ख़ुद को ट्रैवलर कहते हो लेकिन भारत की ये 12 घाटियाँ नहीं पता, कैसे ट्रैवलर हो!

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"हम मुसाफ़िर हैं, जो जी लेते हैं एक पल में ज़िन्दगी,
घुट घुट के मरना हमारी फ़ितरत में नहीं।"

सफ़रनामा का ये क़िस्सा समेटता है उन जगहों को, जो न तो पहाड़ हैं, ना नदी हैं, ना ही झरना और ना ही बर्फ़। हम घुमक्कड़ लोग इनको घाटी बोलते हैं। भारत में इनकी भरमार है। जिसने घाटियाँ नहीं घूमीं, वो सच्चा घुमक्कड़ बनने के सर्टिफ़िकेट के लिए फ़ॉर्म भी नहीं भर सकता।

तो आज हम बात कर रहे हैं उन 12 घाटियों की, जिनका नाम हर सच्चे मुसाफिर की ट्रैवल लिस्ट में होना ज़रूरी है।

1. माणा घाटी, चमोली, उत्तराखंड

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माणा, हिन्दू सभ्यता के अनुसार वो महान जगह जहाँ महर्षि व्यास ने गणेश जी को महाभारत की पूरी कथा सुनाई थी और गणेश जी ने पूरी कथा लिखी।

माणा गाँव से कुल 3 किमी0 की दूरी पर बद्रीनाथ स्थित है। माणा घाटी गंगा की बहन अलकनंदा नदी का उद्गम स्थल भी है। तो देखने के लिए यहाँ बहुत कुछ है, जिसके लिए आपको ज़्यादा सोचना नहीं पड़ेगा।

कैसे पहुँचे माणाः सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा देहरादून का जौली ग्रांट हवाई अड्डा है। वहीं रेल मार्ग का प्लान है तो ऋषिकेश पहुँचें। यहाँ पहुँच कर जोशीमठ से होते हुए बद्रीनाथ के लिए या तो बस पकड़ें या फिर टैक्सी। हाँ, मिलिंद सोमन के फ़ैन हों तो दौड़ कर भी पहुँच सकते हैं।

माणा में ख़ासः भारत और तिब्बत के बीच की सीमा माणा ला 18,192 फ़ीट की ऊँचाई पर है। इसे भारत का आख़िरी गाँव भी कहते हैं। माणा ला से होकर आपको चौखंबा की चोटी पर जाना चाहिए। इसके अलावा दो गुफ़ाएँ, व्यास गुफ़ा और गणेश गुफ़ा का भी दर्शन करें। वसुंधरा झरना, सतोपंथ झील और भीम पुल घूमना न भूलें।

2. पिंडर घाटी, बागेश्वर ज़िला, उत्तराखंड

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श्रेयः अशोक शाह

कुमाऊँ के बागेश्वर ज़िले में पिंडर घाटी और पिंडारी नदी दोनों एक दूसरे के पक्के साथी हैं। पिंडारी नदी पिंडर घाटी के अलावा देवाल, थराली, कुलसरी, हरमानी, मींग, नारायण बगर और नलगाँव से होकर जाती है। पिंडारी नदी कर्णप्रयाग पर अलकनंदा नदी से मिलती है।

कैसे पहुँचेंः सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा पन्तनगर का है। वहीं रेलवे स्टेशन काठगोदाम का है। यहाँ पहुँचने के बाद आपको सुबह सुबह बस पकड़नी होगी या फिर टैक्सी से अल्मोड़ा से होते हुए बागेश्वर जाना होगा।

पिंडर घाटी में ख़ासः पाताल भुवनेश्वर का आकर्षक चूना पत्थर गुफा मंदिर बागेश्वर के रास्ते में पड़ता है। पिंडर घाटी ख़ुद में ही कई सारे गाँवों का बसेरा है, जैसे कि धुर। एक से दूसरे गाँव को हाइकिंग के लिए निकल सकते हैं। अगर थोड़ी और मेहनत करने का मन है, तो पिंडारी ग्लेशियर का रास्ता भी मज़ेदार है।

3. दारमा घाटी, पिथौरागढ़ ज़िला, उत्तराखंड

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श्रेयः सोलरशक्ति

कुथ यांगती और लसार यांगती घाटी के बीच में बसती है दारमा नाम की यह घाटी। इस घाटी तक का सफ़र सिर्फ़ पैदल चलकर ही मुकम्मल होता है। पंचाचूली बेसकैम्प पर पहुँच कर यहाँ का रास्ता शुरू होता है। रास्ता इतना सुन्दर कि आपको भारत-तिब्बत सीमा पर कैलाश पर्वत की चोटियों के नज़ारे मिलते चलते हैं।

कैसे पहुँचेंः पिथौरागढ़ का नैनी सैनी हवाई अड्डा इस ख़ूबसूरत जगह के सबसे नज़दीक है। वहीं टनकपुर सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन है। यहाँ पहुँचकर आपको सुबह की बस लेनी पड़ेगी या फिर टैक्सी से धारचूला तक जाना होगा।

दारमा घाटी में ख़ासः दारमा घाटी में ट्रेकिंग करना आपका ज़िन्दगी के गिने चुने यादगार लम्हों में एक हो सकता है। ऐसा सफ़र जहाँ आप बार बार जाना चाहो। पंचाचूली बेसकैंप तक पहुँचने का रास्ता जंगलों और ग्लेशियरों से होकर गुज़रता है। कहा जाता है कि पांडवों ने स्वर्ग जाने से पहले आख़िरी बार भोजन यहीं किया था। धौलीगंगा से दुगतू होते हुए तिदांग और सिन ला से होते हुए बिदांग गाँव पहुँचते हुए व्यास घाटी तक जाइए।

4. पिन घाटी, लाहौल और स्पीति ज़िला, हिमाचल प्रदेश

काज़ा के दक्षिण पूर्वी हिस्से की तरफ़ बढ़ेंगे तो आपको पिन नदी और स्पीति नदी का संगम होता हुआ मिलेगा। पिन घाटी, जहाँ दुनिया की कुछ गिने चुने जानवर मिलेंगे।

पिन घाटी का अधिकतर इलाक़ा ठंडा रेगिस्तान है और पिन घाटी राष्ट्रीय पार्क दक्षिण के धनकर मठ तक गया है। किन्नौर गाँव का डोगरी इसकी सबसे ऊँची जगह है जो क़रीब 20,000 फ़ीट पर है।

कैसे पहुँचेंः सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा भुंटर (252 किमी0) है और रेलवे स्टेशन जोगिन्दर नगर का है। मनाली और शिमला से काज़ा के लिए बसें जाती हैं। यहाँ पहुँचकर आगे पिन घाटी के लिए आपको बस या प्राइवेट टैक्सी करनी पड़ेगी। मनाली से रोहतांग पास होते हुए या शिमला से रेकॉन्ग पिउ होते हुए भी आप यहाँ पहुँच सकते हैं।

पिन घाटी में ख़ासः यहाँ आएँ तो कुछ गिनी चुनी जगहों पर ख़ास नज़र रखें। पहला 680 साल पुराना उगय संगक चोलिंग गोम्पा और उसका नया मठ। तीन मंदिर हैं इसके साथ जहाँ पुराने ज़माने के काले भित्ति चित्र मिलते हैं, बर्फ़ वाले शेर होते हैं और त्यौहारों वाले मुखौटे। सगनम गाँव से मुध तक का एक दिन का ट्रेक आपके सफ़र को यादगार बना देगा। इसके साथ आप पिन-पार्वती पास, भाबा पास और किन्नौर के काफनु भी जा सकते हो।

5. तीर्थन घाटी, कुल्लू ज़िला, हिमाचल प्रदेश

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श्रेयः विश्रुत पाण्डेय

हिमालयी राष्ट्रीय पार्क से सटा हुई तीर्थन घाटी का नाम तीर्थन नदी के नाम पर पड़ा है। हिमालय राष्ट्रीय पार्क से ही तीर्थन घाटी की सुन्दरता आपको दिखने लगेगी। किसी शान्त जगह की तलाश में और कई बार हाइकिंग के लिए लोग आपको यहाँ आते मिल जाएँगे।

कैसे पहुँचेंः यहाँ से 80 किमी0 दूर भुंतर सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा है। वहीं कीरतपुर सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन। कुल्लू और मनाली से जाने वाली हर बस औट तक जाती है, जहाँ आपको उतर जाना है। यहाँ पहुँचने पर आपको सुबह सुबह शोजा या जिभी की बस लेनी पड़ेगी या फिर टैक्सी करनी पडे़गी।

तीर्थन घाटी में ख़ासः तीन बड़ी जगहें जैसे तीर्थन, शोजा और जिभी देखने के लिए बढ़िया हैं। यहाँ के कैंप में आप एडवेंचर स्पोर्ट्स का मज़ा ले सकते हैं। इसके अलावा हिमालयी राष्ट्रीय पार्क के ट्रेक पर निकल जाइए। जलोरी पास, सर्लोसकर झील, नेउली, गुशैनी और भागी कशाहरी इस राष्ट्रीय पार्क में देखने लायक जगहें हैं।

6. काँगड़ा घाटी, काँगड़ा, हिमाचल प्रदेश

किसी मुसाफ़िर का रास्ता देवदार के पहाड़ों से होते हुए काँगड़ा घाटी होते हुए पहुँचे तो कैसा लगना चाहिए। ठीक वैसा ही लगता है यहाँ। तिब्बत के शरणार्थियों का एक बड़ा जत्था रहता है यहाँ। अगर आप ढंग से काँगड़ा घाटी घूमना चाहते हैं तो कम से कम सात दिन का प्लान बनाकर आइए।

कैसे पहुँचेंः 14 किमी0 दूर गग्गल हवाई अड्डा सबसे नज़दीकी है, वहीं पठानकोट सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन है। दिल्ली से धर्मशाला और मंडी के लिए सीधी रेल जाती है। अगली सुबह को टैक्सी या बस लेकर आप काँगड़ा पहुँच सकते हैं।

काँगड़ा घाटी में ख़ासः मंडी पहुँचकर आप पराशर झील के लिए निकल जाएँ। बीर में चौका मठ का दर्शन करने निकल पड़िए, बीर की तिब्बत कॉलोनी में यह मठ पड़ेगा। इसके अलावा पैराग्लाइडिंग के लिए बिलिंग तो है ही। हाँ, इसके साथ काँगड़ा का मशहूर क़िला न देखना भूलना, जिसे कटोच राजवंश ने बनवाया था। हिमालय के सबसे ऊँचे क़िलों में नाम आता है काँगड़ा के इस क़िले का।

7. वारवान घाटी, किश्तवाड़ ज़िला, कश्मीर

उत्तर भारत के उन छिपे ख़ज़ानों में एक, जिसके बारे में बड़े बड़े घुमक्कड़ नहीं जानते, वारवान घाटी। इसके एक तरफ़ है हरे जंगलों वाली कश्मीर घाटी, तो दूसरी तरफ़ लद्दाख का बर्फ़ीला रेगिस्तान। गर्मियों के मौसम में इस जगह को देखने का प्लान बनाकर आ सकते हैं आप।

कैसे पहुँचेंः सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा श्रीनगर का है, वहीं जम्मू का रेलवे स्टेशन सबसे पास है। अनंतनाग के कोकरनाग से तीन घंटे पर मिलता है वारवान। कोकरनाग पहुँचने के बाद बस मिलती है या फिर यहाँ पहुँचने के लिए टैक्सी करें।

वारवान घाटी में ख़ासः यहाँ पर ही बहुत सारे ट्रेक हैं जिनको घूमना अभी बाकी है। यहाँ पर कई ग्लेशियर हैं जिनको देखने के लिए आपको इन ट्रेक्स से गुज़रना पड़ेगा।

8. लिद्दर घाटी, अनंतनाग ज़िला, कश्मीर

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कोल्होई ग्लेशियर से शुरू होते हुए लिद्दर नदी झेलम में जाकर मिल जाती है। अनंतनाग से 7 किमी0 आगे सफ़र शुरू होता है लिद्दर घाटी का। वारवान की ही तरह ये भी दक्षिण में पीर पंजाल के पहाड़ों की और उत्तर में सिंध और ज़ंस्कार पहाड़ों की रेंज से घिरी हुई है।

लिद्दर घाटी इसलिए भी घूमना चाहिए क्योंकि ये पवित्र शेषनाग झील से जन्मी है। यहाँ घूमने लायक जगहों में मंडलान, लरिपोरा, फर्सलुन, अशमुक़ाम और सीर हमदान हैं।

कैसे पहुँचेंः सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा श्रीनगर का है, वहीं जम्मू का रेलवे स्टेशन सबसे पास है। लिद्दर अनंतनाग से कुल 7 किमी0 की दूरी पर है। अगली सुबह को टैक्सी या बस लेकर आप यहाँ पहुँच सकते हैं।

लिद्दर घाटी में ख़ासः जज़्बे वालों के लिए कोल्होई ग्लेशियर छूना सपना होता है। अगर यहाँ नहीं जाना चाहते तो आरु गाँव घूम लो। लिद्दर के रास्ते पर अवन्तीपुरा नाम का मंदिर भी है जिसे कभी अवन्तीवर्मन नाम के राजा ने बनवाया था। इसके पास में गुरु नानक देव गुरुद्वारा है, जो हिमालय की रेंज में सिख धर्म के नामचीन गुरुद्वारों में एक है।

9. नुब्रा घाटी, लेह ज़िला, लद्दाख

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श्रेयः प्रभु दोस

लेह की इस नुब्रा घाटी को कभी दुम्रा, मतलब फूलों की घाटी कहा जाता था। इस सर्द रेगिस्तान में श्योक नदी के कारण यहाँ की भूरी ज़मीन और नीले आसमान के तले फूल उगते भी हैं। श्योक नदी काराकोरम रेंज से आगे जाकर सिंधु में मिल जाती है। ये 10,000 फ़ीट से अधिक की रेंज वाली घाटी है जिसमें ढेर सारे गाँव आते हैं। इतनी ऊँचाई इस जगह को रहने के लिए बहुत कठिन बना देती है। नुब्रा घाटी के उत्तर में ही प्रसिद्ध सियाचीन ग्लेशियर है।

कैसे पहुँचेंः सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा लेह का है जो क़रीब 150 किमी0 दूर है। वहीं जम्मू का रेलवे स्टेशन सबसे पास। सुबह पहुँचकर आप यहाँ के लिए बस ले सकते हैं या फिर टैक्सी भी उपलब्ध है।

नुब्रा घाटी में ख़ासः नुब्रा घाटी में भगवान बुद्ध की 32 मी0 ऊँची मूर्ति है, जिसे देखना ना भूलें। 1420 ईसा पूर्व में बने डिस्क मठ जाएँ। गिल्गिट और बल्टिस्तान की रेंज से जुड़ा होना इसे प्रशासित भारत की सीमा से जोड़ता है जबकि असली सीमा गिल्गिट और बल्टिस्तान को भी भारत के अन्दर समेटती है। यहाँ आपको मिलेंगी बहुत पुरानी बल्टी प्रजाति। किसी ज़माने में पर्यटकों का टूरिस्ट स्पॉट कहलाने वाले टुरटुक गाँव को लोग बड़ी संख्या में देखने आते थे। लेकिन 2010 में सरकार ने इसके आसपास घूमने पर परमिट लगा दिया।

10. दिबांग घाटी, दिबांग ज़िला, अरुणाचल प्रदेश

दिबांग घाटी अरुणाचल के दिबांग ज़िले की सबसे ख़ूबसूरत जगहों में एक है। दिबांग घाटी दो भागों में बँटी है, ऊपरी दिबांग घाटी और निचली दिबांग घाटी। भारत के इस सबसे बड़े ज़िले की आबादी सबसे कम है। यहाँ इदु मिशमी नाम की बहुत पुरानी नस्ल मिलेगी जो तिब्बत से हज़ार साल पहले यहाँ आकर बस गई थी। दिबांग ज़िले में अणिनि अकेली ऐसी जगह है जो पूरे भारत से अच्छी तरह जुड़ी है। हिमालय की इस रेंज में घूमने के लिए दिबांग वन अभयारण्य भी है। मिश्मी जंगलों में उड़ने वाली गिलहरी से पहले कभी नहीं देखा गया, अब इस क्षेत्र का नाम मिश्मी हिल्स जाइंट फ़्लाइंग गिलहरी (पेटौरिस्ता मिश्मिनेसिस) रखा गया है।

कैसे पहुँचेंः यहाँ पहुँचने के लिए डिब्रूगढ़ हवाई अड्डा सबसे नज़दीक है, वहीं टिनसुकिया रेलवे स्टेशन सबसे पास है। यहाँ पहुँचकर आपको घाटी में अणिनि पहुँचने के लिए टैक्सी लेनी होगी।

दिबांग घाटी में ख़ासः अगर आप निचली दिबांग घाटी घूमना चाहते हैं तो यहाँ कई प्रकार के ट्रेकिंग अनुभव आपको मिलेंगे। रोइंग से ट्रेकिंग शुरू करते हुए मिशमी गाँव से होते हुए निज़ाम घाट तक जाएँ। ऊपरी दिबांग घाटी में दिबांग वन अभयारण्य या ट्रेकिंग करते हुए अणिनि तक पहुँचें। चूँकि दिबांग घाटी का इलाक़ा कुछ संवेदनशील है, तो इसका थोड़ा ख़्याल रखें।

11. ज़ुकोउ घाटी, नागालैंड और सेनापति ज़िला, मणिपुर

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नागालैंड और मणिपुर की सीमा के बीच में ज़ुकोउ घाटी। जैसे आपने उत्तराखंड में फूलों की घाटी देखी है, ठीक ऐसा ही नज़ारा आपको ज़ुकोउ घाटी में देखने को मिलेगा। आप यहाँ विश्वेमा गाँव और जाखमा गाँव से जा सकते हैं। ये दोनों ही गाँव नागालैंड में हैं और कोहिमा से आसानी से आप यहाँ पहुँच सकते हैं।

लिली के फूलों की एक अनोखी प्रजाति मिलती है यहाँ पर, जो आपको पूरी दुनिया में देखने को नहीं मिलती, इसे ज़ुकोउ लिली कहते हैं। लिली के फूलों के अलावा इस घाटी में दूसरे कई प्रकार के फूलों की प्रजातियाँ मिलेंगी।

कैसे पहुँचेंः सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा दीमापुर का है और यही नज़दीकी रेलवे स्टेशन भी। यहाँ से टैक्सी लेकर जाखमा और विश्वेमा गाँव पहुँचिए। यहाँ से आपको ट्रेकिंग का अनुभव मिलेगा।

ज़ुकोउ घाटी में ख़ासः अगर आप मणिपुर से इस घाटी में पहुँचना चाहते हैं तो सेनापति ज़िले के माउंट इसु से पाँच घंटे की ट्रेकिंग करनी पड़ेगी। इसको खुले बहुत ज़्यादा वक़्त भी नहीं हुआ है। पुलि बाज़ वन अभयारण्य नए पंछियों को देखने के लिए प्रसिद्ध जगह है। यह वन अभयारण्य आपको जाफ़ी और ज़ुलेकी पहाड़ियों के बीच में मिलेगा। अगर आपको चुनौतियों का सामना पसन्द है तो नागालैंड की सबसे ऊँची चोटी जाफ़ी चोटी बी आपको यहीं से चढ़ने का मौक़ा मिलेगा।

12. युमथांग घाटी, सिक्किम

हिमालय के पूर्वी इलाक़े में 11,693 फ़ीट की ऊँचाई पर बसी हुई युमथांग घाटी मानो स्वर्ग से गिरा हुआ फल है जो भारत में आकर गिरा है। तीस्ता नदी के पानी में नहाकर 24 क़िस्म के फूल सिर्फ़ यहीं उगते हैं। दिसम्बर से मार्च को छोड़ दें तो इस घाटी में आप स्कींग के लिए भी आ सकते हैं। यहाँ से नज़दीक ही लाचुंग नाम का क़स्बा है जिसे लेकर पर्यटक हमेशा से ही उत्साहित रहते हैं।

कैसे पहुँचेः युमथांग घाटी के सबसे नज़दीक पर बागडोगरा नाम का हवाई अड्डा है जो क़रीब 218 किमी0 दूर है। वहीं दार्जलिंग रेलवे स्टेशन सबसे पास है। सुबह पहुँचकर आप यहाँ के लिए बस ले सकते हैं या फिर टैक्सी भी उपलब्ध है।

युमथांग घाटी में ख़ासः शिंगबा रोडोडेंड्रॉन सैंक्चुरी घूमना न भूलें। मार्च से मई के महीनों में यहाँ पर रोडोडेंड्रॉन नाम की झाड़ियाँ बहुत उगती हैं। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय रोडोडेंड्रॉन उत्सव होता है। युमथांग घाटी से शुरू करके आप युमथांग के गर्म पानी के झरने पर पहुँचते हैं।

युमथांग से 23 किमी0 आगे युम समदोंग मिलता है। इसे ज़ीरो पॉइंट कहते हैं और इसी ज़ीरो पॉइंट पर तीन नदियाँ आकर मिलती हैं। गर्मियों के मौसम में इसे आप साफ़ साफ़ देख भी सकते हैं। इसके कुछ आगे ही चीन की सीमा पड़ती है। लाचुंग में एक मठ भी है जिसे देखने आप जा सकते हैं। यहाँ आपको मिलेगा सिक्किम का देसी खाना और संस्कृति।

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