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अब तक आपने पढ़ा कि जोधपुर पहुँच हमने मेहरानगढ़ किला देखा, जनता स्वीट्स और जोधपुर स्वीट्स पर प्याज की कचौड़ियां खाईं, चंद्र विलास से नमकीन खरीदी और नेशनल हैंडलूम के नयी सड़क स्थित शोरूम से राजस्थानी कपडे खरीदे। अब आगे पढ़िए। अभी दिन के 4 ही बजे थे। हम लोग होटल से 11 बजे के आसपास ही निकले थे। ज्यादा थकान नहीं थी। बेटा जरूर एक दो दफा झपकी ले चुका था। नेशनल हैंडलूम से निकले और मार्किट में घूमते रहे। रास्ते में चाय वाला मिला तो इलायची वाली चाय पी।
पुराने जोधपुर में चतुर्भुज रमेशचंद्र जी की मिठाई की दुकान बड़ी मशहूर है। इनके बनाये गुलाबजामुन बड़े ही स्वादिष्ट होते हैं। एक बार विपुल जी के ऑफिस में ये गुलाबजामुन खाये थे। लेकिन कभी इस दुकान पर जाने का अवसर नहीं मिला था। आज हम उसी तरफ थे। गूगल बाबा से पूछा तो पता चला कि ये दुकान हम से लगभग 1200 मीटर की दूरी पर है। रास्ता टेढ़ी मेढ़ी गलियों से हो कर था। लेकिन हमें कोई दिक्कत नहीं थी। इसलिए पैदल ही चल पड़े। ऐसे फोन पर तो यह दूरी काफी कम लग रही थी लेकिन जब चलने लगे तो रास्ता वाकई लम्बा लगा। हमारे पास नमकीन भी थी, शॉपिंग का सामान भी था और गोद में बेटा भी था। फिर भी बात करते करते और पुरानी शैली के घर व हवेलियां देखते हुए हम चतुर्भुज मिठाई की दुकान पर पहुँच ही गए।
ये एक छोटी से दुकान है। एक छोटा सा शोकेस लगा था। कुछ कारीगर जमीन पर बैठ कर मिठाई पैक कर रहे थे। आधा किलो और एक किलो के डब्बे में गुलाब जामुन पैक किये जा रहे थे। दुकान के मालिक शोकेस के साथ ही जमीन पर बैठे थे और ग्राहकों को अटेंड कर रहे थे। झाँक कर शोकेस में देखा तो सिर्फ 3 ही मिठाइयां थीं। एक तो हलके भूरे रंग के गुलाबजामुन थे जो थाल में करीने से लगे थे। एक शायद दिल्ली में मिलने वाले मिल्क केक (ये अलवर के कलाकंद से बिलकुल अलग होता है) जैसा कुछ था। तीसरी चीज भी सफ़ेद रंग की थी और बड़े ही बेढंगे आकर में थी। साथ ही साथ गुलाबजामुन से भरे 5-6 थाल दुकान में और रखे थे।
जब भीड़ कुछ काम हुई तो हमने दुकान के मालिक से पूछताछ शुरू की। पता लगा कि दूसरी मिठाई का नाम छेना बर्फी है और ये वही मिल्क केक जैसा ही था। तीसरी मिठाई का नाम मिश्री गुंजा था। गुंजा यानि गुंजिया का भाई। ध्यान से देखा तो अब इसका आकार कुछ कुछ गुंजिया जैसा लगा भी। तीनों की कीमत लगभग 400 रुपये किलो। हमने तो सिर्फ टेस्ट करना था तो 2 पीस गुलाब जामुन और एक मिश्री गुंजा ले लिया। दाम हुआ 40 रुपये कुल। गुलाब जामुन खाया तो वही पुराना स्वाद था। गुलाब जामुन इतने नरम थे कि दांत लगाने की कोई जरूरत ही नहीं थी - न तो काटने में और न ही चबाने में। चाशनी बिलकुल कम थी। और मीठा तो सिर्फ इतना था कि डाइटिंग करने वाले व्यक्ति भी इसे खाएं तो उन्हें भी मीठा खा लेने के बाद कोई आत्मग्लानि न हो। यानि की पूरे 10/10 नंबर। इसके बाद मिश्री गूँजे की बारी थी। यह खोवे से बना था। इसे बीच से तोडा तो देखा कि अंदर ढेर सी मिश्री भरी थी। साथ ही केसर और इलायची की शानदार सुगंध थी। मिश्री का रंग केसर की वजह से हल्का पीला हो गया था। इसका स्वाद भी गजब का था। ऊपर का खोवा बिलकुल ताजा और नरम था। मिश्री की कुर्कुराहट नरम खोवे की एकरसता को तोड़ रही थी। इलायची का बढ़िया फ्लेवर था। और सबसे ऊपर केसर की खुशबु और स्वाद था। नंबर इसके भी पूरे 10 रहे। हालाँकि मिश्री की वजह से मीठा थोड़ा ज्यादा था।
इतनी दूर चल कर आना सफल हो गया। हम लोग ये दोनों मिठाई पैक करा कर दिल्ली ले जाना चाहते थे लेकिन हमारी वापसी की ट्रेन में समय था । जब दिल्ली ले ही जानी है तो फिर ताज़ी मिठाई ही ले जायेंगे। ऐसा सोच हमने आज मिठाई पैक नहीं कराई। दुकान वालों को घंटाघर का रास्ता पूछा तो उन्हों दूसरी तरफ से एक रास्ता बता दिया।
वहां से चले तो एक दुसरे ही बाजार में आ पहुंचे। मसाले, अनाज, पूजा सामग्री, मेवे और भी बहुत कुछ। पूरे बाजार में बहुत ही चहल पहल थी। हमें 2 - 3 दुकानों में गए और विंडो शॉपिंग की। मेरा मन राजस्थान की मशहूर मथानिआ मिर्ची लेने का था। नए जोधपुर में कई बार पता किया लेकिन असली मथानिआ मिर्च कभी नहीं मिल पायी। आज हम पुराने बाजार में थे इसलिए यहाँ तो मिल ही जानी थीं। मथानिआ मिर्च जोधपुर के पास स्थित मथानिआ गाँव में पैदा होती हैं। ये मिर्च खाने को चटक लाल रंग और एक निराला ही स्वाद व फ्लेवर देती हैं। इनका तीखापन एकदम महसूस नहीं होता। यानि कि मथानिआ मिर्च अपने देश का प्रीमियम उत्पाद है। हालाँकि इसे कश्मीरी लाल मिर्च जितना प्रचार नहीं मिला है।
हमने पता किया तो एक दुकान पर पर साबुत और पिसी हुई, दोनों ही तरह की मिर्चें उपलब्ध थीं। कीमत थी 160 रुपये किलो। आधा किलो पिसी हुई मथानिआ मिर्च ले ली गयी। एक और टास्क पूरा हुआ।
इसके बाद हम घूमते घूमते घंटाघर आ पहुंचे। शाम हो चुकी थी और पूरे बाजार में बेहद भीड़ थी। बेटा थक तो गया था लेकिन उसका मन भी पूरा लगा हुआ था। घंटाघर पहुँच विंडो शॉपिंग जारी रही। वहां से वापस निकले तो बायीं तरफ एक लस्सी की दुकान थी। नाम था श्री मिश्री लाल। कुछ लोग प्लास्टिक के गिलास में गाढ़ी केसरिया रंग की लस्सी पी रहे थे। पी क्या रहे थे चम्मच से खा रहे थे। हम पहले ही इतना मीठा खा चुके थे कि कुछ और मीठा खाने का मन नहीं था। इसलिए वहां से वापस नयी सड़क की तरफ बढ़ चले।
तभी दाएं तरफ शाही समोसा का बोर्ड देखा। सड़क पार कर उधर गए तो एक काफी बड़ी मिठाई की दुकान थी। उनको पूछा तो बताया कि ये उनका काफी प्रसिद्द समोसा है। इसमें आलू मसाले के साथ काजू किशमिश आदि मेवे भी होते हैं। मैंने श्रीमती जी की तरफ देखा तो उनकी न थी। और दिन भर तला हुआ खाने के बाद मैं भी ये समोसा नहीं खाना चाहता था। इसलिए अभी के लिए समोसे का प्रोग्राम कैंसिल कर हम बाहर आ गए।
अब यहाँ से वापस होटल जाने का ही प्लान था। दिन भर से घूम रहे थे और थकान होने लगी थी। तभी शाही समोसा के बिलकुल साथ दही बड़े की दुकान देखी। अरोरा चाट भंडार। काफी भीड़ भी लगी थी। उनको पूछा कि आपके यहाँ से सिर्फ एक चीज खानी हो तो वो क्या होनी चाहिए। जवाब मिला - दही गुंजा । एक और गुंजा!!!..... । चलिए ये भी ट्राई कर ही लेते हैं। एक प्लेट ले लिया गया। दही गूंजा यानि दही बड़ा था। बिलकुल सॉफ्ट। बढ़िया मसाले और चटपटी चटनियाँ। ऐसा मत समझिये कि हमने इतना मीठा पहले खा लिया था इसलिए ये दही बड़ा अच्छा लगा। ये वाकई बहुत ही बढ़िया था। कीमत शायद 50 रुपये प्लेट थी।
यहाँ से चले तो सीधा ऑटो में बैठे और होटल पहुँच गए। दिन भर चलते रहे इसलिए थकान होनी ही थी। फ्रेश हो आराम करने लगे और बेटा तो सो भी गया। 9 बजे बेटे को उठाया और खाने का पूछा तो भाईसाहब बोले कि भूख लगी है। सही भी था ...
ये सब भागाभागी में बच्चे का खाना ठीक से हो ही नहीं पाता। भाई साहब को पूछा कि क्या खाओगे तो बोले कि बाहर चलेंगे। यानि हमसे ज्यादा बेटे को घूमने में मजा आ रहा था।
खैर!! मैंने ऑप्शन देखे तो बिलकुल पास ही जिप्सी रेस्टोरेंट था लेकिन जिप्सी जाने का मन नहीं था। जिप्सी एक थाली वाला रेस्टोरेंट है और अब हम थाली खाने के न तो मूड में थे न ही हालत में।
दूसरा ऑप्शन हरी वेदा'स था। C रोड पर मान्यवर के ठीक ऊपर दूसरी मंजिल पर यह रेस्टोरेंट था। हमारे होटल से पैदल भी 10 मिनट ही लगने थे। हम लोग तैयार हुए और 9:30 तक वहां पहुँच भी गए। रेस्टोरेंट का अम्बिएंस अच्छा था। भीड़ काफी थी लेकिन सर्विसेज काफी फ़ास्ट थीं। हमने एक सूप और दाल रोटी आर्डर की। 10 मिनट में सूप आया और पीछे पीछे दाल रोटी भी आ गयीं। बेटे को खाना बहुत पसंद आया तो उसने भर पेट खाया। अच्छा ही हुआ कि हम आलस छोड़ खाना खाने बाहर आ गए। वर्ना एक बार तो मेरा मन था कि होटल की रूम सर्विस से ही कुछ मंगा कर खा लें। खाना खा और बिल दे कर नीचे आये। मान्यवर के बिलकुल साथ ही एक जूस की दुकान थी। वहां फ्रेश फ्रूट जूस का एक गिलास लिया और तीनों ने पिया।
इसके बाद टहलते टहलते होटल आये। एक फोन विपुल जी को किया और उनको उनके इनपुट्स के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने अगले दिन के लिए कुछ और सुझाव दिए। उसके बाद दिल्ली में घर पर फ़ोन किया तो बेटा अपने पूरे दिन की स्टोरी अपने दादा दादी को सुनाता रहा।
आज का पूरा दिन बहुत अच्छा बीता था। मैं इस से पहले लगभग 50 बार जोधपुर आ चुका था लेकिन फिर भी इस शहर में इतना नहीं घूम पाया था। वाकई इस सुन्दर शहर में एक्स्प्लोर करने के लिए बहुत कुछ है।
कल के प्रोग्राम की उत्सुकता लिए हम लोग सो गए। आखिर कल का शेडूल और भी बढ़िया रहने वाला था.........
नोट : कुछ फोटो इंटरनेट से ली गयीं हैं।