लाहौल स्पिति ( हिमाचल प्रदेश)
फ़िलहाल किसी तरह की गैर जरूरी यात्रा ना करें।
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महत्वपूर्ण जानकारी
मनाली से लाहौल स्पिति की मात्र दूरी 46 किलोमीटर की है लेकिन मनाली से लाहौल स्पिति पहुँचने के लिए आपको कई घुमावदार और संकरे रास्ते से होकर गुजरना पड़ेगा। रास्ते मे आपको आते समय अनेकों ताल और छोटी नदियां भी मिलेंगी। हालांकि बीच बीच रास्ते में छोटी छोटी चाय के स्टाल और ढाबे जरूर देखने को मिल जाएंगे।
लाहौल स्पिति का इतिहास
लहौल और स्पीति जिले की दो इकाइयों में अलग ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। लाहौल दूर के दिनों में लद्दाख और कुल्लू के शासकों के बीच हाथ बदल रहा था। 17 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में लद्दाख साम्राज्य के विघटन के साथ, लाहौल कुल्लू प्रमुख के हाथों में हो गया। 1840 में, महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौल को कल्लू के साथ ले लिया और 1846 तक इस पर शासन किया जब यह क्षेत्र अंग्रेजों के प्रभाव में आया तो 1846 से 1 9 40 तक, लाहौल कांगड़ा जिले के कुल्लू उप-विभाजन का हिस्सा बन गया था। यहां आज भी बौद्ध मठों में कई बौद्ध भिक्षुओं को उनके गुरुओं द्बारा दीक्षा दी जाती है।
घुमपा मठ और उनके बौद्ध गुरुओं की जीवित योग शक्ति
मनाली से लाहोल स्पिति तक पहुंचते हुए आपको कई बौद्धिक धार्मिक स्थल मिल जाएंगे। इनमें से प्रसिद्ध और देखने लायक कलाकृतियां आपको बौद्ध धर्म के घुमपा मठ से मिलेंगी। ज्यादातर घुमपा मठ लकड़ी की आकर्षक बनावट के लिए प्रसिद्ध है।
लाहौल स्पिति की प्रसिद्ध खेती आलू और मटर की है। लाहौल मे लाहौल स्पिति के बाहर से लोग आकर आस पास के लोगों से खेती किराये पर ले कर आलू मटर की खेती करके उन्हें सब्जी मंडियों मे बेच कर खूब मुनाफा कमाते हैं क्योंकि लाहोल स्पिति की ऋतु आलू मटर की खेती के लिए बहुत उपयोगी है। और दूर दूर तक विख्यात है।
आस पास के लोगों की माने तो ये बौद्ध धर्म के भिक्षु अपने गुरुओं से कई चमत्कारिक विद्याऐं सीखते है जैसे कि ज्यादा देर तक साँस को रोके रखना और जैसे योग करते समय ध्यान की मुद्रा में हवा में काफी देर तक अपने आप को बनाये रखना। ये सभी बौद्ध गुरुओं की अपने भिक्षुओं को दी जाने वाली विद्याओं में शुमार है।
ताल झरने और लाहौल की सुन्दरता
ताल और रास्ते के साथ साथ बहने बाले झरने लाहौल स्पिति की सुन्दरता को और बढ़ा देते है। दीपक ताल पूरे दिन मे सूर्य की किरनों से कई प्रकार के रंग बदलता है यहि खूबी उसकी ओर तालों से अलग बनाती है। दीपक ताल बाकी और तालों मे से बहुत ही खूबसूरत है इस सुंदरता को प्राप्त करने के लिए आपको अप्रैल के माह के बाद आना चाहिए। नवंबर माह से मार्च तक आवाजाही बर्फ ( स्नोफाल) के कारण बंद होती है।
(BRO) बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन ही रोड खोलती है
मनाली टेक्सी पार्किंग में आप अपनी गाड़ी को पार्क करके रेंटल वाली गाड़ी या बाइक से जाना उचित रहेगा। रेंटल बाइक और गाड़ियां आपको आसानी से उचित दाम में(गाड़ी के हिसाब से) मिल जाएंगी।
त्रिलोकीनाथ मन्दिर के अचभिंत कर देने वाले तथ्य
यह मन्दिर बहुत ही पहाड़ी ऊचाईयों मे बना है। हालांकि इस मन्दिर तक पहुंचना इतना कठिन नहीं है क्योंकि लाहौल स्पिति से त्रिलोकीनाथ मन्दिर के लिए अच्छा मार्ग बना हुआ है जिससे आसानी कोई भी वाहन इस मन्दिर तक पहुंचाया जा सकता है।
त्रिलोकीनाथ मन्दिर बनने के पीछे बहुत ही अचंभित रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी देने जा रहा हूं। क्या आपको पता है कि त्रिलोकीनाथ मन्दिर मे पांडवों के समय से अभी तक बौद्ध धर्म के लोग ही इस मन्दिर की देख रेख करते आ रहे हैं। और इस मन्दिर मे शुरू से ही कोई हिन्दू धर्म का पंडित नहीं अपितु बौद्ध भिक्षु ही बैठते आ रहे है और पंडित की भांति पूजा अर्चना करते आ रहे हैं। हिंदुओं में त्रिलोकनाथ देवता को भगवान शिव का रूप माना जाता है, जबकि बौद्ध इनकी पूजा आर्य अवलोकीतश्वर के रूप में करते हैं। हिंदू मानते हैं कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था। बौद्धों के विश्वास के अनुसार पद्मसंभव 8वीं शताब्दी में यहां पर आए थे
मोह लेने वाला शाम का नज़ारा
मोह लेने वाला शाम का नज़ारा शाम के समय पहाड़ों के ऊपर पड़ने वाली सूर्य की सुनहरी किरणें पहाड़ों की खूबसूरती पर चार चांद लगा देती हैं। शाम का नज़ारा देखने लायक ही बनता है।
आप आइए और इन्ही प्राकृतिक सुंदरता का लुत्फ उठाईए। और सैलानियों को भी प्रेरित करिए। आशा करता हूं कि मेरा आज का ब्लोग आपको अच्छा लगा हो। मेरे साथ बने रहने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। मेरा अगला ब्लॉग जल्द ही आने वाला है कृप्या मेरा होंसला ऐसे ही बनाये रखें। तब तक के लिए धन्यवाद।
जय भारत
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