होली एक हर राज्य में मनाने के तरीके अनेक

Tripoto
15th Mar 2022
Photo of होली एक हर राज्य में मनाने के तरीके अनेक by Rohit Gautam
Day 1

होली का त्यौहार भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है इस त्यौहार को मनाने विदेशी पर्यटक भी आते हैं इसमें चाहे बरसाने की लठमार होली हो या पुष्कर की कपड़ा फाड होली हो। इस त्यौहार को सभी बडे प्रेम से मनाते है। भारत के अलग-अलग राज्यो मे इनको अपने अलग नाम है।

1. उत्तर प्रदेश में लठमार होली

उत्तर प्रदेश के बरसाना में होली पर बडा उत्सव मनाया जाता है। दरअसल बरसाने की लठमार होली भगवान कृष्ण के काल में उनके द्वारा की जाने वाली लीलाओं की पुनरावृत्ति जैसी है। माना जाता है कि कृष्ण अपने सखाओं के साथ इसी प्रकार कमर में फेंटा लगाए राधारानी तथा उनकी सखियों से होली खेलने पहुंच जाते थे तथा उनके साथ ठिठोली करते थे। जिस पर राधारानी तथा उनकी सखियां ग्वाल वालों पर डंडे बरसाया करती थीं। ऐसे में लाठी-डंडों की मार से बचने के लिए ग्वाल वृंद भी लाठी या ढ़ालों का प्रयोग किया करते थे जो धीरे-धीरे होली की परंपरा बन गया। इस दिन इस दिन नंदगांव के बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गाँव बरसाने जाते हैं और विभिन्न मंदिरों में पूजा अर्चना के पश्चात नंदगांव के पुरुष होली खेलने बरसाना गांव में आते हैं और बरसाना गांव के लोग नंदगांव में जाते हैं। यह लठमार होली भारत के दूसरे राज्य से भी खेलने आते हैं।

श्रेय-जी न्यूज़

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2. बिहार में फगुआ

बिहार मे होली को फगुआ नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार भी होली ही है जो कि बिहार में फगुआ नाम से जानी जाती है। बिहार में गाए जाने वाले लोकगीत हैं। इन गीतों को लोग टोली बनाकर ढोलक और मंजीरे की धुन पर गाते हैं। होली वाले दिन रंग खेलकर शाम को लोगों की टोली घर-घर जाकर फगुआ गीत गाती थी। तब दरवाजे पर आने वाली इस टोली का घर की महिलाएं स्वागत करती थीं और उनको होली पर बने व्यंजन खिलाती थीं। फगुआ का मुख्य पकवान गुझिया माना जाता है।बिहार में फगुआ गाए बिना आज भी होली अधूरी मानी जाती है। यह बिहार का लोकगीत भी है। फगुआ इसको इसलिए कहा जाता है क्योंकि है फागुन माह में आती है।

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3. हरियाणा में धुलैंडी

हरियाणा में इसे धुलैंडी के नाम से भी जानते हैं। इसे कोरडा मार होली भी कहते हैं। क्योंकि यह त्यौहार हरियाणा में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।समय के साथ ज़माना बदलता है, तौर तरीके बदले हैं मगर आज भी परंपराए जिंदा हैं। त्योहारों के मौके पर ख़ासकर होली के बाद दुलहंडी यानी फाग पर देवर भाभी का खेल आज भी अपने आप में सबसे जुदा है।कई महिलाएं चुन्नी या कपड़े की तो कई रस्सी से बने कोरड़े से युवाओं की पिटाई करती है। जो कोरड़ा होली को नहीं जानता वो एक बार इसे लड़ाई मान बैठता है। जैसे कि ये महिलाएं व युवक आपस में लड़ रहे हों। हरियाणा के ग्रामीण इलाकों में इस अनोखी होली आपको हर साल देखने को मिलेगी।

श्रेय-न्यूज़ 18 हिदी

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श्रेय-युवाहरियाणा.कॉम

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4. उत्तराखंड में खड़ी होली

इस होली को उत्तराखंड में खड़ी होली के नाम से जाना जाता हैं।कुमाऊँ में होली का स्वरुप देश में अन्य जगह मनाई जाने वाले होली से अलग है | यहाँ होली ‘बैठकी होली’ और ‘खड़ी होली’ के रूप में मनाई जाती है| दोनों ही होली में लोक गीत वाद्ययंत्रों (ढोलक, हार्मोनियम, ढोल) के साथ गाये जाते हैं| अधिकतर गीत हमारे धार्मिक महाकाव्यों रामायण, महाभारत और पुराणों में कही गई कहानियों को बयां करते हैं, और कई गीत पहाड़ी रोजमर्रा के जीवन और हँसी-ठिठोली को| इन गीतों की भाषा ब्रज भाषा, खडी बोली और कुमाऊँनी भाषा का मिश्रण है| हर गीत का अपना समय और राग- ताल है. होली गाने वालों को ‘होल्यार’ कहते हैं|

श्रेय-esmskriti

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5. पंजाब में होला मोहल्ला

पंजाब में होली को होला मोहल्ला के नाम से जाना जाता है।श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ने खालसा की संरचना करने के बाद वर्ष-1757 में चैत्र बदी वाले दिन होली से अगले दिन होला-मोहल्ला नाम का त्यौहार मनाना शुरू किया। श्री आनंदपुर साहिब में होलगढ़ नामक स्थान पर गुरु जी ने होले मोहल्ले की रीति शुरू की। भाई काहन सिंह जी नाभा ‘गुरमति प्रभाकर’ में होले मोहल्ले बारे बताते हैं कि होला मोहल्ला एक बनावटी हमला होता है, जिसमें पैदल तथा घुड़सवार शस्त्रधारी सिंह दो पार्टियां बनाकर एक खास जगह पर हमला करते हैं।होला मोहल्ला दुनिया भर के सिखों के लिए एक बड़ा उत्सव है।आनंदपुर साहिब में होली और होला के दौरान आयोजित मेला पारंपरिक रूप से तीन दिवसीय आयोजन होता है, लेकिन प्रतिभागी एक सप्ताह के लिए आनंदपुर साहिब में भाग लेते हैं, कैंपिंग करते हैं और युद्ध कौशल और बहादुरी के विभिन्न प्रदर्शनों का आनंद लेते हैं, और कीर्तन, संगीत और कविता सुनते हैं।भोजन के लिए, जो सिख संस्था (गुरुद्वारा) का एक अभिन्न अंग है, आगंतुक पंगत (कतार) में एक साथ बैठते हैं और लंगर का शाकाहारी भोजन खाते हैं।यह कार्यक्रम होला मोहल्ला के दिन तख्त श्री केशगढ़ साहिब के पास एक लंबी, "सैन्य शैली" जुलूस के साथ समाप्त होता है, जो सिखों के अस्थायी अधिकार की पांच सीटों में से एक है।

श्रेय-Punjabkesari.in

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6. महाराष्ट्र में रंग पंचमी

महाराष्ट्र में होली के त्यौहार को रंग पंचमी के नाम से जाना जाता है।कहते हैं कि इस दिन श्री कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है। इस दिन श्री राधारानी और श्रीकृष्‍ण की आराधना की जाती है। रंगपंचमी में होली की तरह रंग खेले जाते हैं। इसमें राधा कृष्ण जी को भी अबीर गुलाल लगाया जाता है। राधारानी के बरसाने में इस दिन उनके मंदिर में विशेष पूजा और दर्शन लाभ होते हैं। चैत्रमास की कृष्णपक्ष की पंचमी को खेली जाने वाली रंगपंचमी देवी देवताओं को समर्पित होती है। मान्यता है कि रंगपंचमी पर पवित्र मन से पूजा पाठ करने से देवी देवता स्वयं अपने भक्तों को आशीर्वाद देने आते हैं और कुंडली के बड़े से बड़े दोष को इस दिन पूजा पाठ से दूर किया जा सकता है।

श्रेय-ABP NEWS

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7. बंगाल में दोल जात्रा

बंगाल में होली को दोल जात्रा के नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार होली से 1 दिन पहले बनाया जाता है। दोल जात्रा में राधा कृष्ण की पूजा की जाती है। भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम का एक प्रमुख होली त्योहार है। यह पर्व श्रीकृष्ण और राधा को समर्पित है। यह मुख्य रूप से ओडिशा के गोपाल समुदाय द्वारा मनाया जाता है। इस शुभ दिन पर, कृष्ण और उनकी प्यारी राधा के एक देवता, जो रंगीन पाउडर (बंगाली, ओडिया और असमिया भाषाओं में अबीर) से सुशोभित और सुशोभित हैं, को फूलों, पत्तियों, रंगीन कपड़ों से सजाए गए झूलते पालकी में जुलूस में निकाला जाता है। जुलूस संगीत की संगत के लिए आगे बढ़ता है, शंख बजाता है, तुरही बजाता है और ओडिशा में 'जॉय' (विजय) और 'होरी बोलो' के नारे लगाता है। उड़िया महिलाएं अपने आंगनों को गोबर से धोती हैं और चावल के पाउडर और फूलों से सजाती हैं। घर का बना दही, मलाई, मक्खन और 'पंचामृत' जैसी दूध की चीजें अर्पित की जाती हैं। साथ आने वाले लोगों को मिठाई और पेय की पेशकश की जाती है। गांवों में दही से बने पेय को लोगों के बीच बांटा जाता है और एक दूसरे पर सिंदूर लगाकर खुशी मनाई जाती है।यह त्यौहार बंगालियों के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि यह चैतन्य महाप्रभु का जन्मदिन भी है (1485-1533)। वह कृष्ण हैं, जिन्होंने आधुनिक संकीर्तन को लोकप्रिय बनाया। उन्होंने राधा और कृष्ण की भक्ति को एक उच्च आध्यात्मिक स्तर पर पहुँचाया। उन्होंने भक्ति के औपचारिक पक्ष की कीमत पर भावनात्मकता को रेखांकित किया। वैष्णववाद के चैतन्य स्कूल के अनुयायी जानते हैं कि चैतन्य महाप्रभु कृष्ण की अभिव्यक्ति हैं। चैतन्य महाप्रभु का मानना ​​​​था कि साधना का सार हमेशा हरि का प्रेमपूर्ण स्मरण है।

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8. गोवा में सिमगोत्सव

गोवा में होली को सिमगोत्सव के नाम से जानते हैं। यह त्यौहार गोवा के एक प्रमुख त्योहार है।शिगमोत्सव भारत के गोवा राज्य में मनाया जाने वाला एक वसंत त्योहार है। यह हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। शिगमोत्सव गोवा में एक लोकप्रिय त्योहार है। यह होली के त्योहार के समान है। हिंदू 14 दिन तक चलने वाले इस त्योहार को मनाते हैं। इस त्योहार में गोयन हिंदू परंपराओं और पौराणिक कथाओं का प्रदर्शन किया जाता है।शिगमोत्सव का त्यौहार रंग, वेशभूषा, नृत्य, संगीन और परेड के साथ मनाया जाता है। गोवा शिगमोत्सव में पूरी मस्ती से डूब जाता है।इस त्योहार पर लोग एक-दुसरे को बधाई और उपहार का आदान-प्रदान करते हैं। इस अवसर पर ग्रामीण सड़क पर नृत्य कर त्योहार का आनंद लेते हैं।

श्रेय-LivesinAsia

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श्रेय-Golden Goa

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