खलिया टॉप: मेरे लिए असीम सुंदरता और रोमांच का पर्याय है मुनस्यारी का ये ट्रेक

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Photo of खलिया टॉप: मेरे लिए असीम सुंदरता और रोमांच का पर्याय है मुनस्यारी का ये ट्रेक by Rishabh Dev

पहाड़ इश्क़ है, ये सिर्फ़ कहने वाली लाइन नहीं है। जब पहाड़ों में घूमता हूँ तो वाक़ई में कुछ और करने का मन नहीं करता है। पहाड़ों में जाकर हर बार यही लगता है कि कुछ रह-सा गया है, थोड़ा और आगे जाना चाहिए था। मैं कई दिनों से अपनी स्कूटी से कुमाऊँ यात्रा पर था। टनकर, चंपावत, लोहाघाट, पिथौरागढ़ और धारचूला के बाद मैं मुनस्यारी पहुँच गया। 2,135 मीटर की ऊँचाई पर स्थित मुनस्यारी में मैंने रोमांच से भरी यात्रा की, जिसे मैं कभी नहीं भूल पाऊँगा। मैंने खलिया टॉप का ट्रेक किया।

खलिया टॉप

मुनस्यारी।

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मुनस्यारी में मेरा एक दोस्त दिल्ली से आ गया। अब हम दोनों खलिया टॉप ट्रेक करने वाले थे। हम अपने होटल से खलिया टॉप ट्रेक करने के लिए पैदल निकल पड़े। मुझे ये नहीं पता था कि मुनस्यारी से खलिया टॉप द्वार 8 किमी. है। जब हम काफ़ी आगे निकल आए तब हमें ये बात पता चली। वापस लौटने का मन नहीं था, इसलिए पैदल ही बढ़ चले। स्थानीय लोगों से बात करने पर हमें एक शॉर्टकट मिल गया। हम उसी जंगल वाले रास्ते से बढ़ चले।

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रास्ते में एक कच्चा पुल मिला। पहाड़ों में पुल मुझे हमेशा से बेहद प्यारे लगते हैं। पुल के पास बैठना मेरे सबसे प्यारे पलों में से एक है। पुल के नीचे से पानी भी बह रहा था। कुछ आगे बढ़े तो बुरांश के पेड़ भी दिखना शुरू हो गए। पहाड़ों में बुरांश का पेड़ सबसे खूबसूरत पेड़ों में से एक है। जंगल में चलते-चलते हम एक बार भटक गए लेकिन हमें ये पता था कि हम सही रास्ता पकड़ लेंगे। काफ़ी देर बाद हम खलिया टॉप गेट पहुँचे।

ट्रेक शुरू

खलिया टॉप गेट।

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खलिया टॉप गेट पर हमारी एंट्री हुई और 20 रुपए फ़ीस भी लगी। हमने चलने के लिए स्टिक ले ली, जिसका किराया भी रुपए पड़ा। हमें वापस लौटने पर इस स्टिक को वापस करना था। हम धीरे-धीरे जंगल के बीच से बढ़ने लगे। शुरू में मुझे ट्रेक आसान लग रहा था। जंगल इतना घना था, कि धूप अच्छे से नीचे नहीं आ रही थी। रास्ते में हमें एक जगह खूब सारे लंगूर मिल रहे थे। जब थकावट होती थी तो वहाँ थोड़ी देर आराम कर लेते थे। 1 किमी. चढ़ने के बाद थकावट हम पर हावी होने लगी। ट्रेक शरीर से ज़्यादा दिमाग़ पर हावी होता है। अगर आप दिमाग़ी जंग जीत लेते हैं तो शरीर आपका ट्रेक करवा ही देता है।

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पहाड़ों में जब घुमावदार रास्ते पर चलते हैं तो ऐसा लगता है कि काफ़ी चल लिए हैं लेकिन असल में काफ़ी कम चलते हैं। थकावट भी होती है और समय ज़्यादा लगता है, इस वजह से हमें लगता कि हम ज़्यादा चल लिए हैं। इस ट्रेक में भी हमें यही लग रहा था लेकिन असल में हम काफ़ी कम चले थे। कुछ देर चलने के बाद हम जंगल से खुले मैदान में आ गए। यहाँ से हरा-भरा जंगल तो दिखाई दे रहा था, साथ ही साथ सामने पंचाचुली की बर्फ़ से चोटी भी दिखाई दे रही थी। कुछ देर इस नज़ारे को देखने के बाद हम आगे चल पड़े।

कैंपिंग साइट

कुछ देर चलने के बाद हम कैंपिंग साइट पर पहुँच गए। खलिया टॉप गेट से कैंपिंग साइट की दूरी लगभग 3 किमी. है। यहाँ पर कुमाऊँ मंडल विकास निगम के कुछ कमरे हैं। इसके अलावा कैंप भी हैं, जिसमें आप ठहर सकते हैं। कॉटेज का किराया 1000 रुपए है, जिसमें खाना शामिल नहीं है। कैंप में रहने का 1 व्यक्ति का किराया 1500 रुपए है जिसमें डिनर और अगले दिन का नाश्ता शामिल है। हमने यहाँ पर दाल-चावल आर्डर दे दिया और फिर बैठकर पंचाचुली का नजारा देखने लगे।

कैंपिंग साइट।

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यहाँ पर ठंडी हवा चल रही थी, इस वजह से हमें अपने गर्म कपड़े निकालने पड़े। कुछ देर हमने आराम किया और फिर दाल-चावल का स्वाद लिया। पहाड़ों में जब आप ट्रेक करने जाते हैं, तो वहाँ हर चीज थोड़ी महँगी होती है। हमें दाल-चावल भी थोड़े महँगे पड़े लेकिन वो जायज़ भी है क्योंकि यहाँ तक सामान लाना कोई आसान बात नहीं है। दाल चावल खाने के बाद हम फिर से अपने ट्रेक के लिए निकल पड़े। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, हम जल्दी थक जा रहे थे। ऊँचाई वाली जगह ऑक्सीजन लेवल कम होता है, इस वजह से थकावट जल्दी होती है।

खलिया टॉप

खलिया टॉप मुनस्यारी।

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हम थकावट के साथ आगे बढ़ते जा रहे थे। कुछ देर बाद अचानक से पीली घास शुरू हो गई, जो इस रास्ते के सुंदर बना रही थी। पीली घास के बीच हम कठिन चढ़ाई चढ़ रहे थे। रास्ते में हमें जो भी मिल रहा था, सब खलिया टॉप जाकर लौट रहे थे। खलिया टॉप के आगे ज़ीरो प्वाइंट भी है, हम यही सोच रहे थे कि पता नहीं लोग वहाँ क्यों नहीं जा रहे हैं? काफ़ी चढ़ाई के बाद आख़िरकार हम हरे-भरे घास के बुग्याल में पहुँच गए। यहाँ काफ़ी लोग दिखाई दे रहे थे।

हम खलिया टॉप पर कुछ देर बैठे रहे और फिर लेट भी आ गए। ठंडी हवाओं के बीच घास पर लेटने में वाक़ई में आनंद आ रहा था। खलिया टॉप पर काफ़ी लोग थे लेकिन बहुत ज़्यादा भीड़ भी नहीं थी। सब लोग यहीं से वापस लौट रहे थे लेकिन हमारा पूरा मन था कि ज़ीरो प्वाइंट तक जाएं, चाहे फिर कैंपिंग साइट पर ही क्यों ना रूकना पड़े। खलिया टॉप से दिखने वाला नजारा वाक़ई में बेहद सुंदर है। पहाड़ से ज़्यादा इस जगह को बादल खूबसूरत बना रहे थे।

ज़ीरो प्वाइंट का सफ़र

खलिया टॉप।

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खलिया टॉप पर कुछ देर गुज़ारने के बाद हम ज़ीरो प्वाइंट के लिए निकल पड़े। ज़ीरो प्वाइंट की ओर जाने वाले सिर्फ़ हम दो ही लोग थे और कोई नहीं था। हम धीरे-धीरे थकते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। मैं यही सोचकर आया था कि इस ट्रेक में मुझे बर्फ़ नहीं मिलेगी। गर्मियों में वैसे भी बर्फ़ इतनी ज़्यादा कहां होती है? खलिया टॉप तक बर्फ़ मिली भी नहीं लेकिन अब असली खेला होने वाला था।

कुछ देर बाद हमें हल्की-फुल्की बर्फ़ मिली। इसके बाद धीरे-धीरे बर्फ़ की मात्रा बढ़ने लगी। ये जगह तो ऐसा पेच आया कि अगर थोड़ा भी पैर इधर हुआ तो सीधा खाई में गिर जाऊँगा। संभल-संभल कर उस पेच को हमने पार किया। इसके बाद एक लंबी चढ़ाई और चढ़नी थी, जो पूरी बर्फ़ की थी। पहले तो मेरी हिम्मत नहीं हुई, फिर सोचा जो होगा देखा जाएगा। हम उस बर्फ़ में चलने लगे। कुछ ही कदम बढ़ाए, पैर बर्फ़ में घुस गया। इस ट्रेक की असली परीक्षा अब होने वाली थी।

ज़ीरो प्वाइंट, खलिया टॉप।

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हम बार-बार बर्फ़ में घुस रहे थे और फिर निकल रहे थे। हमने जैसे-तैसे उस पेच को पूरा किया तो पता चला कि अभी एक और लंबी चढ़ाई चढ़नी थी। मरता क्या ना करता? हम अब वापस लौट नहीं सकते थे तो आगे ही बढ़ चला। बर्फ़ में चढ़ना तो मुश्किल हो ही रहा था, हवा भी काफ़ी तेज़ चल रही थी। जब रास्ता इतना कठिन होता है तो आप बस जल्दी से उस रास्ते को पूरा करना चाहते हैं। काफ़ी देर बाद कड़ा मशक़्क़त के बाद हम ज़ीरो प्वाइंट पहुँच गए। यहाँ पर एक बोर्ड लगा हुआ है। जिस पर लिखा है- खलिया टॉप मुनस्यारी ज़ीरो प्वाइंट। इससे बहुत आगे ना जाएँ. भटकने की संभावना है। कठिन रास्ते के बाद ही सबसे सुंदर नजारा देखने को मिलता है।

ज़ीरो प्वाइंट

ज़ीरो प्वाइंट से दिखने वाला नजारा वाक़ई में बेहद सुंदर है। सबसे ऊँची जगह से हमें चारों तरफ़ का नजारा दिखाई दे रहा था। एक तरफ़ बर्फ़ पसरी हुई है और दूसरी तरफ़ हरा-भरा विशाल जंगल है। वहीं चारों तरफ़ हिमालय का सुंदर नजारा है। ज़ीरो प्वाइंट की सुंदरता के सामने खलिया टॉप कुछ भी नहीं है। खलिया टॉप आए और ज़ीरो प्वाइंट नहीं गए तो फिर क्या ही ट्रेक किया।

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कुछ देर यहाँ ठहरने के बाद हम वापस नीचे लौट पड़े। हमने पहले सोचा था कि कैंपिंग साइट पहुँचकर वहीं पर ठहरेंगे। कैंपिंग साइट पहुँचने के बाद हमें लगा कि हम नीचे उतर सकते हैं तो नीचे पहुँच गए। खलिया टॉप गेट पहुँचे तो अंधेरा हो गया था। रात में हमें कोई साधन नहीं मिला, इसलिए जंगल से होते हुए हम मुनस्यारी पहुँचे। इस तरह हमारा एक लंबा दिन खूबसूरत सफ़र और नज़ारे के साथ पूरा हुआ।

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