।। एक अंजान यात्रा ।।

Tripoto
Photo of ।। एक अंजान यात्रा ।। by Rahul Chaudhary

घूमना फिरना किसे पसन्द नहीं होता । इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हर कोई चाहता है कि एक दिन ऐसा आए जब वो सब कामों को छोड़ किसी सफ़र पर निकलें । ऐसा सफ़र जो यादगार बन जाए । नई- नई जगह घूमें, नए लोगो से मिले और इस कंक्रीट के बनावटी जंगल से निकल कर साक्षात प्रकृति का लुत्फ़ उठाएँ ।

लेकिन क्या करें कभी समय नहीं रहता तो कभी दाम ।

हाँ रहतें है तो बस काम , काम , काम ।

मैं एक ऐसे सामान्य किसान परिवार में पला बड़ा हूँ जहाँ घूमने - फिरने , मौज-मस्ती , सैर - सपाटे को फ़िज़ूल खर्ची और व्यर्थ समझा जाता है । जहाँ आज भी लोग एक दो दिन से ज्यादा कहीं घूमने नहीं जाते । वो भी किसी विवाह समारोह में या किसी की ख़ैर खबर , और बच्चों के लिए सफर बस नानी और बुआ के घर तक ही सीमित होता है । जब तक मैं घर से बाहर नहीं निकला मुझे याद नहीं कि कभी मैं किसी पर्वतीय क्षेत्र , या किसी ऐतिहासिक धरोहर, किसी अन्य रमणीय स्थान के दर्शन भी कर पाया था ।

लेकिन जब घर से बाहर इंजीनियरिंग करने अलीगढ़ गया, एक अलग ही दुनिया से मिला । कॉलेज में पहला साल तो सबके चेहरे देखने में ही निकल गया, समझ में ही नहीं आया कि क्या हुआ , पूरी-पूरी रात सवालों को हल करते निकल जाती । लेकिन किसको पता था आने वाला साल में एक सफर इंतज़ार कर रहा है , एक यादगार सफ़र जिसकी यादें दिनों, सालों में भी नहीं मिटेंगी ।

सफर भी दो तरह के होते हैं , एक सफ़र जिसकी योजना पहले से बनाई जाती है । समय पर टिकिट बुक किए जातें हैं , होटल में कमरे बुक किये जाते हैं , ज़रूरी समान की लिस्ट तैयार होती है , कपड़े इस्त्री किये जाते हैं , और कहाँ कहाँ घूमना है ये भी लिखकर रख लिया जाता है ।

और एक वो सफ़र भी होता है जो तयशुदा नहीं होता , कोई तैयारी नहीं, कोई बुकिंग नहीं , बस बैग उठाकर ऐसे ही निकल जाना होता है । आगे क्या होगा इसका किसी को पता तक नहीं होता । मैनें एक ऐसा ही अनजान सफ़र तय किया था , या यूँ कहें कि जिया था उसे मैनें उन पलों को । वो दिन मैं कभी नहीं भूल सकता ।

बात इंजीनियरिंग के दूसरे साल की है , अब तक दर्जनों दोस्त भी बन गए थे । लेकिन कृष्ण वीर ,जोगिंदर ,आकाश ,अभिनव, कटियार, विपुल पक्के दोस्त थे , ज्यादातर एक ही ब्रांच के थे बस जोगी , मतलब जोगिंदर औऱ वीर सिविल ब्रांच में थे ।

होस्टल में रूम भी सबके अलग अलग होते थे । शाम को सब जोगी के रूम में ही मिलते, साथ खाना खाते । वार्डन ने इस पर कई बार एतराज़ जताया कि सब अपने अपने रूम में खाना खातें हैं और तुम सब एक साथ देर रात तक शोर मचाते हो । लेकिन इस एतराज़ का हम पर कोई असर होने वाला नहीं था । हम सब हमेशा साथ रहते साथ ही खाते । होस्टल में हमारा ग्रुप मशहूर था । किसी की मजाल नहीं थी कि किसी से कोई तू करके भी बात करे ।

वो जुलाई की उमस भरी शाम थी , होस्टल के कमरे पूरी तरह तप रहे थे और आद्रता मानो कमरों में बस चुकी थी । सभी बच्चे बाहर पार्क में घूम रहे थे। हम सब भी निकले बस वीर को छोड़कर । कहीं दिख नहीं रहा था वो , सबसे आगे चलने वाला आज नदारद है ।

"जोगी ये वीर कहाँ है" ... मैंने जोगिंदर से पूछा ।

"साला होगा किसी कोने में आजकल प्यार का भूत चढ़ा हुआ है उसके सर पर ।" जोगी ने उत्तर दिया ।

तभी मुँह लटकाए गैलरी में वीर धीरे धीरे आता नज़र आया , भांग भंगिमा ऐसी जैसे कहीं से पिटकर आया हो ।

"क्यों आशिक़ क्या हुआ भाभी नाराज़ हो गयी क्या ??"

अभिनव जिसको सब गजनी कहकर बुलाते थे , ने वीर की टांग खींचते हुए पूछा ।

दूसरी और जोगिंदर कहाँ मानने वाला था बीच में वो भी कूद पड़ा ।

"भाई कोई दिक्कत हो तो हमें मत भूलना ..."

जोगी ने हँसते हुए ठहाका लगाया । और गैलरी जोर की हंसी से गूँज गयी। सभी वीर की टांग खींचने में लगे थे , सिवाय मेरे । वीर चुप था शायद सच में वो परेशान था ।

"चुप रहो यार तुम दिखता नहीं दोस्त परेशान है और तुम्हे मस्ती सूझ रही है , शर्म करो बस यही दोस्ती है ।" मैनें गुस्से में कहा, सब अब चुप हो गए ।

अब वीर की बारी थी वीर बोला, "हाँ यर उससे थोड़ा झगड़ा हो गया । वो बोल रही है कि कल मैं उससे मिलूँ उसके शहर में ,वरना, वो बात नहीं करेगी। अब मैं कैसे जाऊँ?? सिकन्द्राबाद ,वो भी कल ही इन लड़कियों को कैसे समझा जाए।" सुनकर गुस्सा भी आ रहा था और उस पर तरस भी , वो बिना रुके बोले जा रहा था ।

"कैसे मिलूँ ??क्या करूं समझ नहीं आ रहा।

हिम्मत नहीं हो रही, घर क्या बताऊँगा अगर पता चल गया तो ?

हॉस्टल से क्या बोलकर जाऊँ ?"

" बेटा ये सब प्यार करने से पहले सोचना चाहिए था , अब तो निभाना ही पड़ेगा , अब तो जाना ही पड़ेगा" जोगी बोला ।

"लेकिन तू टेंशन न ले मैं जुगाड़ करता हूँ," जोगी ने वीर को सांतवना दी। हम सबने भी समझाया कि सब मिलकर कुछ न कुछ तो कर ही लेंगे । शाम को खाने पर मीटिंग हुई जोगी, सबसे जुगाड़ू हुआ करता था , हर समस्या का समाधान उसके पास मिलता था । समस्या भले जैसी हो, जोगी के नाम पर आकर ख़त्म हो जाती थी ।

"लेकिन करना क्या है भाई , सारे एक साथ होस्टल से बाहर जाएंगे तो कौन नहीं पूछेगा , ओर क्या बताकर जाएंगे?" मैंने एकाएक पूछ डाला ।

"सब होगा भाई सब होगा , जब तक ये जोगी ज़िंदाबाद है ग्रुप का कोई भी लौंडा निराश नहीं होगा", जोगी के इस जोक से सब की हँसी छूट गयी । बस वीर को छोड़कर । सबने खाना खाया और अपने अपने कमरे में जाने लगे , तभी जोगी ने आवाज़ लगाई, "वीर... तू परेशान ना हो हम कल ज़रूर चलेंगें , बाकी तो मुझपर छोड़ दे । गुड नाईट!"ओर इतना कहकर सब अपने अपने रूम में चले गए ।

सुबह हुई , सब अपनी अपनी क्लास करने गए , छुट्टी तक सब जोगी की तरफ देखते रहे । पता नहीं कब उसने टीचर से बात की पता नहीं चला । बस आकर बोला, " बस तैयार हो जाओ चलने के लिए, मैंने टीचर को बोल दिया है मेरे भाई की शादी है और हम पाँच लोग मैं , राहुल ,वीर , गजनी , कटियार जा रहें हैं । टीचर ने भी आज्ञा दे दी है बस वार्डन से बात करनी है ।"

वो तुम मुझपर छोड़ दो मैंने ये जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली । और जल्दी से वार्डन के रूम में पहुँचा, और सारी बात बताई । पहले तो वो बोले कि नहीं फिर मेरे आग्रह करने पर वो मान गए । इतने मैं वार्डन से मिलकर अपने कमरे में आया कि देखता हूँ सब तैयार होने लगे हैं , वीर का चेहरा खिला हुआ था , मानो कोई लॉटरी लग गई हो , मैं जैसे ही कमरे में आया वीर ने पूछा, "हो गयी वार्डन से बात, अगर नहीं भी माना तो जाने दे टीचर से बात कर ली जोगी ने , तू बस तैयार हो जा अपने बैग में एक दो जोड़ी कपड़े भी डाल लेना, मौसम ऐसा ही हो रहा है बारिश हो गयी तो हालात खराब हो जाएगी कपड़ो की।"

बस फिर क्या शाम के पाँच बजे सब तैयार निकलने को । लेकिन कटियार महाशय अभी भी अपने रूम से बाहर नहीं आये , जाने कौन सी पैकिंग में लगे हैं ।

"अबे आजा बाहर सब इंतज़ार कर रहें हैं कटियार तेरा , साला तेरा सबसे लेट काम होता है , तैयार होने में लड़कियों को भी पीछे छोड़ रखा है इस लौंडे।" अभिनव ने चुटकी लेते हुए कहा

मुझे होस्टल सब चौधरी कहते थे, जोगी ने गुस्से में कहा ..

"यार चौधरी कटियार को बोल जल्दी चले , पता नहीं बस मिलने में कितनी देर लगे, और सिकन्द्राबाद भी तो पहुँचना है , यहाँ नही रखा ।"

तभी कटियार आ गया। सभी साढ़े पाँच तक बस स्टॉप पर पहुंच गए ।

कुछ ही देर बाद बस आ गयी और हमारे सफर की शुरुआत हो गयी , सब एक दूसरे को देखकर खुश हो रहे थे , दोस्त साथ हों तो सफर में चार चाँद लग जाते हैं । सभी आगे पीछे की सीट पर बैठे बात करते जा रहे थे , और वीर अपनी प्रेमिका को मनाने में लगा था ।

"बेबी हम निकल चुके हैं , हम 10 बजे तक पहुँच जायेंगे । तुम परेशान मत हो बस बता दो मिलना कहाँ है ?"

वीर की बाते सब कान लगा कर सुन रहे थे।

कुछ देर बाद जब फोन कट गया तो कटियार ने पूछा , "पता पूछ लिया , हाँ भाई यार पता सही पूछना , पता चला सारी रात काली हो गयी," मैंने बीच मे कटियार की बात काटते हुए पूछा ।

"हाँ बस स्टैंड के पास ही काफी शॉप में मिल रही है वो।"

"और तब तक हम क्या करेंगे ?" जोगी ने फिर वीर की टाँग खींचनी चाही पर इस बार वीर ने जोर की मारी

"तुम , तुम कौन हो भाई ??"

"अच्छा बेटे अभी से, अभी तो पहुँचे भी नहीं," जोगी ने हँसकर बोला ।

बस रात के अंधेरे को चीरती सड़क पर दौड़ती जा रही थी , एक के बाद एक शहर पीछे छूटता जा रहा था , सबकी आँखों मे बस सिकन्द्राबाद ही बसा था । कब पहुँचेंगे रात के 9 बज चुके थे , मैनें खिड़की से बाहर सर निकाला , आसमान में एक भी तारा नजर नहीं आ रहा था , हवा में एभी गर्मी थी एकाएक कई बूंदें मेरे चेहरे पर पड़ी । मैंने सोचा आगे कोई पानी तो नहीं फैंक रहा लेकिन कोई नहीं था शायद ये बारिश की शुरुआत थी । बस जैसे जैसे आगे बढ़ती गयी बारिश और तेज़ होती गयी । मैनें खिड़की को अच्छे से बंद कर लिया ।

"लो भाई आज आसमान भी बरस के मानेगा , आज वो भी वीर को भिगोयेगा प्यार की बारिश में" मैंने शायराना अंदाज में वीर की चुटकी ली । कुछ ही देर बाद हम सिकन्द्राबाद पहुँच गए अब बारिश भी थम चुकी थी और मौसम पहले से और हसीन हो गया था , हल्की हल्की हवा जैसे हमारे आने की दस्तक दे रही थी । सब के चेहरे खिले हुए थे जैसे मानो कोई जंग जीत ली हो ।

बस से उतरकर वीर ने एक बार फिर फोन किया और हाथ हिलाकर पीछे आने को कहा।

सभी कतार में उसके पीछे चलने लगे वीर आगे आगे कटियार , गजनी एक साथ मैं और जोगी एक साथ बातें करते जा रहे थे । तभी शायद वो काफी शॉप आ गयी ।

"वीर यहीं आने वाली है क्या भाभी?"-- जोगी ने पूछा ।

हाँ यार एड्रेस तो यही है । चलो देखते हैं ..

काफी देर हो गयी थी, उस कॉफी शॉप के सामने खड़े हुए हमें लेकिन कोई नहीं दिख रहा था ।

"वीर यार फोन कर सारी रात यहीं लगाएगा क्या ?" कटियार ने चिंता भरी आवाज़ में कहा ।।

तभी पीछे से आवाज़ वीर .. हम सब मुड़े तो देखा एक गुलाबी सूट में सुंदर चेहरे वीर को देखकर मुस्कुरा रहा था , बड़ी बड़ी आँखे , चाँद सा चेहरा जिसपर कोई दाग दूर तक नज़र नही आ रहा था , जो भी देखे देखता रह जाये ।

वीर अब हमसे जुदा होने लगा , और होवे क्यों ना। काफी देर होने के बाद खैर वीर ने शक्ल दिखाई , हम सब एक कोने में थे और वो दोनों दूसरी ओर अकेले में बैठे थे ।

यार इंट्रोडक्शन तो कर दे भाभी से, जोगी ने कहा।

"अबे नहीं यार वो जा रही है, उसके घर शादी है उसके कज़िन की , बुला रही है चले क्या।" वीर ने डरते हुए कहा। इतने में वीर की गर्लफ्रैंड भी वीर को मुस्कुराते हुए देखकर बाहर निकल गयी।

हम सब वीर को देख रहे थे

"और भाई किसी ने पूछ लिया कहाँ से आये हो तुम , तो क्या जबाब देंगे?कटियार ने सख्ती दिखाते हुए बोला ।

"यार बात तो ठीक है, न किसी को बता सकते हैं , की आपकी लड़की ने बुलाया है, " मैंने भी चिन्ता जताते हुए बोला ।

"यार तुम टेंशन न लो देखो भूख भी लग रही है और यार किसको पता इतनी बड़ी शादी में , हमने अच्छे कपड़े पहन रखें हैं , लोग सिर्फ़ कपड़े देखतें हैं , दिखना चाहिए बस की तुम शादी में आये हो ,कार्ड कौन देखता है ?"

काफी देर से शांत बैठा जोगी अब हरकत में आया । तो चलो सब चलते हैं यही पास में ही है ।

सब चल पड़े , डरे सहमे , कल तक सोचा भी नहीं था कि ये सब भी करेंगे , टीचर से झूठ बोलेंगे, वार्डन से झूठ बोलेंगे, किसी अनजान शादी में मेहमान बनेंगे, लेकिन आज सब करने का मन कर रहा था । ये मन जो बरसों से बस नियमों के आधीन चल रहा था , आज इसे नियम तोड़ने पर भी हैरत नहीं थी । जो होगा हो जाएगा ।

रात के 12 बज चुके थे । कुछ दूर चलने के बाद सड़क अचानक रोशनी में नहा गयी , चारो ओर लाइटें , सजावट जैसे कोई दुल्हन सजी हो । हो न हो यही घर है। जैसे ही हम भीड़ में घुलने मिलने लगे , "हलो, इधर" आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। "यार वीर लगता है कोई बुला रहा है," वीर ने ऊपर देखा तो छज्जे से वही सुंदर मुखड़ा वीर को सलामी दे रहा था ।

"ऊपर आ जाओ मैं भेजतीं हूँ किसी को लेने" ,उसने कहा ।

"वीर बेटे बेमौत मारे जायेंगें , ऊपर मत जाना। उसने मिलने के लिए बुलाया था बस मिल लिया , अब कुछ खाना है तो खाओ और निकलो। आशिक़ी रखी रह जायेगी , इसके घरवाले हम सब को मारेंगे ।"

जोगी ने इस बार कुछ तो समझदारी की बात की ।

मैंने भी समझाया भाई बस बहुत अब चलतें हैं , सुबह तक होस्टल पहुँच जायेंगे ।

वीर ने फोन कर उसे समझाया कि सारे दोस्त साथ हैं अगली बार आएगा तब मिलेगा , वो मान गयी ।

अब तक भूख के मारे दम निकला जा रहा था ।

"जोगी भाई मैं तो कुछ खाने जा रहा हूँ । तुम आते हो आओ वरना बाहर ही पर रहो।" जोगी जैसे ही आगे भीड़ में घर की ओर मुड़ा , अचानक गेट पर खड़े आदमी ने जोगी को रोका - "हाँ भाईसाहब कहाँ जा रहे हो । किस ओर से हो । कार्ड तो दिखाओ" अब मेरा चेहरा पीला पड़ गया जोगी के पीछे मैं भी आ रहा था , मैं जहां था वहीं रुक गया ।

"लड़के वालों की ओर से हूँ कोई दिक्कत"

"दिक्कत तो कोई नहीं लेकिन कार्ड दिखाओ" वो बोला ।

"कार्ड गाड़ी में रह गया।" जोगी ने बिना डरे उत्तर दिया। वो आदमी भी कहाँ पीछा छोड़ने वाला था , बोला तो "यही बता दो की बारात आ कहाँ से रही है?"

जोगी ने एक ओर तुक्का मरते हुए कहा , "कहाँ से क्या अलीगढ़ से आ रही है । तुम इतना सवाल क्यों कर रहे हो।" जोगी अब बनावटी गुस्से में बोला ।

"क्योंकि ये बारात अलीगढ़ से नहीं आयी जनाब , आगे जाकर दूसरे मण्डप में पूछो आप गलत आ गए आप।" इस बार जोगी बिना कुछ बोले लौट आया ।

बाहर खड़े हम सबका बुरा हाल था , हँसी मुँह में दबाए हम उस वक्त तो वहाँ से निकल गए । लेकिन कुछ दूर जाकर सभी खूब जोर जोर से हँसे । हँसते भी क्यों न आज जुगाड़ू जोगी का जुगाड़ जो फेल हो चुका था ।

सभी भूखे थे पहले सभी ने खाना खाया । अब क्या करें , वीर बोला ।

जोगी का मुंह देख हम एक बार फिर हँसे । ढाबे के सभी लोग हमें देख रहे थे । इतनी खुशी , इतनी मस्ती मैंने शायद अपने जीवन में नहीं कि थी । आज हम आज़ाद पंछी की तरह उड़ रहे थे , यहाँ न टीचर थे ,न माँ बाप न कोई ओर जो हमे रोक सके।

"तुम लोगो का हो गया हो तो मैं बोलूँ ।"

एक बार फिर सब जोर से हँसे , मेरा हँस हँस कर पेट दुखने लगा । "हाँ बोलो सरकार मैंने कहा।"

जोगी ने कहा," देखो अब 12 से ज्यादा बज गये हैं । मेरी मानो तो 1 बजे ट्रेन है आगरा चलते हैं ,ताजमहल देखने । ये मौका हमे बार बार नहीं मिलेगा , आज सब साथ हैं , कल मैं कहीं , तुम कहीं , आज जी लेते हैं।"

सभी ने जोगी की हाँ में हाँ मिलायी ओर चल दिये , फिर से बिना , सोचे बिना तय किये एक ओर सफ़र पर निकल पड़े ।

अब आसमान साफ नज़र आ रहा था । हवा में भी ठंडक थी हम सब ऑटो पकड़कर पहँच गए रेलवेस्टेशन । लगभग 1:30 बजे ट्रेन आयी , ये ट्रेन टुंडला तक थी इसके बाद टुंडला से सुबह 4 बजे ट्रेन पकड़कर हम आगरा पहुँचने वाले थे । सिकन्द्राबाद से टूंडला तक हमने ट्रेन में सफर किया । बुकिंग न होने की वजह से हम जनरल डिब्बा ही मिल पाया । लगभग 2 घण्टे के इस सफर में पूरे डिब्बे में बस हमारी हंसने की ही आवाज़े आ रहीं थी । हम आज इतने खुश थे शायद इतने खुश कभी नहीं हुए , ओर न ही अब तक ऐसी खुशी मिली है । डिब्बे में बैठे सब लोग बस हमे और हमारी हंसती , मजाक करती शक्लों को ही देख रहे थे । हम जोगी के साथ हुए उस वाक्ये को लेकर कितनी बार हँसे । हमने एक ही रात में कई रूल तोड़े । हँसते हँसाते टुंडला कब पहुँचे पता ही नही चला । टुंडला 4 बजे ट्रेन मिली तब तक सब फ्रेश हुए , चाय पी और ट्रेन में बैठ गए । यहाँ से आगरा3 घण्टे का रास्ता और तय करना था । इसके बाद हमे ताजमहल के दर्शन होते । हम सब बड़े उत्सुक थे औऱ रह रहकर जोगी के इस प्लान को सराह रहे थे । हम में से किसी ने भी ताज़महल को पास से नहीं देखा था । आज वो सपना भी पूरा होने जा रहा था । ट्रेन लेट हो चुकी थी 8 बज गए लेकिन अभी आगरा स्टेशन नज़र नही आ रहा था । बताया जा रहा था अगला स्टेशन है , तभी खड़क खड़क की आवाज़ से ट्रेन पुल से गुजरी , ये यमुना का पुल था दूर से धुँधली सी सफ़ेद इमारत नज़र आने लगी ,भव्य इमारत । जोगी बोल रहा था वही ताजमहल है ।

लगभग सुबह के 9 बजे हम ताजमहल के मुख्य द्वार पर खड़े थे । मेरी ज़िंदगी का ये सबसे यादगार पल था । मैनें सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं दोस्तों के साथ प्यार की इस अमित निशानी को देखूँगा ।

हम सबके चेहरे खुशी से लाल हो रहे थे , सफ़ेद संगमरमर से तराशी गयी ये इमारत किसी की भी बोलती बंद कर सकती है । हमारे चारों ओर असंख्य लोगो की भीड़ थी लेकिन यहाँ हम सब अकेले हो गए थे । आँखों का टिमटिमाना भी बन्द था , सबका मुँह खुला बस एकटक ताज का दीदार किये जा रहा था ।

मुख्यद्वार से देखने इसकी शानोशौकत और बढ़ जाती है ।

धीरे धीरे हम ताजमहल के पास पहुँचे , और बस देखते रह गए , इसकी शानदार नकाशी, शिल्पकलाओं का नायाब नमूना जिसको देखने दुनिया भर से लोग आतें हैं ।

यह एक केवल मकबरा नहीं है , यह प्यार की निशानी है । ऐसी निशानी जिसने प्रेम को अमर कर दिया हो । अंदर जाकर शाहजहां , मुमताज़ की कब्रों पर भी गये ,। बाहर आये और सब एक दूसरे के साथ फोटो खींचने लगे । सभी यादों को समेटना चाहते थे । जितना हो सके जीना चाहते थे ये पल ।

मैं भी बैठा एक कोने में सोच रहा था कि कोई मुमताज़ महल अपनी भी हो जाये तो छोटा सा ताजमहल मैं भी बनवा ही दूँ । सभी लोग संगमरमर के इस ठंडे फ़र्श पर सब कुछ भुलाए इस पल का लुत्फ उठा रहे थे । अब सुकून आँखों से होता हुआ सीने में उतर चुका था । ताजमहल की यादों को सीने में बसाए हम सब होस्टल में वापस आ गये ।

इन दो दिनों में हमने मानो पुरी ज़िन्दगी जी ली हो । ये सफ़र आजतक आँखों के सामने तैरता प्रतीत होता है । मेरी ज़िन्दगी का ये पहला सफ़र था । सप्ताह भर ये सपनो में आता रहा , आज 5 साल बीत गए लेकिन ऐसा लगता है कल की ही बात हो ।

एक दो दिन बाद वार्डन को भी सब पता चल गया । जाने किसने बताया आजतक पता नहीं चला । सबके घर पर फोन किया गया । मुझे घर से धमकी तक मिल गई कि आज के बाद अगर यहाँ ,वहाँ घूमने गया तो वापस बुला लेंगें ।

हम सबने टीचर से भी माफी माँगी क्योंकि उनको भी अब सारी सचाई पता चल चुकी थी । लेकिन इन सबका अब हम पर कोई असर होने वाला नहीं था । क्योंकि अब इस सफ़र के बाद सब खुल गए थे । सारे बन्धन , सारी बेड़ियाँ टूट चुकी थी ।

एक दिन छुट्टी के बाद सब होस्टल आये, चेंज करने के बाद सब पार्क में टहलने लगे , गपशप होने लगी ।

जोगी: "और वीर कैसे हाल हैं तेरी बन्दी के , नाराज़ तो नहीं हो रही आजकल, मिलना हो तो बता देना फिर चलेंगें।" जोगिंदर ने वीर की ओर मुस्कुराकर पूछा ।

वीर: "भाई वो तो नाराज़ होती है फिर मान जाती है ।और हाँ भाई मुझे तेरी इज़्ज़त की फिक्र है उस दिन की तरह दुबारा न हो!" वीर के इस तरह जोगी को पछाड़ते सुन सब ज़ोर से हँसने लगे । और एक फिर उस सफ़र की यादों में डूब गए ।

क्या सफ़र था वो , आजतक यादों में बसा है ।

© Rahulchaudhary