ये समाज की रूढ़िवादी परिभाषा के बिल्कुल उलट हैं। ये बेबाकी से अपने मन की बात कहती हैं, जो दिल में आता है वो करती हैं और उन्हें बेढ़ियों में कैद करने वालों को सबक भी सिखाती हैं। ये सुंदर, बुद्धिमान और आज़ाद हैं। ये हर जगह हैं और खुद अपनी किस्मत लिखती हैं। ये हैं आज की महिलाएँ।
आज की महिलाओं का ऐसा ही बेजोड़ उदाहरण हैं सुनीता डुगर, परनीत संधु और नीता जेगन, जिन्होंने कन्याकुमारी से कश्मीर की 5000 कि.मी. की यात्रा कर अपने हौसले को दुनिया के लिए प्रेरणा बना दिया है।
ये तीनों ही अलग-अलग बैकग्राउंड से आती हैं, सुनीता एक आंत्रप्रेन्यर और फोटोग्राफर हैं, नीता सर्विस कंपनी रीगस में मैनेजर हैं और परनीत एक अमेरिकी कंपनी में काम करती है। इन तीनों की नौकरी और क्षेत्र भले ही अलग हो लेकिन यात्रा का जुनून और कुछ कर गुज़रने के जस्बे ने इन्हें ऐसा जोड़ा कि ये वो काम कर गई जो बेहद कम लोग कर पाए हैं।
मिशन 'कन्याकुमारी से कश्मीर'
उन्होंने पिछले साल 8 अगस्त को कन्याकुमारी से अपनी यात्रा शुरू की। सुनीता बताती है कि उन्होंने हर दिन कम से कम 800 कि.मी. की दूरी तय करने का फैसला किया और उस पर अमल किया। इस टारगेट सेट के साथ यात्रा करने वाली इन 'ट्रैवलिंग डीवाज़' के पास आराम या एंटरटेनमेंट के लिए रुकने के नाम पर बस फोटोग्राफी का ही वक्त था।
अगले पाँच दिनों में, कन्याकुमारी का साफ नीला आसमान कर्नाटक में और हरे रंग की नज़ारों में बदल गया और धीरे-धीरे, आंध्र प्रदेश में ये सीनरी हरी- भूरी हो गई। और फिर दक्षिण भारत से गुज़रते हुए वो उत्तर की ओर बढ़ चले।
सुनीता बताती हैं कि जैसे ही ये तिगड़ी दिल्ली पहुँची, आसमान कहीं नज़र नहीं आ रहा था क्योंकि उस पर तो प्रदूषण की काली-सलेटी चादर चढ़ गई थी। पंजाब पहुँचने के बाद ही, आसमान साफ हुआ और रास्ते के दोनों तरफ सरसों और गन्ने के खेत लहलहाने लगे। और फिर आया सबसे खूबसूरत नज़ारा- हरियाली और रंगो से भरी कश्मीर की घाटी का।
कन्याकुमारी से कश्मीर का ये मिशन आज़ादी के एक दिन पहले ही श्रीनगर में पूरा हुआ।
राह में मुश्किलें भी थी
5000 कि.मी के इस सफर में इस तिगड़ी ने कई मुश्किलों का सामना भी किया जैसे कार खराब होने पर रास्ते में फंस जाना, झांसी के डकैती के लिए कुख्यात रास्ते से गुज़रना, चंबल में जेब में रिवॉल्वर लिए लोगों के बीच लंच करना, श्रीनगर में 24 घंटे बना फोन कनेक्टिविटी के होना। लेकिन इन सब अनुभवों के बावजूद वो फिर से इस यात्रा को खुशी से दोहराने के लिए तैयार हैं।
ऐसा इसिलए कि उन्होंने ये ट्रिप किसी जोश में आकर झट-पट नहीं बनाई थी बल्कि सोच-समझकर कई महीनों तक तैयारी कर इस यात्रा पर निकली थीं। इस प्लानिंग की शुरु दरअसल तब हुई जब इस तिगड़ी ने रोशनी शर्मा के बारे में जाना, जो अकेले बाइक पर कन्याकुमारी से लेह का सफर करने वाली पहली भारतीय महिला राइडर हैं।
भारत के दक्षिण से उत्तर के शानदार सफर के बाद अब इस तिगड़ी का अगला मिशन है पूर्व से पश्चिम की दूरी को मापने का। सुनिता बताती हैं कि वो भी किसी के लिए रोशनी शर्मा बनना चाहती हैं। वो ये संदेश फैलाना चाहती हैं कि अच्छी तरह तैयारी के साथ, महिलाओं के लिए भारत में ट्रैवल करना सुरक्षित है।
ये ट्रैवलिंग डीवाज़ Tripoto पर मौजूद हैं। यहाँ क्लिक कर उनकी यात्राओं के अनोखे किस्सों से जुड़ें।
अगर आप भी ऐसी साहसी और बिंदास महिलाओं को जानती हैं तो उनकी कहानी Tripoto पर लिखकर मुसाफिरों के समुदाय के साथ साझा करें।
ये आर्टिकल अनुवादित है। ओरिजनल आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।