लगातार दो वर्ष कोरोना काल की भेट चढ जाने के बाद मन बहुत ही व्यथित हो रहा था बच्चो की बार बार बाहर घुमने की जिद के आगे एवं मित्र ओम माखीजा के सहयोग से आखिर आज सुबह ग्यारह बजे श्री श्याम प्रभू की कृपा से मैं मेरे परिवार व मेरे दोस्त के परिवार के साथ गाड़़ी लेकर रवाना हो ही गये लेकिन गजब की बात यह भी थी घुमने की जगह और स्थान की कोई प्री प्लान व बुकिंग नहीं थी सबसे पहले लम्बे सफर पर जाना तो तय था दिक्कत यह थी कि नई गाड़ी के अब तक नम्बर प्लेट नहीं थी सो जाते वक्त गाड़ी की नम्बर प्लेट लगवाकर आगे का सफर शुरू करना था मेरे साथ पत्नी अनु बेटा बादल बेटी वर्षा मित्र ओम माखीजा भाभी जी उषा माखीजा बेटी कोमल, छवि और शरारती बेटा वंश उर्फ #टींगू और गांडी का संचालन पिछले पन्द्रह वर्षो से साथ निभा रहा हमारा फैमली मेंबर की तरह रहने वाला नोरंग मेहरा कर रहा था सफर शुरू हुआ श्री श्याम मन्दिर डी एम स्मार्ट स्कूल प्रांगण कलाना तहसील भादरा जिला हनुमानगढ राजस्थान से भादरा मित्र के परिवार को साथ लेने के बाद नोहर में गाड़ी की नम्बर प्लेट लगवाने के बाद रुख हुआ सिरसा हरियाणा की तरफ हरियाणा बॉर्डर क्रास करने के बाद पंजाब में प्रवेश कर गये बच्चो के पेट में चुहे कुदने शुरू हो गये फिर पंजाबी ढाबे पर गाड़ी के ब्रेक लगा दिये गये गरमा गरम पकोड़े व चाय से नई स्फूर्ती मिली और फिर चल पड़े बिना कोई मंजील के अगले पड़ाव की तरफ....... चलते चलते सुरज ढलने लगा और धुधली रोशनी को भी अंधेरे ने अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया सामने बोर्ड पर अमृतसर 21 किलोमीटर दिखने लगा भाभी जी उषा माखीजा की आस्था को ध्यान में रखते हुए अमृतसर हरमिंदर सहिब के दर्शन करने का निर्णय लिया गया गाड़ी पार्कीग करने के बाद सभी ने स्वर्ण मन्दिर की और कदम चला दिये मेरी यात्रा में स्वर्ण मन्दिर के दर्शन का यह पाँचवा अवसर था फिर भी हर बार कुछ नया आनंद शकुन यहा की धरा पर मिलता हैं और तबीयत खुश हो जाती हैं, साफ सुथरी और चोड़ी सड़के एक किलोमीटर पहले ही शुरू हो जाती हैं दोनो तरफ रेस्टोरेट होटल व यहां की सेवको की सेवा इस क्षेत्र को और भव्यता प्रदान करती हैं जुता घर में जुते रखने व हाथ पैर धोने के बाद मैन गेट से अंदर प्रवेश करते ही सामने स्वर्ण मंदिर व तालाब का विंहगम दृश्य दिमाग के सारे तनाव को क्षण भर में ही दूर कर देता हैं मैन गेट के अंदर की सिढिया उतरने के बाद सभी को एक नजर देखने के बाद पता चला कि बादल हमारे साथ नहीं हैं परिसर में भीड इतनी थी कि कदम से कदम चलने में भी दिक्कत हो रही थी चारो तरफ नजर दौडाने व दस मिनट के इंतजार के बाद भी बादल के न दिखने से घबराहट बढ़ने लगी और उसकी मम्मी की तो हालात और चेहरा मुरझाने लगा आखिर में यह निर्णय लिया गया कि कमरा नम्बर 50 में नाम लिखवाकर सेवको की मदद से लाऊड स्पीकर में अलाऊस करवाया जाये इतने में ही मेरे नम्बर पर एक नये नम्बर से कॉल आई सामने से बादल की आवाज थी जो बाहर मैन गेट पर ही था शोर्ट पहनने की वजह से सेवको ने उसको अंदर ही नही आने दिया सभी ने राहत की सांस ली हवेली रस्टोरेन्ट में भोजन करने के बाद दुर्ग्याना मंन्दिर विश्राम ग्रह में रात्रि विश्राम के लिए चल दिये दुसरे दिन की मंजिल के सपने के साथ नींद के आगोश में चले गये क्योकि सुबह फिर शुरू होने वाली थी एक शानदार रोमांच भरे सफर की शुरुआत
दिन भर के सफर की थकान व देर रात्रि तक गप्पे मारने के बाद सुबह दुर्ग्याना माता मंदिर की आरती के साथ शरीर ने भी करवट ली और ऑख खुल गई नित्यक्रम के बाद फिर से तैयार थे अगले सफरनामा की तरफ..........
अमृतसर में गुरुद्वारो मे वाहे गुरू के पाठ का जाप की गूँज सुहानी सुबह को और आंनद से अभिभुत कर रही थी
अगर परिवार सहित कुछ पल फुर्सत के क्षण गुजारने हैं तो अमृतसर एक अच्छा स्थान हैं जहाँ आपको स्वर्ण मंन्दिर के अलावा अटारी वाघा बॉर्डर, जॉलीयावाला बाग, दुर्ग्याना मंदिर एवं लाजवाब पंजाबी खाने का आंनद ले सकते हैं अच्छे बजट होटल से लेकर फाईव स्टार होटल रिसोर्टस उपलब्ध हैं अगर कम खर्चे में काम चलाना हैं तो साफ सुथरे यात्रि निवास स्थान भी उपलब्ध हैं जिसमें बाबा दीपसिंह निवास सराय व दुर्ग्याना यात्रि निवास स्थान कि सुविधा किसी थ्री स्टार प्रोपटी से कम नहीं हैं लेकिन अगर किश्मत अच्छी हैं या यहां के बारे में कोई विशेष जानकारी रखते हो तो ही रूम मिलने की सम्भावना रहती हैं ।
चलते चलते कुछ ही देर में पठानकोट रोड़ पर रावी नदी के किनारे एक पंजाबी ढाबे में फिर पनीर व आलू पंराठे गरमागर्म पकौडे कचोरी समोसे के साथ चाय की चुस्की का जायका सफर को ओर शानदार बना रहा था ।
कुछ ही देर में जम्मू कश्मीर के बार्डर पर थे ट्रको और गाडियों की लाइन लगी भीड़ थी यहां पता चला कि कोरोना निगेटिव रिपोर्ट के बाद पास बनवा कर ही आगे का सफर कर सकते हैं हम ज्यादा झंझट नहीं लेना चाहते थे तो फिर हमने वहां से दुसरी तरफ हिमाचल बार्डर क्रास कर डलहौजी जाने का निर्णय लिया हमारे सफर में मजे की बात यह होती हैं पहले किसी को पता नहीं होता हैं कि अगला पड़ाव कहां का होगा हमारे ड्राईवर साहब को यह कुछ अजीब भी लग रहा था । लेकिन जाने से पहले जिस रोड पर होते हैं वहां के आसपास के सभी स्थलो कि विशेष जानकारी मैं जुटा लेता हूँ ऐसा कह सकते हैं मेरे अलावा किसी को पता नहीं होता कि जाना कहां हैं
रोड़ के दोनो तरफ की हरियाली आम पापड़े बेचने वाले दुकानदार एवं सामने से हिमालय श्रृखला के नजारे मन को खुश करने का काम कर रहे थे
अंर्धागिनि का आज चोथ माता का उपवास होने के कारण नाश्ते में कुछ ना लेना सबको अखर रहा था सड़क किनारे से केले का गुच्छा लेकर मैडम को दिया गया गांडी की चढ़ाई बता रही थी कि हम अपने मुकाम की और जल्द ही पहुँच जायेगे
पहाड़ो में सफर का रोमांच ही बेहद शानदार होता हैं दोनो तरफ हरे भरे पहाड़ो की चोटिया विभिन्न पेड पौधो को देखकर ही दिल खुश होने लगता हैं जब आप सफर कर रहे हो तो सिर्फ अपने मन पर काबू रखकर व्यवसाय की चिंता छोड़कर अपनी आँखो को वही देखने दो जो आपको असली शकुन प्रदान करे। ध्यान रहे सफर का आंनद आप तब ही ले सकते हो जब आप बेफ्रिक होंगे वरना आप अपने दिमाग के साथ साथ दुसरो का भी मूड खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ोगे ।
डलहौजी से पहले बनीखेत से ही ठण्डी हवा की महक आनी शुरू हो जाती हैं जल्दी ही हम डलहौजी में थे
किसी भी हिलस्टेशन पर जाने का मजा दुगुना हो जाता हैं अगर आपको होटल रूम वहां कि माल रोड़ बाजार के आस पास मिल जाता हैं बस वही हमने किया गाँधी चौक बाजार के सटे होटल में रूम मिल गये गाड़ी पार्किंग करने के बाद हम निकल पड़े ठण्डी हवाओं के झोंके के साथ माल रोड़ पर चटपटे चाट आइसक्रीम एवं कोल्ड कोफी के साथ अनेक व्यंजनो का स्वाद कभी ना भूलने वाला , सड़कों के उतार चढाव के साथ पैदल चलना जैसे जन्नत की सैर हो रही हो बस यहां रहना ही अपने आप में एक शानदार अनुभूति प्रदान करने वाले क्षण होते हैं देर रात्रि तक घुमना फिरना स्टालो पर माथा पच्ची करने में जो खुशी होती कभी न भूलने वाली होती हैं
आने वाले परसो 29 जून को बेटे बादल का जन्म दिन हैं उससे वादे के अनुसार ही इस ट्रिप की योजना बनाई गई थी जो बस हम बाप बेटे को ही पता था कि आगे क्या होने वाला हैं उसकी पंसद की ब्लेक ड्रेस की खरीददारी के बाद हम होटल रूम मे आराम फरमाने के लिए चल दिये ।
देर रात तक घुमने फिरने के बाद सुबह उठने पर दिल से यहां से जाने का मन ही नहीं कर रहा था क्योंकि यहां का वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य मंत्रमुग्ध कर देने वाला था लेकिन आगे के पड़ाव इससे ही शानदार सुन्दर होने के सपने को लेकर हम निकल पडे घुमावदार सड़को से होते हुए और हम पहुँच गये भारत के स्विट्जरलैंड खज्जियार में देवदार और चीड़ के पेड़ों से घिरा हुआ और पीछे की तरफ बर्फ से ढका हुआ हिमालय और एक खुला मैदान आपको विदेश में होने जैसा अनुभव देगा। दोस्तों और परिवार के साथ पिकनिक मनाने का ये एक बहुत ही अच्छा स्थान है। मुख्य डलहौजी शहर से इसकी दूरी लगभग 20 किमी है यहां साऊथ इण्डियन व भारतीय व्यंजनो की भरमार थी हरे भरे मैदान को देखते हुए ब्रेकफास्ट करना वाकई मजेदार था दो तीन घंटे की मस्ती के बाद हम चल पडे वापिस उसी रास्ते की तरफ रास्ते में काला टोप की तरफ जाने वाला रूट भी यहीं से हैं अगर आपको एडवेंचर व जगलों में घुमना जंगली जानवरो को देखना पंसद हैं और आपको जल्दी नहीं हैं तो ही यहां जाये, कच्चे रास्ते से जंगल में से गाड़ी लेकर जाना अपने आप में एक शानदार अनुभव होगा बीच में जंगल में रुककर गाड़ी एक तरफ पार्क कर आप जंगली जानवरो व प्रकृति के बारे में नजदीक से जान सकते हो ।
हमारे गुप्र को यहां कोई ज्यादा मजा नहीं आया क्योंकि शायद मेरे अलावा एंडवेचर को ज्यादा पंसद नहीं करना एक कारण रहा मेरे मित्र का मन बस यहां से जल्दी भर गया और अब वो ट्रीप को खत्म कर यहीं से वापसी जाने का मन बनाने लगा। शायद हमारा ड्राईवर भी यहां की सड़को से तंग आ चुका था और और लग रहा था कि उसको घर की याद सताने लगी हैं वो भी मित्र ओम जी को इशारे इशारे में घर की तरफ रुख करने के लिए उत्साहित करने लग गया
मेरा तो मूड जैसे खराब होने लगा क्योकिं बादल का आने वाले कल को जन्म दिन हैं उस दिन कुछ नया करना था । कैम्पीग ट्रेकिंग राफ्टिंग इत्यादि के सपने बादल के थे जिसकी हमने प्लानिंग की थी डेन कुण्ड में ट्रेकिंग और कैपिग की व्यवस्था भी हैं डेन कुण्ड का रूट भी इसी सड़क से निकलता हैं लगभग दोपहर के तीन बजे थे डेन कुण्ड वाली सडक पर काम चल रहा था जो चार बजे बाद खुलने वाली थी मेरे मन में अलग ही खिचड़ी पकने लगी मैने सोचा इनको यहाँ से और आगे दूर ले जाकर ज्यादा दूरी बढ़ाई जाये मेरे मन में साच पास दर्रा घुमने लगा मैंने कहां अब यहां से निकलो चमेरा लेक रूट होते हुए घर को चलते हैं डेन कुण्ड में न जाना बादल को अखर रहा था और उसके चेहरे से लग रहा था कि उसका भी मूड खराब हो रहा था चमेरा लेक में कुछ खास नहीं था रूखे मन से बच्चो को बोटिंग करवाई और उसके बाद मैनें मेरा पैतरा फेंकना शुरू किया जो सही साबित हुआ बफ्रीली पड़ाड़ी चटानो का नाम सुनकर बच्चे भी उत्साहित होने लगे ड्राईवर नोरग व मित्र ओम जी को मानसिक तौर पर आगे की यात्रा साच पास तक करने के लिए तैयार किया जिसमें अपनी महती भुमिका निभाई उषा माखीजा ने । कोमल छवि व वर्षा भी बर्फ से लदे पहाड, सड़के,बहते झरने व बर्फीले मैदान पर मस्ती का नाम सुनकर खुशी से झूम उठी और आगे की यात्रा के राजा ये सब बच्चे हो गये और आखिर हो भी क्यों न हो उनकी खुशी के लिए ही तो आये थे ।
सफर का मजा तब ही होता हैं जब गुप्र के सब लोगो की एक राय हो जो बहुत ही कठिन होती हैं
अकेले घूमना बहुत आसान होता है। आपको अपने मन के मुताबिक चीजें करने की छूट होती है। लेकिन जब आप परिवार और बच्चों के साथ ट्रेवल कर रहे हों तो अक्सर आपको उन सबकी पसंद और नापसंद को भी ध्यान में रखकर ट्रिप प्लान करनी होती है। खासतौर से यदि आप बच्चों के साथ घूमने जाने का प्लान बना रहे हैं तो आपको और भी ज्यादा सोच समझकर ऐसी जगहों को लिस्ट में जोड़ना होता है। जहाँ बच्चे बोर भी ना हों और उन्हें सीखने के लिए भी नई चीजें मिलती रहें। हर राज्य में कुछ जगहें होती हैं जो बच्चों की फेवरेट होती हैं।
अब सफर शुरू हुआ साच पास के लिए पाँच बजे के आस पास हम चमेरा लेक से निकले थे चलते चलते अधेरा होने लगा आगे का रास्ता खतरनाक होता जा रहा था एक तरफ टूटे फूटे खिसकने वाले से पहाड व दुसरी तरफ इतनी गहरी खाई की देखते ही चक्कर आने लगे अंधेरा बढता जा रहा था रात्रि का समय सड़क इतनी संकड़ी की अगर दुसरी गाड़ी सामने से आ जाये तो साईड देना भी मुशिकल हो रहा था कई जगह तो बस एक ही गाड़ी निकल सकती थी खतरनाक मोड़ दूर दूर तक होटल रेस्टोरेंट का नामो निशान नहीं अब ड्राईवर नोरंग के हौसले पस्त होने लगे आगे सड़क पर थोड़ी रोशनी दिखाई दी शायद एक छोटी सी दुकान थी सड़क किनारे गाड़ी रोककर जानकारी जुटाई पता चला कि आगे बीस किलोमीटर बाद चिल्ली या तीसा में ठहरने की व्यवस्था हो सकती हैं या फिर एक सडक स्पेशल सात किलोमीटर एक गाँव में जा रही थी वहां होम स्टे हैं वहां रुक सकते हो सुबह सात किलोमीटर वापिस यहां तक आना पड़ेगा मललब 14 किलोमीटर चलना सिर्फ रूकने के लिए मैने ड्राईवर को दोनो आप्सन बताये थोड़ी हिम्मत बधाई हौसला दिया फिर आगे की तरफ बीस किलोमीटर चलकर रुकने का निर्णय लिया जैसे तैसे मुशिकल से थके हारे रात्रि दस बजे तीसा के आर के होटल में पहुँचे गनिमत रहा कि रूम मिल गये लेकिन लाकडाऊन के बाद खुलने के कारण अब एक ही लड़का काम करने वाला था उसने बताया कि चावल दाल ही मिल सकते हैं रात्रि भोजन किया और कल बादल के जन्मदिन के लिए कुछ विशेष करने के सपने के साथ रात्रि विश्राम करने के लिए चले गये ।
आज यात्रा का चौथा दिन था बर्फीले पहाड़ी मैदान को बिलकुल नजदीक से छुकर एवं वहां खेलकर अपने अरमान पूरे करने का समय कुछ ही देर बाद आने वाला था
सुबह उठते ही बादल को बर्थ डे विस किया और नित्यकर्म से फारिक होकर निकल पड़े अगली मंजील की तरफ तीसा से पच्चीस किलोमीटर बैरागढ हैं वहां तक सिंगल टूटी फूट्टी सड़क तो हैं लेकिन रास्ता खतरनाक हैं बैरागढ सात सौ लोगो की आबादी का एक छोटा सा गाँव हैं इक्की दुक्की दुकाने होटल व होमस्टे हैं लेकिन अभी तक कोई विशेष डवलप नही हुआ हैं ध्यान रहे कि बैरागढ के बाद लगभग तीस पत्तीस किलोमीटर तक का सफर सांच पास का हैं जहां सिर्फ पथरीला रास्ता हैं सड़क नहीं हैं हमने सबसे पहले लंच किया होटल में रूम बुक करवाये और हमारी गाड़ी पार्किग कर दुसरी लोकल गाडी वहां कि चार हजार रुपयें में किराये पर ली बताया जाता हैं कि दुनिया के सबसे खतरनाक एव डरावने रास्तो में से एक रास्ता सांच पास का हैं यहां के लोगो से कई घटनाओ दुर्घटनाओ की जानकारी मिली कई गाड़िया बाईक पहाड़ियो की खाई में खिसकने की भी जानकारी मिली
अगर आप यहां कि यात्रा कर रहे हो तो बड़ी ही सावधानी पुर्वक गाड़ी चलाने की जरूरत होगी थोड़ी सी लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती हैं । एक बात और कि बैरागढ के बाद साँच पास तक कोई अन्य गाँव नही हैं कोई होटल रेस्टोरेंट कुछ भी नही हैं बस दो जगह चाय और मैगी चना की छोटी छोटी दुकाने हैं ।
बैरागढ से बाहर निकलते ही चैक पोस्ट पर सभी का आधार नम्बर नोट करवाया जाकर सभी की फोटोग्राफी होती हैं आगे जाने वाली गाडी को सिरीयल नम्बर मिलते है ।
अब हमारा रोमांच भरा सफर शुरू होता हैं कुछ देर बाद ही रास्ते के दोनो तरफ बर्फीली चट्टाने आने लगी जैसे जैसे गाड़ी आगे जा रही थी शानदार छोटे बडे बहते झरने आने लगे बच्चे खुशी के मारे चिल्ला उठे गाड़ी को एक तरफ खडी कर झरनो का आंनद लिया गया ऊपर सामने पूरे के पूरे सफेद बर्फ से भरे पहाड़ नजर आ रहे थे थोड़े आगे चलने के बाद रास्ते के दोनो साईड में सिर्फ बर्फ दिखाई देने लगी वह भी पाँच सात फिट से शुरू होकर बीस बीस फूट तक बर्फ नजर आने लगी बहुत ही शानदार कभी ना भूलने वाला सफर बन रहा था अरे यह क्या अब तो चारो तरफ बस सफेद बर्फ ही बर्फ नजर आने लगी कहते हैं ना डर के आगे जीत हैं वहीं हुआ खतरनाक डरावने रास्ते के बाद ऐसा लग रहा था कि किसी जन्नत की सैर कर रहे हैं काली माता मन्दिर के पास गाड़ी पार्किंग कर सब नीचे उतरने लगे अरे यहां तो सर्दी से दाँत गिड़गिड़ाने लगे बच्चो ने अपने ऊनी वस्त्र धारण किये गरमागर्म चाय मैगी व चने मिल रहे थे सबने चाय चने लिए जो बहुत ही टेस्टी लगे बच्चो ने अपने गेम खेलने शुरू कर फोटोग्राफी करनी शुरू कर दी
अब बारी थी बादल के बर्थ डे सेलीब्रेट करने की अरे ये क्या हम केक तो लाना ही भूल गये बैरागढ के बाद तो आगे कुछ मिलता ही नहीं तभी कोमल छवि व भाभी जी उषा माखीजा ने चाय वाली से दो प्लेट ली और वही से साफ बर्फ डाली हमारी गाड़ी से चोकोबार वाले बिस्कट लिये और तैयार हो गया केक
बादल खुशी से झूम उठा मैने भी राहत की सांस ली कि आखिर बादल से किया वादा जो पूरा होने वाला था
14500 फिट ऊंचाई पर बादल ने अपना जन्म दिन बर्फ से बने केक को काटकर मनाया वहीं बर्फीले मैदान में बादल को सभी ने शुभकामनाएं दी एक बार फिर चाय चना मैगी की पार्टी हुई
जब तक कड़कड़ाती बर्फीली हवाओ के झोंको से दिल नहीं भरा बच्चे खेलते रहे अब हम सब मानसिक रूप से सफर का अन्तिम दिन मानकर घर पर चलने को तैयार थे ।
अगर आप इन स्थानो पर चार-पाँच दिन की यात्रा करना चाहते तो अमृतसर पठानकोट से शुरू होकर डलहोजी खज्जियार कालाटोप डेनकुण्ड पंचफूला चमेरा लेक इत्यादि जगहो पर आंनद ले सकते हो मेरी किसी भी प्रकार की सहायता के लिए सुबह नो बजे से दस बजे तक इस नम्बर पर 9829414935 कॉल कर सकते हो ।