दोस्तों के साथ मस्ती करनी है तो बनाओ कर्नाटक के कश्मीर, ‘कुर्ग’ यात्रा का प्लान

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Photo of दोस्तों के साथ मस्ती करनी है तो बनाओ कर्नाटक के कश्मीर, ‘कुर्ग’ यात्रा का प्लान by Musafir Rishabh

खूबसूरत घाटियाँ, रहस्मयी पहाड़ियाँ, कॉफी के विशाल बागान, तेज रफ्तार में बहती संगीतमय नदियाँ, बुलंद चोटियाँ, इन सबके साथ आसमान से बरसता नूर और खूबसूरत बना देता है। ये सब जहाँ होगा वो जन्नत ही होगी। इन सब आभूषणों को लिए बैठा है कर्नाटक का कुर्ग। हरे-भरे पेड़-पौधों की चादर में लिपटी कुर्ग की पहाड़ियाँ खूबसूरती का एक आईना है। इस आइने को देखने के लिए दूर-दूर से टूरिस्ट आते हैं। प्रकृति यहाँ सबके लिए ओपन थियेटर के रूप में है, चाहे जहाँ चले जाओ सुंदरता आपको चारों तरफ मिलेगी। इन दिनों कुर्ग बेहद हसीन हो जाता है, जिसे देखकर आप रोमांच से भर जाएँगे।

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वैसे तो कुर्ग हर मौसम में आकर्षक लगता है, लेकिन बारिश पसंद लोगों के लिए ये जगह जन्नत से कम नहीं है। सर्दियों में भी ये जगह खूबसूरत ही होती है शायद इसलिए मौसम के साथ इस जगहों की उपमायें बदलती रहती हैं। कभी इसे ‘स्काॅटलैंड ऑफ इंडिया’ कहते हैं तो कभी ‘कर्नाटक का कश्मीर’। आज उसी हसीन लगने वाले कुर्ग के सफर पर चलते हैं।

तल कावेरी

कुर्ग, कर्नाटक के दक्षिण-पश्चिम भाग में पश्चिमी घाट के पास पहाड़ पर स्थित एक जिला है। जो समुद्र तल से लगभग 900 मीटर से 1715 मीटर की उँचाई पर बसा है, कुर्ग दक्षिण भारत के लोगों का फेमस वीकेंड गटअवे है। छोटे-से जिले कुर्ग में 3 इलाके हैं, मदीकेरी, सोमवारापेटे और वीराजापेटे। इसी कुर्ग में तल कावेरी से 45 कि.मी. की दूरी पर है। माना जाता है कि ब्रम्हगिरी पर्वतों की घाटी में एक ऋषि तपस्या में लीन थे। तभी भगवान गणेश कौए के रूप में आए और कमंडल पर बैठ गए। ऋषि ने कौए को कमंडल से हटाने के लिए हाथ उठाया तो कौआ गायब हो गया और कमंडल से जल गिरने लगा। वहीं से कावेरी की धारा निकलने लगी।

कुछ इस तरह से पवित्र सप्त सिंधु नदियों में से एक मानी जाने वाली कावेरी का जन्म हुआ। आज भी उस जगह पर एक पवित्र कुंड बना हुआ है, कुंड से कुछ कि.मी. तक कावेरी धरती के नीचे बहती है। इस कुंड के किनारे अगस्तय मुनि, भगवान शिव और गणेश जी की मूर्ति हैं, जिनके दर्शन करने लोग दूर-दूर से आते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, मकर महीने के पहले दिन यहाँ बड़ी संख्या में लोग कावेरी के जन्मोत्सव मनाने तल कावेरी आते हैं। बारिश के मौसम में कावेरी नदी को एक फुव्वारे की तरह निकलते देखना कभी ना भूलने वाला अनुभव है।

एब्बी वाटरफाॅल

कुर्ग लगभग 8वीं शताब्दी में बसाया गया था। यहाँ सबसे पहले गंग वंश का शासन था। बाद में कुर्ग पांडव, चोल, कदंब और चालुक्य राजाओं की राजधानी बना। इस ऐतहासिक जगह पर कावेरी का बहाव इतना तेज़ है कि उसकी आवाज़ दूर-दूर तक सुनी जा सकती है। जब वो आवाज कानों में पड़ती है तो उस आवाज़ के आकर्षण में उस ओर खिंचे चले जाते हैं। वहीं एब्बी वाटरफाॅल भी है जिसे देखकर आप कुछ देर तक सब कुछ भूल जायेंगे। उसके कोलाहल में आपको सिर्फ सुकून ही मिलेगा और गिरता हुआ पानी किसी संगीत की तरह लगेगा। जंगलों के बीच से होकर इस वाटरफाॅल तक पहुँचा जा सकता है। लोगों के लिए यहाँ एक व्यू प्वाइंट भी बनाया गया है, जहाँ आप घंटों तक इस वाटरफाॅल की खूबसूरती में खो सकते हैं।

मोरों का नृत्य और हाथियों की चाल

कुर्ग को सिर्फ कावेरी नदी, झरने और जंगल ही खूबसूरत नहीं बनाता है, यहाँ के जानवर भी इसकी खूबसूरती को बढ़ाते हैं। कुर्ग की घाटियाँ भारत की कई विलुप्त होते पशुओं का घर भी है, इसलिये इन्हें राष्ट्रीय उद्यानों का दर्जा हासिल है। पुष्पगिरी, ब्रम्हगिरी, मधुमलाई, बंदीपुर और नागरहोले जैसे कुछ राष्ट्रीय उद्यान कुर्ग से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। यहाँ आप जंगल सफारी को भी एंजाॅय कर सकते हैं, यहाँ के गेस्ट हाउस में आप रात भी बिता सकते हैं। इन सबकी बुकिंग इन राष्टीय उद्यानों की वेबसाइट से की जा सकती है। यहाँ आप जंगली हाथी, बाघ, हिरण और भालू इन जंगलों में आराम से देखे जा सकते हैं।

बारिश के मौसम में इन जंगलों में मिट्टी की सोंधी खूशबू में आप खुद को प्रकृति के बीच पाएँगे। वहीं सर्दियों की नर्म धूप में जलाशयों के किनारे बैठे जानवरों के नजारों को देखना बेहद सुकून देता है। बारिश की शुरूआत में यहाँ मोर अपने खूबसूरत पंखों को फैलाकर नृत्य करते हैं। ये सभी नज़ारे इस सफर को बेहद खूबसूरत बना देते हैं। कुर्ग में ही स्थित दुब्बारे एलीफैंट कैंप में आप हाथियों को नहाते-खेलते देख सकते हैं। आप चाहें तो पानी में जाकर हाथियों को नहला भी सकते हैं, कावेरी नदी के किनारे हाथियों को टहलते देखना भी बेहद खूबसूरत है। बारिश के मौसम में कावेरी नदी को बोट द्वारा पार करके कैंप तक पहुँचा जा सकता है।

दक्षिण भारत का तिब्बत

तिब्बती शैली में बने रंगे-बिरंगे घर, स्वच्छ और सुंदर गलियाँ और आलीशान मंदिर से बौद्ध संतों से मंत्रों की आवाज़ सुनाई देती है। कर्नाटक के दिल की तरह कुर्ग जिले में बसा ‘मिनी-तिब्बत’ भूटान और नेपाल की गलियों-सा एहसास कराता है। उत्तर भारत में हिमाचल प्रदेश का धर्मशाला और दक्षिण भारत का ये बायलाकुप्पे तिब्बतियों की मुख्य बस्तियाँ हैं। धर्मशाला तिब्बतियों की संसदीय राजधानी है तो बायलाकुप्पे उनके शिक्षा का केन्द्र है। लद्दाख, धर्मशाला, शिमला और सिक्किम के बौद्ध मतानुयायी, बायलाकुप्पे में अपनी धार्मिक शिक्षा के लिए आते हैं। कर्नाटक के ज्यादातर शहरों में उत्तर व पूर्वी-भारत से आए लोग यहाँ ज्यादा दिखाई देते हैं। बायलाकुप्पे का शांत और आध्यात्मिक वातावरण आपके सफर की शुरूआत के लिए बेहतरीन अनुभव होगा। ये जगह मदिकेरी से 40 कि.मी. की दूरी पर है।

मंडलपट्टी जीप सफारी

कुर्ग से तकरीबन 20-25 कि.मी. दूर है, मंडलपट्टी। पुष्पगिरी के घने जंगल से गुजरकर पहाड़ों की समतल चोटियों पर स्थित मंडलपट्टी की ढलान सहसा लुभा लेती है। बारिश के मौसम में ताज़ा नहाये घास और हवा के झोंको के साथ झूमते जंगली फूलों से इस जगह की सुंदरता दोगुनी हो जाती है। बादलों में लिपटी इस घाटी में जीप की सफारी करना लगभग हर यात्री की लिस्ट में सबसे उपर रहता है। एब्बी वाटरफाॅल जाते हुए रास्ते में ही स्थित स्थानीय जीप यूनियन से आप जीप बुक कर सूर्यास्त तक इस सफारी का मज़ा ले सकते हैं।

कोडावा जनजाति

कुर्ग के ज्यादातर स्थानीय निवासी कोडावा जनजाति के हैं, इनका मूल स्थान कोडागु है। अंग्रेजों के आने के बाद कोडागु ‘कुर्ग’ के नाम से मशहूर हुआ। कोडागु के स्त्री-पुरुष मार्शल आर्ट में इतने निपुण होते हैं कि टीपू सुल्तान भी कभी कोडागु को जीत ना सका। इस जाति के चिन्ह की रचना बंदूक और ‘पेचे कट्टी’ और ‘ओद्डे कट्टी’ नामक दो तलवारों से की गई है। अंग्रेजों ने इस जाति के लोगों को आर्मी में भर्ती किया था और उन्हें विश्व युद्ध में भेजा। आजादी की लड़ाई में कोडावा अंग्रेजों पर भारी पड़े थे। दक्षिण की सबसे पुरानी कुर्ग बटालियन आज भी कोडावा परंपरा का पालन कर अपनी संस्कृति को संजोए हुए हैं।

कुर्ग के आसपास

कुर्ग से 74 कि.मी. दूर स्थित है कुक्के सुब्रमण्यम मंदिर कालसर्प दोष पूजा के लिए फेमस है। यहीं स्थित कुमार पर्वत पहाड़ी पर ट्रेक भी किया जा सकता है। इसे कर्नाटक का सबसे चुनौतीपूर्ण ट्रेक माना जाता है। इसके अलावा कुर्ग से 110 कि.मी. दूर है कासरगोड। यहाँ के बेकल किले से डूबते सूरज का नज़ारा बेहद मनमोहक है। दक्षिण भारत में कासरगोड भले ही बहुत फेमस हो, लेकिन भारत के अधिकतर लोग कासरगोड के खूबसूरत नज़ारों से अनजान हैं।

आप कुर्ग आएं तो कासरगाकी भी अपनी लिस्ट में शामिल कर सकते हैं। बेकल किला और कासरगोड के सुंदर बीच बड़े मनमोहक हैं। यहीं पास में ही कन्नूर भी है, जो कुर्ग से 112 किमी. दूर है। प्रकृति प्रेमी के साथ-साथ यदि आप डांस के शौकीन हैं तो कन्नूर आपके लिए जन्नत से कम नहीं है। नारियल के पेड़ों और चावल के खेतों के बीच एक कलाद्वीप में खूबसूरती भी है और सुकून भी। कुर्ग जाएँ तो इन जगहों पर जाना ना भूलें।

कुर्ग का लज़ीज़ स्वाद

कुर्ग अपनी खूबसूरती के लिए तो फेमस है ही, यहाँ के कुर्गी स्वाद का भी जवाब नहीं। कुर्ग में ताज़ा पकवान खाने के लिए मादिकेरी के इकलौते ‘कुर्गी’ रेस्टोरेंट में लंबी कतारें लगती है। विशिष्ट ग्रेवी से बना ‘कोडावा कोली करी’ यहाँ का खास पकवान है। स्थानीय मुर्गे को पिसे हुए हुए मसालों की चटनी में पकाया जाता है। इस करी में एक अलग ही दक्षिण और पहाड़ी स्वाद का आनंद आता है। यहाँ जंगली बांस से बनी ‘बैम्बू शूट करी’ भी काफी फेमस है। यहाँ का सबसे बढ़िया खाना ‘उडुपी गार्डन’ में मिलता है। कुर्ग में फलों के रस से वाइन बनाने की काफी पुरानी परंपरा है। सर्दियों में आप यहाँ घरों में भी वाइन बनते देख सकते हैं।

कुर्ग की काॅफी

आसमान छूते पेड़ों की छाँव में ‘बोंसाई पौधों’ के समान प्रतीत होते हैं ये काॅफी के पौधे। इन पर लगे चटकीले लाल रंग के मोतीरूपी फल दुनिया भर के प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करते हैं। यहाँ पेड़ों से लिपटकर रेंगती हुई काली मिर्च की बेलें और कोहरे में छिपे काॅफी के पौधे किसी रहस्यमय जंगल-सा आभास देता है। आप कुछ समय इस रहस्यमयी स्थान पर बिता सकते हैं। यहाँ इन बागानों में ‘होम स्टे’ या ‘काॅटेज’ बने हुए हैं, जहाँ ठहरकर आप ऐसे कई नजारों का आनंद ले सकते हैं। पौधे कटने के बाद भी ये काॅफी अपनी गुणवत्ता नहीं खोते हैं। दुकानों की काॅफी का स्वाद असली है या नहीं, इसे जानने के लिए आपको कुर्ग की काॅफी चख सकते हैं।

कैसे पहुँचे कुर्ग?

जून से फरवरी का समय कुर्ग की यात्रा के लिए सबसे बेस्ट माना जाता है। यहाँ कभी भी बारिश हो जाती है इसलिए साथ में छतरी रखना ना भूलें। कर्नाटक के मैसूर शहर से कुर्ग 117 कि.मी. दूर स्थित है। बस, कार, कैब और बाइक से कुर्ग के मुख्य शहर मदिकेरी तक पहुँचा जा सकता है। यहाँ का नज़दीकी एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन मैसूर और बेंगलुरु में स्थित है।

तो आप इस मॉनसून में कुर्ग का टिकट कटा लें। और अपनी यात्रा का अनुभव Tripoto के साथ बाँटना मत भूलना!