बनारस के अद्भुत घाट

Tripoto
10th Mar 2020
Photo of बनारस के अद्भुत घाट by Kavi Preet (Gurpreet Sharma)

बनारस के अद्भुत घाट

वाराणसी संसार के प्राचीनतम बसे शहरों एवं सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक है। इसे ‘बनारस’ और ‘काशी’ भी कहते हैं। यहाँ के घाट इस नगर की शोभा को चार चाँद लगते हैं। कहा जाता है कि बनारस इन्हीं घाटों के साथ जागता और सोता है। बनारस के घाटों जैसा भारत देश में कुछ नहीं है, ये बात ऐसे असंख्य लोग मानते हैं जिन्होंने अस्सी, दशाश्वमेध जैसे घाटों पर ‘सुबहे बनारस’ और ‘गंगा आरती’ देखी है या फिर देव दीपावली का अनुपम नजारा अपनी आँखों में बसाया है।

गंगा मैया में तैरती नावों, लहरों पर डोलते असंख्य दीपों से प्रकाशित घाटों पर सारा बनारस एक ही स्थान पर विद्यमान प्रतीत होता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय, सारनाथ, यहाँ की गलियाँ, खान-पान, रहन-सहन, बोल-चाल सब कुछ निराली है, लेकिन यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण गंगा और उसके घाटों को ही माना जाता है।

विदेशों से भारत आने वाले प्रतिष्ठित मेहमान तथा सैलानी इन घाटों के सौंदर्य के दर्शन करने अवश्य जाते हैं। ये घाट स्नान के लिए आने वाले श्रधालुओं के लिए तीर्थ हैं तो बड़े-बूढों के लिए सत्संग स्थल। नाव चलाने वालों, खान-पान की दुकानों वालों, ज्योतिषों तथा अनेक लोगों के लिए जीविका का साधन ये घाट ही हैं।

वाराणसी में गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं, ये सभी घाट किसी न किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं। वाराणसी के घाट गंगा नदी के धनुष की आकृति होने के कारण अत्यधिक मनोहारी प्रतीत होते हैं। किसी घाट की सीढ़ियाँ शास्त्रीय विधान में निर्मित हैं, तो कोई मंदिर विशिष्ट स्थापत्य शैली में है। किसी घाट की पहचान वहाँ स्थित महलों से है, तो किसी घाट पर मस्जिद है, वहीं कई घाट मौज-मस्ती का केंद्र हैं। इन घाटों को काशी का अमूल्य रत्न कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इन घाटों पर संपूर्ण भारतीय संस्कृति का समन्वय जीवंत रूप में विद्यमान है। काशी वासियों के लिए गंगा के घाट धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ पर्यटन एवं मौज-मस्ती के दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं।

बनारस के घाटों से अनेक किंवदंतियाँ भी जुड़ी हुई हैं, जैसे मणिकर्णिका पर भगवती पार्वती की मणि गिरना, आदिकेशव घाट पर भगवान् विष्णु के चरण धोना, रामघाट पर भगवान् राम का रावण के वध के बाद ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के लिए स्नान करना, गंगा द्वारा पंडितराज जगन्नाथ की परिशुद्धि करना आदि।

गंगा के तट पर छोटे-बड़े लगभग 84 घाट हैं। ज्यादातर घाटों के नाम मंदिरों से लिए हुए हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहाँ के प्रमुख घाट हैं- अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट, पंचगंगा घाट और आदि केशव घाट। गंगा और अस्सी नदी के संगम पर स्थित अस्सी घाट वाराणसी के सबसे दक्षिण में स्थित घाटों में से एक है। सबसे पुराने और सबसे महत्वपूर्ण घाटों में एक दशाश्वमेध घाट वाराणसी के सबसे ओजस्वी घाटों में से एक माना जाता है। मणिकर्णिका घाट यहाँ के प्रसिद्ध घाटों में से एक है जिसका संबंध विष्णु तथा शिव जी से जोड़ा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पंचगंगा घाट में गंगा, यमुना, सरस्वती, किरण तथा धूतपापा नदियाँ गुप्त रूप से मिलती हैं। आदिकेशव घाट वरुणा तथा गंगा के संगम पर स्थित है। तुलसीघाट प्रसिद्ध कवि तुलसीदास से संबंधित है। यहाँ पर गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस के कई अंशों की रचना की थी। कहा जाता है कि तुलसीदास ने अपना आख़िरी समय यहीं व्‍यतीत किया था। हरिश्‍चंद्र घाट का संबंध राजा हरिश्चंद्र से है। सत्यप्रिय राजा हरिश्चंद्र के नाम वाला यह घाट वाराणसी के प्राचीनतम घाटों में से एक है। केदार घाट का नाम केदारेश्वर महादेव मंदिर के नाम पर पड़ा है। राजेंद्र प्रसाद घाट दशाश्वमेध घाट के बगल में है। यह घाट देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की स्मृति में बनाया गया है। चेत सिंह घाट एक क़िले की तरह लगता है। राजघाट काशी रेलवे स्टेशन से सटे मालवीय सेतु (डफरिन पुल) के पा‌र्श्व में स्थित है। यहाँ संत रविदास का भव्य मंदिर भी है। इसके अलावा गायघाट, लालघाट, सिंधिया घाट आदि काशी के सौंदर्य को उद्भाषित करते हैं।

बनारस के ये घाट न केवल वहाँ के निवासियों के लिए महत्वपूर्ण हैं, अपितु प्रत्येक भारतवासी के आकर्षण का केंद्र हैं। हर साल न जाने कितने ही लोग बनारस जाते हैं। कोई मन में श्रद्धा का भाव लिए तो कोई यहाँ के अनुपम सौंदर्य का दिग्दर्शन करने। ये बनारस के घाटों का आकर्षण ही है कि एक बार यदि कोई यहाँ जाता है तो वह बार-बार जाने की चाह मन में लिए रहता है। तो देर किस बात की है, पहुँच जाइए—