आगरा का नाम सुनते ही दिमाग में सबसे पहला ख्याल आता है 'ताजमहल' का। ऐसा हो भी क्यों ना, आखिर ताजमहल भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के लिए एक नायाब अजूबा है। लेकिन आगरा शहर में ऐसे और भी कईं शिल्पकारी के खज़ाने हैं, जिन्हें लोग अक्सर भूल जाते हैं। लेकिन आप अपनी अगली आगरा यात्रा पर ऐसा बिल्कुल न करें इसलिए मैं आपको कुछ ऐसी जगहों के बारे में बता रहा हुँ, जिन्हें देखकर आपका दिल खुश हो जाएगा।
यह ताजमहल की मेरी यात्रा का हिस्सा है लेकिन मैं इसे अलग लेख में लिख रहा हूं ताकि आप सभी इस स्थान के महत्व और भव्यता का आनंद ले सकें। ताज महल को अच्छे से घूमने के बाद बाहर आइए और सार्वजनिक साधन ले कर आगरा के किले पर पहुँच जाइए जो ताज महल से मात्र 3 किलोमीटर दूर है | मैं आपको जहाँ भी उचित लगे वहाँ गाइड की सहायता लेने की सलाह दूंगा क्योंकि ये लोग कुछ ऐसी बातें और कहानियाँ जानते हैं जो आपको गूगल भी नहीं बता पाएगा |
आगरा का किला
इसके चार दरवाज़े हैं - इनमें से दो का नाम दिल्ली गेट और लाहौर गेट है | किले में घुसते ही मुझे दीवान-ए- आम दिखा जहाँ आम जनता बैठ कर शाही परिवारों के कार्यक्रम देख सकती थी | घुसते समय ही आपको रास्ते में एक बड़ा सा घड़ा दिखाई देगा जिसे शाही राजा नहाने के काम में लेते थे | सफेद संगमरमर से बना हुआ बराबरी का तोरण इतना खूबसूरात है की क्या कहने | किले के कुछ और अंदर चलने पर मैं दीवान- ए- ख़ास पर आ रुका जहाँ राजसी लोग रहते थे | आगरा के किले के भीतर घूमते हुए आप को दीवारों पर बेहद सुंदर व महीन नक्काशी का काम देखने को मिलेगा | आगे बढ़ने पर आपको अपने आगे एक बहुत बड़ा आँगन देखने को मिलेगा जहाँ से और आगे जाएँगे तो सीमा पर खड़े होकर आप ताज महल देख सकते हैं | दिलचस्प बात है कि पूरा किला अर्ध-गोलाकार डिज़ाइन में होने के बावजूद आप कहीं भी खड़े हों, आपको ताज महल दिख जाएगा | किले की छत पर जाना ना भूले जहाँ से आप को ताज महल का और भी बेहतर नज़ारा मिलेगा | पास में बहती यमुना और धुन्ध में लिपटा ताज महल मिलकर ऐसा सुंदर दृश्य बनाते हैं कि यकीन नहीं होता | पूरा किला घूमने में लगभग 3 से 4 घंटे का समय लग सकता है |
जहाँगीर महल
दीवान ए ख़ास
इसे अपनी यात्रा की सूची में अगले दिन के लिए रखें क्योंकि फतेहपुर सीकरी पहुँचने में 2 घंटे लगते हैं और वहाँ रुकने का कोई फ़ायदा नहीं है | मैंने इसे एक ही दिन में कवर कर लिया था क्योंकि मैंने अपनी यात्रा सुबह 5 बजे ही शुरू कर दी थी | यहाँ प्रवेश करते ही मुझे ये जगह पिछली तीनों में से सबसे ज़्यादा संरक्षित की हुई मिली | ये लाल बलुआ पत्थर से बनी है और यहाँ इस्लामी, हिन्दी और जैन वास्तुकला की झलक मिलती है | सामने ही भारत का सबसे बड़ा दरवाज़ा बुलंद दरवाज़ा है| अंदर जामा मस्जिद भी है जो दिल्ली वाली जामा मस्जिद से काफ़ी मिलती है | आगे बढ़ने पर आपको इस जगह का मुख्य आकर्षण यानी सलीम चिश्ती की दरगाह मिलेगी जहाँ स्थानीय लोगों की मानें तो आपकी सभी मुरादें पूरी होती हैं | हर साल यहाँ बड़े बड़े लोग माथा टेकने आते हैं | यहाँ आपको एक धागा बाँध कर मन्नत माँगनी होती है (जब आपकी मन्नत पूरी हो जाए तो धागा खोलना होता है) | यहाँ आपको बहुत से गुंबद दिखाई देंगे जो, अगर गाइड की बात मानें तो शाही परिवार के वंशजों के हैं | ऊपर पहुँचकर आप पूरे शहर को देख सकते हैं और हिरण मिनार भी देख सकते हैं जो एक गोलाकार स्तंभ है | इस स्तंभ के चारों ओर से हाथी के दाँत निकल रहे हैं (गाइड आपको कुछ पैसे देकर इसके पास जाने को कहेगा मगर ये दूर से ही अच्छी लगती है) | यहाँ और भी संरचनाएँ हैं जो आपको घूमते घूमते मिल जाएँगी | पूरे इलाक़े में घूमने में 4 घंटे लगते हैं |
बुलंद दरवाजा
जामा मस्जिद
सलीम चिश्ती का मकबरा
पंच महल
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