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हवामहल देख कर वापस बाहर आये। दोपहर के साढ़े तीन बज रहे थे। जयपुर में सर्दी का नामोनिशान नहीं था। बैग भर गरम कपडे बेकार ही लाद कर लाये।
अब हमें थोड़ी खरीदारी करनी थी - बंधेज के सूट और राजस्थानी साड़ियाँ लेनी थीं। पर हम बापू बाजार या जौहरी बाजार नहीं जाना चाहते थे। वहां बहुत जबरदस्त मोलभाव होता है और ख़ास तौर पर अगर कोई पर्यटक हो तो कहना ही क्या । हमलोग ऐसी जगह से खरीदारी करना चाहते थे जहाँ स्थानीय लोग शॉपिंग के लिए जाते हों। इसलिए मैनें अपने स्थानीय मित्र महेश गौर जी को फ़ोन लगाया और इस बारे में उनसे सलाह मांगी। वो बोले कि पहले वो अपने घर से सलाह ले लें। फिर हमें बताएँगे। बात भी सही थी!!
जब तक उनकी सलाह आती हम सामने बाजार के बरामदे में टहलते रहे। सभी दुकानें बाहर से एक ही रंग में थीं। हल्का गुलाबी रंग !!
थोड़ा आगे बढे तो सामने रामचंद्र कुल्फी वालों की दुकान दिखी। दुकान पर ग्राहकों की बहुत भीड़ थी। मेनू देखा तो बहुत से शेक्स, कुल्फियां और फालूदा। इतने ऑप्शन देख कर वैसे ही कन्फ्यूजन हो गया। ऊपर से ऐसे मौसम में ठंडा खाने के नुक्सान भी थे। एक नजर बच्चों की तरफ देखा तो वो दोनों पूरे आग्रह से हमारी तरफ ही देख रहे थे। चलिए !! कल तो रात में कुल्फी खायी थी, अब तो फिर भी दोपहर ही है। ये सोच कर काउंटर पर गए। दो मलाई कुल्फी और एक अन्नानास शेक का टोकन लिया। पहले शेक लिया जो बहुत ही ठंडा था। टेस्ट बढ़िया था। भरपूर गर्मी में और भी अच्छा लगता। फिर कुल्फियाँ लीं। चलते चलते खाते रहे और त्रिपोलिआ की तरफ बढ़ते रहे।
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