सिक्किम यात्रा : छंगू झील (Tsomgo Lake) और बाबा हरभजन सिंह मन्दिर
गंगटोक से बाबा हरभजन सिंह मन्दिर की दूरी लगभग 60 किलोमीटर और छंगू झील (Tsomgo Lake) बीच में ही लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर हैं | छंगू झील (Tsomgo Lake) से बाबा हरभजन सिंह मन्दिर लगभग 18 – 20 किलोमीटर दूर है | बाबा हरभजन सिंह मन्दिर तक पहुँचने में लगभग 4 घंटे का समय तो लगता ही है और ये समय असल में इस बात पर निर्भर करता है कि आपने कितने पड़ाव लिए और हर पड़ाव पर कितना समय बिताया | अगर आपके पास समय हो तो मैं सलाह दूँगा कि एक दिन पूर्व परमिट बनवा लें और जितनी सुबह निकाल पाएं वो अच्छा होगा | आप 5400 -5500 फीट की ऊंचाई से सीधे 14000 फीट की चढाई करने वाले हैं, इसलिए रास्ते में पड़ने वाले झरने, बर्फ और चाय हर पड़ाव पर रुकें और थोड़ा समय बिताएँ | इससे पहाड़ों की ऊंचाई पर होने वाले सिकनेस जैसे चक्कर आना, ठीक से श्वांस नहीं ले पाना, उबकाई और उल्टियाँ जैसी परिस्थितियों का सामना न करना पड़ें या इसका कम असर पड़े |
ऊँचे-पहाड़ों, गहरे घाटियों को हम तेजी से पार कर रहे थे | जैसे-जैसे हमारी गाड़ी आगे बढ़ रही थी, पहाड़ों और घाटियों का सौन्दर्य नवयौवना की यौवन की तरह बढ़ता जा रहा था | आश्चर्यचकित करते ऊँचे पर्वत, दिल की धड़कन बन्द कर देने वाले घाटियों की अथाह गहराई | कभी बिल्कुल चमचमाते सूर्यदेव की तपिस, तो कभी अचानक से अगले मोड़ पर स्वागत करते बादलों का अथाह समुन्द्र | इन ऊँचे पहाड़ों पर, दिखने वाले सेना के कैंप में हमारी सुरक्षा में लगे जवानों का जीवन कितना कठिन होता होगा, ये विचार मन में बार–बार आ रहा था और मन अनायास ही उनकी सेवा भावना और देशभक्ति के जज्बे को नमन कर रहा था | हमें पुरे रास्ते आबादी नाम की ही मिली, पर हमारी रक्षक पुरे रास्ते तैनात मिले | रास्ते में एक जगह कुछ दुकानों सा था, जहाँ हमारी गाड़ी रुकी | ड्राईवर ने बताया कुछ खाना-पीना हो तो यही खा लो आगे कुछ नहीं मिलेगा और साथ में बर्फ में जाना है तो जैकेट और बूट ले लें तो अच्छा है वरना कपड़ों के साथ जूते गीले हो जायेंगे | बर्फ में जाना हो तो सुनकर कुछ आश्चर्य हुआ, नाथुला तो हम जा नहीं रहे और फिर भी बर्फ की बात इस मौसम में, जब मई का अंतिम दिन है | मैंने बर्फ के बारे में और जानकारी के लिए ड्राईवर से पूछा तो बताया कि एक जगह पर बर्फ है, लोग वहीँ मस्ती करते हैं | ड्राईवर महोदय तो पेट पूजा करने चले गए, फिर हम भी ऊपर बने रेस्तरां में चले आए | ये एक छोटा सा रेस्तरां और जैकेट-बूट भाड़े पर देने वाली दुकान थी | लेकिन साथ ही शराब की फुल रेंज की लॉट भी करीने से सजी थी | हम ऊपर आये तो पता चला खाने में सिर्फ मैगी बन सकती है बाकी चिकन हैं पर राईस बनने में समय लगेगा, आर्डर देकर चले जाएं तो आने पर चिकन और राईस मिल सकती है | हम ठहरे घास-फूस खाने वाले, हमारे साथ सिर्फ श्रीमतीजी की बहनजी का कुनबा ही चिकन-मटन वाले थे, बाके के सारे लोग शुद्ध शाकाहारी | कोई भी वहाँ खाने को तैयार नहीं हुआ और मुझे अभी भुख नहीं लगी थी | खाने का कार्यक्रम तो कैंसिल हो गया, अगर मैगी ही खानी है तो वापस आकर देखा जाएगा | वैसे मुझे खाने–पीने में इतना कुछ परहेज नहीं हैं, शाकाहारी होने के बाद भी कहीं भी खा लेता, पर यहाँ तो खाने को कुछ था ही नहीं | थोड़ी झिझक तो होती ही है, पर घुमक्कडी ने इतना तो लचीला तो बना ही दिया, जब कोई अन्य रास्ता न हो तो पेट कि क्षुधा मिटाने के लिए इतना तो करना ही पड़ेगा | वहाँ गुनगुना पानी उपलब्ध था, सबने दो-दो ग्लास गुनगुना पानी गटक लिया |
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