कामदगिरि पर्वत: वो तीर्थस्थल जहाँ भगवान राम ने बिताया वनवास

Tripoto

भारत में तीर्थ यात्रा हर एक हिंदू व्यक्ति की ज़िंदगी का अहम हिस्सा है। इस चार धाम की तीर्थ यात्रा में चित्रकूट एक अहम पड़ाव है, ये तो सभी जानते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि चित्रकूट में ही एक ऐसी जगह है, जहाँ की यात्रा किए बिना आपकी तीर्थ यात्रा अधूरी है? वो जगह है कामदगिरि, जिसे अक्सर असली चित्रकूट भी कहा जाता है।

कामदगिरि का महत्व

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श्रेय: मोहन

रामायण में कामदगिरि का विशेष महत्व है। ये वही जगह है जहाँ भगवान राम, सीता और लक्ष्मण ने अपने वनवास के 11 साल गुज़ारे थे। ये वो जगह भी है जहाँ भरत-मिलाप हुआ था।

कामदगिरि का वरदान

रामायण की पौराणक कथा के अनुसार जब भगवान श्री राम ने इस पर्वत को छोड़ आगे बढ़ने की ठानी, तो पर्वत ने उन्हें चिंता ज़ाहिर करते हुए बताया कि चित्रकूट की अहमियत सिर्फ श्री राम के वहाँ रहने तक ही थी, और उनके वहाँ से चले जाने के बाद उस जगह को कोई नहीं पूछेगा। ये चिंता सुनकर भगवान श्री राम ने पर्वत को आशीर्वाद दिया कि जो कोई भी इस पर्वत की परिक्रमा पूरा करेगा, उसकी मनोकामना पूरी होगी, और चित्रकूट धाम की यात्रा भी इस पर्वत की परिक्रमा के बाद ही संपन्न मानी जाएगी। इच्छा पूरी करने वाले पहाड़ के नाम पर ही इस पर्वत का नाम कामदगिरि रखा गया और आज हज़ारों श्रद्धालु मन में अपनी इच्छाएँ लिए , उन्हें पूरी करने की मुराद के साथ कामदगिरि की परिक्रमा करते हैं।

कामदगिरि के दर्शनीय स्थल

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श्रेय: वैटिकेनस

कामदगिरि की 5 कि.मी. लंबी परिक्रमा की शुरुआत रामघाट में डुबकी के साथ ही होती है। माना जाता है कि चित्रकूट में अपने निवास के वक्त श्रीराम इसी घाट में स्नान किया करते हैं और उन्होंने अपने पिता दशरथ का पिंड दान भी मंदिकिनी नदी के किनारे बने इस घाट पर ही किया था। इस घाट पर शाम को आरती में शामिल होकर आप अध्यात्म के करीब आ जाते हैं।

Photo of कामतानाथ मंदिर, Laxman Bhiar Colony, Sitapur, Chitrakoot, Madhya Pradesh, India by Bhawna Sati

परिक्रमा के रास्ते में ही भगवान कामतानाथ का मंदिर है। माना जाता है कि कामतानाथ भगवान राम का ही एक रूप थे। मंदिर में कामतानाथ के साथ कामदगिरि देवी की भी पूजा की जाती है।

भरत मिलाप मंदिर

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कामदगिरि पर बना ये मंदिर रामायण के एक उस अहम अध्याय का प्रतीक है जब भरत श्रीराम को वनवास छोड़ अयोध्या वापिस लौटने के लिए मनाने आए थे। कहा जाता है कि आज भी श्री राम समेत चारो भाईयों के पैरों के निशान आज भी यहाँ देखे जा सकते हैं।

ये वही पहाड़ी है जहाँ वनवास के समय लक्ष्मण रहा करते थे और आस-पास नज़र बनाए रखते थे। यहाँ पहुँचने के लिए आपको करीब 200 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं लेकिन आप इस पहाड़ी से पूरे चित्रकूट का नज़ारा देख सकते हैं।

अपनी कामदगिरि यात्रा पर आप चार धामों में से एक, चित्रकूट के दर्शन भी कर सकते हैं। साथ ही भारत के नाईग्रा फॉल्स कहे जाने वाले चित्रकूट झरने की अद्भुत विशालता को देखे बिना यहाँ से ना जाएँ।

कैसे पहुँचें कामदगिरि?

हवाई मार्ग- कामादगिरी के लिए सबसे करीबी हवाई अड्डा खजुराहो है जो यहाँ से 175 कि.मी. की दूरी पर है। आप खजुराहो से बस या टैक्सी के ज़रिए कामदगिरि पहुँच सकते हैं।

रेल मार्ग- कामदगिरि पहुँचने के लिए चित्रकूट धाम कार्वी सबसे करीबी रेलवे स्टेशन है। आप यहाँ से बस या टैक्सी कर आसानी से कामदगिरि पहुँच सकते हैं।

सड़क मार्ग- कामदगिरि मध्य प्रदेश के दूसरे शहरों से सड़क के ज़रिए अच्छी तरह जुड़ा हुआ है तो आप आसानी से यहाँ पर बस या टैक्सी कर पहुँच सकते हैं।

कामदगिरि यात्रा का सबसे सर्वश्रेष्ठ समय

वैसे तो सालभर ही कामदगिरि श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है लेकिन अगर आप यहाँ रामनवमी, दीपमालिका या किसी भी महीने की अमावस पर आते हैं तो यहाँ लगने वाले मेले का हिस्सा भी बन सकते हैं। यकीन मानिए, इस दौरान यहाँ का नज़ारा कुछ और ही होता है।

अगर आपने भी कामदगिरि के दर्शन किए हैं तो Tripoto पर अपनी यात्रा के बारे में लिख कर अपना अनुभव Tripoto मुसाफिरों के साथ बाँटें।

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