'मदरसा-ए-हुनर': जयपुर में छिपा कला का खज़ाना 

Tripoto

पिछले हफ्ते जयपुर में मौसम बढ़िया हो रहा था| तो मैं कैमेरा लेकर पुराने जयपुर में निकल पड़ा | परकोटा यानी बड़ी-बड़ी दिवारों से घिरा हुआ पुराना जयपुर अपने में इतने राज़ समेटे है, कि 10 साल यहाँ रहने के बाद भी कई बार मैं भी हैरान रह जाता हूँ |

फुटपाथ पर चलता मैं कुछ अच्छी तस्वीरें लेने की कोशिश कर ही रहा था, कि अचानक मैं एक बड़े से दरवाज़े के पास पहुँच गया |

यूँ तो पुराने जयपुर में बड़े दरवाज़ों की कमी नहीं है, मगर ये दरवाज़ा कुछ खास था। इस दरवाज़े के बाहर लिखा था - महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ़्टस |

अब दिल से एक कलाकार तो मैं भी हूँ | तो कदम अंदर की ओर बढ़ चले | मुझे क्या पता था कि अंजाने में उठे कदम मुझे एक नायाब नगीने के पास ले जा रहे हैं |

मदरसा-ए-हुनरी के नाम से जानी जाने वाली इस बड़ी सी तीन मंज़िला बिल्डिंग में कृपाल सिंह शेखावत नाम के मशहूर कलाकार की कुछ नायाब कलाकृतियाँ रखी हैं |

ये वही कृपाल सिंह शेखावत हैं जिन्हें सन् 1974 में पद्म श्री अवॉर्ड मिला था | अवॉर्ड्स की बात ना भी करें तो शेखावत साहब को राजस्थान की मशहूर ब्लू पॉटरी की निर्जीव कला में जान फूँकने का श्रेय हासिल है | 

इस तिमंज़िला मदरसा-ए-हुनर के पतले-पतले गलियारों में इस कलाकार की बनाई मूर्तियाँ, पेंटिंग्स, कठपुतलियाँ और ब्लू पॉटरी सजी है |

बिल्डिंग में अंदर जाने का कोई चार्ज नहीं है | गेट पर ही आपको निगरानी करने वाले दो-तीन पुलिस वाले दिख जाएँगे, मगर डरने की ज़रूरत नहीं | यहाँ आप बेखौफ़ फोटोग्राफी/ वीडियोग्राफी कर सकते हैं। 

कहाँ है मदरसा-ए-हुनर

मदरसा हफ्ते में 6 दिन सुबह 9.30 से शाम 8.30 तक खुला रहता है | अगर आप जाना चाहें तो अजमेरी गेट से 500 मीटर अंदर को चलें | आपके दाहिने हाथ को एक बड़ी सी बिल्डिंग दिखेगी, जिसके गेट बाहों की तरह खुले होंगे | बिल्डिंग के बाहर 'महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ़्टस जयपुर' लिखा होगा |

देखते हैं अगली बार जयपुर के संकरे गलियारों में मुझे कौन-सा नायाब मोती मिलता है |

अगर आपको भी अपने शहर के छुपे खज़ाने के बारे में पता है, तो Tripoto पर लिखकर उसकी जानकारी बाकी यात्रियों तक पहुँचाए।