अनुभव

Tripoto
23rd Jun 2022
Day 1

जुलाई  का  महीना  शुरू  होते  ही  मन  हिलोरे  लेने  लगता है।
क्योंकि  दुर्गा  पूजा  का  आगमन  दो  महीने  बाद  शुरू  हो  जाता  है। यह  ऐसा  समय  है  जब  सभी  भाइचारे  की  भावना  के  साथ इस  त्यौहार  को मिलजुलकर  मनाते  हैँ।हमारे इस  शहर  शिलांग में  भारत के  विभिन्न  प्रांतों  के  नागरिक  रहते  हैं।सभी  मिलजुल  कर  रहते  हैं ।दो  ढाई  महीने  पहले  से  ही  विभिन्न  कमेटियों  की  मीटिंग्स   इस  त्यौहार  को  सफल  बनाने  के  लिए शुरू हो जाती है।शारदीय  नवरात्रा  में  पड़ने वाले यह त्यौहार  बंगाली  समुदाय  का  मुख्य  त्यौहार  है। पश्चिम बंगाल  के  अतिरिक्त  दुर्गापूजा  का  आयोजन  अन्य स्थानों में  भी  किया  जाता  है।मेरे  शहर शिलांग   में  तो  विभिन्न  संगठन   दुर्गा पूजा आयोजित करते हैं ।मान्यता  ऐसी  है कि  बंगाली समुदाय  सालभर  की  शॉपिंग  इसी  अवसर  पर  कर  लेते  है।
बाजारों  में  कपड़ों  की  दूकानों  पर  दो  महीने  पहले  से  ही  भीड़  दिखने लगती  है।
यह  पांच   दिन  का  त्यौहार है। पहला  दिन की  पूजा 6  वे  दिन  शुरू  होती  है, इस  दिन  मां  दुर्गा  की  मूर्ति  लाई  जाती  है।यह  कार्य  धर्मिक  गानों के  साथ  किया  जाता  है।सप्तमी के  दिन  से  सभी  पंडालों  में  भक्तों  की  भीड़  जमा  होने  लगती है।अगले  दिन  अष्टमी  होती  है।इस  दिन  कुमारी  पूजन  होता है और  अंजलि  देने  वालों  की  कतार  सुबह  से  ही लगने  लगती  हैं।नए  वस्त्रों और  आभूषणों  से  सुसज्जित  श्रद्धालु अपनी-अपनी  खुशी  का  इजहार करते हैं।एक  तरफ  मां  की  मूर्ति  है  तो  दूसरी  तरफ़  आगंतुकों  के  लिए  खिचड़ी  प्रसाद  का  वितरण  होता  है।नवमी  को भी  अंजलि  देने  वालों  की  कतार  देखी  जा  सकती  है।शाम  के  समय  ढोल की   थाप  पर  संध्या आरती  देखते  ही  बनती है।देर  रात  तक दर्शनार्थियों  की  भीड़ लगी रहती है। विभिन्न  तरह  के sanskritk कार्यक्रमों  का आयोजन  देर  रात तक चलते   रहते हैं । दशमी  के  दिन  माँ  की  विदाई  की  जाति  है।सुबह  से ही  पूजा-अर्चना  की  जाती है ।सभी  सुहागिन  स्त्रियाँ  देवी माँ  को  सिंदूर  अर्पित  करती  हैं, आपस  में  सब  महिलाएं  एक दूसरे को लगाती  हैं।इस  पुण्य  कार्य  को  sidurkhela
nam दिया  गया  है।एक तरफ विद्यार्थि  पुस्तकों के साथ दिखाई देते हैं।ऐसा  माना  जाता है कि  यदि  आज के दिन मां सरस्वती की आराधना की जाती है तो विद्यार्थीयों को मन वांछित  परिणाम  प्राप्त  होता  है। इनके  बाद  दुर्गा माँ  ki विदाई   भावुकता  से की  जाती है।सभी  बच्चे बड़े  विसर्जन  main शामिल  होते  हैं और ढोल nagado ke बीच  sabhi  परम्पराएं  निभाईं  जाती  हैं ।प्रार्थना की  जाती  है कि  अगले साल फिर  से  आइये।इसी  उल्लास  ke साथ  अपने अपने  घर  वापिस  लौटते  हैं। मोका  मिलने  से  इस  त्यौहार  का  आनंद  ले।

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