फिजाओं में आज भी श्री राम की है गूंज, शताब्दियों बाद भी नहीं बदला चित्रकूट

Tripoto
8th Aug 2019
Photo of फिजाओं में आज भी श्री राम की है गूंज, शताब्दियों बाद भी नहीं बदला चित्रकूट by saurabh tiwari

सौरभ तिवारी..

दोस्तों , सत्य है कि आधुनिकता और भीड़ के इस वातावरण में हमें पौराणिक कथाओं से इतर किसी भी आध्यात्मिक स्थलों पर ईश्वर की वह अनुभूति शायद नहीं होती है। मिलों दूर का सफर तय करने और हज़ारों रुपए खर्च करने के बाद भी कुछ कमी या यूँ कहें खुद को ठगा महसूस करने सी अनुभूति होती है। ऐसा नहीं है कि सभी आध्यामिक स्थलों में यह कथन सटीक है लेकिन ज्यादातर की स्थिति यही है। हम आज आपको आध्यात्म और प्रकृति के ऐसे संगम में ले चलते हैं जहां बेहद कम खर्च के बाद शदियों पुरानी परंपरा, परिवेश और प्रकृति हमें आसानी से देखने को मिलती है। जी हाँ, हम उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सीमा पर बसे चित्रकूट कस्बे की बात कर रहे हैं। कथन है कि भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने वनवास काल के दौरान बारह वर्ष बिताए थे। आज भी प्रकृति की गोद में वह स्मृतिचिन्ह मौजूद हैं। चित्रकूट में कई स्थानों पर कुछ भी नहीं बदला है। ज़रूर एकाध मंदिर और छानी छप्पर में पूजा पाठ सामग्री की दुकानें खुल गई हैं, लेकिन आज भी शांत-निर्मल मंदाकिनी का जल और उसमें तैरती मछलियाँ हमें प्रभु श्रीराम की याद दिलाती हैं, साथ ही प्रकृति के इस कलरव का बोध कराते हुए दिल को सुकून पहुँचाती हैं। अपने तीन दिनों की यात्रा विवरण में चित्रकूट का साक्षात् कराने का बोध करता हूँ, निश्चित ही इस पावन भूमि में जाकर ईश्वर से रूबरू होने का मौका मिलेगा। यात्रा के दौरान क्या सावधानियाँ बरती जाएँ, ठगी से कैसे बचा जाए, यह सब भी आपको बताऊँगा। जो आपके चित्रकूट भ्रमण में सहयोगी होंगी।

आप चित्रकूट कभी भी जाएँ तो समय लेकर जाएँ। आपके सामने घर की समस्याएँ व भागमभाग का माहौल न हो। हाँ एक बात और- यह स्थान छोटे छोटे पथरीले पहाड़ों से घिरा हुआ है। ऐसी स्थिति में यहाँ पर गर्मी अधिक होती है। हालात यह होते हैं कि गर्मी के मौसम में यहाँ का पारा 48 डिग्री के पार पहुँच जाता है। सलाह है कि कभी भी अप्रैल से अगस्त के बीच यहाँ आने की प्लानिंग कतई न बनाएँ। वरना सुखद यात्रा कठनाई भरी हो सकती है। बारिश या सर्दियों में आना बेहतर रहेगा।

यहाँ प्रयागराज खुद आते हैं पाप धुलने

जहाँ भगवान श्रीराम की तपोस्थली रही हो तो वहाँ के महत्व को बताना मुश्किल ही नहीं वरन नामूमिकन है। चित्रकूट के महत्म के बारे में सभी परिचित हैं। लेकिन इसके अहम और एक प्रमुख भाग मंदाकिनी का जिक्र करते हैं। मंदाकिनी सिर्फ नदी नहीं वरन हिन्दू मान्यताओं का केंद्र है। यदि यह कहें कि माँ गंगा की भांति इससे पावन नदी कोई नहीं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। किवंदती है कि लोग अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए प्रयागराज में स्नान करते हैं, लेकिन हर साल प्रयागराज खुद मंदाकिनी में स्नान करने आते हैं। महर्षि बाल्मीकि रचित रामायण में इस तथ्य का जिक्र भी है।

पहले दिन की यात्रा

अपनी यात्रा के पहले पड़ाव में हम मंदाकिनी नदी का भ्रमण करते हैं। मंदाकिनी नदी का प्रमुख घाट राम घाट है जहाँ प्रभु राम नित्य स्नान किया करते थे । इसी घाट पर राम भरत मिलाप मंदिर है और इसी घाट पर गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रतिमा भी है । घाट के चारों तरफ अद्भुत शिल्प कला के मंदिर हैं। नदी के तट पर बने रामघाट में प्रभु राम नाम की घोष आसानी से सुनाई पड़ती है। शाम करीब साढ़े छह बजे के बाद मन मोह लेने वाले और ताउम्र कभी भी आँखों से ओझल न होने वाले अद्भुत दृश्य देखने को मिलते हैं। रंग बिरंगी नावें और उसमें रखे साउंड से बुंदेली भाषा में लोकगीत साथ ही छोटे छोटे खरगोश की चहल कदम कभी न भूलने वाले हैं। जहाँ नौकाविहार बेहद आनंद देने वाला स्मरण होगा। शाम को होने वाली आरती मन को काफी सुकून पहुँचाती है।रामघाट से 2 कि.मी. की दूरी पर मंदाकिनी नदी के किनारे जानकी कुण्ड स्थित है। जनक पुत्री होने के कारण सीता को जानकी कहा जाता था। माना जाता है कि जानकी यहाँ स्नान करती थीं। यह स्थान पूरी तरह प्रकृति की गोद में है। नदी के उस पार ऊँचे ऊँचे फल और छाया दार घने वृक्ष दिखाई पड़ते हैं। कुण्ड के समीप ही राम जानकी रघुवीर मंदिर और संकट मोचन मंदिर है। मंदाकिनी नदी का तीसरा घाट सती अनुसुइया है। यहाँ जाने का अपना अलग आनंद है। यदि घंटों बिताए जाएँ तब भी लगता है कि काश यहाँ बस जाएँ। अति अनुसूइया आश्रम ऋषि अत्रि के विश्राम स्थान के रूप में जाना जाता है। अत्रि ने अपनी पत्नी अनुसूया के साथ यहाँ ध्यान किया। कथा के अनुसार वनवास के दौरान भगवान राम और माता सीता इस आश्रम में सती अनुसूया से मिले थे। सती अनसूया इस समय माँ सीता को पढ़ाया करती थीं। यहाँ रथ पर पीछे सवार अर्जुन के साथ भगवान कृष्ण की एक बड़ी मूर्ति है जो महाभारत दृश्य को दर्शाती है। इसके अंदर दिलचस्प कलाकृतियों वाली कई मूर्तियाँ हैं, जिन्हें पवित्र दर्शन के लिए रखा है। मंदाकिनी के सबसे मोहक और घाटों में स्फटिक शिला है। हलांकि यहाँ स्थान करना मुश्किल है। क्योंकि नदी की गहराई बेहद अधिक है। स्फटिक शिला एक छोटा सा शिला खण्ड है जो रामघाट से ऊपर की तरफ मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है। यह वह स्थान है जहाँ माता सीता ने श्रृंगार किया था। इसके अलावा, किंवदंती यह है कि यहाँ जयंत, भगवान इंद्र के बेटे ने, छद्मवेष में एक कौए के रूप में सीता के पैर में चोंच मारी थी। ऐसा कहा जाता है कि इस शिला खण्ड पर अभी भी भगवान राम के पैर की छाप है। लोग यहां मछलियों को दाना खिलाते हैं। चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के तट पर 43 एकड़ में फैला हुआ आरोग्य धाम परिसर, योग, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद का संगम है। प्राकृतिक रूप से भरपूर यह परिसर मंदाकिनी तट पर स्थत है। कल कल तेज आवाज करती इस नदी में चित्रकूट पहुंचने वाले ज्यादातर श्रद्धालु इस स्थान पर जाना पसंद करते हैं। संस्था की ओर से श्रद्धालुओं के स्नान योग्य यह परिसर बनाया गया है।

दूसरे दिन की यात्रा

पहले दिन की यात्रा में मंदाकिनी नदी का भ्रमण और पास के मंदिरों में दर्शन इत्यादि के बाद हम दूसरे दिन राम घाट या अरोग्य धाम में मंदाकिनी स्नान के बाद सुबह भगवान कामतानाथ के दर्शन करते हैं। एक पर्वत में बने इस मंदिर को भगवान राम के निवास स्थान के रूप में जाना जाता है। करीब 5 कि.मी. पैदल परिक्रमा करते हैं। यह परिक्रमा आत्मिक शांति बोध कराती है। रास्ते भर विभिन्न प्रकार के बंदरों से सामना होता है। हालांकि इनसे बेहद सर्तक रहने की ज़रूर है, क्योंकि वह चोट ना पहँचा कर यदि साथ में खाने पीने की वस्तु है तो निश्चित रूप में झपट कर ले जाएँगे। परिक्रमा मार्ग में तमाम मंदिर, जिसमें लक्ष्मण पहाड़िया विशेष है। यहाँ भगवान लक्ष्मण के निवास के रूप में जाना जाता है। दोपहर में कुछ आराम और खाने के बाद राम में फिर हम राम घाट की आरती में सम्मिलत होते हैं।

तीसरे और यात्रा का अंतिम दिन

तीसरे दिन सुबह उठकर हम हनुमान धारा की चढ़ाई पूरी करते हैं। रामघाट से करीब 5 कि.मी. दूरी पर स्थित हनुमान धारा बेहद मनोरम स्थल है। करीब चार सौ सीढ़िया चढ़ने के बाद भगवान हनुमान के दर्शन होते हैं। इस पर्वत पर चढ़कर पूरे चित्रकूट की मनोरम छटा दिखाई पड़ती है। इसके बाद हनुमान धारा से करीब 25 कि.मी. दूर गुप्त गोदावरी का भ्रमण करते हैं। यदि चित्रकूट गए तो गुप्त गोदावरी अवश्य जाएँ। यहाँ से निकली गंगा का उद्गम और विलय स्थल आज तक वैज्ञानिक भी नहीं पता कर पाए हैं। विशाल गुफा में प्रकृति की कारीगरी यहां आसानी से देखी जा सकती है।

कब और कैसे जाएँ चित्रकूट

वैसे तो किसी भी मौसम में चित्रकूट जा सकते हैं। लेकिन गर्मियों में जाने से बचना चाहिए। खुशगवार मौसम में यहाँ जाना उपयुक्त समय है। चित्रकूट जाने के लिए नज़दीकी एअरपोर्ट  80 कि.मी. इलाहाबाद, 180 कि.मी. कानपुर और खजुराहो है। यह इलाहाबाद-झांसी रेलवे लाइन से जुड़ा हुआ है। यहाँ का नज़दीकी रेलवे स्टेशन कर्वी है। जबकि सड़क मार्ग से पहुँचने के लिए हर समय बसे और टैक्सी आसानी से मिल जाती है। यहाँ पर ठहरने के लिए विभिन्न लग्जरी होटल, आश्रम और तमाम साधुओं से स्थल हैं जहाँ पर मुफ्त में भी ठहर सकते हैं। प्रत्येक माह अमावस्या और पुण्यवासी को लाखों की तादाद में यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ पहुँचती है।

ठगी से बचें

अन्य धार्मिक स्थलों की भांति यहाँ भी ठगी करने वालों की फौज मौजूद है। यदि आप तनिक चूके तो जेब खाली कर देंगे। तमाम मंदिरों और पौराणिक स्थलों पर मौजूद साधुवेश धारी अपनी लक्क्षेदार बातों और परिवार सदस्यों का वास्ता देकर आपकी से जेब से आसानी से पैसे ऐंठ लेंगे। ऐसे लोगों से सतर्क रहने की ज़रूरत है।

Day 3

चित्रकूट धाम भ्रमण

Photo of फिजाओं में आज भी श्री राम की है गूंज, शताब्दियों बाद भी नहीं बदला चित्रकूट by saurabh tiwari
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