रेलवे प्लेटफार्म पर आते ही आप रूबरू होते हैं एक अलग ही दुनिया से। ये दुनिया जो सफ़र पसन्द है , जैसे इसने रुकना सीखा ही नहीं । सुबह से लेकर शाम और फिर देर रात तक यहाँ भागमभाग रहती है । पटरियों पर सरसराती, दौड़तीं ट्रेनें ,कन्धों पर भारी भारी सामान टांगे लोग , हर मिनट में ट्रेन , जाने - आने की घोषणाओं का शोर , और ट्रेन के आने के बाद मक्खियों की तरह भिनभिनाती भीड़ ।
कभी कभी सोचता हूँ कि ये सब ठहर क्यों नही जाता । ये रोज की भागदौड़ , जल्दबाजी , शोर , चीख़ पुकार और ये कभी न खत्म होने वाली आशाओं की थकान रुक क्यों नही जाती ।
कितना थक गया हूँ मैं इस रोज की भागदौड़ से , रोज नाइन टू फाइव जॉब से , सुबह से लेकर शाम तक कान पक जाते हैं इस शोर से । कभी कभी घर आकर बिना खाये ही ओंधे मुँह लेट जाता हूँ , घर भी घर नही लगता , जैसे कोई किराए की सराय हो जहाँ कुछ सामान रख दिया है , जहाँ एक बिस्तर है जिस पर मैं अपनी आठ , दस घण्टे की थकान मिटाने के लिए सो जाता हूँ ।
क्या इतना मुश्किल है नॉर्मल लाइफ जीना , क्या सपने पूरे करने में इतनी जिद्दोजहद ज़रूरी है । क्या पूरी ज़िन्दगी ऐसे ही चलने वाली है ।
मैं प्लेटफार्म पर एक कोने वाली बेंच पर बैठा सोच रहा था , सिर में हल्का हल्का दर्द भी अब होने लगा था , सैकड़ो सवाल चल रहे थे मेरे ज़हन में , जैसे ये नौकरी के चक्कर मे खुद में ही उलझ गया हूँ । मुझे कुछ सूझ नही रहा था , दिल कर रहा था जोर जोर से चिल्लाऊँ लेकिन आवाज़ अंदर ही दफ्न हो जाती ,मैं चाहकर भी इस कफ़स से छूट नहीं पा रहा था ।
मन भी बड़ा अजीब होता है ना जब बच्चे होते हैं तो सोचते हैं बड़े कब होंगे , जवान कब होंगे , कब लगेगी नौकरी , कब पैसे कमाएँगे और जब बड़े हो जाते हैं तो मन करता है फिर से बच्चा हो जाएँ , फिर से बचपन के उन दिनों में लौटा जाए , फिर से स्कूल का वो भारी बस्ता कमर पर लादे स्कूल जाए । ज़िन्दगी में ठहराव कहाँ है वो तो बस चलती जाती है एक के बाद एक पड़ाव आते हैं और गुज़र जाते हैं ।
ऑफिस से दस दिन की छुट्टी ली थी मैंने ताकि इस भागती दौड़ती ज़िन्दगी से थोड़े दिन दूर हो जाऊँ , घर हो आऊँ , आपने गाँव जहाँ लोगो को आज भी एक दूसरे से बात करने की फुर्सत मिल जाती है , गाँव पहुँचते ही यार दोस्तो का फोन आने लगता है मिलने के लिए । जहाँ अभी भी कुछ हरियाली बची हुई है, जहाँ आज भी लोग छतों पर चाँद देखकर सोते हैं ।
शाम की ट्रेन थी , रुड़की स्टेशन पर मैं ट्रेन आने का इंतज़ार कर रहा था । प्लेटफार्म भरा हुआ था , जहाँ तक नज़र जाती भीड़ ही भीड़ दिखती , हाथ में या कन्धे पर सामान पकड़े लोग इधर से उधर घूम रहे थे । कुछ बेंचो पर बैठे और जिनको बेंच नही मिली वो नीचे ही अपना कपड़ा बिछा कर बैठे थे । एक ओर पूड़ी- सब्ज़ी की ठेली थी जहाँ कई लोग खाने में जुटे थे , कुछ लोग पानी की टँकी के पास भीड़ लगाकर पानी बोतलें भर रहे थे तो कुछ लोग टी स्टॉल पर चाय पी रहे थे ।
मैं सरसरी नज़र दौड़ाकर सब कुछ देख रहा था कि अचानक मेरी नज़र एक कोने में जाकर ठहर गयी ।
जैसे समंदर में कोई मोती दिख गया हो , जैसे हज़ारो की भीड़ में कोई अपना दिख गया हो ।
रितू '',,,,,, मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया । हाँ ये तो रितू ही थी , मैंने गौर से देखकर खुद से ही बोला ।
ब्लू जीन्स , फूल स्लीव टॉप , कन्धे पर टँगा एक लाल बैग जिसे अक्सर वो ऑफिस में लाती थी , ओर हाथ मे सैमसंग का मोबाईल । मैं धीरे धीरे जैसे उसके क़रीब आ रहा था उसके चेहरा पर बिखरी मायूसी साफ नज़र आ रही थी । ऐसी तो नही थी वो । मेरे ज़हन में उसकी माप तौल चल रही थी जैसे ।
सांवला चेहरा मगर आकर्षक नैन-नक्श , फ्लिक्स कट बाल जो न चाहकर भी आखों को ढक लेते थे , लम्बा कद और एक सौम्य सी मुस्कान , आँखों मे ढेरों सपने तैरते थे , ज़ुबाँ इतनी मीठी की हर एक लफ्ज़ से शहद टपकता था ।
हाँ बिल्कुल ऐसे ही तो देखा था जब वो पहले दिन ही ऑफिस में रिशेप्शन पर मिली थी । पहले ही दिन कितनी बातें की थी उसने मुझसे ,
न्यू ज्योइनिंग -?? - उसके पूछने पर मैंने सर हिला दिया था ।
कहाँ से हो ?? - मुरादाबाद से ।
घर में कौन कौन हैं ,?
इससे पहले कहाँ काम किया है ?
कहाँ से पढ़ाई की है ?
कितने सवाल पूछे थे ......
वो पूछती गयी मैं कभी सर हिलाता , कभी हूँ , हाँ कभी हम्म कर देता ।
और फिर कभी बस में , तो कभी ऑफिस के बाहर ढाबे में मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा । इसी बीच मैंने जाना कि वो अंदर से कितनी खूबसूरत है , कई बार तो मैं उसे बोलते हुए बस देखता रहता , वो सब कुछ एक सांस में बोलती जाती और मैं आँखें टिमटिमाता उसके हिलते होंठ देखता रहता । कुछ भी छुपाना कहाँ जानती थी वो , एक दम मुँहफट , जो मन में आया बोल दिया , गलत बात पर तुनककर लड़ने लगती थी , और फिर कुछ देर बाद समझाने भी लगती । ऐसी ही थी रितू ,, लेकिन आज क्या हुआ इसको मुँह हाथों से छुपकर इतनी मायूस क्यों बैठी थी ।
मैंने बीते कुछ वक्त पर नज़र डाली तो महससू किया कि कई रोज़ से ऑफिस में भी वो खोई खोयी रह रही थी , बात बात पर अचानक चुप हो जाती , सोचने लगती थी , लंच में भी ढाबे पर उसने आना कम कर दिया था । पूछने पर बात ही बदल देती । हालांकि हम सिर्फ दोस्त ही थे हाँ मेरी एकतरफा मुहब्बत कहती कि जाकर बोल दे लेकिन कभी इतनी हिम्मत हुई नहीं ।
मैं अपनी सीट से उठकर उसके पास गया ,रितु ,,, बोला ।
वो अभी भी ऐसी ही बैठी थी जैसे वो इस दुनिया में है ही नहीं।
हेलो मैडम, यहाँ कैसे ? घर जा रही हो क्या ?
मतलब बताया भी नहीं । ------
मैंने उसके एकदम करीब जाकर पूछा।
वो चौंक गयी , जैसे कोई चोर रंगे हाथों पकड़ा गया हो ।
उसने छुपाते हुए एक उंगली से पलको पर ठहरे आंसूओ को पौंछा ।
आर यू ओके ? मैंने संजीदा होते हुए कहा ।
या या एवरीथिंग इस ओके,
आई एम फाइन ।
उसने लरज़ते होंठो से कहा ---
हाँ वो तो दिख रहा है , देख रहा हूँ लोग कितना बदल जाते हैं , दोस्तों से भी छुपाने लगते हैं ।
मैंने शिकायत भरे लहजे में बोला ।
इस बार रितू कुछ न बोली , बस मुँह को पीछे कर लिया शायद आँसू मेरे सामने पोंछना न चाहती हो ।
औऱ फिर अचानक मुड़कर बोली ,,,
और तुम कहाँ , घर जा रहे हो क्या --
इस बार झूठी हँसी चेहरे पर बिखेरे , वो बात बदल चुकी थी जैसे वो किसी सवाल का जवाब ही नहीं देना चाहती हो ।
हाँ मैंने बताया तो था , गाँव घूमकर आऊँगा ।
वैसे तुमने मेरी बात बीच में ही काट दी , क्यों इतनी परेशान हो बोलो , बताओ न अगर मैं परेशानी हल नहीं कर सकता तो तुम्हारा दिल तो हल्का कर ही सकता हूँ । मैंने इस बार जोर देकर बोला तो वो फिर सहम गयी ।
इससे पहले की ज़ुबाँ कुछ बोले आंखें बरस पड़ी , आँसू गालों से होकर लुढकने लगे ।
क्या हुआ बताओ ना , मैंने उसे समझाते हुए कहा ।
आँसूं अब आँखों से गिरना बंद हुए , हाथों की हथेलियों ने लपककर गालो से लुढ़कते हुए आंसु नीचे गिरने से रोक लिये।
रितू एक लंबी साँस लेते अपनी जगह से उठ खड़ी हुई , एक अजीब सी बैचेनी उसे हिला रही थी , वो लड़खड़ाती ज़ुबान से धीरे धीरे मुझे सब कुछ बताने लगी । इन दिनों क्या क्या नहीं हुआ उसके साथ । सब सुनने कब बाद मेरी आँखें शर्म से झुक गयी एक लफ्ज़ भी न कह पाया , ।
तीन बहनों में वो सबसे छोटी थी बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी अब उसकी बारी थी । उसके पापा इन दिनों उसकी शादी के लिए लड़का देख रहे थे । कई जगह बात चली , जब कोई लड़का देखने आता उसे कम्पनी से छुट्टी लेकर आना पड़ता , जाने कितनी बार उसको काम छोड़कर जाना पड़ा , लेकिन हर बार उसका सांवला चेहरा लोगो की नज़रों में खटकता , ये लड़के वाले कितने स्वार्थी, और लालची होते हैं उसने सब अपनी आँखों से देख लिया था । उसने बताया कि पिछली बार उसे देखने के लिए लड़के ने रेलवे स्टेशन पर बुलाया था , सैकड़ो की भीड़ में वो हरे रंग का सूट सलवार पहने , चेहरे पर हल्का मेकअप लगाए खड़ी थी सोच रही थी कि ये सब कब जल्दी खत्म हो , इस तरह की नुमाइश उसे कहाँ पसन्द थी , इतनी भीड़ में वो अपने आप को असहाय महसूस कर रही थी । तभी प्लेटफार्म पर ट्रेन आ गयी वो लड़का जो उसे देखने आया था दूर से ही हाथ हिलाकर देखता रहा , ट्रेन चली गयी । उसे ऐसे लगा मानो वो कुछ नहीं है । काश आज अगर वो भी सुंदर दिखती तो किसी की हिम्मत न होती उसे ठुकराने की , कोई इस तरह से प्लेटफार्म पर बुलाकर बिन बोले ही दूर से न चला जाता ।
रुआंसे गले से उसने सारी बात बताई ।
मैं स्तब्ध रह गया ये सुनकर कि सिर्फ रंग , रूप देखकर ही क्यों लड़कियों को जाँचा जाता है , मन की सुंदरता क्या कोई माईने नही रखती , शिक्षा , ज्ञान , कौशल का कोई महत्व नही ।
मुझे याद है जब जब उसने मुझे अपनी मार्क्सशीट दिखाईं थी, हर कक्षा में वो अव्वल आया करती थी , इंजीनियरिंग में भी उसने टॉप किया था और एक मल्टीनेशनल कंपनी पर इंजीनियर की पोस्ट पर थी । अपने काम मे कुशल , अच्छी सेलरी थी उसकी लेकिन बस चेहरा सांवला था ।
उसने बताया कि कल भी उसे देखने एक लड़का आने वाला है , वो नहीं चाहती थी ये नुमाईश , बिना मन के किसी के भी सामने सज संवर के किसी गुड़िया की तरह बैठ जाना , उतना ही बोलना जितना सब कहें , बस सर हिलाते रहना । वो इन सबसे भाग जाना चाहती थी , इस मतलबी , स्वार्थी दुनिया से। वो ठहराव चाहती थी , वो चाहती थी कि कोई मिले जो उसकी ऊपरी सुंदरता को न देखे , उसके अंदर झांककर भी देखे , जहाँ अपार प्रेम , स्नेह , भरा हुआ है ।
मगर अफसोस लोग और खासकर ये पुरुष समाज को कहाँ एहसास कि क्या बीतती है एक लड़की पर जब उसे बार बार अस्वीकार किया जाए ,उसका तिरस्कार किया जाए , उसे कदम कदम पर ये एहसास दिलाया जाए कि वो लड़की है उसका कोई वजूद नहीं ।
कितनी ही लड़कियाँ रितू की तरह भागती रहती है दिन रात अपनी नुमाईश के लिए , कितने ताने सुनती हैं अपने रंग रूप अपनी शारीरिक बनावट को लेकर ।
कहाँ मिल पाता है उनकी ज़िंदगी को ठहराव । ये शोर कानों से होकर दिल में उतर जाता है और ज़िन्दगी रुक जाती है बीच में, दूर तक बस बियाबान ही नज़र आता है ।
सच में, उसकी कहानी सुन किसी की भी आँखे नम हो जाती , मैंने अपनी छोटी उंगली से पलकों की कोरों में अटके पानी को साफ किया । पीछे मुड़ा तो रितू देख रही थी मेरी ओर शायद मुझे देख लिया था आँख पौंछते हुए उसने ।
क्या हुआ तुम्हें , रितू ने पूछा
कुछ नहीं , कुछ भी तो नहीं । तुम्हे मेरी इतनी फ़िक्र करनी नहीं चाहिए आखिर मैं भी एक लड़का हूँ । मैंने उसकी आँखों मे झांकते हुए कहा ।
देखो मेरे लिए तो ये रोज़ का काम है , आम हो गया है अब तो आदत सी हो गयी है । तुम दिल पर मत लो ।
कभीं तो ये भागदौड़ खत्म होगी , कभी तो आएगा मेरी ज़िंदगी मे भी ठहराव ।
वो अपनी बात खत्म करती तभी प्लेटफार्म पर ट्रेन आने की घोषणा हुई , और पूरा प्लेटफार्म शोर और अफ़रातफ़री में डूब गया । जैसे इस दुनिया को ठहराना पसन्द ही ना हो ।
बस इतनी सी थी ये कहानी ।
©rahulchaudhary
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