
ऋषिकेश का दूसरा दिन था, मैंने पहले ही सोच रखा था कि ऋषिकेश की सुबह मैं गंगा के किनारे एकांत में व्यतीत करूंगा। सुबह सुबह मैं ब्रेकफास्ट करके राम झूला की ओर निकला। मेरे होटल से राम झूला की दूरी करीबन 1 किलोमीटर थी, पर मैंने पैदल जाने का विचार किया क्यों कि मौसम बहुत सुहाना था और हवाएं भी काफी तेजी से चल रही थी।


मेरे एक मित्र गढ़ ने मेरे से बोला था जब भी तुम ऋषिकेश जाना तो सुबह सुबह गंगा के किनारे जा के वहा सुबह बिताना, सुबह-सुबह नदी के किनारे खड़े होकर शांति को महसूस करना, एक अलग ही अनुभव होता हैं।बस क्या था उसी अनुभव को महसूस करने के लिए मैं भी पहुंच गया।
यहां पहुंच कर मैंने ऋषिकेश के योग कल्चर को भी देखा। छोटे से ले कर बड़े तक सब योगा कर रहे थे।कुछ दूर आगे बढ़ा तो देखा एक विदेशी महिला यहां कुछ लोगो को योगा सीखा रही थी, उसे देख कर मुझे बहुत गर्व हुआ कि लोग हमारे कल्चर को अपना रहे हैं। इस योग कल्चर को देख कर मुझे समझ आया की ऋषिकेश को योग कैपिटल ऑफ़ इंडिया क्यों कहा जाता है और ऋषिकेश में सालभर पर्यटकों का जमावड़ा क्यों रहता हैं।




आगे जा के मैं नदी के किनारे घंटों बैठा। नदी के किनारे एक पत्थर पर जब मैंने पैर लटका के बैठा तो पानी की धारा मेरे पैरों को छू रही थी जिससे मुझे बहुत सुकून मिल रहा था। अभी मैं बैठा हुआ ही था कि फिर धूप ने संकेत दिया चाय और मैगी का लुत्फ़ लिया जाए और मैं पास के कैफे चला गया। चाय मैगी खाने के बाद मैं नीलकंठ महादेव मंदिर की ओर जाने के लिए अग्रसर हो गया।



