पंच केदार की तरह है उत्तराखंड का पंच बद्री सर्किट, जहाँ विराजते हैं भगवन विष्णु

Tripoto
11th Apr 2023
Photo of पंच केदार की तरह है उत्तराखंड का पंच बद्री सर्किट, जहाँ विराजते हैं भगवन विष्णु by Priya Yadav

भारतवर्ष का उत्तराखंड राज्य देवभूमि के नाम से विश्व विख्यात है।जिसका कारण यहां के विभिन्न स्थानों पर देवी देवताओं का विराजमान होना है।उन्ही में से एक उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित हिमालय की गोद में बसा नर तथा नारायण पर्वतों के मध्य भू-बैकुंठ धाम बद्रीनाथ, पंच बद्री में मुख्य, पुराणों में सर्वश्रेष्ठ एंव चारो धामों में से एक प्रसिद्ध और पौराणिक धाम है। 

पंच बद्री भगवान विष्णु के मंदिरों का एक संयोजन है।जो की भगवान विष्णु को समर्पित है,जो इस क्षेत्र में - बद्रीनाथ से लगभग 24 किमी ऊपर सतोपंथ से शुरू होकर दक्षिण में नंदप्रयाग तक फैला हुआ है।इन सभी में भगवान के अलग अलग रूपों की पूजा अर्चना की जाती है।इन में से कुछ मंदिर पूरे वर्ष खुली भी रहती है।तो आइए जानते है इन पंच बद्री के बारे में।

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पंच बद्री क्या है?

पंच बद्री भगवान विष्णु को समर्पित मंदिरों और धार्मिक कार्यों का एक संयोजन है।जहां भगवान बद्री के अलग अलग रूपों की पूजा अर्चना की जाती है।यह बद्री क्षेत्र से लेकर नंदप्रयाग के बीच में स्थित है पंच बद्री में बद्रीनाथ, योगध्यान बद्री, भविष्य बद्री, वृद्ध बद्री और आदि बद्री का नाम आता है|जिसे हम पंच बद्री के नाम से जानते हैं।, पंच बद्री बद्रीनाथ धाम की तरह हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है|

1. बद्रीनाथ

बद्रीनाथ को चार धामों में से एक माना जाता हैं। ये तीर्थस्थल प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों को आकर्षित करते हैं, इस प्रकार पूरे उत्तर भारत में धार्मिक यात्रा के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र बन जाते हैं। बद्रीनाथ लगभग 3,100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। अलकनंदा नदी के तट पर गढ़वाल हिमालय में स्थित, यह पवित्र शहर नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना ऋषि आदि शंकराचार्य ने 8 वीं शताब्दी में की थी। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान विष्णु ने नर और नारायण के अवतार के रूप में तपस्या की थी|

2. श्री योगध्यान बद्री

यह मंदिर चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे गोविंद घाट के पास स्थित है समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 1920 मीटर है|ऐसा माना जाता है कि उसी स्थान पर पांडवों का जन्म हुआ था, और यहां पर जो प्रतिमा स्थापित की गई है, उसके पांडवों के पिता पांडु ने की थी।इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां विष्णु भगवान की जो मूर्ति स्थापित है उसमें वह ध्यान मुद्रा में दिखाई देते हैं इसीलिए इस मंदिर को योग ध्यान बद्री के रूप में जाना जाता है |इसके अलावा यह भी माना जाता है कि महाभारत काल के अंत में कौरवों पर विजय प्राप्त करके और कलियुग के प्रभाव से बचने हेतु पाण्डव हिमालय की ओर आए और यही पर उन्होंने स्वर्गारोहण के पूर्व घोर तपस्या की थी।यह भी कहा जाता है कि पांडवों के पिता राजा पांडु ने अपने अंतिम दिन यहां तपस्या करते हुए बिताए थे, और इसलिए गांव का नाम पड़ा।मंदिर में प्रारंभिक कत्यूरी राजाओं के इतिहास पर बहुमूल्य जानकारी प्रदान करने वाले पुराने शिलालेखों के साथ तांबे की प्लेटें यहां खोजी गई हैं।

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3. भविष्य बद्री

श्री भविष्य बद्री (जोशीमठ के पास) जोशीमठ के पूर्व में 17 कि.मी. की दूरी पर और तपोवल के सुबैन के पास स्थित है।यह मंदिर 2744 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है आदि ग्रंथों के अनुसार यही वह स्थान है जहां बद्रीनाथ का मार्ग बन्द हो जाने के पश्चात धर्मावलम्बी यहां पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।यह मंदिर घने जंगलों में स्थित है, यहाँ भगवान विष्णु के नरसिंह रूप की पूजा होती है| इस मंदिर तक पहुंचने के लिए जोशीमठ से सलधर नामक जगह तक जाना पड़ता है, जोशीमठ से सलधर की दूरी 11 किलोमीटर है, यह दूरी बस या गाड़ियों द्वारा तय की जाती है, यहाँ से फिर 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए यात्रियों को पैदल पहाड़ों की सीधी चढ़ाई करनी पड़ती है |

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4. वृद्ध बद्री

वृद्ध बद्री मंदिर जोशीमठ से 7 किलो दूरी पर अनिमथ गांव में स्थित है यहां भगवान विष्णु की पूजा एक वृद्ध व्यक्ति के रूप में की जाती है| भगवान विष्णु के समृद्ध रूप की एक कथा प्रचलित है ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर नारद मुनि ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी भगवान विष्णु उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर एक वृद्ध व्यक्ति के रूप में दर्शन दिए थे यह मंदिर पूरे साल खुला रहता है|

5. आदिबद्री

यह मंदिर पंडाल और अलकनंदा नदी के संगम पर स्थित है, यह चमोली जिले में कर्णप्रयाग से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इस मंदिर के लिए यह कथा प्रचलित है कि जब पांडव स्वर्ग जा रहे थे तब उन्होंने इन मंदिरों का निर्माण करवाया था| पहले यहां 16 मंदिर थे जिनमें से 2 मंदिर अब नष्ट हो चुके हैं और 14 मंदिर बचे हुए हैं इनमें से मुख्य मंदिर भगवान विष्णु का है, इस मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित है जो कि काले रंग के पत्थर से बनी हुई है, यहां स्थापित मंदिरों की शैली कत्यूरी शैली है जिसका निर्माण बाद में करवाया गया था|

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पौराणिक मान्यताएं

पंच बद्री की पवित्रता धर्मशास्त्रों में स्पष्ट शब्दों में अंकित है। बद्रीनाथ भगवान विष्णु का धरती पर घर माना जाता है और इस पवित्र स्थान का पुराणों में भी उल्लेख है।कहा जाता है कि जब गंगा माता मानव जाति के दुखो को हरने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुई तो पृथ्वी उनका प्रबल वेग सहन न कर सकी। गंगा की धारा बारह जल मार्गो में विभक्त हुई। उसमें से एक है अलकनंदा का उद्गम है। यही स्थल भगवान विष्णु के निवास स्थान के नाम से शोभित होकर बद्रीनाथ कहलाया।एक जनश्रुति के अनुसार पाण्डव अपनी स्वर्ग की यात्रा में जाते समय यही से गए थे और अन्तिम गांव माणा से गुजरे थे। यह भी माना जाता है कि माणा में मौजूद एक गुफा में व्यास ने महाभारत लिखी थी,जोकि बद्री क्षेत्र में ही स्थित हैं।

कैसे पहुंचे?

हवाई जहाज द्वारा: अगर आप हवाई यात्रा करके बद्रीनाथ धाम पहुँचना चाहते हैं तो सबसे निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्रांट देहरदून है। जौलीग्रांट हवाई अड्डा से आप बस से ऋषिकेश पहुँच सकते हैं जहाँ से आपको बद्रीनारायण जाने के लिए सीधे बस व टैक्सी की सुविधा मिल जाएगी। ऋषिकेश से बद्रीनाथ धाम 292 किलोमीटर है।

ट्रेन से: बद्रीनाथ के सबसे समीपस्थ रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो यहां से मात्र 297 किमी. दूर स्थित है। ऋषिकेश भारत के प्रमुख शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली और लखनऊ आदि से सीधे तौर पर रेलवे से जुड़ा है। दिल्ली से रेल द्वारा बद्रीनाथ पहुंचने के लिए दो रूट का प्रयोग यात्रियों द्वारा किया जा सकता है। दिल्ली से ऋषिकेश-287 किमी., दिल्ली से कोटद्वार-300 किमी.।

सड़क मार्ग से: उत्तरांचल स्टेट ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन दिल्ली-ऋषिकेश के लिए नियमित तौर पर बस सेवा उपलब्ध कराता है। इसके अलावा प्राइवेट ट्रांसपोर्ट भी बद्रीनाथ सहित अन्य समीपस्थ हिल स्टेशनों के लिए बस सेवा मुहैया कराता है। प्राइवेट टैक्सी और अन्य साधनों को किराए पर लेकर ऋषिकेश से बद्रीनाथ आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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