सुंधा पर्वत पर सती का सिर गिरा जिससे वे 'अघटेश्वरी' के नाम से विख्यात है। त्रिपुर राक्षस का वध करने के लिए आदि देव की तपोभूमि यहीं मानी जाती है। इसके अलावा चामुंडा माता की मूर्ति के पास एक शिवलिंग स्थापित है और वैदिक कर्मकांड को मानने वाले श्रीमाली ब्राह्मण समाज के उपमन्यु गौत्र के यह कुलदेवता हैं तथा यहीं नागिनी माता भी स्थित है, जो इनकी कुलदेवी हैं। इतना ही नहीं वर्ष 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मेवाड़ शासक इतिहास पुरूष महाराणा प्रताप ने अपने कष्ट के दिनों में सुंधा माता की शरण ली थी। आपको बता दें कि इस मंदिर के अंदर तीन ऐतिहासिक शिलालेख हैं जो इस जगह के इतिहास के बारे में बताते हैं। यहां का पहला शिलालेख 1262 ईस्वी का है जो चौहानों की जीत और परमार के पतन का वर्णन करता है। दूसरा शिलालेख 1326 और तीसरा 1727 का है।
सुंधा माता मंदिर में रोपवे -
सुंधा माता मंदिर के दर्शन करने के लिए आप पैदल भी जा सकते है नही तो आप रोपवे की सर्विस भी ले सकते है। यह रोपवे 800 मीटर लम्बा है और खरीब 6 मिनट में आप को पहाड़ी पर बने मंदिर तक ले जायेगा, एक समय में एक ट्राली में 4 ही लोग जा सकते है। उड़न खटोले के टिकेट की कीमत 50रु है जिस में आने और जाने की सुविधा उपलब्द करायी जाती है। नवरात्रि के समय यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है जिस दौरान गुजरात और आसपास के क्षेत्रों से पर्यटक बड़ी संख्या में सुंधा माता की यात्रा करते हैं।
सुंधा माता मंदिर कैसे पहुंचें -
सुंधा मंदिर के लिए कोई भी भारत के प्रमुख शहरों से परिवहन के विभिन्न साधनों से यात्रा कर सकते हैं। आपको बता दें कि सुंधा माता मंदिर जाने के लिए जालौर का निकटतम हवाई अड्डा 140 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जोधपुर में हैं। यह हवाई अड्डा मुंबई, दिल्ली और देश के अन्य प्रमुख महानगरों अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा पर्यटक सड़क मार्ग द्वारा सुंधा माता मंदिर की यात्रा करने वाले पर्यटक पर्यटक जोधपुर, जयपुर, अजमेर, अहमदाबाद, सूरत और मुंबई जैसे शहरों से आसानी से इस पर्यटन शहर तक पहुँच सकते हैं। ट्रेन द्वारा सुंधा माता मंदिर की यात्रा करने वाले पर्यटक जालौर रेलवे स्टेशन के लिए जोधपुर डिवीजन नेटवर्क, मुंबई और गुजरात से ट्रेन ले सकते हैं।
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