मैं दिल्ली से हूँ। पर मुझे दिल्ली का लड़का होने का मतलब तब तक नहीं पता था जब तक मैं पहली बार मुंबई गया। मेरे पास कभी मुंबई जाने की कोई वजह नहीं थी। मैंने अपनी पूरी पढ़ाई दिल्ली में की, मेरा परिवार यहाँ रहता है और फिर मुझे दिल्ली में जॉब भी मिल गई। मैं या तो हिमालय के पर्वतों में छुट्टियाँ बिताता या फिर दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों की तरफ रुख़ करता। मुंबई को मैंने कभी एक पर्यटन स्थल भी नहीं माना।
लेकिन फिर ऐसा हुआ,
जुलाई के मध्य में मुझे कोच्ची में अपने ऑफिस के दोस्तों की शादी का न्यौता मिला। दोनों लोग मेरे ऑफिस में काम करते थे जहाँ उनकी मुलाक़ात हुई और फिर प्यार। दोनों मेरे दोस्त थे तो मैं इस शादी के लिए बहुत उत्साहित था। साथ ही मैं भी काफ़ी वक़्त से सिंगल था और शादी के माहौल से बढ़िया और क्या जगह हो सकती है नए लोगों से मेल-जोल बढ़ाने का। चूँकि मुझे निर्धारित समय पर दिल्ली से कोच्ची की डायरेक्ट फ्लाइट नहीं मिल रही थी तो मैं मुंबई से कनेक्टिंग फ्लाइट ले ली।
दिल्ली में चमकदार धूप थी और सफ़र की शुरुआत बढ़िया रही। पर इससे पहले कि वो फ्लाइट मुंबई पहुँचती मौसम ख़राब हो गया । प्लेन को सूरत पर ही उतारना पड़ा । मौसम ठीक होने में करीब सवा घंटे लग गए, तब जाकर फ्लाइट ने वापस मुंबई की ओर रुख़ किया। जब तक मैं एयरपोर्ट पहुँचा तब तक मेरी कोच्ची की कनेक्टिंग फ्लाइट जा चुकी थी। मैं गुस्से में था पर इस स्थिति में किसी पर भी इल्ज़ाम नहीं लगाया जा सकता था। कोच्चि की अगली फ्लाइट अगली सुबह ही थी। कोई और विकल्प ना होने कि वजह से मुझे मन मसोस कर मुंबई में ही रात गुज़ारने का इंतेज़ाम करना पड़ा।
मैं एयरपोर्ट पर ही एक होटल में रूम बुक किया और अपने दोस्त को बता दिया कि में अगले दिन ही पहुचूँगा। होटल में मैं अपने एक दोस्त से वॉट्सएप पर बात करने लगा। उसने मुझे सुझाया कि कमरे में कुढ़ने से अच्छा है कि मैं बाहर जाकर थोड़ा शहर ही देख लूँ । 7 बज रहे थे, बारिश थम चुकी थी।मैंने सोचा चलो बहार चल कर देख आते हैं कि मरीन ड्राइव कैसा है।
मेरी उबर ने एक घंटे से ज़्यादा का वक़्त लगाया और मैं ट्रैफिक से परेशान हो गया। हालाँकि मरीन ड्राइव बिलकुल भी बुरा नहीं था – बारिश में धुल कर और पीली रौशनी का हार लिए बेहद ख़ूबसूरत लग रहा था। मैं हल्के क़दमों से चलने लगा। अभी टहलते हुए 10 मिनट ही हुए थे कि तेज़ बारिश शुरू हो गई। मैं सर छुपाने के लिए जगह ढूंढ ही रहा था कि किसी ने छाते का एक किनारा मेरी बाईं आँख में चुभा दिया।
"सॉरी, ये छाता आपको पकड़ना चाहिए, आप लम्बे हैं।"
मैंने छाता पकड़ा और देखा कि कौन है जो मेरी मदद करने की कोशिश कर रहा है। एक कॉलेज जाने की उम्र वाली लड़की अपने दूसरे हाथ में भुट्टा लिए खड़ी थी।
"भुट्टा खाओगे?"
"नहीं।" मैंने इंकार कर दिया।
किस तरह का मुम्बईया बारिश में भुट्टा नहीं खाता?" वो चीख पड़ी।
"मैं दिल्ली से हूँ।
"ओह, आई हेट दिल्ली बॉयज"
"ऐसा क्यों? पर जो भी हो, पहले हम किसी सूखी जगह पहुँच जाएँ, फिर तुम मुझे हेट कर लेना।"
चर्च गेट चलते हैं
क्या वो कोई चर्च है?
"स्टुपिड, लोकल स्टेशन है वो, वहाँ से तुम ट्रेन लेकर जहाँ से आए हो वहाँ जा सकते हो।
लोकल! वो तो भीड़ से भरा होता है। मुंबई के लोग कैसे इसमें सफ़र कर लेते हैं!
देखो, इन्हीं सब कारणों से मुझे दिल्ली के लड़के पसंद नहीं हैं। मुझे उसकी बातों से अब चिढ़ हो रही थी ।
मैं टैक्सी लेकर एयरपोर्ट पर अपने होटल में चला जाऊँगा । मैंने दूर जाते हुए एक टैक्सी को देख कर बोला
"दिल्ली डूड, टैक्सी वीले पार्ले तक नहीं जाती। वो तुम्हें माहिम के पास छोड़ देगा और आगे ऑटो लेने के लिए बोल देगा। और ऑटो में जाना तुम्हारी शान के ख़िलाफ़ नहीं होगा? ऐसा करो उबर ले लो।
15 मिनट वेटिंग दिखा कर कैब मेरी तरफ कभी आई ही नहीं। और जैसा कि हमेशा होता है बारिश में कोई कैब उपलब्ध नहीं थी। मैं झुंझलाहट में गालियाँ बकने लगा।
"तुम दिल्ली के लड़के बिना गालियाँ दिए रह नहीं सकते न?" उसने ताना मारा
"तुम्हें दिख नहीं रहा कि मैं गुस्से में हूँ?"
"हाँ, ये भी दिख रहा है कि तुम्हारा गुस्सा भूख के कारण और भड़क रहा है। सुख-सागर की पाव-भाजी खाओगे? उसके बाद मैं तुम्हें तुम्हारी क़िस्मत के हवाले कर दूँगी।"
"क्या सुख-सागर कोई मशहूर जगह है?"
"हाँ, खाने के लिए काफ़ी ज़्यादा"
"ठीक है, वहाँ चल सकते हैं, मिस मुंबई"
"मेरा नाम जेसिका है"
मैंने उसे अपना नाम बताया, अपने दोस्तों की शादी के बारे में और मुंबई की मेरी पहली ट्रिप पर जो भी हुआ था। बात करते-करते हम सुख-सागर पहुँच गए। पाव भाजी के अलावा भी हमने काफ़ी कुछ आर्डर कर लिया।
"सॉरी, मैं थोड़ा ज़्यादा भूखा हूँ"
"कोई बात नहीं, मैं तो ख़ुद बहुत बड़ी फूडी हूँ।" उसने कहा।
और वो वाकई में फूडी थी। वो मेरा खाना भी खाती रही और मुझे मुंबई की बढ़िया खाने की जगहों के बारे मैं बताती रही – कहाँ बढ़िया कबाब मिलते हैं, कहाँ ईरानी चाय, केकड़े का सूप और पता नहीं क्या-क्या!
"अब तुम उबर लेना चाहते हो?" उसने मुझे खाने के बाद पूछा।
"हम लोकल ले सकते हैं।" मैं एक नए अनुभव के लिए तैयार था।
पहली बार मैं एक मुंबई लोकल में चढ़ा। ट्रेन में भीड़ नहीं थी। रात के 10 बज चुके थे और बारिश की वजह से ज़्यादा लोग बाहर नहीं निकल रहे थे।
"यहाँ आओ एक मज़ेदार चीज़ करवाती हूँ। अपना चेहरा दरवाज़े से बहार निकालो और ठंडी हवा के साथ बूंदों को अपने चेहरे पर आने दो।"
ये इस शाम की सबसे आनंददायक चीज़ थी।
"ये मैं दिल्ली मेट्रो में नहीं कर सकता।" मैंने बोल दिया
"तभी तो मुंबई बेस्ट है"
"पर तुमने मेरी इतनी मदद क्यों की? तुम तो दिल्ली के लड़कों से नफ़रत करती हो?" मैंने पूछा
"तुम रोने वाले थे, सोचा कि तुम्हें मुंबई की आवभगत से परिचित करा दूँ।"
"मैं रोने वाला नहीं था"
"तुम थे। हाँ उतना नहीं रोते जितना बुडापेस्ट बेक हाउस का चिकन चिल्ली खाने के बाद रोओगे।"
पर मैं तो कल सुबह कोच्ची जा रहा हूँ। मगर मेरी कनेक्टिंग फ्लाइट वापसी में मुंबई से ही है। क्या ये प्लान 2 घंटे में पूरा हो सकता है?
हाँ, रेस्टोरेंट एयरपोर्ट के पास ही है।
चार दिन बाद मैं कार्टर रोड पर था, जहाँ उसने रेस्टोरेंट मेरे आने के पहले से ऑर्डर दे रखा था।
"ये मत कहना अब किये सब कुछ मुंबई की आवभगत दिखने के लिए किया!" मैंने उसे छेड़ा
"तुमने दिल्ली के लड़के के बारे में मेरी छवि बदल दी, शायद इसलिए। तुम अच्छे लड़के हो।"
अगले कुछ हफ़्तों तक हमने फ़ोन पर बात कर के एक-दूसरे के बारे में और जाना और फिर हिमाचल में ट्रेकिंग का प्लान भी बना लिया।
आज तीन साल बाद हम अब राशन भी एक साथ खरीदने जाते हैं।
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