एक बार कार्तिक को जयपुर से रांची के रोड ट्रिप के दौरान मौका लगा बनारस जाने का। मगर समय की कमी थी तो रात को अस्सी घाट के निकट एक होटल में विश्राम कर अगले दिन रांची के लिए निकलना था । परंतु सुबह उठ कर बनारस का प्रसिद्ध अस्सी घाट जहां हजारों लोग आते हैं, के सैर पर चला गया। उसने फ़ोटो तो बहुत सारी ली पर इस फोटो में उसने एक बात देखी। इस फोटो में कुछ आम लोग दिख रहे हैं जो बस सीधा सादा जीवन व्यतीत करते हैं । ये वही लोग हैं जो सुबह सुबह सैर पर निकलते है। घर लौटते समय पूजा के फूल ले कर आते है। ये लोग फलों और सब्जियों के छिलके को कूड़ेदान में नहीं फेकने देते है और डांट कर बोलते हैं कि यहां क्यों फेका यहां यह तो गाय को देनी थी । काम पर जाते हुए गाय को रोटी भी दे कर जाते हैं। हर त्योहार और सार्वजनिक अवसर पर धन और कार सेवा करते हैं । लड़ाई होने पर बीच बचाव करते हैं। ट्रैफिक जाम होने पर ट्रैफिक संभालने लगते हैं । मगर अब ये प्रजाति कम होती जा रही है और आधुनिकता की दौड़ के पीछे ये शायद विलुप्त भी हो सकती है।
आधुनिकता मुबारक हो।।।।।।।।
क्या आपको पता है कि अस्सी घाट में ही संत श्री तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना की थी ?
सनातन धर्म के अनुसार माँ दुर्गा जब शुम्भ निशुम्भ नाम के दो दानवों का वध कर रही थी तो उनकी तलवार के वार से इस जगह पर एक जल श्रोत फूट पड़ा था जिससे अस्सी नदी निकली है और ये अस्सी घाट में ही माँ गंगा में मिल जाती है।
एक बात जो कार्तिक को पता नहीं थी वह ये की वाराणसी का नाम दो नदियों 'वरूण' व 'अस्सी' के संगम से बना है
यद्यपि बनारस शहर शोरगुल और भीड़ भाड़ वाला शहर है पर अस्सी घाट में आपको एक अलौकिक शांति मिलेगी
अब कार्तिक भी इस आध्यात्मिक का साक्षी बन चुका था। लगभग दो घंटे अस्सी घाट में व्यतीत कर वह भी इस पौराणिक घाट की भक्ति में लीन हो चुका था।
अस्सी घाट का भरपूर आनंद ले चुका था कार्तिक और उसे अब रांची के लिए प्रस्थान करना था।
रास्ते में प्रयागराज भी पड़ता था इसलिए उसे अपनी यात्रा को जारी रखना था जिससे समय रहते वो संगम स्नान भी कर सके।
अतः बनारस को प्रणाम कर वह अपनी यात्रा के अगले पड़ाव के लिए निकल पड़ा।