जैसा सुना था उससे हटकर पाया जम्मू

Tripoto
15th Nov 2018
Photo of जैसा सुना था उससे हटकर पाया जम्मू 1/2 by pravesh kumari

अभी तक जम्मू का नाम सुनते ही सबसे पहले माँ वैष्णो देवी का ख्याल मन में आता था कभी सोचा भी नहीं था की जम्मू शहर अपने आप में इतनी विविधता से भरा है कि कोई भी यहाँ आकर दीवाना हो जाए, तो जब जम्मू जाने का प्लान बना तो बजाए कार में सफ़र या ट्रेन की ओवरनाइट जर्नी के रोडवेज़ की बस में बाकी सवारियों संग बतियाते हुए जाने का ठान लिया।

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सफ़र की शुरुआत दिल्ली आईएसबीटी से हुई। 15 नवंबर की शाम अपने एक मित्र संग कटरा-जम्मू की बस में सवार हो गए।  16 नवंबर की सुबह करीब साढ़े छह बजे तवी नदी से आती ठंडी हवा के बीच बस ने स्टैंड पर उतार दिया। स्टैंड के पास ही बने एक होटल में सामान रख घूमने की तैयारी हो गई। प्लान इस बार केवल जम्मू को एक्स्प्लोर करने का था।

स्थानीय लोगों ने बताया कि सबसे पहले बावे वाली माता के दर्शन करें। बाहू किले में स्थित माता के मंदिर की बहुत मान्यता है। बताते चलें कि बाहू लोचन के नाम पर किले का नाम रखा गया है, वह राजा जम्बू लोचन के भाई थे, जिनके नाम पर जम्मू का नाम पड़ा था।

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इस बाहू किले के ही परिसर में एक विशाल बाग है, जिसे बाग-ए-बाहू पुकारा जाता है। संगीतमय फव्वारे के साथ ही यहाँ बोटिंग भी की जा सकती है। कहा जाता है कि यहाँ बाहू सुबह की सैर को आते थे। 

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किले में ही एक एक विशाल फिश इक्वेरियम भी है, जिसमे विदेशों तक से लायी मछलियाँ रखी गयी हैं। यहाँ एन्ग्लिंग में काम आने वाले उपकरणों को भी देखा जा सकता है। साथ ही मछलियों, साँपों के जीवाश्म भी रखे गए हैं। इसका प्रवेश द्वार भी एक मछली के मुँह के आकर का है। अंदर जाते हुए लगता है कि हम मछली के मुँह से उसके पेट में जा रहे हैं।

Photo of जम्मू by pravesh kumari
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इसके बाद बारी थी अमर सिंह पैलेस की कभी महाराजा हरि सिंह इसमें रहा करते थे। अब इसके एक हिस्से में म्यूजियम बना दिया गया है। इसमें महाराजा हरि सिंह की यात्रा को जाना जा सकता है। महल के चारों ओर घाटी का खूबसूरत दृश्य है। महल के आधे हिस्से को राज भवन में तब्दील कर दिया गया है। इसमें जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल निवास करते हैं।

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जंगल और वन्य जीव प्रेमी होने के नाते अगर मांडा जू की सैर ना की जाती तो यह खुद से नाइंसाफी होती, तो एक ऑटो पकड़कर जा पहुँचे मांडा जू। इसमें तेंदुए के साथ ही भालू और नील गाय की तो भरमार थी। एक बाड़े में मोर थे जो अपने चाहने वालों को देखते ही झूम रहे थे तो दूसरे में कोबरा समेत कई साँप थे। ये स्नेक चैम्बर दो ही साल पहले बना है। बच्चे सबसे ज्यादा भालू और साँप देखकर ही खुश हो रहे थे। तेंदुए की शायद तबियत नासाज थी। वह आराम ही फरमाता रहा।  इस तरह जम्मू का एक नया रूप देखकर हम आखिर वापस दिल्ली हो लिए। 

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