सोलो ट्रैवल की मेरी शुरुआत क्यों नहीं रही थी शानदार?

Tripoto
1st Jan 2021
Photo of सोलो ट्रैवल की मेरी शुरुआत क्यों नहीं रही थी शानदार? by रोशन सास्तिक

कहीं अकेले घूमकर आने का अपना ही एक अलग मजा है। क्योंकि सोलो ट्रेवल की सबसे खूबसूरत बात यह है कि इस दौरान आप सिर्फ और सिर्फ अपने-आप से बात कर रहे होते हैं। नजर भी सफर के हर एक हिस्से को कैद कर रही होती है। यानी सोलो ट्रेवल में आप असल मे किसी जगह को पूरी तरह एक्सप्लोर करते हुए उसे जी भरकर जी पाते हैं। वरना दोस्तों के साथ तो जगह कोई भी हो, उसकी अहमियत अक्सर फोटोज़ के लिए एक अच्छ-से बैकग्राउंड तक सिमट कर ही रह जाती है। हालांकि, इसमें कोई दोराय नहीं कि दोस्तों के साथ सफर में घूमने का अपना एक अलग ही चरमसुख मिलता है। लेकिन, किसी जगह को पूरी तरह जीने के लिए उससे अकेले में मुलाकात करना बहुत जरूरी है।

मैंने अब तक अकेले काफी यात्राएं की हैं। कभी बाइक, कभी बस तो कभी ट्रेन से अकेले ही कहीं दूर बेवजह किसी अनजानी जगह निकल जाने में मुझे बड़ा मजा आता है। इन यात्राओं से मुझे इस मूलमंत्र की प्राप्ति हुई कि सोलो ट्रेवल को आप कितना एन्जॉय कर पाएंगे यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप ग्रुप में घूमने आए लोगों की घूरती नजरों को किस हद तक इग्नोर कर पाते हैं। क्योंकि अमूमन आपको अकेला देखकर लोग आपके बारे तरह-तरह के अजीबोगरीब ख़्याल बनाने लगते हैं। और उनके दिमाग में चल रहे सारे उटपटांग ख्याल उनकी नजरों से एकदम साफ नजर भी आने लगते हैं। और अक्सर यही सारी बातें ठीक-ठाक कॉन्फिडेंस रखने वाले आदमी को भी बेहद असहज कर देती है।

Photo of सोलो ट्रैवल की मेरी शुरुआत क्यों नहीं रही थी शानदार? 1/1 by रोशन सास्तिक

लोग आपको ऐसे देखते हैं मानों, उन्हें पता चल गया है कि आप इस दुनिया में बहुत अकेले हैं.... अरबों की जनसंख्या वाली दुनिया में आपका कोई दोस्त नहीं है.... इस संसार में आपसे ज्यादा दुखियारा और कोई नहीं.... ओह! कितना अभागा है.... इसके पास तो साथ घूमने तक के लिए कोई नहीं है। कसम से भाई साहब, लोगों की आपकी तरफ दया भरी नजर से सारा कॉन्फिडेंस गिर जाता है। हँसते हुए लोग जब आपको देखकर चेहरे पर सहानुभूति का भाव बिखेर दें तब आपको भी खुद पर दया आने लगती है। ऐसे वक्त मन करता है कि चीख-चीखकर लोगों को बता दें कि- अकेला नहीं हूं मैं। बहुत सारे दोस्त है मेरे। अकेले घूमने अपनी मर्जी से आया हूं, किसी मजबूरी की वजह से नहीं। लेकिन ऐसा कर नहीं सकते। क्योंकि फिर लोग पागल समझ सकते हैं।

मेरी बातें कई लोगों को अतिश्योक्ति लग सकती हैं। लेकिन कम से कम मेरे मामले में मेरी लिखी बातें मेरा भोगा हुआ यथार्थ है। कुछ-कुछ इंट्रोवर्ट होने की वजह से सोलो ट्रेवल की शुरुआत में मेरे अनुभव खट्टे ही रहे। लेकिन फिर बाद में सब कुछ ठीक हो गया। तो चलिए, आज मैं आपके साथ अपने उन दो अनुभवों को शेयर करता हूं, जिसके चलते सोलो ट्रैवलिंग को लेकर मेरे शुरुआती अनुभव कड़वे रहे।

मरीन ड्राइव के किनारे का कड़वा किस्सा:-

एक दिन ऑफिस से जल्दी निकल गया। सोचा, बहुत दिन हो गए कहीं अकेले नहीं गया। एक लंबा अरसा हो गया है अकेले बैठकर खुद से गुफ्तगू किए हुए। इसलिए, उस दिन घर जाने की बजाय मैंने 'Me Time' बिताने के लिए मरीन ड्राइव के लिए टैक्सी कर ली। बमुश्किल आधे घंटे के सफर के बाद मेरे सामने समुंदर का आंगन था। जिसके गोद में सिर रखकर सूरज सोने की तैयारी कर रहा था। टैक्सी से उतरते ही नजर आया मरीन ड्राइव का नजारा मेरी नजर में उतर गया। शुरू में कुछ समय तक मरीन ड्राइव के किनारों पर कदमताल करता रहा और फिर रेत पर जाकर बैठ गया। शाम के वक्त की भीड़-भाड़ से बचने के लिए मैं जानबूझकर लोगों से कुछ दूर एकांत में जाकर बैठ गया था। बैठते ही मैंने अपनी दोनों नजरें दूसरे छोर पर टिकाई और फिर सूरज को धीरे-धीरे समुंदर में समाते हुए देखने लगा।

Photo of Marine Lines, Mumbai, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

लेकिन फिर मैंने देखा कि मैं 'देखा' जा रहा हूं। मेरी नजरों ने कैद किया कि कई नजरें मुझे कैद कर रही हैं। फिर मैंने सूरज को साइड कर अपने अगल-बगल नजर घुमाई और पाया कि अपने साथ अपना झुंड लेकर आए लोग रह रहकर मेरी तरफ देख रहे हैं। कम से कम उस वक्त मुझे तो ऐसा ही कुछ महसूस हुआ। उनकी कभी देखती और फिर झट से अनदेखा कर देती नजरों को पढ़ने पर ऐसा लग रहा था, उनकी नजरों में मेरी इमेज एक ऐसे लड़के के रूप में उभरी है- जिसका किसी ने दिल तोड़ दिया है। और बेचारा समुंदर किनारे अपना गम भुलाने या फिर खुद को मिटाने आया है। उस दिन इतना ही होता तो भी ठीक था। मैं सभी को 'ओम इग्नोराय नमः' बोलकर खुद को संभाल लेता। पर फिर जब एक हवलदार भी मेरे पास आकर- 'क्या कर रहा है?' पूछ दिया। तब उसके चेहरे के हावभाव और बोलने के अंदाज से मैं समझ गया कि मुझे बीच पर अकेला देखकर ये सभी यही समझ रहे हैं कि मैं यहां सुसाइड करने आया हूं। इसके बाद तो फिर मुझसे वहां एक पल भी ठहरा नहीं गया। और मैं घर लौट आया।

खंडाला का मन खट्टा कर देने वाला अनुभव:-

बात उस वक्त की जब मेरे पास बाइक नहीं थी। लेकिन खंडाला घाट घूमने की इच्छा बहुत ज्यादा थी। नतीजतन मैं बहुत ज्यादा एक्साइटमेंट लेकर ट्रेन से ही खंडाला घाट के लिए निकल गया। सुबह कल्याण से ट्रेन पकड़ी और दोपहर से पहले खंडाला स्टेशन पहुंच गया। आपकों बता दूं कि बचपन में जब भी गांव जाते या गांव से लौटते वक्त इस स्टेशन से गुजरना होता था, तब हर बार दिल में बड़े जोर से एक ही हसरत पैदा होती कि- काश! आमिर खान के 'आती क्या खंडाला' वाले स्टेशन पर कम से कम एक घंटा रुका जाए। लेकिन ऐसा कभी मुमकिन नहीं हो पाया। इसलिए उस दिन अपने बचपन की ख्वाहिश को पूरा करने के लिए करीब घंटा भर स्टेशन परिसर में ही बिताया। मैंने पहले फूड स्टॉल से खाने के लिए चटर-पटर समान खरीदा और फिर एक बेंच पर बैठ कर स्टेशन से गुजरने वाली लंबी दूरी की गाड़ियों को देखने लग गया। इसी दौरान मुझे वो बच्चे भी दिखाई दिए, जिनकी नजरों में भी वही हसरत थी, जो कभी मेरी नजरों में रहा करती थी। हसरत... 'आती क्या खंडाला' स्टेशन पर जी भरकर ठहरने की।

Photo of Khandala, Lonavla, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

खैर, बचपन की मुराद को पूरा करने के बाद मैं खंडाला घाट पर जा पहुंचा। यहां से आपको नीचे देखने पर सामने गहरी खाई और पहाड़ के किनारों पर बने मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे का थ्रिलिंग नजारा देखने को मिलता है। मैं भी पूरी तल्लीनता के साथ पहाड़ों से बहकर आती ठंड हवाओं को बाहों में और दूर-दूर तक पसरे नायाब नजारों को नजरों में कैद कर रहा था। लेकिन फिर तभी महसूस हुआ कि कोई है जो मुझे अपनी नजरों में कैद कर रहा है। मैंने देखा कि कुछ लोग मुझे रह-रहकर घूर रहे थे। सिर्फ वही नहीं तो, वहां पर संतरे बेच रही एक आंटी की भी नजर थी मुझ पर। मेरे चेहरे की तरफ देख रहे चेहरे भले अलग-अलग थे, लेकिन उन सभी के चेहरे पर भाव एक सा ही था। उन्हें लग रहा था कि मैं अपने जीवन से हताश, उदास और निराश होकर अकेले इन पहाड़ों में आ गया हूं। और हो सकता है कि मैं इतना ज्यादा परेशान हूं कि किसी भी वक्त नीचे छलांग लगा सकता हूं।

अपना मजा किरकिरा न हो इसलिए मैंने उन सभी को अनदेखा करने की कोशिश करते हुए दोबारा प्रकृति से प्रेम की प्रक्रिया को शुरू किया। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि मैं एकदम इम्बैरेस हो गया। इतना कि उससे ज्यादा लज्जित अपनी पूरी जिंदगी में कभी नहीं हुआ था। दरअसल, संतरे बेच रही आंटी मेरे पास आ गई और पूछने लगी- "बेटा, सब ठीक तो है ना?" इसके बाद जब मैंने बाकियों को मेरी तरफ देखते पाया तो फिर तो मुंह से ढंग से 'ठीक हूं' तक निकल नहीं पाया। मुझे इतना गंदा महसूस हुआ कि सूरज के पूरी तरह ढलने के पहले ही स्टेशन की तरफ चल दिया।

देखिए, अब मेरा अपना अनुभव खट्टा और कड़वा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या आपका हाल भी मेरे जैसा ही बुरा रहा है या फिर आपके सोलो ट्रैवल की कहानी सुहावनी है?

- रोशन सास्तिक