दुर्गा पूजा का असली मज़ा तो सिर्फ बंगाल में है और कहीं नहीं! 

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दुर्गा पूजा अगर किसी संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है तो वह बंगाल ही है। ऐसे ही नहीं कहा जाता कि दुर्गा पूजा जिस दिन समाप्त होती है, उस दिन से यहाँ के लोग अगले साल आने वाले दुर्गा पूजा की तैयारियाँ शुरू कर देते हैं। यहाँ दुर्गा पूजा आने में कितने दिन बचे हैं इसकी उल्टी गिनती लोग साल भर करते हैं। जब पूजा का समय होता है तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि लोगों में कितना उत्साह होता है। लोकल भाषा में कहें तो लोग तीन वाक्य साल भर बोलते नजर आते हैं- मॉं आसबे (दुर्गा माँ आएँगी), माँ आसछे (दुर्गा माँ आ रही हैं), माँ आबार आसबे (दुर्गा माँ फिर आएँगी)।

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श्रेय: फ्लिकर

अब जब लोग इतने दीवाने होते हैं तो ज़ाहिर पूजा बेहद ख़ास होती है। ग्रामांचलों से लेकर कोलकाता शहर रोशनी से सराबोर रहता है। लोग रात-रात भर सड़कों पर इस पंडाल से उस पंडाल घूमते हुए सुबह कर देते हैं। जानते हैं कि आखिर पूजा के दौरान क्या कुछ खास होता है जो केवल और केवल बंगाल में ही देखा जा सकता है और जिसे देखने के लिए आपको एक बार तो बंगाल जाना ही चाहिए।

1. प्रतिमा का निर्माण

पूजा की तैयारियों में जो सबसे पहले शुरू होता है, उनमें प्रतिमा का निर्माण प्रमुख है। महीनों पहले उत्तर कोलकाता स्थित कुमारतुली के कलाकार मूर्ति बनाने में जुट जाते हैं। ये कोई सामान्य मूर्ति नहीं होती बल्कि कलाकार के लिए अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका होता है। खासकर लोकप्रिय जगहों के लिए बनाए जाने वाली मूर्तियाँ विशेष हुआ करती हैं। माता की प्रतिमा से लेकर महिषासुर, गणेश, कार्तिक, लक्ष्मी, सरस्वती की प्रतिमा जैसे सन्देश लिए होती है।

कारीगर कई प्रकार के प्रयोग करते नज़र आते हैं लिहाजा अलग-अलग पंडालों में माँ के अलग-अलग ख़ास रूपों को देखा जा सकता है। लिहाजा लोग इस पंडाल से उस पंडाल प्रतिमा दर्शन करते हुए रात भर घूमने की इच्छा करते हैं। यहाँ के कारीगर महज बंगाल ही नहीं बल्कि देश-विदेश में अपनी मूर्ति को भेजते हैं और इसकी भारी मांग भी है।

2. चक्षु दान से पूजा शुरू

दिलचस्प बात है कि पूजा शुरू होने से कुछ दिन पहले ही प्रतिमा निर्माण पूर्ण कर लिया जाता है लेकिन आँख लगाना बाकी रखा जाता है। महालया के दिन माँ दुर्गा देवी की आँखें तैयार की जाती हैं। कहा जाता है कि इस दिन ही देवी धरती पर अवतरित होती हैं। इसे चक्षू दान (चोक्खू दान) कहा जाता है। कुमारी कन्याओं को माता का रूप मानकर नवरात्र के सभी दिन पूजा की जाती है।

इसके साथ ही एक ख़ास रिवाज़ है जिसमें एक केले के पेड़ को साड़ी पहनाकर पंडाल में रखा जाता है, जिसे 'कओला बोउ' कहते हैं। इसे सप्तमी के दिन रखा जाता है। अष्टमी के दिन महिलाएँ लाल साड़ी तथा लड़के धोती पहनकर पंडालों में जाते हैं और पंडित उनके हाथों में फूल और पलाश फूल देकर आरती करते हैं फिर माँ को पुष्प चढ़ाया जाता है और मंत्रोच्चार किया जाता है। इन विधानों के साथ कुछ ऐसे रिवाज हैं जो बंगाल के दुर्गा पूजा को अलग और विशेष बनाता है।

3. ढाक की थाप ध्वनि

नवरात्र शुरू होते ही सुबह-सुबह ढाक के थाप आपको सुनाई देने लगते हैं। दरअसल पंडालों के बाहर दूर-दूर से आए ढाक बजाने वाले लोग रहते हैं। वे ढाक बजाकर माँ को प्रसन्न करते हैं।ढाक एक विशेष प्रकार का ड्रम होता है जो कि बंगाल के कल्चर का हिस्सा है। दुर्गापूजा के दौरान इसकी आवाज़ आपके कानों में गूँजती रहती है। आरती के वक्त भी धूप-धूमन के बीच पंडालों में ढाक बजते देखे जाते हैं।

ढाक बजाने वाले कलाकारों को पूजा आयोजक नियुक्त करते हैं। उन्हें अच्छी-खासी रकम दी जाती है और उनके रहने-खाने का इंतजाम भी किया जाता है। इनकी मांग अब बंगाल से बाहर भी जहाँ बंगाली समुदाय पूजा करते हैं, रहती है। कई ढाक मंडलियाँ अब पेशेवर तौर पर काम करती हैं। हालांकि ज्यादातर ढाक बजाने वाले कोलकाता से बाहर जिलों के होते हैं और वे पारम्परिक ढाक बजाने वाले हैं। बताया जाता है कि बिना ढाक के पूजा पूरी नहीं मानी जाती है।

4. थीम पंडाल व झांकियाँ

पूजा आयोजकों में एक प्रकार से थीम चुनने को लेकर प्रतिस्पर्धा की स्थिति रहती है। अधिक से अधिक लोगों को आकर्षित करने के लिए थीम पूजा यहाँ पूरे ट्रेंड में है। सभी अपने-अपने साधन-संसाधन के हिसाब से थीम को साकार करते हैं। उदाहरण के लिए बताएँ कि इस बार कोलकाता के किसी पूजा पंडाल में चंद्रयान मिशन को थीम बनाए जाने की चर्चा है। नीचे बाहुबली फिल्म के थीम पर बना पंडाल देखें।

बता दें कि कुछ ऐसा पंडाल तैयार किया जा सकता है जहाँ जाते आपको चन्द्रमा पर पहुँचने जैसा फील हो सकता है। इसी प्रकार किसी चर्चित थीम और कला के बेहतरीन नमूने पंडाल भ्रमण में देखने को मिलते हैं जहाँ ऐसे कुछ ख़ास पंडाल होते हैं, लाखों की संख्या में लोग घंटों लाइन में लगकर देखने जाते हैं। जानकारी हो कि बड़ा आयोजन हो या छोटा, थीम को प्राथमिकता दी जाती है। इस थीम को डिज़ाइन करने के लिए प्रोफेशनल लोग होते हैं और लाखों का खर्च भी आता है। इस तरह हरेक दूसरा पंडाल आपको आश्चर्यचकित करता है।

कोलकाता की सड़कें दुर्गा पूजा के दौरान रंगबिरंगी झांकियों से भरी होती है। लोग चलते-फिरते उन झांकियों को देखते रहते हैं। ये झांकियाँ कई सामाजिक मैसेज देती रहती हैं। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और बिजली पर चलने वाली झांकियांँआपको चकित करती हैं। कुछ झांकियों को देखकर आप ठिठके रह जाएँगे। यहां जिस प्रकार कलाकार इसे तैयार करते हैं, अन्य जगहों पर देखना दुर्लभ है। धार्मिक पात्रों से लेकर डायनासोर और अंतरिक्ष यात्री और एलियन तक आपको सड़क किनारे झाकियों में दिख सकते हैं। इन्हें चलते-फिरते या हरकत करते देखना अलग ही अनुभव देता है।

5. सिंदूर खेला

सिंदूर खेला विजयादशमी को किया जाता है जो कि पूजा का महत्वपूर्ण आकर्षण होता है। लोग दूर-दूर से सिंदूर खेला देखने आते हैं। माँ को विदा करने के समय विसर्जन से पहले शादीशुदा महिलाएँ अपने सुहाग के लिए माँ से आशीष लेती हैं। इस क्रम में वे एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। महिलाएँ पारंपरिक साड़ियों में होती हैं और लगता रहता है कि मानो वे होली मना रही हैं। लेकिन वे सिंदूर लगाती हैं और माँ को नम आँखों से विदा करती हैं। सभी कामना करती हैं कि माँ फिर अगले साल आएँगी और तब तक सबको सलामत रहने का आशीर्वाद देंगी।

जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, सिंदूर खेला का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है। पंडालों में अब तो कई सेलिब्रिटी भी इसमें भाग लेने आते हैं। ये विदाई समारोह भी अब धूमधाम से मनाया जाने लगा है।

ये कुछ ऐसे रिवाज़ हैं जो पूजा के दौरान बंगाल में प्रचलित हैं। बंगाल की पूजा इन्हीं रस्मों के कारण दुनियाभर में फेमस है। पर्यटक भी दुर्गापूजा के दौरान कोलकाता सहित बंगाल के विभिन्न हिस्सों में घूमने आते हैं। क्योंकि बंगाल दुर्गापूजा के समय दुल्हन की तरह सजी होती है। आपको भी यहाँ की दुर्गा पूजा के बारे में कुछ ख़ास जानकारी है तो कमेंट कर जरूर बताएँ।

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