पढ़िए भूस्खलन में फंसे परिवार को कैसे एक पहाड़ी परिवार ने सहारा दिया ,पढ़ कर गर्व होगा ..part-2

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Photo of पढ़िए भूस्खलन में फंसे परिवार को कैसे एक पहाड़ी परिवार ने सहारा दिया ,पढ़ कर गर्व होगा ..part-2 by Rishabh Bharawa

रात भर बारिश रही। सुबह–सुबह नींद खुली दरवाजे पर किसी की दस्तक से। उस हिमाचली परिवार में जो छोटा बच्चा था "सक्षम" ,वो हम मेहमान के आने से ज्यादा ही खुश था, तो सुबह सुबह वो जल्दी उठ कर हमे जिस घर में रोका उसके मुख्य दरवाजे पर आकर , वो दरवाजा बजा रहा था। उसकी मम्मी उसको मना कर रही थी। जैसा कि मेने बताया था हम चारों को उन्होंने अपनी पक्के नए मकान में रोका था और खुद, जस्ट पास बने अपने थोड़े पुराने मकान में सोए थे। हमारे ड्राइवर के सोने की व्यवस्था भी उधर ही थी। पहाड़ो पर मैं, हाईएस्ट करीब 18500 फीट की ऊंचाई पर पैदल ट्रेक करके गया हूं,कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान,उसके अलावा चादर ट्रेक जैसे सबसे खतरनाक ट्रेक भी हो , मुझे नींद हर जगह बढ़िया ही आई हैं। अधिकतर लोगों को हाई एल्टीट्यूड में पहुंचते ही नींद आने में दिक्कत रहती हैं। पर मेरे साथ ऐसा एकाध जगह ही हुआ था जैसे कि 2021 में लेह बाईक ट्रिप के दौरान "सरचू" में,वहां पूरी रात में जागा रहा था,नींद आई ही नहीं।

हमेशा की तरह यहां भी नींद तो मुझे बढ़िया आई थी। रात के सपने भूस्खलन से प्रेरित लग रहे थे। मेरी मम्मी और बहन को उन्होंने अंदर डबल बेड वाला कमरा दे दिया,बाहर वाले रूम में से कुर्सी - सोफे हटा कर नीचे डबल गद्दे डाल दिए ,जहां मैं और मेरी पत्नी रहे। दरवाजे की दस्तक से मेरी नींद खुली, मैं खड़ा हुआ । दरवाजे के पास ही अंदर खिड़की के पास एक जार में दो गोल्डन मछलियां तैर रही थी। दरवाजा खोलते ही सक्षम अंदर आ गया। मैं बाहर गया तो बस बहती हुई नदी की तेज धारा की कलकल करती आवाजे, कुछ पक्षियों के चहकने की आवाजे ही सुनाई दे रही थी। घर एक दम गहरे हरे भरे जंगल के बीच था। थोडा पैदल ऊपर जाकर देखा हमारी टैक्सी सुरक्षित थी, ऊपर वाली सड़क पर कल की फंसी हुई सभी गाडियां पड़ी हुई थी । दूसरी तरफ़ देखा तो ड्राईवर और सक्षम के पापा दोनो एक चट्टान पर बैठे हुए थे। उन्होंने बताया कि रात में और ज्यादा भूस्खलन हुआ उसी जगह और अब वो रास्ता खुलने की कोई आस नहीं दिख रही हैं। उनके हिसाब से सड़क करीब 300 से 400 मीटर पूरी तक मलबे, पेड़ पौधों और चट्टानों से दब गई थी।

उधर सक्षम की मम्मी ने आवाज लगाई कि। "भैया, चाय बनने में हैं।" मैं कमरे में पहुंचा , मम्मी को बताया कि अभी रास्ता साफ होने की कोई गुंजाइश नहीं हैं। सक्षम की मम्मी ने बताया कि जिस पाइप लाइन से उनके यहां पानी आता था वो भी भूस्खलन की वजह से टूट गई। बाथरूम की टंकी में पानी लिमिटेड ही था लेकिन उन्होंने हमे उस थोड़े बहुत पानी से रेडी होने दिया। फिर बताया कि अगर पाइप लाइन टूट जाती हैं तो उन्हें खुद के लिए पानी और भी नीचे जाकर खेत के पास बह रही नदी से भरकर लाना पड़ता हैं। तैयार होकर हम सब कुछ देर गपशप कर रहे थे। बाहर गांव के पड़ोसी के कुछ और लोग इक्कठे हो चुके थे ,ड्राइवर के साथ बातचीत कर रहे थे। वहां से आइडिया लगा कि रास्ता कब साफ होगा पता नहीं। ड्राईवर ने हमे सजेस्ट किया कि हम कुछ 6 से 7 किमी का पैदल ट्रेक करके , "बाघेपुल" तक पहुंच सकते हैं वहां से दूसरी टैक्सी करके हम आगे की यात्राए जारी रख सकते हैं। लेकिन उसके लिए हमे ऊपर चढ़कर उस भूस्खलन वाली जगह पर पहुंचना होगा और फिर उस मलबे के पास उस टूटे मंदिर के बगल से सीधे खड़े पहाड़ से रास्ता बना कर निचे उतरना होगा । निचे उतरकर एक नदी पर बना एक ब्रिज मिलेगा जिससे नदी को क्रॉस करके हम भूस्खलन वाले पहाड़ के सामने वाले पहाड़ के पास पहुंच जायेंगे । वहां से फिर कोई रास्ता बनाकर, ऊपर चढ़ेंगे और क्षतिग्रस्त सड़क के समानांतर ही सामने वाले पहाड़ पर चलते रहेंगे फिर 5 से 6 किमी इस तरह चलकर आगे बने एक ब्रिज से फिर इस सड़क को पकड़कर "बागेपुल " नामक जगह से नई टैक्सी ले लेंगे। बस रिस्क यह थी कि इस पूरे प्लान में कोई पगडंडी या रास्ता नही मिलेगा ,केवल चट्टानों, सीधी खड़ी चढ़ाई और लंबी लम्बी घास के इलाकों से पैदल निकलना पड़ेगा। हम तीन को कोई दिक्कत नहीं थी, दिक्कत मम्मी को हो सकती थी। लेकिन मेरी मम्मी ने भी अकेले 2019 में कैलाश मानसरोवर यात्रा की हुई हैं और उस 18500 फीट वाले इलाके डोल्मा दर्रे को पैदल पार किया था पोर्टर के सपोर्ट से तो मम्मी ने भी हिम्मत दिखाई और कहा कि बैग्स का जुगाड सेट हो जाए तो वो पैदल चल लेंगे। हमारे पास 7 बैग्स थे, क्योंकि प्लान हमारे काफ़ी लंबे थे। बैग्स को ले जाने के लिए उस गांव में पड़ोस में रुके दो शेरपा मिल गए और सक्षम के अंकल ने कहा "आंटी, को मैं पार करवाऊंगा रास्ता "...

बस ड्राईवर, दो शेरपा, सक्षम के अंकल और हम चार, निकल लिए रिस्क लेने के लिए। उधर सक्षम की मम्मी ने खाना बनाने की सब तैयारिया कर ली, और हमसे एक दो दिन रूकने की विनती की। उन्होने कहां कि उन्हें हमसे काफ़ी बाते करनी थी राजस्थान के बारे में, कि कैसे हम राजस्थानी लोग रहते हैं, खाते हैं वगेरह आदि।उनके रिश्तेदारों से भी हमारी बात करवानी थी।

उन्होंने खाना बना भी दिया और हमको खाना खा कर ही जाने को बोला। पर हम देरी नही कर सकते थे, दोनो शेरपा लेट हो रहे थे और अगर वो हमे छोड़ कर चले जाते तो हमारे सामान ले जाने के लिए कोई ऑप्शन नही था। हमारे सुबह सुबह अचानक, गांव से जाने की सूचना से सक्षम और उसकी मम्मी दुखी हो गए, ऊपर से खाना भी नहीं खाने के कारण उनका मुंह रुआंसी हो गया। साथ ही साथ में, मेरे घर की इन तीनों महिलाओं का मुंह भी। उन्होने हमे इतना अच्छे से रखा बदले में बिना कुछ आस किए। मम्मी ने एक उचित राशि सक्षम को दिया, उनके घर वाले मना करने लग गए और वापस लौटाने लग गए तो हमने कहा "ये आपके लिए नहीं सक्षम के लिए हैं" । हालांकि उनका कर्ज तो कभी चुकता नहीं हो सकता क्योंकि ऐसे समय में उनके द्वारा हमारी मदद अमूल्य थी। मैने सक्षम को कहा कि मैं अगले साल फिर श्रीखंड यात्रा पर आऊंगा और बहुत सारे गिफ्ट्स लेकर आऊंगा सबके लिए।वापस उस पल का इंतजार तो हैं ही मुझे, किसी भी हाल में अगले साल, खुलते ही करूंगा श्रीखंड यात्रा वो भी इनसे मिलने के लिए।ग्रुप फोटो लिया। शेरपा आगे बढ़ चुके थे।6 बैग उन्होंने और एक मैने ले लिया था।

हमे फिर भी कहा जा रहा था कि "थोड़ा खाना तो खा के जाओ , हम बहुत अच्छा खाना खिलाएंगे" लेकिन हमने भारी मन से मना किया और हमारा खाना ना खाने का यही फैसला ही आज आगे हमारी जान बचाने वाला था।

लेख अभी जारी रहेगा....

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