लदाख की वो अनोखी, अनदेखी जगहें जिनसे ढेरों मुसाफिर अब तक अंजान हैं!

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लद्दाख, ट्रैवलरों की ज़बान में इसका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। सालों से यह जगह फक्कड़ ट्रैवलरों की पहली पसन्द रही है। दस दिन की छुट्टी निकालकर या कई बार तो नौकरी ही छोड़कर, बंजारे निकल पड़ते हैं लद्दाख की शान्ति में सरपट बाइक दौड़ाने को, उस असीम शान्ति की तलाश में जो यहाँ की सर्द वादियों में आपको अपने भीतर भर लेती है, बहुत भीतर।

मैं आज आपको उन जगहों से नहीं मिलाऊँगा, जहाँ घुमक्कड़ों का जत्था मिलता है। बल्कि दिखाऊँगा वो जगहें, जिनका साब्दा है आपकी इंसानियत से। चलिए मेरा साथ इस छोटे से सफ़र पर।

शान्ति स्तूप तो घूम चुके कई मर्तबा, अब लद्दाख में अध्यात्म खोजो

लद्दाख में बौद्ध धर्म के अनुयायियों की संख्या बहुतायत में है। चोगलमसर, लेह में 1986 में भिक्खु संघसेना ने मानवता और आध्यात्म के लिए एक सेन्टर खोला था। दशक गुज़रने के बाद यहाँ पर लोगों की संख्या कुछ बेहतर हुई और अब यह दुनिया भर के ध्यान विद्यार्थियों को आध्यात्म का ज्ञान देता है।

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आध्यात्म से जुड़े आचार्य, भिक्षु, आध्यात्मिक गुरु और सेवक मिलकर इस सेन्टर को चलाते हैं। आप यहाँ आध्यात्म की प्रेरणा ले सकते हैं 10 दिन का विपासना कोर्स करके।

कुछ जानकारियाँ आपके लिएः ध्यान सेशन, प्राणायाम, साँस लेने के व्यायाम, योग के 45 मिनट सेशन आपको ₹300 में उपलब्ध हैं। इसके साथ आप 3 दिन का विपासना कोर्स ₹4,500 में कर सकते हैं, जिसमें आपके खाने पीने, आध्यात्म का ख़्याल रखा जाएगा।

3 ईडियट्स वाली पैंगोग झील से निकलो और फुकतल मठ तक ट्रेक कर आओ

जब से फ़िल्म 3 ईडियट्स बाज़ार में आई है, पैंगोग झील का नाम कुछ ज़्यादा ही बड़ा हो गया है। लेकिन असली ट्रैवलर तो वही जो अनदेखा अनुभव करके आए। इसके लिए फुकतल मठ स्थित है लद्दाख में। इसे क़रीब 2,550 साल हो गए इस मठ को बने। हिमालय पर बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह प्रमुख मठ है।

इस अनोखी जगह पर आपको बौद्ध धर्म के विद्यार्थियों, बौद्ध गुरुओं की अच्छी संख्या मिलेगी। 15वीं सदी में बना तिब्बती बुद्धत्त्व का गेलुग स्कूल भी इसके अन्तर्गत आता है। यह मठ लुगनक वैली में आता है जहाँ आप सिर्फ़ पैदल ही पहुँच सकते हैं। अगर आपको यहाँ जाना है तो आख़िरी स्टॉप अन्मो गाँव से फुकतल दो दिन का ट्रेक है।

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कुछ जानकारियाँ आपके लिएः अन्मो गाँव पहुँचने के लिए आपको सुबह सुबह पदुम से टैक्सी लेनी पड़ेगी जो आपको दोपहर तक गाँव पहुँचा देगी। यहाँ से आपको ट्रेकिंग करके चा गाँव जाना होगा जिसमें लगभग 3 घंटे लगेंगे। चा गाँव में आप रात को रुकें। सुबह उठकर 6 किमी0 का कठिन ट्रेक आपको फुकतल पहुँचाएगा। यह ट्रेक पूरा करने में आपको 3-4 घंटे लगेंगे। अगर आप उसी रात नहीं आना चाहते तो मठ में ही रात गुज़ार सकते हैं। इसके अलावा दूसरा रास्ता मनाली से कीलोंग और वहाँ से पूर्णे पहुँचना। पूर्णे से चा गाँव 4 किमी0 दूर है। ट्रेक के बाद आप यहाँ से टैक्सी ले सकते हैं और लद्दाख में समय गुज़ार सकते हैं।

पाँच सितारा होटल के बजाय रात में इस गाँव में ठहरिए

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शिंगो नाम के इस गाँव में केवल तीन घर हैं। इसमें भी एक माउंटेन होमस्टेज़ इनिशिएटिव का है, जहाँ पर महिलाओं के ठहरने का ख़ास ख़्याल रखा जाता है। लेह का ग्रामीण रंग यहाँ आकर और निखरता है, उस पर चार चाँद लगाते हैं। 2015 से पहले इस गाँव तक बिजली नहीं पहुँची थी। इस गाँव के लोगों ने यहाँ से गुज़रने वाले ट्रेकर्स के लिए दरवाज़े खोले, पैसे बने तो बिजली भी आई। यहाँ ठहरना किसी दूसरी जगह पर ठहरने से बहुत जुदा है। लद्दाखी लोगों से मिलने का जो अनुभव है, वो यहाँ तो ना मैं लिख सकता हूँ ना आप समझ सकते हैं।

कुछ जानकारियाँ आपके लिएः यहाँ पहुँचना मुश्किल है। इसलिए यहाँ के होमस्टे वाले मुखिया से पहले ही फ़ोन पर बातचीत कर लें। यही आपको रहने से लेकर आने जाने की गाड़ी पहुँचा देंगे।

त्सो मोरिरि में रुकने की बजाय, हनले की भारतीय खगोलीय वेधशाला घूमें

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किसी पाँच सितारा होटल में तो रुकना हर बार अच्छा नहीं होता, कभी मौक़ा मिले तो समुद्रतल से 14,700 फ़ीट ऊपर हनले गाँव में तारों के नीच सोइए, बहुत आनन्द मिलेगा। यहाँ पर भारतीय खगोलीय वेधशाला भी है जिसे भारतीय खगोलीय संस्थान ने स्थापित किया था। तीनों क़िस्म के ऑप्टिकल, इन्फ़्रारेड और गामा-रे टेलेस्कोप आपको यहाँ मिलेंगे। एनेली गोम्पा का मठ भी घूमें, जो आपको 17वीं शताब्दी में पहुँचा देगा। इसके अलावा ढेरों गेस्टहाउस आपको हनले में मिल जाएँगे। अगर नहीं मिलते हैं तो किफ़ायती दामों पर होमस्टे में भी रुक सकते हैं। हनले में अच्छी सर्दी पड़ती है, मतलब काफ़ी अच्छी। मैं आपको कहूँगा कि रात में सोने के बजाय आप पूरी आकाशगंगा को निहारना, यहाँ से जो नज़ारे मिलते हैं, वो शायद ही कहीं से मिलें।

कुछ जानकारियाँ आपके लिएः लेह से हनले ठीक 255 किमी0 दूर है। लोग प्रायः इससे होते हुए दूसरे रास्तों की तरफ़ बढ़ जाते हैं। आप भी बढ़ सकते हैं। जैसे पैंगोंग त्सो, जवान शैतान सिंह की याद में बना रेज़ांग ला वार मेमोरियल और चुमाथांग हॉट स्प्रिंग्स आपके ठहरने के लिए अच्छी जगहें हो सकती हैं। अगर आप हनले से भी आगे बढ़ना चाहते हैं तो ग्लेशियल झील, त्सो मोरिरि जाएँ। इसके साथ ही तिब्बत की सीमा के क़रीब होने के कारण सेना के चेकपॉइंट पर अपने पहचान पत्र साथ रखें। हनले पहुँचने से पहले लोमा पर आपका इनसे ज़रूर मेल मिलाप होगा।

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