नैनीताल के कब्रिस्तान की वो यात्रा जिसने मुझे भूतों में विश्वास दिला दिया!

Tripoto

भूत प्रेतों में विश्वास करना या ना करना हमेशा से विवाद का विषय रहा है। जिनते मुँह है उतने ही किस्से - कहानियाँ भी। लेकिन कई बार कुछ ऐसे अनुभव होते हैं जो आपका ऐसी बातों पर विश्वास करने पर सोचने

मुसाफिरी यूँ तो अपने आप में ही एक बेहद खूबसूरत अनुभव है, पर ये ज़रूरी नहीं कि हर अनुभव आपको ख़ुशी ही देगा। एक ऐसा ही अनुभव बताता हूँ, जिसने हमें ख़ुशी नहीं दी।

करीब 5 साल पहले की बात है जब हम दोस्त साथ में नैनीताल की सुंदरता से रूबरू होने गए थे।

इस सफर से पहले तक भूत-पिशाच, पितृ- भगवान आदि जैसी शक्तियाँ मेरे समझ से बाहर के विषय थे, और ना ही मैं इनमे विश्वास करता था; पर इस एक यात्रा ने हमारा पूरा नज़रिया ही बदल दिया।

भगवान हो ना हो, पर अब किसी ये नहीं कहता कि भूत नहीं होते।

नैनीताल के कब्रिस्तान की कहानी

नैनीताल से करीब 6 कि.मी. दूर भोवाली रोड पर ब्रिटिश काल में बने इस कब्रिस्तान का इतिहास बहुत पेचीदा है।

सन 1850 के दशक के बीच यहाँ ब्रिटिश अधिकारियों को दफनाया जाता था। कहते हैं कि 1880 के भयानक हादसे के बाद से इसे 'भूतहा ' दर्जा मिला।

कैसा हादसा ?

16 दिसंबर 1880 का दिन नैनीताल के इतिहास का सबसे भयानक दिन बना। उस दिन एक ऐसे भूस्ख्लन ने नैनीताल की शान्ति में दस्तक दी जिसमे 150 से ज्यादा लोग मारे गए और कस्बे का काफी बड़ा हिस्सा नक़्शे से पूरा गायब हुआ। कहते है हादसा इतना भयानक था कि बचाव अधिकारियों को लाशें ढून्ढ निकालने में महीनों लग गए थे और उन ज़िन्दगियों का आखिरी ठिकाना बना ये कब्रिस्तान।

मेरा अनुभव

कब्रिस्तान में जाने से पहले मैं इसके इतिहास, इसकी कहानी से बिल्कुल अनजान था। जवानी के जोश में उछलते हम मुसाफिर यार एक साथ उत्तराखंड के जिस रास्ते पर दिल किया, चल पड़े। एक हसीं शाम हम भोवाली रोड से अपने होटल की ओर जा ही रहे थे कि हमारी नज़र इस अजीब से गेट पर जा टिकी। क्योंकि सूरज ढलने में और अँधेरा गहराने में अभी थोड़ा वक़्त बाकी था इसलिए हमने गाड़ी इस गेट की तरफ मोड़ दी।

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अंदर प्रवेश किया। श्रेय : हिंदुस्तान टाइम्स

पुराने दरवाज़े और अनजान जगह को देख कर हमें अंदाज़ा तो था कि जोश-जोश में हम ठीक नहीं कर रहे हैं। तभी अचानक मेरे एक दोस्त ने इस कब्रिस्तान से जुड़ा सन 1880 का किस्सा सुना दिया। हमें किस्सा सुना नहीं, कि सबने अंदर जाने का इरादा पक्का कर लिया।

देखते-ही-देखते हम कब्रिस्तान के अंदर घूम रहे थे, यहाँ दफन लोगों की कहानियाँ जानने की कोशिश कर रहे थे। एक से दूसरी कब्र पर कूद रहे थे।

मासूम लोगों की मौत का मज़ाक बना रहे थे। गले से अजीब-अजीब आवाज़ें निकाल कर एक-दूसरे को डराने की कोशिश कर रहे थे। जवानी पर काबू ना हो तो कब लापरवाही हो जाती है, पता ही नहीं चलता। शायद वहाँ दफ्न लोगों को हमारा बर्ताव भाया नहीं।

आगे क्या हुआ?

करीब घंटे भर बाद हम वहाँ से रवाना हुए और मैंने फिर से गाड़ी ड्राइव करने की कमान संभाली। एक घंटे बाद ही ऐसा लगा मानों मुझसे मेरी ताकत छीन ली गयी हो। ये कोई आम थकान नहीं थी। अजीब, बेहद अजीब। ऐसा लगा जैसे शरीर से सारा खून पैरो के रास्ते बाहर निकाल लिया गया हो। दर्द मेरे बर्दाश्त से बाहर हो रहा था।

शायद कोई बांयटा (मांसपेशी का खिंचाव) आ गया होगा, सोच कर मैं ड्राइव करता रहा।

होटल पहुँचने के आधे घंटे के अंदर ही हम सब को काफी तेज़ बुखार चढ़ा। हम लगातार काँप रहे थे और हमें अहसास हो गया था कि कब्रिस्तान में जो हुआ, वो ठीक नहीं था।

पर अब क्या करें ?

कुछ समझ नहीं आया तो हमने झपकी लेने की सोची। कुछ घंटो बाद जब नींद खुली और बुखार ज्यों-का-त्यौं मिला तो हम घबरा गए। हम में से एक दोस्त ने सूप पीने की सलाह दी।

मुझे अभी भी याद है वो वेटर जो हमारे लिए सूप ले कर आया था। वेटर अजय ने कमरे में घुसते ही शायद भाँप लिया था कि कुछ सही नहीं है। जिन लड़कों की सारी रातें पार्टियों में बीती, अब उन्हें जैसे साँप सूंघ गया हो।

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देवदार के जंगलों की चुप्पी : श्रेय गुआवा गार्डन्स

इत्तेफाक कहो या अच्छी किस्मत,  हमारी अजय से इस सिलसिले में खुलकर बात हुई। हमारी कहानी सुन कर उसने बताया कि जो हुआ वो बिलकुल ठीक नहीं था। अजय  हमें शक्तियों के बारे में बताता गया और हम सुनते गए। अजय ने कहा कि गलती सभी से होती है। अनजाने में हुई गलती उतना नहीं सताती, जितना जानते बूझते की गयी भूल तड़पाती है।

अजय ने हमें प्रार्थना की शक्ति के बारे में बताया। हमने सीखा कि माफ़ी माँगने में बड़ी ताकत है। जैसे ही आप माफ़ी माँगते हो, आपका नया जन्म सा हो जाता है। अजय ने बताया तो हम समझे कि सच्चे दिल से की हुई प्रार्थना तो जैसे संजीवनी बूटी है।

उसकी समझाइश के बाद हमने अपने कर्मों के लिए माफ़ी माँगी और सच्चे दिल से सभी के कुशल-मंगल और शांति की प्रार्थना की। जब कोई और रास्ता न दिख रहा हो तो प्रार्थना ही वो रास्ता है जो हमें आशा की किरण देता है। और उसी आशा की किरण का पीछा करते हुए हम अपने लक्ष्य तक पहुँच जाते हैं।

प्रार्थना में बड़ी ताकत है।

कहानी से सीख लो

माफ़ी का महत्त्व कहो या प्रार्थना की ताकत देखो, अगली सुबह हम स्वस्थ उठ बैठे - मानो हमारे साथ सबकुछ बढ़िया ही घटा हो। जो होना होता है वो होकर रहता है, मगर समझदारी इसी में है कि हम गलतियों से सीख लें और हमेशा सही रास्ते पर बने रहे।

तो दोस्तों याद रखो, जहाँ भी जाओ, उस जगह की, वहाँ के लोगों की इज़्ज़त करो। अगर हम शक्तियों की इज़्ज़त करते हुए सही रास्ते पर रहते हैं तो हमारे साथ सदा मंगल होता है। और अगर कभी कुछ अनोखा करने का मन बने, तो एक बार सोच लें कि पंगा आखिर किससे लेने जा रहे है।

ऐसा परालौकिक अनुभव आपको भी हुआ हो तो अपनी कहानी यहाँ लिखिए। 

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