
$ कुशीनगर: जहां दुनियां को अहिंसा, दया और करुणा का संदेश देकर चीर निद्रा में सो गये थे भगवान गौतम बुद्ध
प्रिय मित्रो...
आज का सफर बेहद खास है, आज हम आपको एक ऐसे ऐतिहासिक धरा के सफर पर ले जा रहें है, जहां के कण कण में शांति और सद्भाव की सीख है। जी हां हम बात कर रहे भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण स्थल कुशीनगर की....
जहां पुरी दुनियां को अहिंसा, दया और करुणा का संदेश देने वावे भगवान गौतम बुद्ध चीर निद्रा में हमेशा के लिए सो गये थे। भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर को देखने आज दुनियां भर के तमाम देशों से लोग आते है।इनमें बौद्ध धर्म के अनुयायिओं की संख्या सर्वाधिक होती है। बौद्ध धर्म के अनुयायिओं के लिए यह एक बडा तीर्थ स्थल है, जहां वे अपने अराध्य भगवान बुद्ध की साधना करते है।तो वहीं अन्य पर्यटकों के लिए यह एक बेहद खूबसूरत पर्यटन स्थल भी है।जहां बडी तेजी से पर्यटन उधोग का विकास हो रहा है।
लेकिन आपको बता दें कि यह स्थान भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण के पूर्व भी अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता था।हिन्दू धर्म के लोगों के लिए रामायण काल से जुडा यह क्षेत्र अपने आप में विशेष महत्व रखता है।भगवान श्रीराम के पुत्र कुश द्वारा स्थापित यह नगर अपने आप में बेहद खास है।तो वहीं भगवान बुद्ध के समकालीन जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने भी यहीं आकर परिनिर्वाण को प्राप्त हुये थे।इस लिए जैन धर्म के लोग भी इस स्थल को पुण्यभूमि मानते है। कुशीनगर से 16 कि.मी. दूर फाजिलनगर में महावीर स्वामी परिनिर्वाण को प्राप्त हुये थे। यही नहीं देश का दूसरा और उत्तर भारत का एक मात्र सबसे प्राचीन सूर्य मन्दिर भी यही है।जो कुशीनगर से करीब 19 किमी की दूरी पर तुर्कपट्टी नामक स्थान पर स्थित है।कहा जाता है कि यहां खुदाई के दौरान गुप्तकालीन सूर्य भगवान की प्रतिमा मिली थी।इन इलाकों में अक्सर खुदाई के दौरान ऐतिहासिक अवशेष मिलते रहते है। साथ ही नाथ सम्प्रदाय के बाबा सिद्धनाथ की यह धरती अपने गौरवशाली अतीत के लिए दुनिया भर में विख्यात है। हालाकि कुशीनगर को पहचान और प्रसिद्धी भगवान गौतम बुद्ध के नाम से ही मिली है और उनकी परिनिर्वाण स्थली को ही देखने यहां ज्यादातर पर्यटक देश विदेश से यहां आते है। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाहियान के यात्रा वृत्तांतो में भी इस जगह का उल्लेख मिलता है, जो इसे और भी खास बनाता है।
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1876 ई० में हुई थी कुशीनगर की खोज
कुशीनगर का इतिहास अत्यंत ही प्राचीन और गौरवशाली है। वर्ष 1876 ई० में अंग्रेज पुरातत्वविद ए कनिंघम ने कुशीनगर के ऐतिहासिक महत्व को पहचाना था। उसके बाद से ही यह स्थल विख्यात हुआ। खुदाई में यहां छठी शताब्दी की बनी भगवान बुद्ध की लेटी प्रतिमा भी मिली थी। इसके अलावा रामाभार स्तूप और और माथाकुंवर मंदिर भी उसी समय खोजे गए थे, उसके अवशेष आज भी मौजूद है।
इसके अलावा ईंट और रोडी से बना एक विशाल स्तूप भी मिला था।जिसकी ऊंचाई 2.74 मीटर था। इस स्थान की खुदाई में एक तांबे की नाव मिली थी।जिसपर खुदे अभिलेखों से भी भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण की प्रमाण मिले थे।
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कैसे पहुंचे:-
दुनिया को अहिंसा और करुणा का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण स्थल कुशीनगर पहुंचा बेहद आसान है। राष्ट्रीय राजमार्ग 28 पर यूपी के गोरखपुर से लगभग 50 कि.मी. पूरब में स्थित है। यहां अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने का कार्य तेजी से चल रहा है।वर्तमान में यहां का नजदीकी हवाई अड्डा गोरखपुर है। यह स्थान सीधे तौर पर तो रेल मार्ग से नहीं जुडा है लेकिन यहां से 20 कि.मी. की दूरी पर पडरौना व रामकोला रेलवे स्टेशन है।
यहाँ हर साल दुनिया भर से बडी संख्या में बौद्ध तीर्थयात्री आते हैं। कुशीनगर कस्बे से पूरब बढ़ने पर लगभग 23 कि.मी. बाद बिहार राज्य आरम्भ हो जाता है।
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परिनिर्वाण मंदिर
कुशीनगर का प्रमुख आकर्षण है। इस मंदिर में महात्मा बुद्ध की 6.10 मीटर लंबी प्रतिमा स्थापित है। 1876 में खुदाई के दौरान यह प्रतिमा प्राप्त हुई थी। यह सुंदर प्रतिमा चुनार के बलुआ पत्थर को काटकर बनाई गई थी। प्रतिमा के नीचे खुदे अभिलेख के पता चलता है कि इस प्रतिमा का संबंध पांचवीं शताब्दी से है। कहा जाता है कि हरीबाला नामक बौद्ध भिक्षु ने गुप्त काल के दौरान यह प्रतिमा मथुरा से कुशीनगर लाया था।
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माथाकुंवर मंदिर
यह मंदिर निर्वाण स्तूप से लगभग 400 मीटर की दूरी पर है। भूमि स्पर्श मुद्रा में महात्मा बुद्ध की प्रतिमा यहां से प्राप्त हुई है। यह प्रतिमा बोधिवृक्ष के नीचे मिली है। इसके तल में खुदे अभिलेख से पता चलता है कि इस मूर्ति का संबंध 11वीं शताब्दी से है। इस मंदिर के साथ ही खुदाई से एक मठ के अवशेष भी मिले हैं।
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रामाभर स्तूप
15 मीटर ऊंचा यह स्तूप महापरिनिर्वाण मंदिर से लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी पर है। माना जाता है कि यह स्तूप उसी स्थान पर बना है जहां महात्मा बुद्ध को 483 ईसा पूर्व दफनाया गया था। प्राचीन बौद्ध लेखों में इस स्तूप को मुकुट बंधन चैत्य का नाम दिया गया है। कहा जाता है कि यह स्तूप महात्मा बुद्ध की मृत्यु के समय कुशीनगर पर शासन करने वाले मल्ल शासकों द्वारा बनवाया गया था।
इसके अलावा म्यामार स्तूप, थाई मन्दिर सहित दर्जनों देशों द्वारा बनाये गये भव्य एवं आकर्षक मन्दिर पर्यटकों को बेहद रास आते है।
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जन आस्था का केन्द्र है महावीर स्वामी का परिनिर्वाण स्थल पावानगर (फाजिलनगर)
जैन धर्म के 24वें व अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी ने कुशीनगर के फाजिलनगर से सटे पावानगर में अपने जीवन का अंतिम उपदेश दिया था। और यहीं परिनिर्वाण को प्राप्त हुये थे। उनके निर्वाण स्थली पावानगर फाजिलनगर उनके अनुयायियों के लिए आस्था का बडा केन्द्र है।हालाकि इस स्थल पर महावीर स्वामी के परिनिर्वाण को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है।लेकिन ज्यादात्तर इतिहासकार पावानगर को ही महावीर स्वामी का परिनिर्वाण स्थल मानते है।
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और भी खास है प्राचीन सूर्य मन्दिर
कुशीनगर से 19 कि.मी. की दूरी पर स्थित तुर्कपट्टी का प्राचीन सूर्य मन्दिर देश में दूसरा सबसे प्राचीन सूर्य मन्दिर है। जहां हर साल बडी संख्या में पर्यटक पहुंचते है।हिन्दू धर्म के लोगों के आस्था का प्रमुख केन्द्र यह मन्दिर पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है।
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रवि प्रताप सिंह
मो० 9454002644











