सातवां दिन - द्रास से पणिकर - 119 किलोमीटर
पिछले वीडियो में हम पहुंचे थे द्रास । रात में हम रुके थे एक होमस्टे में जिसका नाम था बाइकर्स होमस्टे। अगले दिन सुबह-सुबह होमस्टे के ओनर सईद अजगर जी के साथ हमने आसपास का पूरा गांव देखा ।इस होमस्टे से वह पहाड़िया जिस पर कारगिल युद्ध लड़ा गया था बिल्कुल साफ साफ देखी जा सकती थी |
अमूमन लोग द्रास से कारगिल होते हुए सीधा लेह निकल जाते हैं लेकिन आज की हमारी मंजिल थी जंस्कार घाटी जहां पहुंचने के लिए हमें शुरू घाटी को पार करना पड़ता है | इसलिए द्रास से निकलने के बाद हमने कारगिल से एक राइट लिया और हम पहुंचे पणिकर नाम के एक छोटे से गांव में यहां पर हमने एक छोटे से होमस्टे में चेकिंग किया|
लद्दाख घूमने में सबसे ज्यादा मजा आता है लद्दाख के होमस्टे में रुकने में और उस परिवार के साथ बैठकर उन्हीं के किचन में खाना खाने में| यह मौका हमें इस होमस्टे में मिला| लद्दाखी किचन में जो चूल्हा होता है वह दो काम करता है खाना बनाने का भी और साथ में किचन को गर्म रखने का भी| हम जिस जगह पर रुके थे वहां ठंड काफी ज्यादा थी लेकिन किचन काफी गर्म था और वहां बैठकर उस परिवार के साथ बातचीत करके खाना खाने का जो मजा था वह कुछ अलग ही था |
इस परिवार के साथ बातचीत करके हमें उन दिक्कतों के बारे में पता चला जो इतनी ऊंचाई पर बसे गांव में रहने वाले लोगों को होती है| ठंड के सीजन में क्योंकि सब रास्ते बंद हो जाते हैं इसलिए इनके पास हरी सब्जियां और फलों की सप्लाई बंद हो जाती है | इसलिए जिस भाजी को वह खाते हैं उसको ठंड के सीजन आने से पहले सुखा कर रख लेते हैं और ठंड के सीजन में से इन्हीं सूखी हुई पत्तियों से सब्जी बनाकर खाते हैं | लद्दाख पहुंचते साथी हमारी सबसे पहली तमन्ना थी होमस्टे में रुकने की और आज वह तमन्ना पूरी हो गई | पणिकर में रात को तापमान लगभग 5 डिग्री तक पहुंच चुका था और और यह हमारी अब तक की यात्रा का सबसे ठंडा दिन था |