मां पूर्णागिरि का मंदिर, 108 शक्तिपीठों में से एक है।यह समुद्र तल से 3000 मीटर ऊंचाई पर , हिमालय की पर्वत श्रेणियों के मध्य,अन्नपूर्णा शिखर पर उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित है। चंपावत के टनकपुर क्षेत्र में ,स्थित इस मंदिर में लाखों श्रद्धालु ,पूरे भारतवर्ष से दर्शन करने को आते हैं ।यहां पर माता सती की नाभि गिरी थी। इसलिए यह स्थान मां पूर्णागिरि कहलाया।
राजा दक्ष प्रजापति अपनी पुत्री माता पार्वती ( सती) के पति भगवान महादेव के अपमान के विरोध में राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ कुंड में माता पार्वती ने स्वयं कूदकर प्राण आहुति दे दी। इसको देख कर भगवान शिव क्रोधित हो गए। और माता पार्वती के पार्थिव शरीर को लेकर पूरे भु- मंडल के चक्कर काटने लगे। महादेव का क्रोध शांत करने के लिए, भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता पार्वती के पार्थिव शरीर के 64 टुकड़े कर दिया। माता सती के पार्थिव शरीर के 64 टुकड़े भूमंडल पर जहां-जहां गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाया।
इस स्थान पर माता सती की नाभि गिरी थी।इसलिए यह स्थान, मां पूर्णागिरि धाम कहलाया।
मां पूर्णागिरि धाम 52 शक्तिपीठों में से एक है। शक्तिपीठ के दर्शन को लाखों श्रद्धालु वर्ष भर आते रहते हैं। नवरात्रि के समय, यहां पर दर्शन करने हेतु श्रद्धालुओं की अत्यधिक भीड़ रहती है। नवरात्रि के समय चैत माह में यहां पर मेले का समय रहता है। यह मेला 3 माह तक चलता है तथा जगह जगह पर विशाल भंडारे का आयोजन भी होता रहता है। मेले में सभी तरह के सामानों की दुकान सजी रहती हैं। उत्तराखंड सरकार अपनी पूरी ताकत के साथ यहां पर आने वाले तीर्थ यात्रियों व श्रद्धालुओं की देख- रेख व मेले की व्यवस्था सुरक्षा व्यवस्था के लिए 24 घंटा तैयार रहती है। चारों ओर पर्वत शिखर व प्राकृतिक की हरी-भरी वादियों के बीच यह स्थल अत्यधिक मनमोहन लगता है। मंदिर से ही पड़ोसी देश नेपाल दिखता है यह मंदिर भारत- नेपाल के बॉर्डर पर है।
पूर्णागिरि माता मंदिर में माता का नाभि स्थल पत्थर से ढका हुआ रहता है, तथा दूसरा छोर शारदा नदी की ओर गया हुआ है । यहां का नजारा अद्भुत ,प्राकृतिक, आकर्षणों से हरि- भरि वादियो से परिपूर्ण है। विख्यात पूर्णागिरि माता दरबार में भक्तों का आना- जाना लगा रहता है।
नवरात्रों में लाखों भक्त अपनी - अपनी मनोकामना लेकर आते हैं। माता पूर्णागिरि हिमालय की पर्वत श्रेणियों की अन्नपूर्णा शिखर की चोटी पर बैठी हुई है। चोटी पर से देखने पर टनकपुर क्षेत्र रात्रि समय में ऐसा लगता है , मानों एक बड़ी थाल में ढेर सारे टिमटिमाते दीपक जल रहे हो।इस नजारे को देखकर मन पुलकित हो जाता है। इस मंदिर से ही नेपाल का नजारा देखने को मिलता है । यहां से नेपाल के गांव दिखते हैं। यहां पर प्रकृति के कई रूप देखने को मिलते हैं। मंदिर के चारों ओर गहरी- गहरी खाईयों को देखकर शरीर के रोए खड़े हो जाते हैं। मंदिर का रास्ता अत्यधिक रोमांचकारी है। नेपाल इसके बगल में हैं। नेपाल से बह कर आती काली नदी, भारत में आकर शारदा नदी कहलाती है । यह नदी मां पूर्णागिरि के पर्वत के तलहटी से होकर गुजरती है। नदी का विहंगम दृश्य पहाड़ों पत्थरों से टकराती हुई नदी के जल की गर्जना को सुनकर मन रोमांचित हो उठता। नदी का तेज पानी का बहाव ,ऐसा लगता है, जैसे शारदा नदी माता पूर्णागिरि के चरणों को धोने के लिए व्याकुल हो रही है।
पूर्णागिरि माता का दरबार टनकपुर स्टेशन से 21 किलोमीटर की दूरी पर है। टनकपुर से ठूलीगाड तक 17 किलोमीटर का रास्ता वाहन द्वारा जाया जाता है। उत्तराखंड के रोडवेज बस जीप व प्राइवेट वाहन उपलब्ध है। उसके आगे 5 किलोमीटर का रास्ता जिस पर निर्माण कार्य चल रहा है। यहां पैदल ही जाया जाता। इस पैदल यात्रा पर अनेक प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलता हैं। इस यात्रा का अंतिम पड़ाव स्थान है, जिसे टुन्यास कहते हैं। पौराणिक कथानुसार टुन्यास वह स्थान है। कुपित ऋषि के श्राप से मुक्ति होने के लिए भगवान शिव के परामर्श अनुसार जिस स्थान पर इंद्र देवता ने यज्ञ किया था। यह स्थान इंद्र भवन व टुन्यास कहलाता हैं। यह स्थान इस यात्रा का अंतिम पड़ाव है। यहां से 3 किलोमीटर का पैदल ऊंची चढ़ाई का चट्टानी सीढ़ियों का रास्ता है। 3 किलोमीटर का यह मार्ग भैरव चट्टी मंदिर से शुरू होती है। मंदिर तक इस रास्ते के दोनों ओर प्रसाद की दुकान व धर्मशाला बने हुए हैं। इन धर्मशाला में ठहरने व नहाने धोने की व गर्म पानी की पूर्ण व्यवस्था होती है । जिसका कोई पैसा नहीं देना होता है। सिर्फ यहां से प्रसाद खरीदना होता है। और साथ ही अन्य सामानों की दुकानें सजी रहती हैं।
माता पूर्णागिरी के दर्शन के उपरांत भक्त अपने सारे कष्टों को भूल जाता है। अपने शरीर में अद्भुत ऊर्जा का संचार महसूस करता है।
माता पूर्णागिरी के दर्शन के उपरांत श्रद्धालु पड़ोसी देश नेपाल में टनकपुर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिद्धनाथ मंदिर में सिद्धनाथ बाबा के दर्शन करने को जाते हैं। ऐसा मानना है कि माता पूर्णागिरि के दर्शन के उपरांत बाबा सिद्ध नाथ के दर्शन करना जरूरी है नहीं तो माता पूर्णागिरी के दर्शन यात्रा पूर्ण नहीं होती है।
इसके साथ ही टनकपुर में स्थित शारदा नदी के किनारे शारदा घाट पर श्रद्धालुओं - दर्शनार्थी यहां पर स्नान करते हैं। जिससे सारे कष्टों को दूर हो जाते हैं। और साथ ही यहां पर वाटर राफ्टिंग कभी आनंद लेते हैं ।
कैसे पहुंचे---
टनकपुर शहर , ब्रांड गेज रेलवे से कनेक्ट है। टनकपुर रेलवे स्टेशन के लिए दिल्ली से, लखनऊ से, बरेली से सीधी ट्रेन है। यहां पर ट्रेन से आराम से पहुंचा जा सकता है। टनकपुर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 21 किलोमीटर है।
हवाई हवाई मार्ग--
मां पूर्णागिरि दरबार का निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर जिसकी दूरी 120 किलोमीटर है।
सड़क मार्ग--
टनकपुर शहर उत्तराखंड राज्य के टनकपुर पिथौरागढ़ राज्य मार्ग से जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग द्वारा यहां पर आसानी से पहुंचा जा सकता है।
रुकने की व्यवस्था---वैसे तो पूर्णागिरी मंदिर के आसपास अनेकों धर्मशाला बने हुए हैं ।जहां पर सारी सुविधाएं उपलब्ध है इसके अलावा टनकपुर में अनेकों होटल व रेस्टोरेंट है । तथा सस्ते धर्मशाला भी हैं।
टनकपुर एक अच्छा शहर है ।यहां पर सारी सुविधाएं उपलब्ध है। यहां दर्शन हेतु किसी समय आ जाया जा सकता है। वर्षा ऋतु में यहां का मौसम बड़ा सुहावना होता है। लेकिन बारिश व भूस्खलन का डर बना रहता। यहां
का प्राकृतिक की हरी-भरी वादियों और पहाड़ों नजारा खूबसूरत है।
। जय माता दी।