भारत के वो मंदिर जहाँ भगवान नहीं, खलनायकों की होती है पूजा

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श्रेय: कोरा/वर्डप्रेस

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दुनिया भर में लोग अपने पसंदीदा पौराणिक चरित्रों की भगवान के रूप में पूजा करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ लोग उन्हीं पौराणिक कहानियों के असुरों या राक्षसों की विचारधारा से भी प्रभावित होकर उनकी उपासना करते हैं।

आप मानो या ना मानो, भारत में हिंदू पौराणिक कथाओं के कुछ फेमस खलनायकों के भी मंदिर हैं । यह जानने के लिए पढ़ें कि इस लिस्ट में क्या आपका भी कोई पसंदीदा पात्र है।आइए यहाँ हम आपको कुछ अनसुने मंदिरों की यात्रा पर ले चलते हैं।

शकुनि मंदिर, कोल्लम, केरल

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श्रेय: आवाज़ नेशन

मंदिरों के लिस्ट की शुरुआत महाभारत के पात्र शकुनि मामा से करते हैं जिसे चौपड़ के खेल में महारत हासिल थी। शातिर और सबको भ्रम में डालने वाला शकुनि, पांडवों और कौरवों के बीच कुरुक्षेत्र के युद्ध को भड़काने के लिए जिम्मेदार था। हालांकि उसे आम तौर पर एक खलनायक माना जाता है, लेकिन केरल में एक समुदाय उसे सही मानता है। उनके अनुसार वह एक समर्पित भाई था , जो अपनी बहन गांधारी के लिए सबसे अच्छा करना चाहता था । इसलिए इस समुदाय ने पवित्रेश्वरम में उसे सम्मानित करने के लिए एक मंदिर का निर्माण किया।

इस मंदिर में एक सिंहासन मौजूद है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसका इस्तेमाल शकुनि ने किया था। यहाँ किसी भी प्रकार की पूजा या तांत्रिक अनुष्ठान नहीं किया जाता है, फिर भी भक्त लोग मंदिर में प्रसाद जैसे कि नारियल, रेशम, ताड़ की शराब (ताड़ी) आदि चढ़ाते हैं। मंदिर का रखरखाव इस क्षेत्र के कुरवा समुदाय द्वारा किया जाता है।

लोगों का मानना है कि महाभारत युद्ध के दौरान, शकुनि ने कौरवों के साथ यहाँ यात्रा की थी और सेना ने आपस में हथियारों को बाँट लिया था। स्थानीय कुरावरों को लगता है कि शकुनि, युद्ध के बाद पवित्रेश्वरम लौट आए थे और भगवान शिव के आशीर्वाद से उन्होंने यहाँ मोक्ष प्राप्त किया। शकुनि मंदिर के पास ही उसके सहयोगी और चहेते राजकुमार का भी एक मंदिर है। आप समझ ही गए होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं।

दुर्योधन का मंदिर, केरल

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शकुनी का साथी और चेला दुर्योधन इस सूची में दूसरा स्थान लेता है। पोरुवाझी, कोल्लम में पेरुवती मलानाडा मंदिर, दुर्योधन को समर्पित है और शकुनि मंदिर के पास स्थित है।

दुर्योधन, कौरव भाइयों में सबसे बड़ा और पांडवों का मुख्य शत्रु था। मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है बल्कि केवल एक चबूतरा है। संकल्पम के जरिए यहाँ भक्त एक मानसिक प्रक्रिया से दैवीय शक्ति को नमन करते हैं। हालांकि भारत में दुर्योधन के अनेक मंदिर हैं लेकिन यह मंदिर सबसे ज्यादा लोकप्रिय है।

देवता को ताड़ी के अलावा सुपारी, मुर्गा, अरैक और लाल कपड़ा चढ़ाया जाता है। मजेदार बात यह है कि इस प्रॉपर्टी का लैंड टैक्स अभी भी 'दुर्योधन' के नाम पर वसूल किया जाता है। यह तो हमेशा के लिए किसी को यादों में जिंदा रखने की बात हो गयी !

रावण मंदिर, आंध्रप्रदेश

अगला नाम रामायण के मुख्य पात्र रावण का है । सबसे अधिक बदनाम पौराणिक पात्रों में से एक होने के नाते, उसके नाम का मंदिर काफी आश्चर्यचकित करता है।और सिर्फ एक मंदिर ही नहीं है! भारत में कम से कम सात ऐसे मंदिर हैं जहाँ रावण की पूजा की जाती है।

माना जाता है कि आंध्र प्रदेश का काकीनाडा मंदिर रावण का जन्म स्थान है। यह मंदिर रावण भक्तों के लिए बहुत पवित्र है ।आसपास के अद्भुत परिवेश और समुद्र के नज़दीक होने के कारण यह जगह देखने योग्य है।

दिल्ली- NCR में बिसराख, कानपुर में दशानन,राजस्थान में रावणग्राम और मध्य प्रदेश में रावण रुंडी और हिमाचल प्रदेश में बैद्यनाथ, रावण को समर्पित अन्य मंदिर हैं।

कर्ण मंदिर, उत्तराखंड

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महाभारत के एक बदकिस्मत पात्र और पांडवों के विरोधी, कर्ण की पूजा उत्तरकाशी के देवरा में की जाती है। पांडव भाई-बहनों में सबसे धर्मी और दानवीर, कर्ण, कौरवों की तरफ से लड़े थे। क्योंकि उन्होंने बुराई का साथ दिया इसलिए वह भी खलनायक माने जाते हैं।

ऐसा माना जाता है कि कर्ण ने सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए इस स्थान पर ध्यान किया था। इसलिए, इस स्थान को कर्णप्रयाग के नाम से भी जाना जाता है। एक अन्य कहानी यह भी है कि भगवान कृष्ण ने अर्जुन के हाथों कर्ण की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार यहीं किया था।

लकड़ी से निर्मित कर्ण का मंदिर आकार में रेक्टैंगुलर है, जो कि पारंपरिक हिंदू मंदिरों से बिलकुल अलग है। आज, लोग अपनी इच्छा पूरी होने पर श्रद्धांजलि के रूप में इस मंदिर की दीवारों पर सिक्के फेंकते हैं।

गांधारी मंदिर, मैसुरु

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कौरवों की माँ गांधारी को पांडवों के खिलाफ होने के कारण एक नकारात्मक चरित्र के रूप में देखा जाता है। हालांकि, अपने पति और बच्चों के लिए उनके समर्पण की भावना से कम ही लोग असहमत होंगे।

विवाह के बाद जीवन भर अंध बने रहने का निर्णय उसके मजबूत चरित्र और पति के प्रति वफादारी का द्योतक था। इस भक्ति और निष्ठा से प्रभावित होकर मैसूर के एक समुदाय ने 2.5 करोड़ की अनुमानित लागत से 2008 में एक गांधारी मंदिर का निर्माण किया।

भीष्म मंदिर, प्रयागराज

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भीष्म पितामह एक ऐसा पात्र था जिन्हें अपने व्रत से बंधे होने के कारण अंत समय तक कौरवों के लिए लड़ना पड़ा। प्रयागराज में एक मंदिर उनके लिए समर्पित है जहाँ उन्हें तीरों के बिस्तर पर सोते हुए दिखाया गया है।

यह मंदिर, प्रसिद्ध नागवासुकी मंदिर के पास दारागंज में स्थित है। जबकि कुरुक्षेत्र में एक और भीष्म मंदिर है लेकिन प्रयागराज मंदिर ज्यादा लोकप्रिय है।

इन मंदिरों का होना इस बात का प्रमाण है कि हर किसी में एक अच्छाई भी छिपी होती है। किसी ने इन बुरे पात्रों की अच्छाईयों को ध्यान किया और उन पर प्रकाश डाला।

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