ढेर सारे प्यार में घुला हुआ और हथेली भर आशीर्वाद के साथ परोसा गया गुरुद्वारे का बेहद सरल खाना भी मानों जन्नत का स्वाद में लिपटा होता है।
लंगर, गुरुद्वारा में एक मुफ्त सामुदायिक रसोई का कॉन्सेप्ट है, जहाँ बिना किसी सांपद्रायिक भेदभाव के, हर किसी को बड़े सम्मान के साथ खाना परोसा जाता है। लंगर स्वेच्छा से सेवा करना सिखाता है, जो एक अहम संसकार है।
चलिए आपको भारत के उन 9 गुरुद्वारों के बारे में बताती हूँ जहाँ अध्यात्मिक शांति के साथ-साथ खूबसूरत वास्तुकला और स्वादिष्ट लंगर का अनोखा संगम होता है।
1. गुरुद्वारा पत्थर साहिब
लेह के लद्दाख और जांस्कर पर्वतमाला में बसे इस गुरुद्वारा का रख-रखाव यहाँ तैनात भारतीय सेना के कर्मचारी करते हैं। गुरु नानकजी की याद में बना ये गुरुद्वारा यह शांति और आध्यात्मिकता का अनुभव कराता है। यह एक बहुत ही अनोखा और शांत गुरुद्वारा है जो हाईवे के ठीक सामने है और कई ट्रेक भी इस के आस-पास से शुरू होते हैं। यह गुरुद्वारा शून्य से नीचे के तापमान में भी गरमा-गरम खाने के साथ लोगों का स्वागत करता है।अगर आप चाहें तो आप खाना बनाने या परोसने की सेवा भी कर सकते हैं।
यहाँ दिन में हर समय चाय और नाश्ता मिलता है और लंगर में साधारण भोजन शामिल होता है । लेकिन हर चीज़ का स्वाद लाजवाब होता है! लंगर को आमतौर पर हर दिन दोपहर 12:30 बजे परोसा जाता है।
कहाँ है गुरुद्वारा पत्थर साहिब: लेह से लगभग 25 कि.मी दूर, NH 1D, फेय, जम्मू और कश्मीर 194101।
गुरुद्वारे से जुड़ी कहानी: 1970 में, लेह-निमू सड़क के निर्माण के दौरान, श्रमिकों को सड़के के बीच बौद्ध प्रार्थना झंडे से लिपटा एक बड़ा सा पत्थर मिला। बुलडोजर के ज़रिए इस पत्थर को रास्ते से हटाने की कोशिश ककी गई लेकिन पत्थर हिला तक नहीं। इसके बाद कुछ बोद्ध लामाओं और लद्दाखियों ने यहाँ आकर बताया कि ये साँचा उनके लामा नानक का था। कहानी ये थी कि एक राक्षस ने नानक को मारने के लिए इस पत्थर को उन पर गेरा लेकिन वो पत्थर नानक से टकराते ही वो पत्थर मोम की तरह नानक की शरीर की छाप लेकर वहीं रुक गया। ये छाप आज भी उस पत्थर पर देखी जा सकती है।
2. गुरुद्वारा बंगला साहिब
विशाल स्वर्ण गुंबद, सफेद संगमरमर की दिवारें और उन पर पूरे भारत के कारीगरों द्वारा बनाई गई जटिल नक्काशी से सजा गुरुद्वारा बंगला साहिब पूरे दिल्ली की शान है।
वैसे तो ये गुरुद्वारा चाय और नाश्ते के लिए 24 घंटे खुला है, लेकिन लंगर सुबह 11.00 बजे से 4.00 बजे और शाम 7.30 से 11.00 बजे के बीच परोसा जाता है। आप रसोई में जाकर सब्ज़ियों को छीलते, काटते, उन्हें पकाते और परोसते लोगों के बीच यहाँ कि एनर्जी देख और फील कर सकते हैं। नीचे की ओर बड़े-बड़े बर्नर पर भारी मात्रा में खाना पकाया जाता है। खाना परोसने और खाने दोनों के लिए यहाँ आपका स्वागत है।
हर दिन औसतन 25,000 लोगों को मुफ्त भोजन परोसा जाता है। भोजन में दाल-चवाल, सब्ज़ी-रोटी और खीर शामिल हैं। घी और सूखे मेवों से भरा 'कड़ा प्रसाद' भी बाँटा जाता है।
कहाँ है गुरुद्वारा बंगला साहिब: हनुमान रोड एरिया, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली
गुरुद्वारे से जुड़ी कहानी: शुरुआत में एक राजा जय सिंह के बंगले के तौर पर बनी इस जगह पर, आठवें सिख गुरू, गुरू हरकृष्ण यहाँ कुछ समय के लिए ठहरे थे। उस वक्त चैचक और हैजा की महामारी फैली हुई थी जिससे बिमार हुए लोगों को गुरू हरकृष्ण ने चमत्कारी रूप से ठीक कर लोगों की मदद की। माना जाता है कि सरोवर का पानी आज तक बिमारियों को ठीक करने की शक्ति रखता है और दुनिया भर के सिखों यहाँ का पानी अपने घरों में लेकर जाते हैं।
3. तख्त श्री पटना साहिब
तख्त श्री पटना साहिब सिख धर्म के सबसे प्रतिष्ठित गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह का जन्म स्थान है। प्राचीन संगमरमर से बना गुरुद्वारा दिन के किसी भी समय शानदार दिखता है। सूर्यास्त के बाद, पूरे गुरुद्संवारे को लाइटों की रोशनी में जगमगा जाता है जिसका नज़ारा आपका दिल छू लेगा।
लंगर शाम 7.30 बजे शुरू होता है और परोसा गया खाना बेहद स्वादिष्ट। देश भर से लोग यहाँ आध्यात्म तलाशने आते हैं।
कहाँ है गुरुद्वारा पटना साहिब: पटना से 15 कि.मी. की दूरी पर, तख्त श्री हरमंदिर जी, पटना साहिब, पटना।
गुरुद्वारे से जुड़ी कहानी: पटना साहिब गुरुद्वारा को सिखों के पाँच तख्तों में से एक माना जाता है। गुरु नानक के एक उत्साही भक्त, सालिस राय जौहरी ने अपनी भव्य हवेली को एक धर्मशाला में बदल दिया जहाँ गुरु तेग बहादुर और गुरु गोबिंद सिंह भी रुके थे।
4. गुरुद्वारा पांवटा साहिब
यमुना नदी के किनारे स्थित यह गुरुद्वारा सिखों के लिए दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी की याद में बना एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक गुरुद्वारा है। आसन बैराज और उफान भरती यमुना के नजारे इस गुरुद्वारे को और भी दिव्य बना देते हैं।
शबद की शांत आवाज़ो के बीच 24 घंटे परोसे जाने वाले लंगर का ये अनुभव कभी भुलाया नहीं जा सकता।
कहाँ है गुरुद्वारा पांवटा साहिब: हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में। कोर्ट रोड, पांवटा साहिब, हिमाचल प्रदेश
गुरुद्वारे से जुड़ी कहानी: पांवटा का अर्थ है पैर। इसलिए, गुरुद्वारा पांवटा साहिब उस जगह पर स्थित है, जहाँ16 वर्षीय गुरु गोबिंद सिंह ने सिरमौर साम्राज्य ने पहली बार पैर रखा था। गुरु गोविंद सिंह जी ने दशम ग्रंथ भी यहीं लिखा था। पोंटा साहिब को यमुना नदी के किनारे गुरु गोविंद सिंह जी और उनके परिवार के लिए एक किले रूपी घर के तौर पर बनाया गया था।
5. तख्त श्री केशगढ़ साहिब
तख्त श्री केशगढ़ साहिब, शिवालिक पर्वत के किनारे स्थित है। पास में ही सतलुज नदी बहती है। यह वह जगह है जहाँ अंतिम दो सिख गुरु रुके थे और जहाँ गुरु गोविंद सिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। यह सिखों के सबसे पवित्र माने जाने वाले पाँच स्थानों में से एक है और पाँच अहम तख्तों में से एक भी है। सफेद रंग में रंगा गुरुद्वारे का मुख्य भवन बहुत विशाल है और काफी उँचाई पर बना हुआ है। यहाँ से गाँव का मंत्रमुग्ध करने वाला दृश्य दिखाई देता है।
तख्तों में से एक होने के नाते, यहाँ पर परोसा जाने वाला लंगर यहाँ कि आध्यात्मिक शक्ति से भरा हुआ होता है।
कहाँ है गुरुद्वारा श्री केशगढ़ साहिब: आनंदपुर साहिब, पंजाब के शहर के केंद्र में स्थित है।
गुरुद्वारे से जुड़ी कहानी: यह शहर चक्क नानकी के रूप में शुरू हुआ था, जिसे 1665 में गुरु तेग बहादुर जी ने स्थापित किया था। उनके बेटे, गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी अपने जीवन के 25 साल इस शहर में बिताए। श्री केशगढ़ साहिब किला 1699 में बनाया गया था। पड़ोसी पहाड़ी सेनाओं ने कई बार श्री आनंदपुर साहिब पर हमला किया, लेकिन श्री केसगढ़ साहिब की अभेद की बनावट के कारण वो हर बार असफल रहे।
6. श्री हेमकुंट साहिब
शहर की हलचल से दूर, श्री हेमकुंट साहिब जी का नज़ारा आपकी देखकर शायद आपकी साँसे कुछ देर के लिए थम जाएँ। चारों तरफ बर्फीले पहाड़ों से घिरा हुआ है ये गुरुद्वारा मन को एक अलग ही शांति देता है। यह जगह हिमालय में लगभग 4650 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और ऋषिकेश से लगभग 275 कि.मी. दूर है और आप बस या कार से यहाँ पहुँच सकते हैं। गुरुद्वारे के पास ही एक झील भी है, जिसमें जादुई गुण होने की बात कही जाती है।
क्योंकि यह एक पहाड़ी पर बना हुआ है इसलिए हेमकुंट साहिब तक चढ़ाई करने में थोड़ी मशक्कत लगती है, खासकर सर्दियों में। हालांकि, गुरुद्वारे पहुँच कर आप गरमा-गरम चाय और स्वादिष्ट लंगर का आनंद ले सकते हैं। यहाँ तक कि खिचड़ी और सब्जी जैसे सरल भारतीय भोजन का स्वाद चखकर भी आप उंगलियाँ चाटते रह जाएँगे। और ये सिर्फ गुरुद्वारों में ही मुमकिन है!
कहाँ है श्री हेमकुंट साहिब: गोविंदघाट, जोशीमठ, चमोली जिला, उत्तराखंड। यह तिब्बत और नेपाल की सीमा से लगे उत्तराखंड में स्थित है, यहाँ केवल जून और अक्टूबर के बीच पहुँचा जा सकता है।
गुरुद्वारे से जुड़ी कहानी: दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने अपनी आत्मकथा में, उँचे पहाड़ों से घिरी एक झील का ज़िक्र किया था, जहाँ उन्होंने पिछले जन्म में ध्यान किया था। इस बात को मानते हुए करीब 200 साल बाद, भारतीय सेना के एक ग्रंथी संत सोहन सिंह ने यह जगह ढूंढ निकाली और यहाँ गुरुद्वारा बनवाया गया। यहाँ पर सिखों के शाश्वत शास्त्र गुरु, गुरु ग्रंथ साहिब को भी रखा गया है।
7. गुरुद्वारा मणिकरण साहिब जी
पहाड़ों के बीच, नदी के किनारे, एक खूबसूरत नज़ारे के बीच बना इस गुरुद्वारे के अंदर एक गुफा मौजूद है। यहाँ तक कि बेहद कम तापमान में भी आपको इस गुफा में गर्म पानी के सोते मिल जाएँगे, जिसका उबलता पानी आपके शरीर को एक अनोखी ठंडक देता है।
परोसा गया लंगर हद से ज्यादा स्वादिष्ट होता है जो आपकी भूख को पूरी तरह शांत कर देता है।
कहाँ है गुरुद्वारा मणिकरण साहिब: हरि हर घाट, मणिकरण रोड, जिला कुल्लू।
गुरुद्वारे से जुड़ी कहानी: तीसरी उदासी के दौरान, गुरु नानक अपने शिष्य भाई मर्दाना के साथ इस स्थान पर आए थे। मर्दाना को भूख लगी और उनके पास कोई भोजन नहीं था। गुरु नानक ने मर्दाना को भोजन इकट्ठा करने के लिए भेजा। लेकिन समस्या यह थी कि खाना बनाने के लिए आग नहीं थी। गुरु नानक ने मरदाना से कहा कि वह भोजन गर्म सोतों में डाले और भगवान से प्रार्थना करे। चमत्कारी रूप से, रोटी और दाल डूबने की बजाय, पूरी तरह पक कर पानी पर तैरने लगे।
8. तख्त सचखंड श्री हुजुर अबचल नगर साहिब गुरुद्वारा
सिख धर्म के पाँच तख्तों में से एक ये गुरुद्वारा महाराष्ट्र राज्य के नांदेड़ शहर में गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। यह गुरुद्वारा उसी स्थान पर बनाया गया है जहाँ गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना सांसारिक जीवन छोड़ा था।
गुरुद्वारा धर्म, जाति और पंथ के से परे, लोगों को 24 घंटे लंगर और मुफ्त आवास प्रदान करता है।
कहाँ है अबचल नगर साहिब गुरुद्वारा: गुरुद्वारा रोड, शारदा नगर, हैदर बाग, दशमेश नगर, हर्ष नगर, नांदेड़, महाराष्ट्र।
गुरुद्वारे से जुड़ी कहानी: हजूर साहिब उस जगह पर बना है जहाँ गुरु गोबिंद सिंह ने 1708 में अपना शिविर लगाया था। यहीं पर गुरु गोविंद सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। यहाँ सिखों ने मंच के ऊपर एक कमरा बनाया जहाँ गुरु गोबिंद सिंह अपना दरबार लगाते थे और वहीं पर गुरु ग्रंथ साहिब को स्थापित कर इसे तख्त साहिब का नाम दिया गया।
9. स्वर्ण मंदिर
सबसे प्रसिद्ध गुरुद्वारा, स्वर्ण मंदिर, जिसे दरबार साहिब या श्री हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है, ना सिर्फ हर सिख के लिए मायने रखता है, बल्कि हर मुसाफिर की लिस्ट में भी ज़रूर शामिल होता है। मंदिर में लगा सोना मानों यहाँ के सेवकों के दिल का प्रतीक है।
आप यह भी पढ़ना पसंद कर सकते हैं: gurudwara near me
स्वर्ण मंदिर का लंगर हर दिन 50,000 लोगों की भारी संख्या की सेवा करता है। खास अवसरों पर ये संख्या अक्सर 100,000 तक जाती है। ज़यादातर काम करने वाले कर्मचारी में स्वयंसेवक शामिल हैं जो 300 स्थायी सेवादारों के साथ, यह सुनिश्चित करते हैं कि लगंर को ठीक से पकाया और समय पर परोसा जाए।
बड़ी संख्या के बावजूद, गुरुद्वारा में कभी भी स्वच्छता और गुणवत्ता से समझौता नहीं किया जाता है।
कहाँ है स्वर्ण मंदिर: स्वर्ण मंदिर रोड, अट्टा मंडी, कटरा अहलूवालिया, अमृतसर।
गुरुद्वारे से जुड़ी कहानी: सिखों के पाँचवें गुरु साहिब ने यहाँ की संरचना तैयार की। श्री दरबार साहिब में हर दिशा में चार प्रवेश द्वार हैं, जो ये दर्शाते हैं कि गुरुद्वारे में हर किसी का स्वागत है। गुरुद्वारा बनने के कुछ दशकों में, गुरुद्वारा पर हमला हुआ जिससे काफी नुकसान पहुँचा, जिसे वक्त के साथ ठीक कर लिया गया है। महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के ऊपरी हिस्से पर सोने की परत चढ़वाई थी।
गुरुद्वारा एक प्रार्थना स्थल होने के साथ एक ऐसी जगह भी हैं जहाँ आप अध्यात्म के ज़रिए खुद से जुड़ते हैं, और एक अद्भुत शांति महसूस करते हैं। गुरुद्वारे में सेवा करना एक अलग ही अनुभव है।
क्या आप इनमें से किसी गुरुद्वारे गए हैं? अपने अनुभव हमारे साथ यहाँ शेयर करें।
ये आर्टिकल अनुवादित है। ओरिजनल आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।