यह इतिहास का अनोखा पहला रहस्यमयी मन्दिर है जहांँ पर खुद भगवान शिव ने यमराज जी का नामकरण किया और पूरी सृष्टि का कल्याण किया।
वाराणसी. मणिकर्णिका घाट और काशी विश्वनाथ बाबा के मंदिर के अलावा यूपी के बनारस में हिंदू धर्म के कई और रहस्य भी छुपे हैं। इसी शहर में धर्मराज यमराज से जुड़ी जानकारियां और निशानियां मिलती हैं। मीरघाट के ऊपर बना है धर्मेश्वर महादेव मंदिर और एक धर्मकूप।
मन्दिर का इतिहास
मंदिर के पुजारी मनोज उपाध्याय बताते हैं, "इस कूप का इतिहास गंगा के धरती पर आने से पहले का है। इसे कभी सूर्यपुत्र यम ने बनवाया था। गंगा अवतरण के पूर्व यहां सूर्य पुत्र धर्मराज यम ने 16 चौकड़ी (एक चौकड़ी एक युग के बराबर मानी जाती है) तपस्या किया था।" - "भगवान शिव के वरदान से यमराज का नामकरण संस्कार यहीं हुआ था। महाभारत काल में धर्मराज युधिष्ठिर ने भी अज्ञात वास के दौरान यहीं आकर यमराज की तपस्या की थी।"
कैसे पड़ा यमराज का नाम
गंगा अवतरण के पहले भगवान शंकर पृथ्वी पर मरने वाले मनुष्यों को स्वर्ग में जगह मिले या नर्क में, इस बात को लेकर काफी चिंतित थे। पृथ्वी लोक से उन्हें लेकर कौन आएगा। दूसरी तरफ यम ने काशी आकर तपस्या की, लेकिन शिव ने दर्शन नहीं दिए। तब विष्णु ने उनको यहां कुंड बनाकर, उसमें स्नान के पश्चात् सोलह चौकड़ी अराधना करने के लिए कहा। यम के तप से महादेव प्रसन्न हुए तो और वरदान दिया कि आज से देवगण से लेकर मनुष्य लोक तक सभी तुम्हें यमराज कह कर पुकारेंगे।"
कूप का रहस्य
ऐसी मान्यता है कि शिव ने यमराज को मोक्ष पाने वालों का हिसाब रखने की जिम्मेदारी सौंपी थी। तभी से वे यह फैसला करते हैं कि मरणोप्रांत किसे स्वर्ग देना है और किसे नर्क।" धर्मकूप को लेकर भी है मान्यता धर्म पुराण में इस पूरी घटना का वर्णन है। यमराज का नामकरण यहां होने की वजह से इस मंदिर का नाम धर्मेश्वर महादेव मंदिर पड़ गया। यहां मान्यता है कि यमराज स्वयं शिव के साथ विराजते हैं। कुंड को लेकर मान्यता है कि इस कूप में झांकने पर यदि जल में प्रतिबिम्ब नहीं दिखाई दे, तो उस व्यक्ति का मृत्यु 6 महीने के अंदर निश्चित है। साथ ही इस कूप के जल से किया गया तर्पण और श्राद्ध 'गया लाभ' के बराबर होता है।"
आज भी यहांँ आकर श्रद्धालु इस कूप में अपनी छाया का प्रतिबिंब देखते मिल जाएंगे।