3 दोस्त, मुसलाधार बारिश और त्रियुंड पर ट्रेकिंग: मॉनसून का एक खतरनाक सफर

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मुंबई और आनंद में एक थका देने वाले इंटर्नशिप के बाद तीन MBA स्टूडेंट्स – शिखा, रमणा और कंज (मैं) ने तय किया कि कसोल की एक चिल ट्रिप पर जाते हैं। रमणा ने चेन्नई में अपने घर वालों को झूठ बोला कि वो महाबलेश्वर जा रहा है, शिखा ने मेरठ में अपने घर वालों को बोला कि वो अपने सहेलियों के पास दिल्ली जा रही है और मैंने किसी को कुछ नहीं बोला।

मेरे हर आकस्मिक प्लान की तरह मैंने उनको धर्मशाला की बस लेने के लिए मना लिया। प्लान तो था कसोल जाने का, पर क्योंकि कसोल जाने वाली बस 3 घंटे बाद जाने वाली थी, हमने सोचा कि जो बस उसी वक़्त निकल रही हो उसी में बैठ जाते हैं।

अगली सुबह हम धर्मशाला में थे। हमें तुरंत एक शेयर कैब मिल गयी जिसने हमें मैक्लोडगंज तक पहुँचा दिया। जो अगली चीज़ हमें करनी थी वो था एक ढंग का होटल ढूँढना। हम आस-पास घूमे, थोड़ा माल फूँका और होटल देखने लगे। कई होटल ने हमें मना कर दिया क्योंकि उनके पास जगह नहीं थी। हम गर्मी की छुट्टी के बीच पहुँचे थे और पर्यटकों ने होटल एडवांस में बुक कर रखे थे। हमें कुछ खाली होटल मिले पर वो बहुत महँगे थे। थकहारकर हमें एक थोड़ी अजीब जगह ठीक-ठाक रेट पर मिला, जितना हमें देने में कोई आपत्ति नहीं थी पर वो जगह उस लायक तो नहीं थी।

हमने दुबारा माल फूँका और नींद की आगोश में चले गए। हम शाम को उठे, भक्षुनाग, मोनेस्ट्री और बाज़ार के आस-पास घूमे, बहुत सारा खाना खाया और सो गए।

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अगली सुबह हमें त्रिउंड ट्रेक पर जाना था । चेक-आउट के समय जब हमें वहाँ कोई दिखाई नहीं दिया तो हमने सोचा की जो ₹400 बकाया थे उसे बिना चुकाए ही निकल चलते हैं लेकिन आखिर में बदमाशी छोड़ हमने वो पैसे देना ही बेहतर समझा। मैं तो जल्दी ट्रेक शुरू करना चाहता था पर शिखा और रमणा को कई और काम करने थे। रमणा ने कश्मीरी गेट के बाहर के बाज़ार से सस्ते स्पोर्ट्स शूज ख़रीदे थे जो एक दिन चलने के बाद ही फट गए थे, उसे उन जूतों की मरम्मत करानी थी जिसके बाद हमने त्रिउंड की तरफ रुख किया।

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हम अभी कुछ दूर और चले ही थे कि रमणा को याद आया कि हमारे पास जॉइंट बनाने के लिए सिगरेट्स नहीं हैं। तो फिर वो वापस गया, हमने जॉइंट फूँका और तब जाके ट्रेक की शुरुआत की।

हम अपनी अजीब कपड़ों और सामान के साथ ट्रेक करने लगे। शिखा ने हैंड बैग रखा हुआ था और सफ़ेद रंग के शॉर्ट्स पहने हुए थे; मेरे पास एक बड़ा सा रकसैक और एक भारी कैमरा बैग था और रमणा नशे में था। हमें अभी आधा घंटा ट्रेक करते हुए ही हुआ था कि बारिश शुरू हो गयी। गनीमत थी कि हमने बाज़ार से ये पतले प्लास्टिक के रैनकोट खरीद रखे थे। हमने उन्हें पहन लिया और आगे बढ़ चले।

जब तक हम गल्लू देवी मंदिर पहुँचे तब तक बारिश थोड़ी धीमी हो गयी थी। ट्रेकिंग करने वाले अधिकतर लोग यहाँ तक कार से आते हैं और फिर पैदल चलना चालू करते हैं। पर हमने अपनी कीमती एनर्जी इस 1.5 कि.मी. के रास्ते पर ज़ाया कर दी थी। पर हम खुश थे कि बारिश रुक गयी थी और हम आसानी से ट्रेक कर सकते थे। हमारे दोस्तों के अनुसार हमें इस यात्रा पर 3 घंटे लगते।

पर जैसे हमने ट्रेक करना चालू किया मूसलाधार बारिश शुरू हो गयी। हमारे मुँह से निकला, "अब तो बस ओलों की कमी रह गयी है"। और भगवान ने हमारी बात सुन ली। थोड़ी ही देर में बड़े-बड़े ओलों की बौछार शुरू हो गयी जो सीधे हमारे सर और चेहरे पर पड़ रहे थे। हमारे लिए ट्रेक करना बहुत मुश्किल हो गया था पर चुनौत्तियों से लड़ने के लिए हम तैयार थे। 25 मिनट तक प्रकृति से लड़ते हुए हम आगे बढ़ते गए। हमें कुछ लोग मिले जिनसे हमने पूछा कि कितनी दूरी रह गयी है। उन्होंने हमें बताया कि कुछ 5 कि.मी. और रह गए हैं। बारिश में भीग कर हमारा सामान और भारी भी हो गया था और हमारे लिए चलना और भी मुश्क़िल हो गया था। पर हम बिना रुके और 20 मिनट तक चलते रहे। हमें कुछ और लोग आते मिले, हमने उनसे पूछा कि कितना चलना और बाकी रह गया है, उनका जवाब था 5 किलोमीटर और।

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हमें गुस्सा आने लगा – क्या हमने इतनी देर में कोई दूरी तय नहीं की? पर फिर हमने अंदाज़ा लगाया कि लोगों को दूरी का पता नहीं होगा और वो हमें अपने अंदाज़े से जो मन सो बोल रहे होंगे।प र हमने और 15 मिनट चलने के बाद किसी से पूछा तो फिर हमें वही जवाब मिला कि 5 और किलोमीटर बचे थे। बारिश पिछले डेढ़ घंटे से नहीं रुकी थी पर हम किसी तरह बीच रास्ते के एक मशहूर ढ़ाबे पर पहुँच चुके थे। यहाँ हमें दो लड़के मिले जो इसी बारिश में ऊपर चढ़ रहे थे पर हमसे ज़्यादा तैयारी के साथ।

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शिखा को पहली नज़र में ही उनमें से एक लड़का पसंद आ गया जिसको उसका दोस्त चौधरी नाम से बुला रहा था। वो दुखी हो गयी कि प्लास्टिक के पीले रेनकोट में पूरी तरह से भीगी हुई वो उबले अंडे की तरह लग रही थी और वो लड़का उसको फूहड़ समझ के उसको दया भारी नज़रों से देख रहा था। मैगी खा कर कुछ देर आराम करने के बाद हमने ट्रेक चालू किया। अब जा कर बारिश थमी, पर रास्ता फिसलन से भरा हुआ था। इतनी मशक्कतों का सामना करते हुए हमने सिर्फ़ थोड़ी ही दूरी तय की थी और बहुत लम्बा रास्ता बाक़ी था।

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शिखा थक चुकी थी। छोटे-छोटे क़दमों से चलते हुए वो पीछे रह जा रही थी। बीच में रुक कर वो थोड़ा रोती और चीखती और हमें कोसती। हमने 1 बजे ट्रेक करना शुरू किया था और अब तक 6 बज चुके थे। अँधेरा होने से पहले हमें ऊपर पहुँचना था। अंत में गायों के नीचे आते हुए एक झुण्ड से बच कर हम त्रिउंड तक पहुँच ही गए।

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हम तीनों को ही वॉशरूम जाना था। पर वहाँ आस-पास कोई वॉशरूम नहीं था। जब तक मैं झाड़ियों में लघु-शंका से निपट कर वापस आया तब तक रमणा ने एक टेंट कर लिया था। हम टेंट में घुसे और अपना सारा सामान चेक किया। सब कुछ गीला था और हमारे पास बदलने के लिए सूखे कपड़े नहीं थे। वहाँ खाने के लिए सिर्फ़ मैगी थी और हमने जीवन में पहली बार 3 प्लेट मैग्गी के लिए ₹350 दिए। पर हमें उसकी अत्यंत आवश्यकता भी थी।

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ठण्ड बढ़ती जा रही थी। हम डिनर करते ही अपने-अपने स्लीपिंग बैग में घुस गए। पर उन बैग्स से ठण्ड जा नहीं रही थी और हम ठिठुर रहे थे। हम खुद को गर्मी देने के लिए अलग-अलग उपाय सोच रहे थे।

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हमें लगा थी कि थकान के कारण हमें जल्दी नींद आ जाएगी, पर ऐसा हुआ नहीं। हमारे बगल में ही हरियाणा से मौज़ मनाते हुए लड़कों का टेंट था जिन्होंने ज़ोर-शोर से पंजाबी म्यूज़िक चला दिया था। 3 घंटे बाद ये रंगारंग कार्यक्रम समाप्त हुआ और हमें नींद आने लगी थी। पर अभी कुछ और चीज़ें भी बाक़ी थीं। कुछ जानवर हमारा टेंट हिला रहे थे। हमने सोचा कि ये गाय या भेड़ होंगे जिनको या तो हमारे टेंट को चबाने में मज़ा आ रहा है या फिर वो यहाँ ठण्ड से बचने के लिए बैठी होंगी।

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आख़िर सुबह हुई और धूप खिल गई। बारिश के कोई आसार नहीं थे। क्योंकि यहाँ कोई टॉयलेट नहीं थे हमने तय किया कि मैक्लोडगंज उतर के ही फ्रेश होंगे। हम सिर्फ़ 3 घंटों में नीचे उतर गए। हमें उम्मीद थी कि चौधरी शायद रास्ते में मिलेगा, पर वो हमें कहीं नज़र नहीं आया।

हमें मैक्लोडगंज में एक सीसीडी मिला जहाँ हम फ़्रेश हुए। दिल्ली के लिए बस लेने के पहले हम बाज़ार में घूम रहे थे कि तभी हमें हमारा क्लासमेट विनीत अपने परिवार के साथ वहाँ मिला और वो अपने त्रियुंड के अच्छे एक्सपीरियंस के बारे में बताने लगा। हुँह!

शिखा, रमणा और मैंने उसके बाद कई ट्रिप्स लिए हैं और हर जगह ही बारिश हुई है चाहे वो दिऊ हो या कसोल या नवसारी। पर जब भी मैं शिखा को बोलता हूँ कि एक आसान छोटा सा ट्रेक होगा तो वो मना कर देती है।

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