प्राचीन इतिहास की एक अलग झलक पेश करता हैं पांडवों द्वारा यह अर्धनिर्मित मसरूर मंदिर।

Tripoto
17th Jun 2021
Photo of प्राचीन इतिहास की एक अलग झलक पेश करता हैं पांडवों द्वारा यह अर्धनिर्मित मसरूर मंदिर। by Sachin walia
Day 1

मसरूर मंदिर भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य में ब्यास नदी की (कांगड़ा घाटी) में पत्थर काट कर बनाए गए हिन्दू मंदिरों का एक संपूर्ण समूह है। यह 8वीं शताब्दी के आरम्भ में बनाए गए थे और धौलाधार पर्वतों की ओर मुख रख के खड़े हैं। यह उत्तर भारतीय नगर वास्तुशैली में बने हैं। यहाँ के कई मंदिर अतीत में आए भूकम्पों से हानिग्रस्त हुए थे, लेकिन अभी भी कई खड़ें हैं। इन मंदिरों को एक ही शिला से काटकर तराशा गया था। बेजोड़ कला और रहस्यमयी इतिहास को संजोकर रखने वाला हिमाचल के कांगड़ा का ये मसरूर मंदिर अब देश का आदर्श स्मारक बनेगा। आदर्श स्मारक योजना के तहत देश भर की 25 राष्ट्रीय और विश्व धरोहरों को पर्यटन के लिहाज से संवारने के लिए चिह्नित किया गया है।

कांगड़ा स्थित 8वीं शताब्दी मे बना मसरूर मन्दिर

Photo of प्राचीन इतिहास की एक अलग झलक पेश करता हैं पांडवों द्वारा यह अर्धनिर्मित मसरूर मंदिर। by Sachin walia

पांडवों के समय से मसरूर मन्दिर के भीतर स्थापित भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता जी की मूर्तियां

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सन् 1905 में आये भूकंप से मसरूर मन्दिर की क्षतिग्रस्त हुईं दीवार

Photo of प्राचीन इतिहास की एक अलग झलक पेश करता हैं पांडवों द्वारा यह अर्धनिर्मित मसरूर मंदिर। by Sachin walia

इतिहास
मसरूर मन्दिर प्राचीन काल से हिन्दू धर्म से जुड़ा हुआ है। 8वीं शताब्दी में इन मंदिरों का निर्माण पांडवों द्बारा हुआ था। बताया जाता है कि निर्वासन के दौरान पांडव इस मंदिर में अरसे तक रहे थे। इस मंदिर में राधा-कृष्ण सहित राम, लक्ष्मण और सीता की पत्थर की मूर्तियां हैं। मगर असली मंदिर का निर्माण 8वीं सदी में जाकर किया गया।
कुल 15 बड़ी चट्टानों पर ये मंदिर बनाए गए हैं। बलुआ पत्थरों से बनाए गए इस मंदिर को 1905 में आए भूकंप के कारण काफी नुकसान भी हुआ था। मगर इसके बावजूद भी यह मन्दिर आज भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
पहले मुख्य मंदिर एक शिव मंदिर था, पर अभी यहां श्री राम, लक्ष्मण व सीता जी की मूर्तियां स्थापित हैं। एक लोकप्रिय पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत में पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इसी जगह पर निवास किया था और इस मंदिर का निर्माण किया। चूंकि यह एक गुप्त निर्वासन स्थल था इसलिए वे अपनी पहचान उजागर होने से पहले ही यह जगह छोड़ कर कहीं और स्थानांतरित हो गए। कहा जाता है कि मंदिर का जो एक अधूरा भाग है उसके पीछे भी यही एक ठोस कारण मौजूद है।

मसरूर मन्दिर से दिखता बर्फ की चादर औढे खूबसूरत धौलाधार पर्वत

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मसरूर मन्दिर का दूर से लिया गया एक अद्भुत नज़ारा

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8वीं शताब्दी में पांडवों द्बारा बनाई गई मन्दिर की अर्धनिर्मित सीढ़ी

Photo of प्राचीन इतिहास की एक अलग झलक पेश करता हैं पांडवों द्वारा यह अर्धनिर्मित मसरूर मंदिर। by Sachin walia
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प्राकृतिक सौंदर्य

हिमालय की गोद में बसा हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक खूबसूरती से सम्पन्न है। मंत्रमुग्ध करती नदियों की कल-कल ध्वनि के खूबसूरत नजारों से लेकर पर्वत की विशाल चोटियों तक, मनोरम घाटियों से लेकर सुंदर गर्म पानी के स्रोतों तक, कहीं भी प्राकृतिक खूबसूरती की कमी नहीं है। आप जैसे-जैसे हिमाचल की वादियों में कदम रखते जाते हैं एक सुखद आश्चर्य आपका स्वागत करता जाता है और आपको एक मनोरम अनुभव का अहसास कराता है। प्रकृति के इसी आदर्श स्थल में मानव द्वारा निर्मित अद्भुत कृतियों में शामिल है समुद्रतल से 2500 फुट की ऊंचाई पर है। धार्मिक आस्थाओं के साथ साथ इस मन्दिर की खूबसूरती भी देखने लायक बनती है। पूरा धौलाधार व इसकी बर्फ की चादर औढी चोटियां यहाँ से स्पष्ट नजर आती हैं। पहाड़ को काट कर ही एक सीढ़ी बनाई गई है, जो आपको मंदिर की छत पर ले जाती है और यहां से पूरा गांव एवं धौलाधार की चोटियां कुछ अलग ही खूबसूरती लिए नजर आती हैं। मसरूर मंदिर के दर्शन पूरे साल कभी भी कर सकते हैं।

ध्वस्त हुईं छोटी छोटी गुफाएँ

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मसरूर मन्दिर में मेरे ( सचिन वालिया) द्बारा ली गई एक छाया चित्र

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सन् 1905 में आए भूकंप से एक अखंडित प्रतिमा (मसरूर मन्दिर)

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विश्व धरोहर की दौड़ में शामिल
विश्व धरोहर की दौड़ में शामिल विश्व धरोहर की दौड़ में शामिल वंडर ऑफ वर्ल्ड और हिमालयन पिरामिड के नाम से विख्यात बेजोड़ कला के नमूने रॉक कट टेंपल मसरूर एक अनोखा और रहस्यमयी इतिहास समेटे हुए हैं। 8वीं सदी में बना यह मंदिर उत्तर भारत का इकलौता ऐसा मंदिर है। ताजमहल, लाल किला, फतेहपुर सीकरी, कोणार्क मंदिर व ऐलीफैंटा की गुफाएं की तरह इसे भी वंडर ऑफ वर्ल्ड माना जाता है। इसकी नक्काशी और इसके आगे बना तालाब इसकी खूबसूरती को चार चांद लगाता है।

यहाँ आएं कैसे
मसरूर मंदिर कांगड़ा शहर से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मसरूर मंदिर के दर्शन पूरे साल कभी भी कर सकते हैं।
चार पहिया गाड़ियां आसानी से मन्दिर तक पहुंच जाती हैं। पर एक बात का विशेष ध्यान दें। आप खाने पीने की चीज़ें कांगड़ा शहर से ही ले कर आना पड़ेगा क्योंकि एक छोटा गांव होने के कारण मसरूर मंदिर के आसपास कोई होटल बगैरह की सुविधा नहीं हैं। तो इसका बंदोबस्त आपको स्वयं करना पड़ेगा।