जोधपुर और दो दिन: ₹2500 में की राजस्थान के खूबसूरत ब्लू सिटी की बजट ट्रिप

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Photo of जोधपुर और दो दिन: ₹2500 में की राजस्थान के खूबसूरत ब्लू सिटी की बजट ट्रिप by Musafir Rishabh

राजस्थान का हर शहर की अपनी अलग खासियत है। मैंने राजस्थान के कुछ शहरों को पहले एक्सप्लोर किया है लेकिन जोधपुर पहली बार आया हूं। जोधपुर रेलवे स्टेशन से बाहर निकलकर हमने ऑटो लिया और किले के पास मे स्थित एक होटल में पहुँच गए। यहाँ हमें 500 रुपए का कमरा मिल गया। अब हमें जोधपुर को एक्सप्लोर करने के लिए निकलना था।

हमारे होटल की छत से पीछे की तरफ मेहरानगढ़ किला दिखाई दिया और दूर-दूर तक जोधपुर शहर दिखाई दे रहा है। थोड़ी देर बाद हम तैयार होकर पैदल-पैदल किले की तरफ बढ़ चले। जोधपुर के मेहरानगढ़ किले का निर्माण 1460 में राव जोधा ने करवाया था। ये किला शहर से 410 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। इस किले के 7 बड़े-बड़े गेट हैं। कुछ देर में हम मेहरानगढ़ किले के गेट पर पहुँच गए। सबसे पहले हमारे बैग की चेकिंग हुई।

मेहरानगढ़ किला

मेहरानगढ़ किला।

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सबसे पहले टिकट काउंटर मिला। एक भारतीय व्यक्ति का टिकट 200 रुपए का है। अगर आपके पास स्टूडेंट आईडी है तो टिकट 100 रुपए का पड़ेगा। टिकट को लेकर मैं किले के अंदर चलने लगा। किले की बड़ी-बड़ी दीवारें देखकर मैं अचंभित था। मेहरानगढ़ किला भारत के सबसे विशालतम किलों में से एक है। थोड़ी देर में हम किले के म्यूजियम में पहुँच गए।

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इस म्यूजियम के अलग-अलग कमरों में प्राचीन सामान रखे हुए हैं। जिसमें पोशाक, चित्र और पालकियां भी हैं। यहीं पर श्रृंगार चौक भी है जहाँ राजा का राजतिलक किया जाता था। म्यूजियम को देखने के बाद मैंने फूल महल, विलास महल, रंग महल और खूबसूरत शीश महल देखे। हर महल की नक्काशी देखने लायक है और आप हर जगह कुछ देर जरूर ठहरना चाहेंगे। वीकेंड का दिन होने वजह से काफी भीड़ थी और कई स्कूलों के ग्रुप भी भ्रमण के लिए आए थे जिससे भीड़ कुछ ज्यादा ही हो गई थी।

नौचुकिया

लगभग 2 घंटे किले को देखने के बाद हम किले के परिसर में आ गए। हम किले के पीछे वाले गेट से बाहर निकले। हम नौचुकिया की तरफ जा रहे हैं। जोधपुर को ब्लू सिटी के नाम से जाना जाता है लेकिन असल में पूरा शहर ब्लू नहीं है नौचुकिया वाले इलाके में आपको ज्यादातर घर और दीवारें नीले रंग की मिलेंगी। कुछ देर में हम नौचुकिया पहुँच गए। यहाँ मैं कुछ देर नीले गलियों को खोजता रहा और साथ में घूमता रहा।

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नौचुकिया में ही मैंने मिर्ची पकौड़ा और कचौड़ी का स्वाद लिया। मिर्ची पकौड़ा तो एकदम लजीज रहा, ऐसा स्वादिष्ट मिर्ची पकौड़ा मैंने पहली बार खाया। पास में ही एक मिठाई की दुकान से मीठे का भी स्वाद लिया। इसके बाद ऑटो से जालौरी गेट तक आए। अब हमें यहाँ से जोधपुर के उम्मेद भवन पैलेस जाना है। मैंने काफी पता किया लेकिन कोई बस उम्मेद भवन की तरफ जा ही नहीं रही थी। अब हमें यहाँ से ऑटो बुक करके वहाँ तक जाना था जिसका खर्चा काफी ज्यादा आ गया। हमने एक ऑटो ली और चल पड़े उम्मेद भवन पैलेस की ओर।

उम्मेद भवन पैलेस

जोधपुर का उम्मेद भवन पैलेस अकाल को राहत देने के लिए बनवाया गया था। दरअसल जोधपुर में लगातार 3 साल तक सूखा पड़ा। जिससे लोग भुखमरी और बेरोजगार का शिकार होने लगे। तब लोगों ने तत्कालीन राजा से मदद मांगी। लोगों को रोजगार और मदद देने के लिए 1929 में महाराजा उम्मैद सिंह ने इस महल का निर्माण शुरू करवाया और 1943 में यह महल बनकर पूरा हुआ। इस पैलेस का का डिजाइन का काम हेनरी वॉन लानचेस्टर को सौंपा गया था।

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थोड़ी देर में हम उम्मेद भवन पैलेस पहुँच गए। इसका सामान्य टिकट 60 रुपए का है। अगर पास स्टूडेंट आईडी है तो 30 रुपए का पड़ता। टिकट लेकर हम आगे बढ़ चले। उम्मेद भव पैलेस काफी बड़ा है लेकिन हम एक छोटा-सा हिस्सा ही घूम पाए क्योंकि ये पूरा तीन भागों में विभाजित है। रॉयल निवास, हेरिटेज होटल और संग्रहालय। रॉयल निवास, जहाँ महाराजा और उनका परिवार रहता है। हेरिटेज होटल में देश-विदेश से आए लोग किराया देकर यहाँ ठहरते हैं। म्यूजियम में आम लोग टिकट देकर घूम सकते हैं। इस म्यूजियम में काफी पुरानी-पुरानी पोशाकें, घड़ियां और चित्र प्रदर्शनी भी है।

घंटा घर

उम्मेद भवन पैलेस को देखने के बाद मैं वापस होटल लौट आया। कुछ देर कमरे पर आराम किया और रात में घंटा घर की तरफ निकल पड़ा। घंटा घर के आसपास सरदार मार्केट लगता है। यहाँ पर बड़ी संख्या में लोग बाजार करने के लिए आते हैं। यहीं पर श्री मिश्रीलाल नाम की एक दुकान है जो लगभग 90 साल से ज्यादा पुरानी है। यहाँ की मखनिया लस्सी काफी मशहूर है। मखनिया लस्सी के साथ हमने कचौड़ी भी खाई।

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इसके बाद हम सरदार मार्केट से बाहर आ गए। यहाँ हमने एक ठेले से डोसा लिया और पास में एक दुकान से पत्ता कचौड़ी खाई। हम बाहर तो निकले थे खाना खाने के लिए लेकिन जोधपुर के स्ट्रीट फूड से हमारा पूरा पेट एकदम फुल हो गया। अब पेट में तो जगह नहीं थी तो हम कमरे की तरफ वापस चल पड़े। अब अगले दिन हमें जोधपुर की कुछ और जगहों को घूमना था।

पहले दिन का खर्च: 1580 रुपए

होटल: 500 रुपए

ऑटो: 500 रुपए

टिकट: 260 रुपए

खाने पर खर्च: 320 रुपए।

जसवंत थड़ा

अगले दिन हम सुबह-सुबह तैयार हो गए। आज हमें सबसे पहले जसवंत थड़ा जाना था। जसवंत थड़ा किले के पास में ही है। हम जब किला देखने गए थे तब ही जसवंत थड़ा चले जाना चाहिए था लेकिन तब दिमाग में ही नहीं आया। तो पहले हम कल वाले रास्ते से किले के गेट तक पहुँचे और फिर किले के अंदर ना जाकर बाहर वाले रास्ते पर चलने लगे। कुछ देर बाद एक गेट आया और पहाड़ी पर एक मूर्ति देखने को मिली। ये मूर्ति जोधपुर की स्थापना करने वाले महाराजा राव जोधा की मूर्ति है।

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इस मूर्ति को देखने के बाद हम जसवंत थड़ा की तरफ बड़ गए। जसवंत थड़ा का टिकट 30 रुपए का है। टिकट लेने के बाद हम जसवंत थड़ा की ओर बढ़ चले। जसवंत थड़ा को मारवाड़ का ताजमहल भी कहा जाता है। जसवंत थड़ा में जोधपुर के राजपरिवारों के सदस्यों का अंतिम संस्कार होता है। यहाँ पर संगमरमरकी छतरियां और स्मारक बने हुए। जसवंत थड़ा को 1899 में महराज जसवंत सिंह द्वितीय की याद में महाराजा सरदार सिंह ने बनवाया था। जसवंत थड़ा के पास में ही एक सुंदर-सी झील है जो इस जगह की सुंदरता में चार चांद लगा देती है।

मंडोर गार्डन

इसके बाद अब हमें मंडोर गार्डन जाना था। मैंने फिर से ऑटो की और मंडोर गार्डन की तरफ चल पड़ा। मंडोर गार्डन जोधपुर से 9 किमी. की दूरी पर है। यहाँ पहुँचने में थोड़ा समय लगा। गार्डन के सामने एक होटल पर हमने कड़ी-कचौड़ी और मिर्ची पकौड़ा खाया और फिर मंडोर गार्डन को देखने के लिए निकल पड़े। पहले मंडोर ही इस इलाके की राजधानी हुआ करती थी। हजारों साल तक मारवाड़ों की राजधानी मंडोर रही। जोधपुर की स्थापना के बाद मंडोर से राजधानी जोधपुर पहुँच गई।

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सबसे पहले हम देवल पहुँचे। यहाँ पर आकर मुझे लगा कि मैं खजुराहो के मंदिरों में आ गया। वैसे ही आकार में बने कई सारे स्मारक यहाँ पर हैं। सभी स्मारकों पर अलग-अलग राजाओं के बारे में लिखा भी है। देवल देखने के बाद आगे बढ़े तो थंबा महल देखने को मिला। आगे चलने पर हॉल ऑफ हीरोज, मंदिर और म्यूजियम भी। म्यूजियम का टिकट लेकर हम अंदर चले गए। मंडोर संग्रहालय बहुत बड़ा नहीं है तो कुछ ही समय में इसको घूम लिया। मंडोर गार्डन से निकलकर लोकल बस में बैठ गए। लगभग आधे घंटे बाद हम सरदार मार्केट के आसपास थे।

दूसरे दिन का खर्च: 995 रुपए

टिकट : 45 रुपए।

ऑटो : 150 रुपए

खाने पर खर्च : 300 रुपए

होटल : 500 रुपए।

मैंने दो दिन में राजस्थान के जोधपुर की ज्यादातर जगहों को घूम चुका हूं। हर जगह की कुछ जगहें तो हमेशा छूट ही जाती हैं। ये जगहें ही वापस से इन शहरों में आने का मौका देती हैं। जोधपुर काफी सुंदर और वैभवता वाला शहर है। यहाँ के कण-कण में सुंदरता पसरी हुई है। इसके बावजूद एक बात तो है कि इस नीले शहर में सब कुछ नीला नहीं है। जोधपुर की यात्रा के बाद अब हमें राजस्थान एक और नए शहर की यात्रा पर निकलना था।

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