'जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा.'....ये बात हम नहीं कह रहे बल्कि 'सबका मालिक एक' का नारा देने वाले शिरडी के साईं बाबा ने खुद कही थी। ये महज उन्होंने कहने के लिए नहीं कही थी, तभी तो लाखों-करोड़ों लोग उनकी इस बात पर पूरा भरोसा करते हैं और शिरडी माथा टेकने आते हैं। बाबा का चमत्कार कहें या महिमा कि भक्तों की मुरादें पूरी होती हैं और वे बाबा दरबार में आकर हाजरी लगाते हैं।
जानकारी होगी कि शिरडी के इस संत की पूजा सभी धर्मों के लोग करते हैं और उन्होंने मानव सेवा और कल्याण की बात की थी। उनका दिव्य प्रभाव ही है कि शिरडी ही नहीं, देश-विदेश में उनके भक्त मौजूद हैं जो समय-समय पर यहां आते हैं। बता दें कि साईं बाबा के जन्म को लेकर कई भ्रांतियां हैं, लेकिन माना जाता है कि सन 1838 में इस संत का जन्म हुआ था। हालांकि शिरडी उनका जन्म स्थान नहीं है लेकिन उनके नाम के साथ पूरी तरह जुड़ा हुआ है।
शिरडी की कहानी असल में साईं की कहानी है। साईं सत्चरित्र पुस्तक की मानें तो साईं 16 साल की उम्र में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले स्थित शिरडी गाँव में आए थे। नीम के पेड़ के नीचे साधना में रहने वाला संन्यासी जल्द ही लोगों के बीच चर्चित हो गया। छोटी उम्र का ये साधक धीरे-धीरे शिरडी में रच-बस गया और देवत्व को प्राप्त कर लिया।
यहां हम शिरडी और साईं से जुड़े ऐतिहासिक और दिलचस्प तथ्य बताने जा रहे हैं:
जब शिरडी से साईं हो गए थे गायब
जी हां, साईं ने शिरडी में जब शरण ली तो लोग उनके अजीब व्यवहार से सशंकित रहते थे। कम उम्र में कड़ी साधना और चमत्कार ने उनको लोगों का दोस्त बना दिया तो वहीं उनसे चिढ़ने वालों की संख्या भी कम नहीं थी। कुछ साल शिरडी में उनके रहने को लेकर विरोध-समर्थन का खेल चलता रहा। एक दिन अचानक वे कहीं गायब हो गए और साल भर बाद शिरडी में प्रकट हुए।
शिरडी के लोगों को किया कन्फ्यूज
बताया जाता है कि सन 1858 ई. में उन्होंने शिरडी में वापसी की। वे किसी व्यायामी की तरह लग रहे थे। उनको देखकर कहना मुश्किल हो रहा था कि वे मुस्लिम हैं कि हिन्दू। उनके पहनावे से लेकर भाषणों और उपदेशों से भी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल काम था। हालांकि हिन्दू-मुस्लिम दोनों धर्म के लोग उन्हें सामान आदर करते थे। कुछ समय बाद लोगों ने उन्हें एक पुरानी मस्जिद में रहने की व्यवस्था कर दी जिसे वे द्वारिकामाई कहा करते थे।
साईं से जुड़े चमत्कार के किस्से
साईं बाबा के भक्तों के बीच उनके चमत्कार को लेकर कई किस्से प्रचलित हैं जिनमें पानी से दिए जलाने से लेकर भक्तों की जान बचाने तक शामिल है। ऐसा कहा जाता है कि वे फकीर और सामान्य से दिखते थे लेकिन जरूरत पड़ने पर भक्तों के लिए आश्चर्यजनक रूप से मदद पहुंचाते थे। लिहाजा उनका यश दूर-दूर तक फ़ैल गया। सन 1910 ई. तक तो मुंबई में भी उनके कई मंदिर बन चुके थे।
अब हम शिरडी के उन ख़ास जगहों का जिक्र कर रहे हैं जिसे देखने यहां भक्तों का जमावड़ा लगता है:
बाबा का समाधि मंदिर
शिरडी में साईं बाबा के समाधि मंदिर पर भक्तगण चादर चढ़ाते हैं। सवा दो मीटर लंबी और एक मीटर चौड़ी चादर चढाने के लिए यहां लंबी लाइन लगी होती है। बता दें कि बाबा ने शिरडी में सन 1918 ई. में समाधि ली थी। ये मंदिर शिरडी का मुख्य आकर्षण है जहां बाबा की मार्बल की मूर्ति लगी हुई है। इसके साथ ही यहां बाबा से जुड़ी तस्वीरें भी देखने को मिलती हैं। कई कमरों वाला ये मंदिर बाबा की स्मृति को संजोये हुए है।
द्वारकामाई मस्जिद
जैसा कि ऊपर बताया गया है, इस मस्जिद का नामकरण खुद साईं बाबा ने की थी। यहां आज भी उनकी चीजें सुरक्षित रखी गई हैं, जिनका इस्तेमाल वो खुद किया करते थे। इनमें वो पत्थर भी शामिल है जिस पर बैठकर बाबा साधना में लीन रहते थे। आपको यहां उनका स्टोव, चरण पादुका सहित कई चीजें देखने को मिल सकती है। इस मस्जिद से लगा एक जगह ऐसा है जहां बाबा अक्सर परम शांति के लिए जाया करते थे। आप बाबा से जुड़ा वो स्थल भी देख सकते हैं जहां वो नीम पेड़ के नीचे बैठा करते थे, जिसे आजकल गुरु स्थान कहते हैं।
बता दें कि यहां स्थित शिव, गणेश और शनि मंदिर भी काफी पुराना और लोकप्रिय है। हाल के दिनों में यहां कई और मंदिर और भवनों का निर्माण किया जा रहा है। जाहिर है, ये भारत के किसी बड़े तीर्थ से कम नहीं है। कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि साईं के भक्तों के लिए साईं ही सब कुछ हैं।
शिरडी ऐसे पहुंचें
शिरडी देश के सभी प्रमुख जगहों से जुड़ा हुआ है। आप यहां हवाई मार्ग के साथ ही रेल और सड़क से भी पहुँच सकते हैं। शिरडी नासिक हवाई अड्डा से महज 75 किलोमीटर दूर है तो वहीं औरंगाबाद से 150 किलोमीटर पड़ता है। अगर सुविधा हो तो आप मुंबई होते हुए भी आ सकते हैं। ट्रेन से जाना हो तो मुंबई से कई ट्रेनें हैं। शिरडी कोपरगाँव और मनमाड़ रेलवे स्टेशन से क्रमशः 13 और 52 कि.मी. की दूरी पर हैं। सभी जगहों से शिरडी सड़क मार्ग से कनेक्टेड है। आप आसानी से बस लेकर पहुँच सकते हैं। बता दें कि यहां रहने के लिए बहुत ही सुविधा मौजूद है। यहां शिरडी ट्रस्ट की ओर से बड़ी संख्या में आवासीय सुविधा दी जाती है तो वहीं प्राइवेट होटल भी मौजूद हैं।
जाते-जाते प्रसादालय के बारे में बता देते हैं जो कि शिरडी में मौजूद है। यहां का नवीन प्रसादालय (डायनिंग हॉल) एशिया के सबसे बड़े डायनिंग हॉल में शुमार किया जाता है। बता दें कि एक बार में 5500 लोग यहां बैठकर खाना खा सकते हैं। जबकि यहां एक दिन में 100,000 लोगों को भोजन कराने की व्यवस्था होती है। अगर शिरडी जाएं तो इसे देखना ना भूलें!