मेरी कुमाऊँ यात्रा, जिसकी शुरुआत होती है लखनऊ से हल्द्वानी बाई ट्रेन। अपनी इस सोलो यात्रा में ठहरने, खाने, यातायात के साधनों और खर्चे का वर्णन किसी और पोस्ट में। यहां फिलहाल अकेले घूमने का सुखद और अद्भुत अनुभव साझा करने का प्रयास करूंगा।
यदि आप मैदानी क्षेत्रों से बिलांग करतें है तो आपको जीवन में एक बार अकेले कुमायूँ रेंज की यात्रा जरूर करनी चाहिए, यकीन मानिए आपके जीवन के सारे बुरे अनुभव छूमंतर हो जाएंगे। बस बैग पैक करिये, मौसम की जानकारी रखतें हुए निकल जाइये एक रोमांच से भरी यात्रा को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाने के लिए। इस यात्रा में मैंने हल्द्वानी, काठगोदाम, कैंची धाम, भीमताल, भुवाली, अल्मोड़ा, चितइ गोलू देवता, जागेश्वर धाम, रानीखेत सहित कई छोटे बड़े स्थानों की यात्रा की है। इस यात्रा में मैंने प्रकृति के सैकड़ो रूपों को बहुत नजदीक से अनुभव किया है। कहीं ऊँचें पहाड़, उनसे गिरते झरनें, घुमावदार रास्ते, दरकते पहाड़, जोरदार बारिश से हुए भूस्खलन, घण्टों जाम रास्ते, कपां देने वाली ठंड, बस का खराब होना, 30 से 35 किलोमीटर की यात्रा में 3 से 4 घण्टे लग जाना, बादलों को नजदीक से देखना, रात में समुद्र तल से लगभग 5500 से 6000 फीट की ऊंचाई से नीचें बसे गावों की चमचमाहट देखना और सबसे अच्छी बात की पहाड़ी लोगों का सुंदर व्यवहार जो किसी को भी अपना बना ले। ऐसे ही न जाने कितने अनुभवों को मैं शब्दों में बयां भी नही कर सकता, बस इतना कहना चाहूंगा कि जब आप पहाड़ों से वापस लौटते है तो आप अपने मन के राजा होतें हैं। साथ ही एक बात गांठ बांध लीजिये, ज़िन्दगी के सफर में सफर करते रहने से वास्तव में जीवन सकारात्मक रूप से बदल जाता है।
तो सोचिये मत और निकलिए.......... कुमायूँ आपका इंतजार कर रहा है।❤️❤️
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