विश्व की दूसरी सबसे बड़ी दिवार भारत के इस राज्य मे स्थित हैं

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Photo of विश्व की दूसरी सबसे बड़ी दिवार भारत के इस राज्य मे स्थित हैं by Rishabh Bharawa

आज का यह लेख किसी हिमालय के पहाड़ या कोई समुद्री जगह का ना होकर आपको ले जाएगा राजस्थान के एक विश्वप्रसिद्ध किले की सेर पर, जहाँ स्थित हैं विश्व की दूसरी सबसे लम्बी दिवार।

कुम्भलगढ़ राजस्थान के राजसमंद जिले मे स्थित हैं। किले के करीब 5 किमी दूर से ही यह के लक्ज़री रिसोर्ट ,खूबसूरत रेस्टॉरेंट नजर आने लगते है। इन रिसॉर्ट्स मे आप छत पर बने हुए स्विमिंग पूल मे नहाते हुए चारो तरफ फैले घने जंगल एवं कुम्भलगढ़ किले को निहारने का आनंद ले सकते है। आस पास के शहर के कई लोग तो यहा केवल कुछ दिन रिसोर्ट मे बिताने आते हैं। कुम्भलगढ़ का किला पहाड़ियों से घिरा होने के कारण दूर से दिखायी नहीं देता है। केवल इसके कुछ किलोमीटर की दूरी रहने पर ही इसका कुछ भाग दिखाई देने लगता हैं।

किले मे प्रवेश से पहले कई द्वार बने हुए है जिसमे से गुजर कर आप लोग सीधे पहुंचते है यह कि विशाल पार्किंग मे। जहा से टिकट भी खरीदने होते हैं। इसी पार्किंग से कुम्भलगढ़ दिवार एवं किले की शैली को देखा जा सकता है। दो गुम्बदाकार सरंचनाओं के बीच से इसका पैदल प्रवेश शुरू होता हैं। जिससे सीधा आप लोग पहुंचते है एक बड़े से खुले मैदान मे ,जिसमे एकदम सामने नास्ते एवं चाय की दो तीन शॉप लगी हैं। दायी तरफ का रास्ता कुछ मंदिरो तक ले जाता है एवं बायीं और वाले रास्ते से पैदल पहाड़ी चढ़ कर किले के मुख्य भाग तक पंहुचा जा सकता हैं।

Photo of Kumbhalgarh Fort, Kumbhalgarh, Rajasthan, India by Rishabh Bharawa

किले का इतिहास एवं विशेषताएं :

इससे पहले की हम आगे बढे आपको बता दू कि कुम्भलगढ़ का किला राजस्थान मे चित्तौडगढ़ के किले के बाद दूसरा सबसे बड़ा किला हैं। उदयपुर से करीब 85 किमी की दूरी पर स्थित इस किले को 'मेवाड़ की आँख ' भी कहते हैं। इसी के आगे से राजस्थान के मेवाड़ एवं मारवाड़ क्षेत्र अलग अलग हो जाते हैं।महाराणा प्रताप की जन्मभूमि कहलाने वाला यह किला वर्ल्ड हेरिटेज साइट मे शामिल हैं। अरावली पर्वत श्रेणी की घनी पहाड़ियों एवं जंगलो से घिरा यह किला 3500 फ़ीट की ऊंचाई पर बना हैं।वैसे तो यह किला कई बरसो पूर्व बनाया गया था ,परन्तु इसको वर्तमान शैली के रूप मे राणा सांघा द्वारा 1459 मे बनाया गया था।राणा के इस किले को बनाने से पूर्व यह किला खंडहर हो चूका था। इस किले के विश्वप्रसिद्ध होने का कारण है इसकी विशाल दिवार जो कि 38 किलोमीटर लम्बी है। चीन की दिवार के बाद विश्व की दूसरी सबसे लम्बी दिवार यही दिवार हैं। इस दिवार की आकृति भी कोई सीधी ना होकर गुम्बदाकार या मटकी का रूप लिए हुई बनी हैं।

Photo of विश्व की दूसरी सबसे बड़ी दिवार भारत के इस राज्य मे स्थित हैं by Rishabh Bharawa
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किले के भाग :

इस किले पर जाने के लिए आपको एक घुमावदार रास्ते से चढ़ कर ऊपर जाना पड़ता हैं। इस चढ़ाई के दौरान भी कुछ दरवाजे मिलते हैं।इस किले के प्रवेश से ही कई दरवाजे आपको दिखाई देने लगेंगे जिनके अलग अलग नाम है जैसे राम पोल ,विजय पोल ,भैरव पोल ,हनुमान पोल आदि।कई विदेशी सैलानी भी अपने गाइड के साथ आपको यहाँ की जानकारी लेते हुए दिख जाएंगे। जैसे जैसे आप ऊपर चढ़ते हुए जाएंगे ,यहां कि दिवार का फैलाव आपको दीखता रहेगा।सबसे पहले आप पहुचेंगे एक बग़ीचे के साथ बने एक तोपखाने के पास जहा कुछ टोपे भी राखी हुई आपको दिखाई देगी। उसके बाद उसीके पास एक कुंड बना हुआ भी आप देख सकते हैं। वहा से ऊपर जाने पर आप पहुंचेंगे बदल महल के पास जो कि सबसे शीर्ष पर बना हुआ है। जहा से निचे की और फैले हुए घने जंगल को देखा जा सकता हैं। बादल महल के पास ही जनाना महल एवं मर्दाना महल भी बना हुआ हैं। कई जगह कुछ दरवाजे बंद किये हुए रखे है जो कि महल के गुप्त रास्तो की और जाते हैं। महल की सबसे ऊँची मंजिल पर भी जाने का रास्ता खुला रखा है जहा छत की दीवारों के पास रेलिंग्स लगा कर उसे सुरक्षित बनाया हुआ हैं। फोटोग्राफर्स के लिए यह जगह सबसे फेवरेट जगह हैं क्योकि ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहा से जंगल ,किले की अन्य इमारते ,दिवार ,मंदिर आदि का रमणीय नजारा देखा जा सकता हैं। बादल महल के अलावा इस किले मे और भी कई छोटे छोटे महल है जैसे कि कुम्भामहल। महल मे ही एक देवी का मंदिर भी बना हुआ है। माना जाता है कि यह देवी इस किले की रक्षा करती हैं। दो घंटे बाद फिर हम निचे स्थित मैदान मे वापस पहुंच गए।

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कुम्भलगढ़ महोत्स्व :

यहा हर साल तीन दिवसीय महोत्स्व का आयोजन होता है जिसमे नृत्य ,संगीत ,पगड़ी ,मेहन्दी से जुडी प्रतियोगिताएं होती हैं। इसके अलावा रोज रात्रि मे यह लाइट एवं साउंड शो भी होता हैं।

जीप सफारी :

कुम्भलगढ़ के घने जंगलो मे कई पर्यटक केवल जंगली जानवर देखने आते हैं। इसके लिए यहाँ जीप सफारी की सुविधा भी उपलब्ध हैं।जीप सफारी एक्टिविटी के अंतर्गत आप एक खुली जीप मे बैठकर इन जंगलो मे घूमने जा सकते हैं। जंगल के बीच स्थित अभ्यारण मे तेंदुआ ,भालू ,जंगली सूअर आदि देखे जा सकते हैं।

विशाल दिवार :

यह दिवार के पास इतनी चौड़ी जगह हैं कि इस पर एक साथ पांच सात घोड़े चल सकते थे। दिवार के सहारे कुछ दूरी घूम कर एक जगह बैठ कर आखो के सामने स्थित ऊंचाई पर स्थित विशाल किले को आप निहार सकते हैं।। इस दिवार का निर्माण सुरक्षा की दृष्टि से किया गया था। आस पास घना जंगल ,पहाड़िया एवं ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यह किला सामान्यतः अजेय ही रहा एवं हमेशा मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा । सिर्फ अल्पकाल के लिए एक बार इस किले को मुग़लो ने कब्जे मे ले लिया था परन्तु कुछ ही समय मे महाराणा प्रताप ने इस पर पुनः अधिकार कर लिया और उसके बाद यह हमेशा मेवाड़ के राजाओ के अधीन ही रहा। इस किले को नष्ट करने एवं इसपर अधिकार करने को कई बार गुजरात के अहमद शाह से लेकर खिलजी ने भी कई प्रयास किये थे।लेकिन सब विफल रहे।

किले के प्रसिद्द मंदिर :

बड़ी दिवार के किनारे किनारे घूम कर अब एक रास्ता सीधा जैन मंदिर के पास निकलता हैं। यह जैन मंदिर कई स्तम्भों के सहारे खड़ा था। एक समय मे इस किले मे करीब 350 हिन्दू एवं जैन मंदिर बने हुए थे। जैन मंदिर मे दर्शन कर ,यहा के पीछे के रास्ते से जाकर हम पहुंचे यहा के प्रसिद्ध नीलकंठ महादेव मंदिर। जिसके बरामदे मे कई सारे स्तम्भ बने हुए थे। गर्भगृह मे स्थित काले पत्थर से बना शिवलिंग सबसे विशाल शिवलिंग मे से एक हैं। इस छह फ़ीट के शिवलिंग की पूजा राणा सांगा खुद करते थे।राणा सांगा इतने लम्बे थे कि जब वो यहां पूजा करने बैठते थे तो उनकी आंखें शिवलिंग के समानांतर होती थीं। इस मंदिर से भी किले के विशाल रूप दिखाई देता हैं।

यात्रा के लिए उचित समय : सिपतंबर से मार्च तक।

नजदीकी एयरपोर्ट : उदयपुर एयरपोर्ट

नजदीकी रेलवे स्टेशन :फालना रेलवे स्टेशन

अन्य नजदीकी पर्यटक स्थल :माउंट आबू ,रणकपुर ,नाथद्वारा ,राजसमंद ,उदयपुर।

धन्यवाद्।

-ऋषभ भरावा (लेखक ,पुस्तक -चलो चले कैलाश)