
कुंबलंगी
केरल के कोची से थोड़ा हटके एक छोटा सा मछुआरों का गाँव है जिसे कुछ समय पहले तक ज़्यादा लोग नहीं जानते थे | लेकिन जब से केरल की सरकार ने इसे मॉडल फिशिंग विलेज घोषित किया है तब से कुंबलंगी गाँव केरल में पसंदीदा पर्यटन स्थलों में शामिल होने की दौड़ में आगे बढ़ गया है | आज ये गाँव केरल की संस्कृति समझने और स्थानीय भोजन के पारंपरिक स्वाद को लेकर सैलानियों में काफ़ी प्रसिद्ध है |
सैलानियों के लिए आकर्षण
मॉडल टूरिस्ट विलेज की पदवी मिलने के बाद कुंबलंगी ने अपने आप में कई सुधार करके अपने आपको इस पदवी के लायक बनाया है |
मछली पकड़ना और चीनी जाल
ज्यादातर मछुवारों का गाँव होने के कारण कुंबलंगी मछुआरों की ज़िंदगी के पहलू उजागर करता है | इस इलाक़े में काम में आने वाले चीनी जाल की खूबसूरती देखते ही बनती है | इस जाल से परंपरागत तरीके से मछली पकड़ने की कला देख कर दिल खुश हो जाता है | कुंबलंगी में सैलानी भी चारा डाल कर मछली फँसाने के काम में हाथ आज़मा सकते हैं | क्या पता, सौभाग्य से एक दो मछलियाँ आपके हाथ भी लग जाएँ |

आजीविका के पारंपरिक तरीके सीखें
स्थानीय लोगों के जीवन पर सच्चे तौर पर प्रकाश डालने के लिए गाँव में कई तरह के कामों का प्रदर्शन किया जाता है जैसे नारियल का छिलका उतारना, टोकरी बनाना, मिट्टी के बर्तन बनाना और रस्सी बनाना आदि | स्थानीय औरतों द्वारा छत निर्माण के लिए नारियल के पत्तों को बुनने की कुशलता देख कर आप हैरान रह जाएँगे |
सुनहरे धागे का स्पर्श
नारियल की जटा या सुनहरा धागा केरल की संस्कृति का एक अभिन्न अंग है | पुराने समय से चली आ रही रस्सी बनाने की कला जिसमें नारियल की जटा को पानी में भिगोया जाता है और आखिर में जादुई तरीके से धागा करघे से निकलता है, ये काम सीखने लायक है |
नावों पर गाँव की सैर

गाँव रूपी इस द्वीप के चारों ओर बैकवाटर्स हैं जिन पर बोटिंग की जा सकती है | गाँव की लकड़ी से बनी परंपरागत नावों पर सवारी करने से आप पुराने समय की यादों में खो जाएँगे | कभी कबार नाविक ही आपके गाइड का काम भी कर देंगे | शांत पानी और ठंडी हवाएँ आपके दिमाग़ को शांत करके आपको घर जैसा महसूस करवाएँगी |
स्वाद का आनंद
कुंबलंगी घूमें और केरल के व्यंजनों का लुत्फ़ ना उठाएँ, ऐसा तो हो नहीं सकता | सैलानियों के लिए असली समुद्री भोजन की व्यवस्था की जाती है | क्या आप केरल के खाने में डाले जाने वाले खूब सारे मसालों से घबराते हैं? कुंबलंगी में चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है | यहाँ के व्यंजनों में कम मिर्च मसाला डाला जाता है ताकि सैलानियों को कोई दिक्कत ना हो | लोग यहाँ के ताज़े पकड़े हुए झींगों से बने व्यंजनों के दीवाने हैं | ग्रामीण माहौल में नारियल पानी के साथ पेट भर कर खाने का मज़ा लीजिए |

कलाग्रामम जाएँ
कुंबलंगी का एक और आकर्षण है कलाग्रामम | कलाग्रामम का अर्थ है कला का गाँव | कलाकारों के इस गाँव में आपको लकड़ी से बने मछली पकड़ने के औज़ार और हस्तशिल्पकारी का सामान मिलेगा | केरल के हस्तकला के सामान को पूरे विश्व में ख्याति मिलते मिली है, तो कलाग्रामम ज़रूर जाएँ |
आस पास घूमने लायक जगहें
अगर आप कुंबलंगी घूमने गए हैं तो केवल इस गाँव तक ही सीमित ना रहें | कोच्चि में ऐसी कई जगहें हैं जो आपको तरोताज़ा कर देंगी |
कुंबलंगी से 12 कि.मी. दूर कोच्चि का किला है जो कभी व्यापारिक केंद्र हुआ करता था | ये कोच्चि का वो हिस्सा है जहाँ रंगीन शहर पीछे छूट जाता है और प्राचीन शहर के नज़ारे मिलते हैं | पतली गलियाँ और पुराने टूटे फूटे घर फोर्ट कोची का गौरवशाली इतिहास बयान करते हैं | किले में प्रवेश करते ही सैलानी ब्रिटिश, पुर्तगाली और डच शासनकाल के अवशेषों से रूबरू होते हैं | पुर्तगाली शासकों द्वारा बनवाया गया ये किला जिसका नाम भी पुर्तगालियों के हिसाब से रखा गया है, काफ़ी पहले ही वक़्त की मार से ख़त्म सा हो चुका है | मगर यहाँ का नाम आज भी जीवित है | सेंट फ्रांसिस चर्च भारत के सबसे पुराने यूरोपीय चर्चों में से एक है। ईसाइयों द्वारा पूजा जाने वाला यह चर्च वास्को डि गामा का अंतिम विश्राम स्थल भी है | वास्को डी गामा एक पुर्तगाली खोजकर्ता थे जिन्होंने सदियों पहले भारत में पैर रखा था। फोर्ट कोच्चि की कहानी इतिहास के कई पन्नों को अपने में समेटे है |
मत्तान्चेरी, लोगों की भीड़ भाड़ से दूर
कुंबलंगी से कुछ ही दूर मत्तान्चेरी है जहाँ से विदेशी संस्कृति की महक आती है | हालाँकि यहाँ जैनी, गुजराती और कोंकणी लोग रहते हैं मगर यहाँ यहूदी लोगों की छाप दिखाई देती है |
यहूदी साइनागॉग, जो यहूदियों का प्रार्थना स्थल है, भारत का सबसे पुराना और आज भी सक्रिय साइनागॉग है | यहाँ आज भी कुछ यहूदी रहते हैं जो अपनी संस्कृति को जी जान से संरक्षित करे हुए हैं |
मत्तान्चेरी का डच पैलेस भी सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है | महल का मात्र नाम ही डच है, यहाँ की बनावट तो केरल की ही है | संरचना की खूबसूरती देखने जा सकते हैं |
वैसे ये कुंबलंगी के नज़दीक नहीं है मगर यहाँ जाकर आपका समय बर्बाद नहीं होगा | इस महल में केरल का सबसे बड़ा पुरातत्व संग्रहालय है। यहाँ आपको कोच्चि के शाही परिवार के समृद्ध शासनकाल को दर्शाने वाली कलाकृतियाँ मिलेंगी, साथ ही कई ऑइल पेंटिंग, पुराने सिक्कों और मूर्तियों को भी प्रदर्शित किया गया है। महल में प्रवेश करते ही आप राजाओं और रानियों के समय में पहुँच जाएँगे |
कुंबलंगी कैसे पहुँचे?
केरल की व्यापारिक राजधानी कोच्चि से कुछ ही दूर कुंबलंगी स्थित है जो सभी जगहों से भली भाँति जुड़ा हुआ है |
हवाई जहाज़ से : कोचीन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कुंबलंगी से 45 कि.मी. दूर स्थित है। चूंकि कोची भारत और विदेशों के सभी प्रमुख शहरों से हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है, इसलिए हवाई जहाज़ लेना यात्रा करने का सबसे अच्छा तरीका है।
ट्रेन से: कुंभलंगी से सिर्फ 12 कि.मी. दूर एर्नाकुलम जंक्शन है। आम आदमी की ज़िंदगी को करीब से देखने के इच्छुक लोगों के लिए ट्रेनें सबसे अच्छी हैं।
सड़क से: कोच्चि से कुंभलंगी की ओर जाने वाली किसी भी बस से आप 15 मिनट में यहाँ पहुँच जाते हैं।

कुंबलंगी में रहने के विकल्प
जैसा देस वैसा भेस | अगर आप इस कहावत के अनुसार चलें तो कुंबलंगी में एक गाँव वाले की तरह जीने के काफ़ी विकल्प मिल जाएँगे | गाँव वालों जैसा ही सादा भोजन करें और उन्हीं की तरह सोएँ | जी भर कर गाँव में घूमते रहें | लेकिन अगर आपको आरामदायक रिज़ोर्ट में रहना पसंद है तो निराश ना हों | हर प्रकार के यात्री को शरण देने के लिए पास ही बहुत से होटल और रिज़ोर्ट भी मौजूद हैं |
कुंबलंगी एक अच्छा पर्यटन स्थल है क्योंकि ये पर्यटकों को गाँव का जीवन करीब से देखने का मौका देता है | अगली बार यात्रा करने अगर यहाँ जाएँगे तो सोचेंगे कि यहाँ सालों पहले ही क्यों नहीं घूमने आ गए |
ये आर्टिकल भारत के एक ट्रैवल ब्लॉगर ई जे ने लिखा है | वे जॉंट मंकी ब्लॉग और जॉंट मंकी यूट्यूब चैनल के संस्थापक हैं |
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