देखते ही देखते लेह लद्दाख का पूरा इलाक़ा भारतीय मुसाफिरों का पसंदीदा पर्यटन स्थल बन गया है| लेकिन गर्मी के मौसम का ये लोकप्रिय भ्रमण स्थल सैलानियों के दिल की धड़कन बनने से पहले एक संवेदनशील सीमा क्षेत्र है जो भारतीय सेना द्वारा पूरे साल भारी संरक्षण मे रखा जाता है | और इन्ही सब कारणों की वजह से भारतीय रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बीच एक गठबंधन हुआ है | इस गठबंधन का मुख्य उद्देश्य है बिलासपुर से मंडी तक के रेल पथ का निर्माण करना |
आईए इस भीमकाय रेल परियोजना के बारे में कुछ दिलचस्प जानकारी लें:
केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने 27 जून 2019 को बिलासपुर-मंडी-लेह को जोड़ने वाली न्यू ब्रॉड गेज लाइन का शिलान्यास किया | यह रेल परियोजना भारत के दूरदराज के हिस्सों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने की ओर चल रहे प्रयासों में एक और कदम है |
हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के हिमालय क्षेत्र के विकास की ओर यह एक प्रगतिशील प्रयास है | ये रेल लाइन मंडी, कुल्लू, मनाली, कीलोंग और दोनों राज्यों के अन्य महत्वपूर्ण शहरों को आपस मे जोड़ देगी | लेह की ओर जाता ये रेलमार्ग मंडी मे कांगड़ा घाटी रेलवे से भी जुड़ा होगा |
भारतीय रेलवे द्वारा बनाई जाने वाली यह ब्रॉड गेज लाइन चुनौतीपूर्ण एवं रोमांचक इलाकों और क्षेत्रों से गुज़रेगी | यह प्रस्तावित लेह रेल मार्ग भारत की कुछ प्रमुख पर्वत शृंखलाओं जैसे शिवालिक, हिमालय और जांस्कर शृंखलाओं से होकर जाएगा | इन शृंखलाओं की ऊँचाई छह सौ मीटर से लेकर तरेपन सौ मीटर तक भी पहुँच जाती है | यह रेल मार्ग कई ऐसे क्षेत्रों से भी गुज़रेगा जिन्हें भूकंप के दृष्टिकोण से संवेदनशील घोषित किया हुआ है | इसलिए इन रास्तों पर कई सुरंगें, सेतु मार्गों और पुलों के निर्माण की आवश्यकता होगी |
अनुमान लगाया गया है कि इस बिलासपुर-मंडी-लेह रेल मार्ग मे लगने वाला खर्च करीब 157.77 करोड़ रुपये होगा और इस पूरे रूट का सर्वेक्षण करने का काम रेलवे लोक सेवा उपक्रम के अन्तर्गत आरआईटीईएस लिमिटेड (रेल इंडिया तकनीकी और आर्थिक सेवा) को सौंपा गया है | इस रेल मार्ग के सर्वेक्षण पर होने वाले खर्च को रक्षा मंत्रालय द्वारा उठाया जाएगा | अनुमान लगाया जा रहा है कि इस रेल मार्ग का सर्वेक्षण साल 2019 तक पूरा हो जाएगा |
इस रेल मार्ग का निर्माण होने से सीमावर्ती क्षेत्रों में आवाजाही करना काफ़ी सुखद और आसान हो जाएगा | और ये भारत सरकार द्वारा सीमा को भारत के मुख्य भागों से जोड़ने के प्रयासों का ही एक हिस्सा है | पिछले साल 2016 में भारत सरकार और चीन की सरकार ने मिलकर वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के आस पास 74 से भी ज़्यादा सड़क मार्गों का निर्माण किया है | आने वाले दशक में इसी तरह के चुनौतीपूर्ण रास्तों पर कई रेल मार्ग बनने की पहल को देखा जाएगा | वर्तमान समय मे इन रेलमार्गों को पूरा करने के काम को प्राथमिकता दी जा रही है- बिलासपुर-मनाली-लेह (498 किलो मीटर), भूटान-अरुणाचल सीमा से लग कर मिसामरी-तेंगा-तवांग (378 किलो मीटर) , असम-अरुणाचल सीमा के साथ उत्तर लखीमपुर-बमे-सिलपाथार (24 9 किलो मीटर) , असम-अरुणाचल सीमा के साथ मुरकोन्सेलेक-पासीघाट-तेज़ू-रूपाई (227 किलो मीटर)।
रक्षा नीति के पहलू से देखा जाए तो लेह रेल मार्ग बनने का महत्व तो है ही, साथ ही इसके बनने से इस पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था मे भी ज़बरदस्त सुधार होगा | आज की बात की जाए तो लेह को जोड़ने वाली सड़क साल के सिर्फ़ चार से पाँच महीने ही खुली रहती है | साल की बाकी महीनों मे लेह पहुँच पाना संभव नही होता क्यूंकी सड़कमार्ग बर्फ की वजह से अवरुद्ध होता है | मंडी से होती हुई लेह को जाने वाली इस रेल लाइन के बनने से साल के बारहों महीने ही लेह में सैलानियों और व्यापारियों की आवाजाही बनी रहेगी जो इस क्षेत्र की कायापलट कर सकता है |
एक बार इस 489 किलो मीटर लंबे लेह तक जाने वाले रेल मार्ग का निर्माण कार्य पूरा हो जाए तो फिर दिल्ली से लेह जाने मे लगने वाला समय घटकर दो दिन से भी कम हो जाएगा |
बिलासपुर-मंडी-लेह रेल मार्ग बनते ही इसे दुनिया का सबसे ऊँचा रेल मार्ग होने का गौरव प्राप्त हो जाएगा जिसका रिकॉर्ड फिलहाल चीन के क्विंघाई-तिब्बत रेल मार्ग के पास है |
17,583 फीट की ऊँचाई पर इसी लेह रेल मार्ग पर बनने वाले टैगलंग ला स्टेशन को दुनिया का सबसे ऊँचा रेलवे स्टेशन होने का गौरव प्राप्त होगा | वर्तमान मे यह रिकॉर्ड 16,686 फीट पर स्थित चीन के तांगगुला रेलवे स्टेशन के पास है |
भारत के दूर दराज और कम विकसित क्षेत्रों को बेहतर पहुँच प्रदान करने की पहल भारत सरकार ने रक्षा मंत्रालय और भारतीय रेलवे के साथ लेकर की है | ऐसे मे हमें भारत का नागरिक होने के नाते इस पहल का सम्मान करना चाहिए |
वर्तमान मे लेह दुनिया का सबसे ऊँचा स्थान है जहाँ भर-भर कर कचरा डाला जाता है | यहाँ की सुंदरता और शांति का अनुभव करने हर साल खूब सारे सैलानी आते है | 2016 में करीब 2,20,000 लोग लद्दाख गए थे | ये तादात यहाँ के उपलब्ध संसाधनों को मद्देनज़र रखते हुए काफ़ी ज़्यादा है और इससे यहाँ के प्राकृतिक स्वरूप पर ज़बरदस्त मार भी पड़ी है |
लेकिन अगर हम सभी घूमने के शौकीन लोग यहाँ के पर्यावरण के प्रति अपनी अपनी ज़िम्मेदारी उठाने को तैयार हो जाए तो सैलानियों की संख्या कोई ज़्यादा बड़ा मुद्दा नहीं है | अगर हम सभी लोग जो इस खूबसूरत जगह से प्यार करते हैं, अपनी अपनी घूमने की आदतें पर्यावरण के संरक्षण के अनुकूल ढाल लें तो आने वाले समय मे किसी प्रकार की कोई समस्या नही आएगी | पर्यावरण के अनुकूल घूने के तरीकों की हमने एक मार्गदर्शक पुस्तिका बनाई है | पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें |