
भीलवाड़ा में इस समय अगर आओगे तो मुख्य बाजार के आसपास सभी मिठाइयों की दुकानों के बाहर की ओर भयंकर भीड़ देखने को मिलेगी। दुकानों के बाहर तो छोड़ो,कई मुख्य चौराहों पर टेंट लगा कर उसमें भी यह बिकती हुई दिखाई देगी। जब आप दुकानों के पास जा कर देखोगे तो पाओगे कि दुकान के बाहर कई गर्म कढ़ाइयों में से जलेबी और इमरती जैसी चीज बनाकर निकाली जा रही हैं और इसी को खरीदने के लिए लोग यहां एडवांस्ड पैसा देकर नंबर लगा रहे हैं।
तो जलेबी और इमरती जैसी दिखने वाली इस मिठाई को बोला जाता हैं "मुरके"। नवरात्रि के बाद से ही यह भीलवाड़ा के बाजारों में बिकती हुई दिखाई देने लग जाती हैं और पूरा दिन ,मुख्य रूप से रात को इन्हे लेने के लिए हर दुकान पर भारी भीड़ लगी रहती हैं।जहां जलेबी वगेरह मैदे की बनी बनाई जाती हैं वही उसके उलट मुरके उड़द की दाल के आटे और देसी घी से बनाए जाते हैं।साल में केवल 20 से 28 दिनों में ही मिलने वाली इस मिठाई को ना खाने वाला भीलवाड़ा में कोई घर मिलता नहीं हैं।
जहां एक तरफ नकली मावे के उपयोग के कारण कई लोग बाजार से मिठाई लेने से कतराते हैं,वही यह मिठाई बिना मावे के ,शुद्ध देसी घी से सभी के सामने ही बनाई जाती हैं और गर्म ही पैक की जाती हैं।
बाजार में मिलावटी दूध और मावे के कारण से ही आजकल इस मिठाई की डिमांड शहर में और ज्यादा बढ़ गईं हैं और आलम यह है कि लगभग हर मुख्य चौराहे पर हलवाई टेंट तंबू लगाकर ही इन्हे बेचने लग गए हैं।



मुरके खाने का असली मजा इस हल्की हल्की ठंड में ही आता हैं।इसका एक पिस करीब 60 से 70 ग्राम का होता हैं और इन्हें गर्म ही खाने पर अंदर भरी गर्म चाशनी का असली मजा मिलता हैं।ये करीब 300 रुपए से लेकर 450रुपए प्रति किलों तक मिलते हैं जिसमें भी आपको इसे लेने के लिए दुकान पर करीब 15 से 20 मिनिट का इंतजार करना पड़ सकता हैं। दिवाली पर यहां कई घरों में लक्ष्मी जी को इन मुरकों का भोग भी लगाया जाता हैं।आसपास के जिलों के भी लोग यहां इसे खाने आते हैं। अन्य मिठाइयां तो आपकों आपके शहर में मिल ही जाएगी लेकिन यह चीज केवल भीलवाड़ा में ही मिलेगी वो भी केवल कुछ दिनों के लिए ,तो अगली बार जब नवरात्रि से दिवाली के बीच भीलवाड़ा से निकलना हो तो इस लोकल डिश का स्वाद लेना ना भूले।
-ऋषभ भरावा