भगवान शिव को समर्पित सावन का महीना बहुत पावन माना जाता हैं। सावन का महीना देवों के देव महादेव की पूजा-अराधना के लिए समर्पित होता हैं। इस पूरे माह शिवभक्त भोलेबाबा की भक्ति में लीन होते हैं। सावन माह में शिवजी के मंदिरों में भी पूजा-पाठ के लिए अनुष्ठान किए जाते हैं। यही कारण है कि सावन के पूरे महीने शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की कतारें लगी होती है।उत्तराखंड में शिव के कई ऐसे मंदिर हैं, जिनका इतिहास हजारों साल पुराना है। ऐसे ही एक प्राचीन शिव मंदिर के बारे में आज हम आपको बताएंगे जहां सावन माह में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी होती हैं।
कोटेश्वर महादेव मंदिर
कोटेश्वर महादेव मंदिर, उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित एक प्राचीन मंदिर हैं। जोकि शहर से मात्रा तीन किलोमीटर दूर हैं। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं। अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित यह मंदिर एक गुफा के रूप में मौजूद हैं जोकि अपने में ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व को संजोया हुआ हैं। इस गुफा में छोटे-छोटे से कुड है ऐसा कहा जाता है इन कुंडों में हमेशा पानी रहता है। इस प्राचीनतम मंदिर की मुख्य विशेषता यह है कि चार धाम यात्रा पर निकले ज्यादातर श्रद्धालु मंदिर को देखते ही दर्शन के लिए आगे बढ़ते हैं।
कोटेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास
ऐसा कहा जाता हैं कि कोटेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी में किया था, इसके बाद 16 वी और 17 वी शताब्दी में मंदिर का पुन: निर्माण किया गया था। ऐतिहासिक पुस्तकों के आधार पर इस मंदिर के बारे में कहा गया है कि भगवान शिव जी ने इस पवित्र गुफा में साधना की थी और इस स्थान पे जो मूर्ति स्थापित हैं वो प्राकृतिक रूप से निर्मित की गई थी। गुफाओं में प्राचीन मूर्तियां एवं शिवलिंग के अलावा मां पार्वती और भगवान गणेश जी, हनुमान जी, और मां दुर्गा जी के मूर्तिमान मूर्ति हैं। गुफाओं के अवास्तविक प्राकृतिक रूप से बनी मूर्तियाँ और शिवलिंग यहाँ प्राचीन काल से ही स्थापित हैं।
कोटेश्वर महादेव मंदिर पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह मंदिर भस्मासुर के समय से ही अस्तित्व में है। कहा जाता हैं कि भस्मासुर ने महोदव से प्राप्त शक्ति का प्रयोग करके जब भगवान शिव का ही वध करना चाहता था तब भगवान शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए इस मंदिर के पास मौजूद गुफा में रहकर कुछ समय बिताया था। फिर भगवान विष्णु से मदद के लिए कोटेश्वर गुफा में मिले थे। उसके बाद भगवान विष्णु ने मोहीनी का रूप धारण कर, भस्मासुर राक्षस का वध किया था। एक अन्य मान्यता हैं कि कौरवों की मृत्यु के बाद जब पांडव मुक्ति का वरदान मांगने के लिए भगवान शिव को खोज रहे थे , तो भगवान शिव इसी गुफा में ध्यानावस्था में रहे थे। इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शिव केदारनाथ जाते समय, इस गुफा में ध्यान के लिए रुके थे।
खुलने और बंद होने का समय
सर्दियों के समय मंदिर सुबह 07:00 बजे से शाम 06:00 बजे तक खुला रहता हैं और गर्मियों के समय सुबह 06:00 बजे से शाम 07:30 बजे तक खुला रहता हैं।
कैसे पहुंचें?
हवाई मार्ग द्वारा-कोटेश्वर महादेव मंदिर का तारामंडल एयरपोर्ट जोली ग्रांट है। यहां से पवित्र धाम की दूरी 160 किलोमीटर है जिसके लिए आप सड़क मार्ग से बस सेवा और यात्रा मार्ग से भी जा सकते हैं।
रेल मार्ग द्वारा-कोटेश्वर महादेव मंदिर से लगभग 189 किलोमीटर की दूरी पर ऋषिकेश रेलवे स्टेशन। यहां से आप टैक्सी या कैब ले कर आसानी से यहां पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग द्वारा-रुद्रप्रयाग सड़क मार्ग द्वारा अच्छे से बाकी सिटी से जुड़ा हुआ हैं। आप यहां बस या अपनी गाड़ी से आसानी से पहुंच सकते हैं।
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